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क्या अमेरिका ने “विश्व स्वास्थ्य संगठन” को दी जाने वाली राशि को रोक कर ठीक किया ?

【अजय श्रीवास्तव】
व्हाइट हाउस के रोज गार्डेन में बोलते हुए अमेरिका के घोर विवादास्पद राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने विश्व स्वास्थ्य संगठन को फंड देने पर रोक लगा दी है। इसका अंदेशा भी व्यक्त किया जा रहा था क्योंकि एक हफ्ते पहले ट्रंप ने आरोप लगाया था कि “विश्व स्वास्थ्य संगठन” की जवाबदेही तय की जानी चाहिए।WHO चीन परस्त है।अमेरिका WHO को सबसे ज्यादा फंड देता है।पिछले साल अमरीका ने WHO को 40 करोड़ डाँलर का फंड दिया था जो सभी देश से अधिक है।कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने में विश्व स्वास्थ्य संगठन पूरी तरह नाकाम रहा है।अब इसकी समीक्षा की जाएगी और अगर वह अमेरिका के मापदंड पर खरा नहीं उतरा तो इसको दिये जाने वाले फंड की समीक्षा की जाएगी।
आज अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने विश्व स्वास्थ्य संगठन को दी जाने वाली सहायता को रोकते हुए कहा कि कोरोना वायरस के संक्रमण फैलने से रोकने में WHO बुनियादी काम करने में भी नाकाम रहा है।उन्होंने आगे बढते हुऐ ये भी कहा कि जब चीन से कोरोना वायरस के संक्रमण की शुरुआत हुई तो संयुक्त राष्ट्र का यह संगठन इसे संभालने में नाकाम रहा और वहाँ की असली तसवीर छुपाता रहा।
आपको बता दें अमेरिका विश्व स्वास्थ्य संगठन को विश्व के सभी देशों से ज्यादा अनुदान देता है।अमेरिका का अनुदान 40 से 50 करोड़ डालर सालाना होता है जबकि चीन इस संस्था में महज 04 करोड डाँलर का सहयोग करता है।अमेरिका का WHO के ऊपर ये आरोप जायज है कि अगर समय रहते WHO सही निर्णय ले लिया होता तो इतनी जन-धन की हानि नहीं होती।विश्व स्वास्थ्य संगठन जाने-अनजाने स्थिति को भांपने में पूरी तरह असफल रहा ये तो सभी मानते हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन को 31 दिसंबर 2019 में हीं इस बीमारी का पता चल चुका था फिर भी 20 जनवरी 2020 को WHO के वरिष्ठ अधिकारियों ने चीन के वुहान शहर का दौरा किया।इन बीस दिनों के बीच कोरोना वायरस संक्रमण बेलगाम हो गया था।22 जनवरी 2020 को फील्ड विजीट के बाद WHO ने एक बयान जारी कर ये कहा कि ये वायरस मानव से मानव में फैल रहा है।तब पहली ट्रेवल एडवाइजरी जारी की गई।दूसरी ट्रेवल एडवाइजरी 24 जनवरी और तीसरी 27 जनवरी को जारी की गई।विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक ने 23 जनवरी 2020 को जनेवा में कोरोना को लेकर एक आपात बैठक में कहा था कि हमने यात्रा और व्यापार पर व्यापक प्रतिबंध की सिफारिश नहीं की,लेकिन एयरपोर्ट्स पर यात्रियों की स्केनिंग जरूर होना चाहिए।
यहीं पर WHO चूक गया, उसे संक्रमण की भयावहता का पता हीं नहीं लगा या उसने नजरअंदाज किया।अगर उस समय चीन आनेजाने वालों को रोक लिया गया होता तो बहुत हद तक इस संक्रमण का फैलाव रोका जा सकता था।यहां WHO पूरी तरह नाकाम रहा और उसने अंजाने में हीं वो भूल कर दी जो आज विश्वव्यापी महामारी के रूप में तब्दील हो गई है।उस समय चीन में मात्र 600 लोग संक्रमित थे और 17 लोगों की मृत्यु हुई थी।
अमेरिका के राष्ट्रपति जो इन दिनों अमेरिका में ये आरोप झेल रहें हैं कि सरकार कोरोना संक्रमण को रोकने में पूरी तरह नाकाम रही है।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने संपूर्ण लाँकडाउन इस वजह से लागू नहीं किया कि उनका मानना था कि अर्थव्यवस्था के चौपट होने से वहाँ भयंकर मंदी आएगी और वहाँ के नागरिक इसका सामना नहीं कर पाएंगे।थोडे हीं दिनों के बाद हीं जब स्थिति नियंत्रण से बाहर होने लगी तो उन्होंने इमरजेंसी की घोषणा की मगर तब तक कोरोना संक्रमण सर चढ़ बोल रहा था।आज अमेरिका में तकरीबन छह लाख लोग कोरोना संक्रमित हैं और 25,000 से अधिक लोगों ने अपनी बहुमूल्य जिंदगी गवां दी है।आज तमाम प्रयास करने के बावजूद कोरोना संक्रमण को नियंत्रित नहीं किया जा रहा है।विश्व की महाशक्ति घुटने टेकने पर मजबूर है।अगर मौत की रफ्तार यूँ हीं चली तो तकरीबन दो से तीन लाख लोगों के मारे जाने की संभावना वहाँ के स्वास्थ्य विशेषज्ञ व्यक्त कर रहें हैं।
डोनाल्ड ट्रंप को फिर से राष्ट्रपति चुनाव लडना है,इतनी बदनामी के बाद वहाँ फिर से राष्ट्रपति चुना जाना असंभव सा है।इसी वजह से ये ठीकरा विश्व स्वास्थ्य संगठन के मत्थे फोडा जा रहा है।डोनाल्ड ट्रंप को लग रहा है कि ये आरोप लगाकर कुछ तो भरपाई की जा सकती है, इसी वजह से ये कवायद शुरू की गई है।
मेरा मानना है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन को अपनी गलती मान लेनी चाहिए।ये तो सौ आने सच है कि उससे गंभीर लापरवाही हुई है।WHO के अनिर्णय के कारण हीं ये बीमारी विश्वव्यापी हुई मगर संगठन के डायरेक्टर जनरल अपनी हीं डफली बजा रहें हैं और उनका कहना है कि वायरस के मुद्दे को किसी तरह भी राजनीति में नहीं लाना चाहिए।अगर आप इसे हल्के में लेना चाहते हैं और सब कुछ नकार देना चाहते हैं या फिर आप चाहते हैं कि और भी लोग मरें, तो आप इस पर राजनीति हीं करिए।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के डायरेक्टर जनरल ये मानने को बिल्कुल तैयार नहीं हैं कि उनकी तरफ से भी चूक हुई है।अगर आप समय पर निर्णय नहीं ले सकते, किसी भी महामारी के समय दवा की खोज नहीं कर सकते या उचित परामर्श नहीं दे सकते तो आपकी उपयोगिता पर प्रश्नचिन्ह तो लगेंगे हीं।मैं मान रहा हूँ डोनाल्ड ट्रंप राजनीति कर रहें हैं मगर आप भी अपने कामों को करने में असफल रहे हैं।अमेरिका इस संगठन में सबसे ज्यादा पैसा देता है और वह अंतरराष्ट्रीय समुदाय का चौधरी है।उसे ये निर्णय लेने का अधिकार है चाहे ये गलत हो या सही।
आपको याद होगा इससे पहले डोनाल्ड ट्रंप ने संयुक्त राष्ट्र को दिए जाने वाले फंड पर भी सवाल उठाए थे और वैश्विक जलवायु समझौते से भी अमेरिका को अलग कर लिया था।वर्तमान में अमेरिका सुपर पावर है और उसकी बात को हंस कर या रो कर सभी को मानना हीं होगा मगर WHO की ऐतिहासिक भूल को नजरअंदाज करना भी मुश्किल है।

लेखक परिधि समाचार दैनिक के संपादक हैं

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