बेटी को खुशहाल देखना चाहती है पर बहू को बात-बात पर सताती है : पवन कन्दोई
••● बहू को बेटी मान के तो देखो ●••
मुझे शिकायत है उन बूढ़ी माताओं से
जो औरों के घरमें जाकर आग लगाती है
घर का पूत कुंवारा डोलता है
पाड़ोसी के घर नौ फेरा कराती है
बेटी को खुशहाल देखना चाहती है
पर बहू को बात-बात पर सताती है
याद करो तुम भी तो कभी
किसीकी बहू बनकर आई होगी
सास के अनुसार नहीं चलने पर
ताने और गालियां भी खाई होगी
कितना बुरा लगा होगा जब तुम्हें
किसी ने खराखोटा सुनाया होगा
पति के सामने उस रात तुम्हारी
आंखों में भी आंसू आया होगा
जंवाई बेटी की हर बात माने
तभी वह अच्छा इंसान है
पर बेटा बहूकी एक भी सुन्ले
तो वह जोरू का गुलाम है
तुम्हें और कितने ही दिन जीना है
क्यूँ नही बहु को बेटी मान लेती
बेटी के लिए कपड़े खरीदते समय
एक साड़ी बहू के लिए भी छान लेती
विश्वास करो बहू अपनी मां से भी ज्यादा
तुम्हें प्यार करेगी
सास बहू की परिभाषा बदल जाएगी
ऐसा व्यवहार करेगी
बहुत ही अच्छी रचना!!हार्दिक बधाई पवन भैया!