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अब तो हवा भी तन्हा तन्हा सी सरसराती गाँव में : बाबूराम प्रधान



बाबूराम प्रधान

गेहूं की अब फसल पक गई उठी दरांती गांव में
सभी काम पर गए हुए हैं कोई नहीं घराती गाँव में

हर भूखे को रोटी हर बीर को है काम मिला
गंदुम का दाना दाना पलकों से उठाती गाँव में

खेतों में हैं लगे काम पर गलियाँ सब सुनसान हैं
अब तो हवा भी तन्हा तन्हा सी सरसराती गाँव में

पन्द्रह दिनों तक चले लावणी रोजी भी भरपूर है
थक कर सब सो जाते अनिद्रा नहीं सताती गाँव में

सुबह सुबह जल्दी उठ सब घर का निबटाते काम
गेहूं काटे कितने रह गए आपस बतियाती गाँव में

बुढ़िया अम्मा रोटी पोकर बच्चों के सिर रख देती
कहीं नहीं बैठना नहीं गिराना हुक्म चलाती गाँव में

किसान को चिंता है ज्यादा गंदुम को घर लाने की
इससे ही सबकी भूख मिटे अम्मा समझाती गाँव में



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