सत्य के पुजारी; मोहनदास करमचंद गाँधी; एक दुर्लभ व्यक्तित्व थे : गंगेशकुमार मिश्र

महात्मा …उनका कहना था, ” सच्चाई कभी नहीं हारती।“
अहिंसा को धर्म मानने वाले, सत्य के पुजारी; मोहनदास करमचंद गाँधी; एक दुर्लभ व्यक्तित्व थे।
एक घटना जिसने, गाँधी जी के जीवन को बदल के रख दिया।हुआ यूँ था कि गांधी जी ने पन्द्रह वर्ष की उम्र में, कर्ज चुकाने के लिए चोरी की थी; वह चोरी थी, अपने भाई के कड़े से सोने की; जिसे सुनार से कटवाकर बेच दिया था गांधी जी ने। कर्ज़ तो चुक गया था किन्तु गांधी जी अन्दर ही अन्दर व्यथित और दुःखी थे; अन्तरमन चित्कार कर कह रहा था, मोहन तुमने बहुत बड़ा पाप किया है और ये बात, उनके लिए असह्य हो गई। इस दर्द से आहत गांधी जी ने मौन धारण कर लिया था; वो ये बात किसीसे कहना चाह रहे थे, परन्तु कहें तो किससे। अंत में वे एक निर्णय पर पहुँचे और उन्होंने सारा वृतान्त, एक पत्र में लिखा अपने पिता के नाम; जिसमें यह भी लिखा था कि पिता जी आप इस अपराध के लिए जो भी सज़ा देना चाहते हैं, दे सकते हैं।गांधी जी ने वह पत्र; अपने पिता जी के हाथों में दिया और स्वयं उन्हीं के सामने ही चुपचाप बैठ गए।
पिता जी ने पत्र को पढ़ा, उन्होंने कुछ कहा नहीं; उनकी आँखें भर आईं थी, वे बिना कुछ बोले चुपचाप वहाँ से चले गए। इस घटना ने गाँधी जी के कोमल मन पर; ऐसा छाप छोड़ा कि उसके बाद वे जीवन में, सभी बुराइयों से दूर होते गए और आज उन्हें हम महात्मा के रूप में देखते हैं।
यदि उस दिन, उनके पिता जी ने उन्हें डाँटा होता या कोई कठोर सज़ा दी होती तो शायद; तो वह अहसास मर जाता, जिस अहसास ने गाँधी को महात्मा बना दिया।
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