योगी से कैसा डर ! – श्रीमन नारायण
हिमालिनी, अंक डिसेम्वर 2018,उत्तर प्रदेश के मुख्यमन्त्री योगी आदित्यनाथ साधु–सन्तों की टोली का नेतृत्व करते हुए विवाह पंचमी के पवित्र अवसर पर जनकपुरधाम आ रहे हैं । प्रत्येक वर्ष विवाह पंचमी के अवसर पर भगवान राम की जन्मभूमि अयोध्या से साधु–सन्तों की टोली बाराती के रूप में जनकपुर आने की परम्परा सी है । कयास तो यह भी लगाए जा रहे थे कि शायद भारत के प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ही इस बार सन्तों के साथ बाराती का नेतृत्व करते जनकपुर आएंगे लेकिन उनकी व्यस्तता को देखते हुए यह सम्भव नहीं हो पाया ।
भारत की सबसे बड़ी आवादी वाले प्रान्त की मुख्यमन्त्री योगी आदित्यनाथ इन दिनों भारत के सर्वाधिक जनप्रिय नेताओं में से एक है । उनके जैसे नेताओं के जनकपुर भ्रमण से नेपाल–भारत के सांस्कृतिक सम्बन्धों को तो मजबूती मिलेगी हीं, इससे जनकपुर में भारतीय पर्यटकों के आगमन में भी तेजी आएगी । भारतीय प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी के नेपाल आगमन से नेपाल के धार्मिक तीर्थस्थलों पशुपतिनाथ, मुक्तिनाथ, मनोकामना एवं जनकपुरधाम में धार्मिक पर्यटकों के आगमन में अत्याधिक वृद्धि हुई है । जाहिर है इससे न सिर्फ हमारे सामाजिक एवं सांस्कृतिक रिश्ते मजबूत हुए है, अपितु पर्यटन क्षेत्र का भी विकास हो रहा है । लेकिन नेपाल के पर्यटन क्षेत्र का विकास और खास करके जनकपुर का विकास भी कुछ स्थानीय नेताओं को रास नहीं आ रहा है ।
बार–बार नेपाल सरकार में मन्त्री का पद सुशोभित करके भी जनकपुर के विकास में योगदान देने में असक्षम नेता जनकपुर का विकास सहन भी नहीं कर पा रहे हैं । नेपाली कांग्रेस के वरिष्ठ नेता विमलेन्द्र निधि योगी आदित्यनाथ के आगमन से कुछ ज्यादा ही घबराए हुए लगते हैं । उन्हें लगता है कि योगी आदित्यनाथ के जनकपुर आने मात्र से ही नेपाल में फिर से राजतन्त्र की वापसी हो जाएगी तथा नेपाल फिर से हिन्दू राष्ट्र बन जाएगा । विमलेन्द्र निधि को कुछ वर्ष पहले भी ऐसा ही डर हुआ था कि कहीं मोदी जी जनकपुर आएंगे तो नेपाल में फिर से राजतन्त्र की वापसी हो सकती है, देश हिन्दुत्व की ओर लौट सकता है, मधेश आन्दोलन निर्णायक रूप ले लेगा । उस समय वे देश के गृहमन्त्री हुआ करते थे । मोदी जी जनकपुर तो आए परन्तु तीन वर्ष बाद । वैसे मोदी जी के जनकपुर से वापस लौट जाने के ८ महीने वाद भी न तो नेपाल में राजतन्त्र की वापसी हुई है, और नहीं देश फिर से हिन्दूत्व के राह पर लौटा है । जब कि मधेश पहले से अधिक शान्त है । जब मोदी जी के आगमन से कोई बहुत बडा राजनीतिक उथल–पुथल नहीं हुआ तो भला योगी जी के आने से कैसे हो सकता है ? दरअसल चुनाव में जनकपुर के बाहर के नेता से पीट जाने के बाद विमलेन्द्र निधि इसकी खीझ भारतीय नेताओं पर उतार रहे हैं । वैसे विमलेन्द्र निधि की बातों को उनकी ही पार्टी के कतिपय नेताओं ने गैर जिम्मेदार, अपरिपक्व तथा इसे निधि की निजी टिप्पणी कहा है ।
नेपाली कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अर्जुन नरसिंह केसी ने कहा है कि योगी के भ्रमण का अकारण विरोध किया जा रहा है । धार्मिक तीर्थायात्री के रूप में वे आ रहे हैं तो इसे स्वभाविक और स्वागतयोग्य माना जाना चाहिए । योगी का स्वागत होना चािहए । लम्बे समय नेपाली कांग्रेस के विदेश विभाग में काम कर चुके एक अन्य नेता के अनुसार इसतरह की अभिव्यक्ति को अपरिपक्वता ही माना जाएगा । योगी जी के भ्रमण का विरोध करने का कोई मतलब ही नहीं है । अगर किसी कांग्रेसी ने इसका विरोध किया है तो इसे उनकी निजी धारणा मानी जानी चाहिए पार्टी का नहीं । इस बार योगी का विरोध करके निधि अकेले पड़ गए । नेपाली कांग्रेस के महासचिव एवं कांग्रेस सांसद् डा. शशांक कोइराला बार–बार इस विषयों को चर्चा में ला चुके हैं कि नेपाल को फिर से हिन्दू राष्ट्र घोषित किया जाना चाहिए, जरुरत पड़ी तो इसके लिए जनमत संग्रह भी किया जाए । वैसे इसे नेपाली कांग्रेस के अन्दरुनी कलह से भी जोड़ कर देखा जा रहा है । पार्टी अध्यक्ष शेर बहादुर देउवा के करीबी नेताओं में विमलेन्द्र निधि को माना जाता है जबकि कोइराला देउवा विरोधी हैं ।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमन्त्री योगी आदित्यनाथ एक योग्य, कुशल एवं इमानदार नेता है । वे राजनीतिक उद्देश्य से नेपाल नहीं आ रहे हैं । यह विशुद्ध रूप से धार्मिक भ्रमण है । वर्षो पुरानी परम्परा को निरन्तरता देते हुए एक सन्त के रूप में वे जनकपुर आ रहे हैं । विवाह पंचमी के शुभ अवसर पर अयोध्या से बारातों का जनकपुर आना स्वभाविक ही तो है । सन्तों की यात्रा का विरोध करना मानिसक दिवालियापन है ।
योगी आदित्यनाथ पवित्र गोरखपुर मन्दिर के प्रमुख महन्थ रह चुके हैं । योगी आदित्यनाथ नाथ सम्प्रदाय से आते हैं, नेपाल के राष्ट्रगुरु योगी नरहरिनाथ भी शायद नाथ सम्प्रदाय के ही थे । श्री गोरखनाथ का नाम नेपाल में काफी आदर भाव एवं सम्मान के साथ लिया जाता रहा है । अगर नाथ सम्प्रदाय के प्रति नेपाल के पूर्व राजपरिवार का खास धार्मिक लगाव है तो उसे सिर्फ उन की निजी आस्था का विषय मात्र जाना चाहिए । योगी आदित्यनाथ धार्मिक यात्रा में आ रहे हैं । वैसे हिन्दू धर्म के आस्था रखनेवाले तो सन्तों में भी ईश्वर का ही रुप देखते हैं ! धार्मिक एवं सांस्कृतिक भ्रमण को राजनीतिक रंग न दिया जाए तो ही बेहतर ।
जनकपुर को अयोध्या से ओर सीता को राम से दूर रखने का काम न किया जाए । राजनीतिक लाभ हानि के लिए देश में बहुत सारे सियासी मुद्दे हैं । नेपाली कांग्रेस संसद में तो सही ढंग से विपक्षी दल के भूमिका का निर्वाह कर नहीं पा रही है । सड़क में वह सरकार के खिलाफ नहीं उतर पाई है । सिर्फ बहानाबाजी के सहारे ही इसके नेता चर्चा में आना चाहते हैं, लेकिन उसके लिए भी विषय और वक्त का सही चयन होना आवश्यक है ।