भारतीय लोकसभा चुनाव – कमल का खिलना तय : डा. श्वेता दीप्ति
डा. श्वेता दीप्ति, काठमांडू | भारत को विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र माना जाता है । जहाँ वर्तमान में लोकतंत्र का महापर्व मनाया जा रहा है । इस चुनावी महापर्व पर पूरी दुनिया की नजरें टिकी हुई हैं । विश्व फलक पर भारत ने पिछले समय में एक मजबूत उपस्थिति दर्ज करवाई है । जिसकी वजह से हर राष्ट्र भारत के चुनावी माहोल पर नजरें गड़ाए हुए है । नेपाल का पड़ोसी मित्र राष्ट्र होने की वजह से वहाँ की चुनावी सरगर्मी पर नेपाल की नजरें भी टिकी हुई हैं ।
फिलहाल भारत के तीन सौ से अधिक चुनाव क्षेत्रों में दुनिया की सबसे बड़ी चुनाव प्रक्रिया पूरी हो चुकी है । भारत में चुनाव का तीसरा चरण पूरा होने के बाद भारतीय संसद के निचले सदन के लिए ११६ प्रतिनिधि चुनने के उद्देश्य से मतदान किया गया । चुनाव के इस तीसरे चरण में १८.८५ करोड़ में से छियासठ प्रतिशत ने अपने मताधिकार का उपयोग किया । भारत के चुनाव आयोग ने प्रबंध किया था कि कुल सात चरणों में होने वाले लोक सभा चुनावों के तीसरे चरण का मतदान बिना किसी बाधा के पूरा हो ।
भारतीय मतदाता ५४३ सीटों में से ३०३ संसदीय चुनाव क्षेत्रों में अपना मतदान कर चुके हैं । चुनाव प्रचार की गहमा–गहमी में विभिन्न राजनीतिक दलों के मुख्य प्रचारक अपने–अपने उम्मीदवारों के पक्ष में जोरदार प्रचार कर रहे हैं ।
मतदान के तीसरे चरण में ११६ संसदीय चुनाव क्षेत्रों में १६४० उम्मीदवार मुकाबले में थे । इतनी बड़ी संख्या में उम्मीदवारों का चुनाव लड़ना निश्चित रूप से भारत के जीवंत और सहभागितापूर्ण लोकतंत्र का परिचय देता है ।
केवल तीसरे चरण के लिए ही पूरे देश में दो लाख से ज्यादा मतदान केन्द्र स्थापित किए गए थे । निर्वाचन आयोग ने एक अकेले मतदाता के लिए एशियाई शेरों के लिए मशहूर गिर के घने जंगलों में बानेज गाँव में भी एक निर्वाचन केन्द्र स्थापित किया और ये दर्शाया कि हर एक मत महत्त्वपूर्ण है ।
भारत के पश्चिम में गुजरात में सभी २६ लोकसभा सीटों पर चुनाव हुए । घनी वनस्पति और बैकवॉटर वाले केरला में सभी २० संसदीय सीटों पर मतदान हुआ । इस के अतिरिक्त बिहार, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, गोवा, त्रिपुरा, महाराष्ट्र, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, दादरा और नागर हवेली तथा दमन व दीव में भी मतदान हुआ । सुरक्षा तथा संभार तंत्र के चलते बिहार, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में बचे हुए चार चरणों में भी मतदान होगा ।
जम्मू और कश्मीर के अनंतनाग संसदीय चुनाव क्षेत्र में तीसरे चरण में आशिंक रूप से मतदान हुआ । इस चुनाव क्षेत्र में अगले दो चरणों में चुनाव पूरा होगा । अनंतनाग ऐसी एकमात्र लोक सभा सीट है जहाँ सुरक्षा कारणों की वजह से तीन चरणों में चुनाव हो रहे हैं ।
भारत के चुनाव आयोग ने ये सुनिश्चित करने के लिए कड़े उपाय किए हैं कि आदर्श चुनाव आचार संहिता का हर प्रकार से पालन किया जाए । निर्वाचन आयोग ने आचार संहिता का उल्लंघन करने वाले दोषी राजनेताओं को भी नहीं बख्शा । आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन करने पर आयोग ने कुछ अग्रणी नेताओं पर अगले कुछ दिनों तक चुनाव प्रचार ना करने का प्रतिबंध लगा दिया है । जाति और धर्म के नाम पर मत माँगना आदर्श आचार संहिता का गंभीर उल्लंघन है । वर्तमान चुनाव में मतदाताओं का उत्साह उल्लेखनीय है । पहले तीन चरणों में युवा मतदाताओं के उत्साह को खूब सराहा गया ।
बची हुई २४० लोक सभा सीटों के लिए अभी चार चरणों में चुनाव होने हैं । १९ मई को अंतिम चरण का मतदान होगा और २३ मई को चुनाव परिणाम सामने आएगा ।
क्या है चुनावी हवा का रुख ?
कुछ महीनों पहले तक ऐसा लग रहा था कि बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार को कांग्रेस से चुनौती मिल सकती है । इसलिए भी क्योंकि पिछले साल कांग्रेस ने तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव जीते थे जिससे लगा कि कांग्रेस उबर रही है ।
लेकिन पुलवामा हमले के बाद अब २०१९ का समीकरण बदलता नजर आ रहा है । राष्ट्रवाद की भावनाओं के साथ बीजेपी ने पुलवामा के बाद ये चुनावी समीकरण अपने पक्ष में कर लिया है । कम–से–कम हिंदी राज्यों में तो उसने अपने नुकसान को काफी कम कर लिया है और कांग्रेस के साथ–साथ दूसरी क्षेत्रीय पार्टियों को भी अपनी रणनीति पर दोबारा सोचने पर मजबूर किया है ।
सवाल पहले ये था कि क्या बीजेपी २०१९ में वापसी कर पाएगी ? पुलवामा हमले के बाद अब सवाल ये है कि बीजेपी २०१९ में कितनी सीटें जीत पाएगी ?
पुलवामा हमले से पहले भी बीजेपी २०१९ के चुनावों की रेस में आगे थी लेकिन पुलवामा के बाद बीजेपी हिंदी राज्यों में कांग्रेस और क्षेत्रीय पार्टियों से भी थोड़ा आगे निकल गई है ।
बालाकोट एयरस्ट्राइक से बीजेपी सरकार की छवि भी बनी कि ये सरकार पाकिस्तान को जवाब दे सकती है । साथ ही बीजेपी को इस बात से भी फायदा हो रहा है कि लोगों को नरेंद्र मोदी का विकल्प नजर नहीं आ रहा । पुलवामा के बाद मोदी और मजबूत दिखाई दे रहे हैं और उनकी लोकप्रियता जो कम होती दिखाई दे रही थी, उसे फिर से उछाल मिल गया । हालांकि, इससे अलग भी एक मत है कि अगर अटल बिहारी वाजपेयी जैसे लोकप्रिय नेता को २००४ में कमजाेर कांग्रेस और बंटा हुआ विपक्ष हरा सकते हैं तो क्या लोकप्रिय नरेंद्र मोदी को २०१९ में नहीं हराया जा सकता ? १९९९ के लोकसभा चुनाव भी करगिल युद्ध के बाद हुए थे । कोई पार्टी ये दावा नहीं कर सकती कि वो अजेय है और यही बात बीजेपी पर भी लागू होती है । लेकिन २०१९ को २००४ से तुलना नहीं कर सकते क्योंकि इन दोनों चुनावों में कांग्रेस का वोट बेस अलग है ।
जब २००४ में कांग्रेस ने चुनाव लड़ा तो उसके पास २८.५ वोट थे और अब कांग्रेस का वोट १९.६५ ही रह गया है.
अगर कांग्रेस ६÷७ फीसदी की बढ़ोतरी कर भी लेती है तब भी १०० सीटों से ज्यादा नहीं मिल पाएंगी ।
अगर किसी लोकप्रिय सरकार को हराना है जैसे कि बीजेपी सरकार तो विपक्ष को सत्ताधारी पार्टी से ज्यादा मजबूत नजर आना होगा और अगर कोई एक विपक्षी पार्टी बहुत मजबूत नहीं हैं तो सत्ताधारी पार्टी को हराने के लिए विपक्षी पार्टियों को एक साथ आना होगा ।
फिलहाल जो परिस्थिति है उसमें इन दोनों में से कुछ नजर नहीं आ रहा । कांग्रेस उत्तर प्रदेश में महागठबंधन नहीं बना पाई और कई कोशिशों के बाद भी आज तक आम आदमी पार्टी से भी गठबंधन नहीं कर पाई है ।
कांग्रेस अकेले बीजेपी को इस समय नहीं हरा सकती । विपक्ष साथ आता तो जÞरूर मोदी के लिए एक चुनौती होती लेकिन फिर भी बीजेपी को २०० सीटों से नीचे नही ला पाता ।
जीत का अंतर बहुत बड़ा
पहले राष्ट्रीय स्थिति की बात करते हैं और उसके बाद राज्यों की । २०१४ लोकसभा चुनावों में बीजेपी को कई क्षेत्रों में बड़े अंतर से जीत मिली । बीजेपी को इन सीटों पर तभी हराया जा सकता है जब बड़ा नकारात्मक वोट विपक्ष के खाते में स्विंग हो ।
बीजेपी को ४२ लोकसभा सीटों पर तीन लाख वोटों से भी ज्यादा के अंतर से जीत मिली थी और ७५ लोकसभा सीटों पर दो लाख से ज्यादा के अंतर से ।
३८ लोकसभा सीटों पर डेढ लाख वोटों के अंतर से जीत हासिल की थी और ५२ लोकसभा सीटों पर १ लाख से ज्यादा वोटों के अंतर से ।
२०१९ में विपक्षी पार्टियों के लिए इतने अंतर को पाटना आसान नहीं होगा । ये तभी संभव है अगर सत्ताधारी बीजेपी के खिलाफ लोगों में गुस्सा हो । पहले लोगों में बीजेपी को लेकर गुस्सा था लेकिन पुलवामा के बाद अब स्थिति बदल गई है । विपक्षी पार्टियों के लिए इन वोटों को अपने पक्ष में करना मुश्किल हो सकता है ।
क्या विधानसभा चुनावों में हुई जीत का फायदा कांग्रेस को नहीं ?
अब एक नजर २०१९ में अलग–अलग तरह के मुकाबले पर डालते हैं और देखते हैं कि बीजेपी २०१९ में कैसा प्रदर्शन करेगी । ऐसा माना जा रहा है कि उन हिंदीभाषी राज्यों में बीजेपी को नुकसान हो सकता है जहां मुकाबला दोतरफा है ।
ये सही है कि हिंदीभाषी राज्यों में बीजेपी अपने २०१४ के प्रदर्शन से बेहतर नहीं कर सकती जहां दो तरफा मुकाबला है लेकिन ये भी सच है कि बीजेपी को गुजरात, छत्तीसगढ़, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश और उत्तराखंड में ज्यादा नुकÞसान नहीं होगा बशर्ते कुछ नाटकीय मोड़ ना आ जाए ।
जबकि आज भी मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों में हार के बाद भी बीजेपी मध्य प्रदेश और राजस्थान में कांग्रेस से थोड़ा फायदे में ही नजर आ रहा है ।
अगर हम इन विधानसभा चुनावों के वोट को संसदीय चुनाव में तब्दील करें तो मध्य प्रदेश में बीजेपी १८ लोकसभा सीटों पर आगे है और कांग्रेस ११ सीटों पर । राजस्थान में विधानसभा वोटों को संसदीय चुनाव के हिसाब से देखें तो बीजेपी १३ सीटों पर आगे है और कांग्रेस १२.
सिर्फ छत्तीसगढ़ में कांग्रेस निर्णायक स्थिति में है । हालांकि यहां भी पुलवामा के बाद बीजेपी का वोट शेयर बढ़ने की संभावना है ।
अगर हम सोचें कि कांग्रेस का वोट शेयर २०१४ की तुलना में २०१९ में बढ़ेगा तो कांग्रेस को दोतरफा चुनावों का फायदा उठाने के लिए बहुत ज्यादा वोट स्विंग करना पड़ेगा और कांग्रेस के लिए भी इतना वोट शिफ्ट करना आसान नहीं होगा ।
इन हिंदीभाषी राज्यों में कांग्रेस और बीजेपी के वोट शेयर में बहुत बड़ा अंतर है । यानी कांग्रेस अकेले अपने दम पर नहीं जीत पाएगी ।
क्या क्षेत्रीय पार्टियों का गठबंधन बीजेपी को चुनौती दे सकता है ?
ऐसे कई राज्य हैं जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, पंजाब, हरियाणा, झारखंड, पंजाब, जम्मू कश्मीर और दिल्ली जहां बीजेपी का प्रदर्शन अच्छा रहा । इन राज्यों में बीजेपी ने या तो क्षेत्रीय पार्टियों के साथ गठबंधन किया और जहां क्षेत्रीय पार्टियां बंटी हुई थी तो बीजेपी विरोधी वोट भी बंट गईं और उसका फायदा बीजेपी को मिला । ये सही है कि विपक्षी पार्टियों का गठबंधन बीजेपी को कई राज्यों में बैकफुट पर ला सकता है जैसे उत्तर प्रदेश, दिल्ली, पंजाब, झारखंड, हरियाणा, महाराष्ट्र. बिहार में विपक्ष का गठबंधन एनडीए का नुकसान नहीं कर सकता । कांग्रेस ने कर्नाटक, तमिलनाडु, झारखंड, महाराष्ट्र, बिहार में गठबंधन किया है लेकिन ये बीजेपी को चुनौती देने के लिए काफी नहीं ।
पश्चिम बंगाल, ओडिशा में २०१४ लोकसभा चुनावों में बीजेपी का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा था लेकिन २०१९ में बीजेपी के पास यहां मजबूत होने का अच्छा मौका है अगर २०१४ जैसे ही परिस्थितियां रही तो यानी कि विपक्ष बंटा हुआ रहे तो यह सम्भव है ।
पिछले कुछ सालों के सर्वे इसी तरफ इशारा कर रहे हैं । सर्वे कहते हैं कि बीजेपी पिछले कुछ सालों में इन राज्यों में पहले से मजबूत हुई है । विपक्ष गठबंधन नहीं करेगा तो बीजेपी के लिए इन राज्यों में राह आसान होगी ।
दक्षिण में तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में बीजेपी की स्थिति करीब करीब २०१४ जैसी ही है सिर्फ केरल में बीजेपी का समर्थन बढ़ा है लेकिन लोकसभा सीटें जीतने के लिए काफी नहीं है ।
किन्तु जहाँ तक मोदी के अपने क्षेत्र बाराणसी का सवाल है तो वहाँ के रोड शो ने बहुत हद तक भारत के लोकसभा चुनाव के परिणाम की तसवीर साफ कर दी है । अब तक यह कयास लगाया जा रहा था कि बाराणसी से मोदी जी के सामने प्रियंका वाड्रा को खडा किया जाएगा । पर शायद काँग्रेस यह समझ चुकी है कि प्रियंका की छवि बचानी है तो उसे हारने की राजनीति से बचाना होगा इसलिए बाराणसी से प्रियंका के खडा होने की सम्भावना खत्म हो चुकी है । ये सभी परिस्थितियां और आंकड़े इसी तरफ इशारा करते हैं कि २०१९ में नरेंद्र मोदी को हराना लगभग नामुमकिन है । मोदी का जादू भारतीयों के सर चढ़कर बोल रहा है ।
भारत के चुनाव परिणाम का विश्व पर असर
चीन–भारत के रिश्ते नाजुक दौर से गुजर रहे हैं ऐसे में नजर रखने वाले जल्द ही इस बात पर ध्यान देना शुरू करेंगे कि मोदी के सत्ता पर पकड़ मजबूत बनाने के बाद दोनों देशों के बीच रिश्ते क्या मोड़ लेते हैं ।
पिछली बार मोदी को विकास के मुद्दे पर चुना गया था । हालांकि, उनकी कुछ कोशिशें अच्छे नतीजे देने में नाकाम रही हैं, लेकिन उन्होंने साबित किया है कि वो नारे लगाने वाले नेता नहीं बल्कि करने में यकीन रखते हैं । २०१९ का चुनाव भारत की जनता की भावना पर टिकी हुई है । पुलवामा हमले के बाद पाकिस्तान के लिए आम जनता में जो रोष था, दर्द था उस पर एयर स्ट्राइक का मरहम मोदी सरकार लगा कर उनके भावनात्मक वोट पर तो कब्जा कर ही लिया है । इसलिए पिछले पाँच साल में मोदी सरकार ने आम जनता में नाराजगी पैदा की भी थी तो वह वर्तमान में धुल चुका है ।
देश को लेकर मोदी का सख्त रुख उनकी घरेलू नीतियों में भी दिखा, जैसे नोटबंदी और उनके कूटनीतिक तर्क । आज अगर अंतरराष्ट्रीय मोर्चे की बात करें, तो पाते हैं कि भारत का पुराना रुख बदला है पहले भारत किसी को नाराज नहीं करने की कोशिश करता था । इसलिए कोई भी सख्त कदम उठाने से परहेज करता था किन्तु आज भारत अपने हित और लाभ को देखते हुए विवादों पर स्पष्ट पक्ष लेने लगा है ।
मोदी ने चीन और रूस के साथ रिश्ते सुधारे हैं । शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन का सदस्य बनने के लिए आवेदन किया है । इसके बावजूद अमरीका और जापान के साथ रक्षा सहयोग बढ़ाया है । अगर मोदी अगला चुनाव जीतते हैं तो भारत का कड़ा रुख आगे भी जारी रहेगा यह तय है ।
भारत और अमेरिका दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश हैं, जिसमें काफी समानता भी है । बराक ओबामा के साथ भारत और अमेरिका के रिश्ते में काफी मजबूती आई और दोनों देशों के बीच आर्थिक सहयोग सुधार और व्यापार में वृद्धि हुई । बराक ओबामा की दो बार हुई भारत यात्रा ने भारत और अमेरिका के रिश्ते को नई ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया क्योंकि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिका के साथ मिलकर दुनिया से आतंकवाद को खत्म करने और शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के निर्माण के लिए कई समझौते किये । साथ ही जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद, गरीबी, कुपोषण, मानवाधिकार जैसे अंतरराष्ट्रीय मुद्दो पर साथ रहकर काम करने की इच्छा जतायी । इससे दोनों देश कई मुद्दों पर पास आये ।
२०१७ में डोनाल्ड ट्रम्प अमेरिका के नए राष्ट्रपति बने । इस दौरान भारत और अमेरिका के बीच रिश्तों को और मजबूती मिली । डोनाल्ड ट्रम्प का भारत के खिलाफ शुरू से रवैया काफी खास रहा है । ट्रम्प ने अपने चुनाव प्रचार के समय कहा था कि यदि वे राष्ट्रपति बनते हैं, तो अमेरिका में रह रहे हिन्दू समुदाय के लोगों के लिए वाइट हाउस में एक सच्चा दोस्त होगा । डोनाल्ड ट्रम्प के राष्ट्रपति बनने के बाद प्रधानमंत्री मोदी पहले ऐसे विदेशी मंत्री थे, जिन्होंने वाइट हाउस का दौरा किया था । नरेंद्र मोदी ने अपने अमेरिकी दौरे के दौरान दोनों देशों के बीच अनेक समझौते किये । २०१९ के चुनाव परिणाम अगर भाजपा के पक्ष में जाती है तो स्वाभाविक तौर पर भारत और अमेरिका के रिश्ते प्रगाढ़ होंगे ।
मोदी की विदेश यात्राओं ने भारत की छवि को निखारा है । बात चाहे इजराइल की हो, बंगला देश की हो, खाड़ी देश की हो, अफगानिस्तान की हो, ईरान की हो या फ्रांस की हो आज ये सभी देश भारत के साथ खड़े हैं । यहाँ तक कि आज पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरानखान का भी मानना है कि भारत पाकिस्तान के रिश्ते में सुधार मोदी के पाले में ही सम्भव है ।
जहाँ तक नेपाल का सम्बन्ध है तो यह सत्य है कि नेपाल में हुए कथित नाकेबंदी का असर नेपाल भारत के सम्बन्धों पर पड़ा जिससे रिश्ते में कड़वाहट आई । किन्तु उस कड़वाहट को मोदी की नेपाल यात्रा और केपी ओली की भारत यात्रा ने काफी हद तक कम किया । रिश्ते के तनाव को कम करने हेतु ओली ने इस दिशा में एक महत्वपूर्ण बात कही थी, उनका कहना था कि २१वीं सदी की सच्चाइयों को ध्यान में रखते हुए वे ‘भरोसे की बुनियाद’ पर दोनों देशों के बीच रिश्तों की बुलंद इमारत खड़ी करना चाहते हैं । उनका यह बयान अपने आप में यह बताने के लिए पर्याप्त है कि भारत और नेपाल के संबंध अब एक नए आयाम में प्रवेश कर चुके हैं । कई महत्तवपूर्ण परियोजनाओं पर नेपाल ने भारत के साथ सहमति की है जो निश्चित तौर पर मोदी के पुनः प्रधानमंत्री बनने पर गतिशील होगी ।