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नेपाल की स्थिरता को कड़ी चुनौती, स्वास्थ्य सेवा और मानव सुरक्षा की चुनौतियाँ : डॉ. गीता कोछड़  जयसवाल

डॉ. गीता कोछड़  जयसवाल, नई दिल्ली | नेपाल में कोरोनावायरस फैलने के अधिक ख़तरे के चलते, नागरिकों में तनाव, घबराहट और भय भर गया है। फ्रांस से लौटने वाली एक 19 वर्षीय लड़की को वायरस होने की पुष्टि के बाद, सरकार ने सभी अंतरराष्ट्रीय उड़ानों पर रोकथाम, भारत चीन से जुड़ी सीमाओं को बंद करना, और राष्ट्रीय स्तर पर लॉकडाउन जैसे सख़्त क़दम उठाए हैं। लेकिन, जनता में अत्यधिक नाख़ुशी है और अफवाहों के उच्च प्रवाह की लहर है।

ऐसी स्थिति में जहां पड़ोसी देश – भारत और चीन, दोनों ही कोरोना वायरस बीमारी से प्रभावित हैं, छोटे राज्य पर दोहरी जिम्मेदारी आ गई है: एक, अपनी सीमाओं के भीतर अपने नागरिकों की रक्षा करना और नागरिकों का बीमारी के प्रसार के बिना लौटने की व्यवस्था करना; दूसरा, सीमित संसाधनों और सुविधाओं के होने पर भी संक्रमित लोगों की स्वास्थ्य सेवा के लिए समाधान खोजना। नेपाल में चीन के राजदूत होउ येनछी (Amb. Hou Yanqi) ने नेपाल को नैतिक और भौतिक सहायता देने की स्पष्ट रूप से बात की है; जबकि भारतीय पीएम ने सार्क (SAARC) देशों का आह्वान करते हुए सभी दक्षिण एशियाई देशों को हाथ मिलाने के लिए कहा है और अपनी तरफ़ से 10 मिलियन डॉलर फंड की प्रतिबद्धता की है। फिर भी, बड़ा मुद्दा यह है कि राज्य में दीर्घकालिक स्थिरता और नेपाल में व्यक्तियों की सुरक्षा के लिए क्या किया जाना चाहिए। चीन में कोरोना वायरस से निपटने के लिए, विशेष रूप से अल्पसंख्यक क्षेत्र में संक्रमण के प्रभाव को नियंत्रण में रखने के लिए जो क़दम उठाए हैं, वो नेपाल के लिए सबक प्रदान करते हैं।

 छोटा राज्य: स्वास्थ्य सेवा और मानव सुरक्षा की चुनौतियाँ

न्यूनतम संसाधनों वाले छोटे राज्यों में, सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल के मुद्दे हमेशा एक चुनौतीपूर्ण कार्य होते हैं। छोटे राज्यों में न तो पर्याप्त सुविधाएं होती हैं, और न ही किसी महामारी या आपदा से निपटने में वह सक्षम होते हैं। जब स्वास्थ्य सेवाओं की मांग सीमा पार कारकों से होती है, तब छोटे राज्यों का समस्या से निपटना कठिन होता है क्योंकि वह अन्य बड़ी शक्तियों पर संसाधनों के लिए अधिक निर्भर होते है। इसलिए इन राज्यों का अस्तित्व अन्य बड़ी शक्तियों द्वारा प्रदान किये गए दान और सहायता से सीधे रूप में आनुपातिक है, खासकर अगर उनकी अपनी अर्थव्यवस्था मजबूत नहीं है और वह आत्मनिर्भर नहीं है तब। ऐसे राज्यों की आंतरिक स्थिरता खोने और बाहरी शक्तियों के हाथों में राज्य शक्ति के संभावित आत्मसमर्पण करने का ख़तरा अत्यधिक होता है, अगर देश पहले से ही नाजुक है और मुद्दों को अपने दम पर भंग करने के लिए मजबूत नेतृत्व का अभाव है। एक बड़े फ़्रेम से देखा जाए तो, इसका मतलब यह भी है कि अगर घर पर ही मुद्दों को सावधानी से निपटाया नहीं जाता तब राज्य अपनी संप्रभुता को कम करने और अपने संसाधनों पर नियंत्रण करने के लिए असुरक्षित हो जाता है।

नेपाल चिकित्सा जरूरतों के लिए भारत पर अत्यधिक निर्भर है, जिसके कारणयहाँ के नागरिक इलाज के लिए भारत जातें हैं। वास्तव में, कुछ साल पहले तक, नेपाल के अधिकांस डॉक्टर भारत में प्रशिक्षित होते आये हैं। हालांकि अब सालों से अन्य देश भी विशेष रूप से चीन मेडिकल छात्रों के लिए एक लोकप्रिय स्थान बन गया है , और नेपाल अपनी सभी वित्तीय जरूरतों के लिए चीन को देखने लगा है। भारत और चीन में फैल रहे कोरोना वायरस नेपाल के लिए अधिक जोखिम पैदा हो गया है, जिसका एक बड़ा कारण भारत और चीन दोनों देशों में विभिन्न कारणों से यात्रा, काम और जीवन यापन करने वाले भारी मात्रा में नेपाली नागरिक है।

वर्षों से, इस निर्भरता की वजह से नेपाल ने अपनी पड़ोसी शक्तियों के साथ एक विशेष संबंध बनाया है |  नेपाल ने अपने अस्तित्व के खतरों की चुनौती की वजह से दो मजबूत पड़ोसी शक्तियों – भारत और चीन – से संतुलन बनाए रखने की कोशिश की है। नेपाल में समस्याएं कई गुना अधिक हैं। एक ओर भारत के साथ गहरे संबंध रखने वाले समुदायों की एक बड़ी उपस्थिति है, और दूसरी ओर नेपाली क्षेत्र में रहने वाले तिब्बतियों की बड़ी संख्या है । यह राज्य के भीतर आंतरिक असहमति का कारण है, क्योंकि वह पहले से ही राज्य में दिएगये विभिन्न असमान नागरिक अधिकारों से असंतुष्ट है।

दुनिया भर में कोरोना वायरस से उत्पन्न अशांति की खबर फैलते ही नेपाल को अपनी आबादी का आवत-जावत को प्रतिबंधित करने के लिए कुछ गंभीर कदम उठाने पड़े। हालाँकि नेपाल बड़े पैमाने पर (Visit Nepal 2020)‘नेपाल यात्रा 2020’ की गतिविधियों को शुरू करने के लिए तैयारी कर रहा था | जिसमें लगभग 2 मिलियन पर्यटकों को आकर्षित करना था और व्यापार के अनुकूल वातावरण बनाने के लिए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को आमंत्रित करने की योजनाओं से अपनी अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना था। पर्यटन नेपाल के लिए उच्च राजस्व प्राप्त करने का एक सबसे महत्वपूर्ण ,माध्यम है। सन् 2019 में भारत से 250 मिलियन से अधिक पर्यटक आए और लगभग 170 हजार पर्यटक चीन से आए। लेकिन मार्च के पहले सप्ताह में ही, नेपाल और तिब्बत के सीमावर्ती क्षेत्र के बीच सभी व्यापार, पर्यटन और कर्मियों के आदान-प्रदान पर रोक लग गया।

जैसा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू.एच.ओ.) ने 11 मार्च को घोषणा की कोरोनावायरस, जिसे तकनीकी रूप से कोविद -19 (Covid-19) कहा जाता है, ‘प्रसार और गंभीरता’ के खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है, इसलिए सरकारों को तत्काल और आक्रामक कार्रवाई करने की आवश्यकता है, प्रधान मंत्री केपी शर्मा ओली के कैबिनेट मंत्रियों की एक बैठक ने 23 मार्च से दोनों अंतरराष्ट्रीय सीमाओं को बंद करने का फैसला लिया। इसके साथ ही राष्ट्रीय स्तर पर लॉकडाउन की घोषणा करते हुए भारत और चीन दोनों को मोबाइल एम्बुलेंस, परीक्षण किट, वेंटिलेटर, मॉनिटर की सूची भेजने का फ़ैसला भी सरकार ने लिया।

नेपाल की घोषणाओं के साथ भारत ने भी समान रूप से कड़े क़दम उठाने का फ़ैसला लिया जिसमें भारतीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने 21 दिनों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर लॉकडाउन की घोषणा की, जबकि भारत में पहले से ही 30 राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों में लॉकडाउन चल रहा था। चीन ने पहले से ही लोगों के इनफ़्लो और आउटफ़्लो को सीमित कर दिया था। राज्यों के इस तरह के फ़ैसलों से नेपाल वापस लौटने वाले नागरिकों में वृद्धि हुई, विशेष रूप से भारत में वायरस के प्रकोप के डर से वापस लौट रहे नेपाली नागरिक बहूत ज़्यादा हो गए। भारत-नेपाल सीमा के बंद होने से सीमा पर खलबली सी मच गई है, जिसके चलते कई लोग सीमा पर फंसे हुए हैं और कुछ ने कैलाली में गौरीफंटा सीमा पार विरोध प्रदर्शन भी किया। मानवाधिकार और अंतरराष्ट्रीय कानून के मुद्दे नागरिकों की सुरक्षा की गारंटी देते हैं, मगर यहाँ मची खलबली के चलते कई नेपाली राज्य की जिम्मेदारी पर सवाल उठा रहे हैं।

भले ही अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून प्रत्येक व्यक्ति को स्वास्थ्य देखभाल के उच्चतम प्राप्य मानक के अधिकार की गारंटी देता है और सरकारों को सार्वजनिक स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए आवश्यक कदम उठाने के लिए बाध्य करते है, लेकिन नेपाल में यह मुद्दा विचारणीय है कि किन नागरिकों को प्राथमिकता देनी चाहिए ? मानवाधिकार में यह भी है कि राष्ट्र के लिए खतरा पैदा होने वाली सार्वजनिक आपात स्थितियों के मामले में, कुछ अधिकारों पर सीमित अवधि के लिए न्यायसंगत या भेदभावपूर्ण और मानवीय गरिमा के सम्मान को ध्यान में रखते हुए प्रतिबंध लगाना उचित है। लेकिन, जब नेपाल अपनी मातृभूमि में अपने नागरिकों के प्रवेश को रोकता है और प्रतिबंधित करता है, तब लोग राष्ट्र में मानवाधिकार कानून पर सवाल उठाते हैं क्योंकि नेपाल अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार सम्मेलन का एक हस्ताक्षरकर्ता है।

अब मुद्दा यह है कि क्या नेपाल मानवाधिकारों के मद्देनजर व्यक्तियों की मानव सुरक्षा करता है या कोरोना वायरस के बहाने इन मापदंडों का उल्लंघन करता है। मुद्दा यह भी है कि आबादी के कुछ वर्ग इन अधिकारों से वंचित हैं क्योंकि अधिकांश वापस आने वाले लोग निम्न श्रेणी के श्रमिक हैं या अस्थायी कर्मचारी है, जो अक्सर रोज़ी रोटी की तलाश में सीमा पार करते हैं। यह मुद्दा कुछ समुदायों और क्षेत्रों के खिलाफ भेदभाव से सम्मिश्रित है जो उचित स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित हैं, हालांकि नेपाल में मौजूदा महामारी के लिए बुनियादी सुविधाएँ और संसाधनों का अभाव है।

चीन मॉडल: अल्पसंख्यक राष्ट्रीयताओं और क्षेत्रो की स्थिरता बड़ी प्राथमिकता

नेपाल अक्सर भारतीय नीतियों और कार्यों को अपनाता है लेकिन हाल के कुछ वर्षों से नेपाल ने अपना रुख बदल लिया है और ये चीनी नीतियों को लागू करने के रूप में देखा जा रहा है। गंभीर प्रकृति की महामारी के लिए, भारत अन्य देशों के अनुभवों से सीख रहा है और स्वदेशी कार्य योजनाएं बना रहा है। चीन कोविद -19 से निपटने के लिए एक नाज़ुक दौर से गुज़रा है, विशेष रूप से देश की स्थिरता को ख़तरे में डाले बिना, कोरोना वायरस के प्रभाव को अल्पसंख्यक राष्ट्रीयता वाले क्षेत्रों में विस्तार से रोका है जो की नेपाल और अन्य देशों के लिए सबक हैं। दिलचस्प बात यह है कि, तिब्बत में कोविद -19 की केवल एक ही पुष्टि का मामला आया, और वह भी रिपोर्ट के मुताबिक़ ठीक हो गया। इसी तरह, छींकहाय में 18 मामले और कांसु में 7 मामले थे, इन सभी को ठीक किया गया। अब मुद्दा यह है कि इन क्षेत्रों में मृत्यु दर इतनी कम क्यों थी? और अल्पसंख्यक राष्ट्रीयता वाले क्षेत्रों में वायरस के प्रसार को कैसे नियंत्रित किया गया ?

अगर हम चीनी सरकार द्वारा की गई कार्रवाइयों को देखें, तो यह स्पष्ट है कि जनवरी के बाद से सरकार सक्रिय कार्रवाई में जुट गई थी। आबादी को विभाजन करने पर तेजी से कार्रवाई की गई और विशेष रूप से तिब्बत क्षेत्र में आबादी की गतिशीलता के क्षेत्रों को प्रतिबंधित किया गया। साथ ही, जातीय आबादी के स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने के लिए अच्छी मात्रा में उपकरणों के साथ चिकित्सा श्रमिकों के बड़े समूह को नियुक्त किया गया था। सरकार ने गरीबों के लिए मुफ्त चिकित्सा सुविधा भी प्रदान की, और साथ ही सूचना का समय पर और उचित प्रसार किया।

दिलचस्प बात यह है कि चीनी सरकार ने स्थिति से निपटने के लिए सामूहिक रूप से जुटने की रणनीति का इस्तेमाल किया। 5 मार्च को तिब्बत नेटवर्क पर चाओ अरचाओ(Zhao Erzhao) द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, तिब्बत स्वशासी क्षेत्र (Tibet Autonomous Region, TAR) (टी ए आर) की सरकार के सूचना कार्यालय ने अपनी छठी प्रेस कॉन्फ्रेंस के घोषणा में कहा की तिब्बत को सरकारी धन के साथ-साथ 200 मिलियन युआन से अधिक नकद और चीज़ें दान में मिली, जिसमें विभिन्न प्रकार के लगभग 1.07 मिलियन मास्क, 11,000 से अधिक सुरक्षात्मक कपड़े, इंफ्रारेड थर्मल थर्मामीटर के 34 सेट, लगभग 3700 हैंडहेल्ड इन्फ्रारेड थर्मामीटर, 2300 काले चश्मे, लगभग 210 हजार डिस्पोजेबल दस्ताने, लगभग 17,000 लीटर मेडिकल अल्कोहल, और 33,000 लीटर से अधिक कीटाणुनाशक शामिल थे। संसाधनों को जुटाना प्रांत और प्रांत के बाहर दोनों से था, जिसमें तिब्बत में आंतरिक रूप से टी ए आर की रेड क्रॉस सोसाइटी (Red Cross society of TAR), यूथ फाउंडेशन ऑफ टीएआर (Youth Foundation of TAR) और क्षेत्र की विभिन्न समितियों और कार्यालयों के माध्यम से 120 मिलियन युआन से अधिक दान को इकट्ठा किया था।

अल्पसंख्यक क्षेत्रों की स्थिरता हमेशा चीनी नेतृत्व की सर्वोच्च प्राथमिकता रही है, क्योंकि यह चीनी राज्य के विभाजन का कारण बन सकती है। अस्तित्व खतरे के बहाने जनता की नाखुशी और असंतोष के प्रभाव को रोकने के लिए, स्थानीय और प्रांतीय सरकार ने रोग की जागरूकता को मजबूत करने और जनता की चेतना को बढ़ाने के लिए मानव संसाधन जुटाए। राज्य ने स्वास्थ्य संबंधी उपकरणों में बड़ी रकम का निवेश किया और भोजन, दूध, दवा आदि सहित आवश्यक सामान प्रदान किए। उत्तेजित प्रतिक्रिया और अपवर्जित की भावना की जाँच करते हुए मनोवैज्ञानिक समर्थन भी दिया गया, इसके साथ साथ रिपोर्टिंग के आधिकारिक चैनल खोलने और अफवाहों के प्रसार पर अंकुश लगाने का काम भी किया गया।

नेपाल 19 वां सबसे ज़्यादा विदेश से घर भेजी गई धनराशि (remittances) को प्राप्त करने वाला देश है। पिछले वित्तीय वर्ष में रिपोर्ट के अनुसार कुशल और अकुशल नेपाली श्रमिकों द्वारा 784 बिलियन नेपाली रुपय की धनराशि नेपाल आयी। नेपाल के भीतर और बाहर रहने वाले समुदायों को एकजुट कर संस्थानों को इकट्ठा किया जा सकता है। अगर नेपाल अपने स्वयं के नागरिकों को सुरक्षा प्रदान करने में असमर्थ रहा, तब इसका प्रभाव दीर्घाकालिन तक पड़ेगा। यदि नेपाल अपनी लोकतांत्रिक संरचना को खोए बिना महामारी के खिलाफ लड़ाई में एक विजेता के रूप में आना चाहता है, तो उसे एक मानवीय स्पर्श के साथ जनता के कल्याण के लिए प्रतिबद्धता दिखानी होगी। कठोर प्रावधान जो आम जनता के दैनिक जीवन को बाधित करते हैं, विशेष रूप से कुछ समुदायों और क्षेत्रों का अलगाव और बहिष्कार, जैसे की तराई क्षेत्र का, केवल केंद्रीय शक्तियों को कमजोर करेंगे और सत्ता में सरकार की वैधता को चुनौती देंगे |  हिन्दी में प्रस्तुति : मुरलीमनोहर तिवारी सिपु

Geeta Kochad Jayaswal
डॉ. गीता कोछड़  जयसवाल,
प्रोफेसर, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय

 

 

 



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