प्राणायाम, योग तथा योगासन : आचार्य स्वामी ध्रुव
आप सभी का जीवन सुखमय हो, हम इसकी मंगलकामना करते हैं । इस योग दिवस के अवसर पर प्राणायाम,योग तथा योगासन के बारे में प्रस्तुत है कुछ आवश्यक जानकारी ।
आयुर्वेद में चार प्रकार के महासुख का वर्णन है ।
निरोगी हो काया, घर में हो माया
आज्ञाकारी संतान, मधुरभाषिनी हो भार्या ।
अर्थात स्वास्थ्य को सबसे बडा महासुख कहा गया है । दूसरे नंबर पर है अर्थ, तीसरे नंबर पर है आज्ञाकारी संतान और चौथे नंबर पर है मधुर बोलने वाली धर्मपत्नी । आप भी इस बात को समझते हैं कि हमारे जीवन में स्वास्थ्य का कितना महत्वपूर्ण योगदान है । इसके बावजूद दैनिक जीवन में योग ध्यान प्राणयाम नहीं करते हैं । तो एक बात याद रखें ध्भििभकक के लिए अगर आप योगासन नहीं करते तो क्ष्ििलभकक के बाद आपको करना पड़ेगा ।
योग और योगासन में अंतर
योगः योग आत्मा का परमात्मा से मिलन की अनुभूति का नाम है । जिसे कोई भी साधक एक ध्यान विधि का प्रयोग करके पा सकता है । विज्ञान भैरवतंत्र जो कि भगवान शिव और माँ पार्वती के वार्तालाप का अंश है, इसमें १०८ प्रकार की ध्यानविधि और ४ प्रकार की अविधि का वर्णन है । इनमें से कोई भी एक ध्यान विधि का प्रयोग अवश्य करें ।
प्राणायामः प्राणायाम एक प्रकार की साँस की क्रिया ९द्यचभबतजष्लन भ्हभचअष्कभ० है । शास्त्रों में ७ से १० प्रकार की क्रियाओं का वर्णन है । इनमें से कोई भी २ या ३ प्राणायाम ही करना चाहिये । ज्यादा प्राणायाम करना जरूरी नहीं है ।
सरल प्राणायामः इस क्रिया को करने के लिये खुली हवा में आराम से पालथी मारकर बैठ जाये । नाक से धीरे—धीरे लंबी और गहरी साँस लें और नाक से ही छोड़े । इस क्रिया को कम से कम ५० बार करें ।
अंर्तकुम्भक प्राणायाम
इस क्रिया को करने के लिये आराम से पालथी मारकर बैठ जाये । धीरे से लंबी और गहरी साँस नाकों के द्वारा लें, १० से १६ सेकेंड रोकें उसके बाद धीरे—धीरे छोड़े । इसे कुल पाँच मिनट करें ।
लाभ— धैर्य, एकाग्रता तथा मानसिक क्षमता में वृद्धि । इसके अलावा चचंलता एवं डर से मुक्ति ।
योगासन
योगासन एक प्रकार का शारीरिक व्यायाम है । इसमें शरीर को लयबद्ध तरीके से आगे—पीछे, दायें—बायें मोडते हैं और सीधा करते हैं । इसमें कुछ क्रियायें बैठकर, कुछ क्रियायें सोकर तथा कुछ खडे होकर किया जाता है । निश्चित रूप से यह कहना कठिन है कि योगासन कितने प्रकार के है । सामान्य रूप से लगभग १०८ प्रकार की योगासन की विधियाँ है । इनमें से आवश्यकता के अनुसार कोई भी ८ से १० आसन ही करना चाहिये ।
योगासन के अति आवश्यक सिद्धांत
१. सबसे पहले योगासन इसके बाद प्राणायाम तथा अन्त में ध्यान करना चाहिये ।
२. किसी भी प्रकार के आपरेशन होने के ६ महीने बाद ही योगासन करना चाहिये ।
३. मासिक धर्म, शरीर में किसी भी प्रकार का दर्द तथा मौसमी बीमारी ९क्भबकयलब िम्ष्कभबकभ० के समय योगासन न करें ।
४. नीम, हकीम, खतरे जान के तरह कोई किताब पढकर, टेलीविजन देखकर, नये योगाचार्य या किसी भी अनजान जगह पर योगासन न सीखें । योग्य योगाचार्य से ही योगासन सीखें ।
५. कभी भी खाली पेट में तथा खाना खाने के तीन घंटा बाद ही योगासन करें ।
६. साफ सुथरी जगह पर, हल्का वस्त्र लगाकर तथा खुले में योगासन करना चाहिये ।
७. सभी क्रियाओं को धीरे—धीरे आराम से करना चाहिये ।
८. प्राणायाम, ध्यान (योग) तथा योगासन करने के समय आवश्यकता और मात्रा का ध्यान रखना बहुत जरुरी है । मतलब किस क्रिया को कितनी बार और कितने देर करना है ।
९. प्रारंभ के दिन से ही अधिक मात्रा में योगासन करना नुकसानदेह हो सकता है ।
१०. नींद और खाना की तरह दैनिक जीवन में प्राणायाम, योग और योगासन अवश्य करें ।
११. योगासन करते समय बीच—बीच में २—३ मिनट का अंतराल भी रखना जरुरी है । इसमें शांति के साथ बैठे या लेटे रहे तथा लंबी और गहरी साँस लें अथवा छोडें ।
१२. जाडा में ४० मिनट, बरसात में ३० मिनट तथा गर्मी में २५ मिनट से ज्यादा योगासन नहीं करें ।
१. पृथ्वी नमस्कार— इसको करने के लिए पहले वज्रासन में बैठ जायें, दोनों हाथों को पीछे की ओर से एक दूसरे से पकड ले । ं साँस छोडते हुए माथा को जमीन से स्पर्श करावें एवं क्षमता के अनुसार रुके और फिर साँस लेते हुए ऊपर पूर्व स्थिति में आये । इस क्रिया को पाँच बार करें ।
लाभ— पेट की अनावश्यक चर्बी में कमी, कमर और रीढ को मजबूती, मानसिक शान्ति, धैर्य वृद्धि एवं तनाव से मुक्ति प्रदान करता है ।
नोट– स्लिपडिस्क एवं साइटिका के रोगी इस आसन को न करें ।
२. मत्स्यासन— इसे करने के लिए पदमासन या सामान्य रूप से पालथी मारकर बैठ जाये । इसके बाद धीरे—धीरे पीठ के बल लेट जाए । दोनों हाथों को जोडकर सर के नीचे रखें । १५ बार लंबी, गहरी और धीमी साँस लें एवं छोडें । उसके बाद पूर्व स्थिति में लौट जायें । इसे कुल ४ मिनट करें ।
लाभ— थायराईड ग्रन्थि, स्पाइनल कोड, पीठ और फेफडों की कार्य क्षमता में वृद्धि, दम, सर्दी, जुकाम, खाँसी से मुक्ति एवं मस्तिष्क में खून की अतिरिक्त आपूर्ति करता है । जिससे मानसिक क्षमता में वृद्धि होती है ।
३. ताडासन— इस आसन को वृक्षासन भी कहते हैं । ताडासन करने के लिए सीधा खडा हो जाये उसके बाद साँस लेते हुए पंजों के बल खडे हो जाये और दोनों हाथों को ऊपर उठायें । यथासंभव रुके, उसके बाद साँस छोडते हुए पूर्वस्थिति में आये । इस क्रिया को १० बार करें ।
लाभ— अमाशय, मलाशय एवं ह्दय की स्नायु को मजबूत करता है । वात एवं गठिया में लाभ प्रदान करता है ।
४. त्रिकोणासन— सीधा खडा हो जाये । दोनों पैरों को दो फुट की दूरी पर रखें । साँस छोडते हुए आगे से झुकते हुए दायें हाथ से बायें पैर को स्पर्श करें एवं साँस लेते हुए वापस लौटे । फिर साँस छोडते हुए उसी प्रकार बायें हाथ से दायें पैर को स्पर्श करे एवं पूर्व स्थिति में आ जाये । इसे २ मिनट तक करें ।
लाभ— निराशा, शारीरिक एवं मानसिक तनाव से मुक्ति, रोग प्रतिरोधक क्षमता एवं लंबाई में वृद्धि, सम्पूर्ण शरीर के केन्द्रीय स्नायु संस्थान को मजबूती तथा सेक्सुअल समस्या को संतुलित करता है ।
६. अर्ध वक्रासन— इस आसन को करने के लिए पहले सीधा खडा हो जाये । दोनों हाथों को कमर पर रखें । शरीर के ऊपरी भाग दायें तरफ घुमायें और पीछे की ओर देखें । धीरे—धीरे पूर्व स्थिति में आ जायें उसके बाद फिर बायें तरफ घुमायें और पीछे देखें, एवं पूर्व स्थिति में आ जायें । इसे क्रमशः ३—३ बार करें ।
लाभ— पेन्क्रियाज ग्लैंड के कार्यक्षमता में वृद्धि करके मधुमेह एवं वात सम्बन्धी रोग को ठीक करता है । रोग प्रतिरोधक एवं मानसिक क्षमता में वृद्धि करता है ।
७. अर्ध चक्रासन— इस आसन को वक्रासन या मेरुदंडासन भी कहते हैं । इसे करने के लिए पीठ के बल लेट जायें, दोनों हाथों को सिर के नीचे रखें । इसके बाद दोनों घुटनों को मोडकर पैर के तलवों को जमीन पर स्पर्श करायें । फिर दोनों घुटनों को दायें तरफ झुकायें और बायें ओर देखें फिर बायें तरफ झुकायें और दायें तरफ देखें । इसे ६—६ बार करें । साँस सामान्य रूप से सुविधानुसार ले एवं छोडें । और धीरे—धीरे करें ।
लाभ— रीढ, कमर एवं जोडों के दर्द से मुक्ति, पूरे शरीर में स्पूmर्ति, कार्य क्षमता में वृद्धि एवं क्ष्mmगलभ क्थकतझ को भी बढाता है ।
८. पवन मुक्तासन— पीठ के बल सीधा लेट जायें । दोनों घुटनों को मोडकर पेट के ऊपर रखें और दोनों हाथों से पकडकर दबाब दें एवं साँस को बाहर निकालें । दबाब देते समय नाक को घुटनों से स्पर्श करावें । ५ सेकेण्ड रुकें उसके बाद पूर्वस्थिति में आ जायें । इसे ६ बार करें ।
पवन मुक्तासन का लाभ— पाचन सम्बन्धी, गैस्ट्रिक, बबासीर, ह्दय रोग, कब्ज एवं पेट सम्बन्धी सभी रोग से मुक्ति प्रदान करता है । कमर, घुटना, जाँघ एवं अमाशय में रक्त संचार तीव्र करता है । पेट की अशुद्ध वायु बाहर निकालता है ।
९. सर्पासन— इसे भुजंगासन भी कहते हैं । इसे करने के लिए पेट के बल लेट जायें । दोनों हथेलियों को अगल—बगल में रखें । दोनों पैर साथ रखें उसके बाद लंबी साँस लेते हुए कमर के ऊपर के भाग को ऊपर उठायें । छत की तरफ देखें । ३० सेकेण्ड तक बिना साँस के रोकें । उसके बाद साँस छोडते हुए वापस लोटें । इसे ६ बार करें ।
नोट— पेट में घाव, हर्निया का आँपरेशन, आँत की बीमारी में यह आसन न करें ।
लाभ— किडनी और पेट की समस्त स्नायु को मजबूत, पेट के मोटापा को कम, भूख में वृद्धि तथा मासिक धर्म को सन्तुलित करता है ।
१०. शवासन— शव की तरह विछावन पर पीठ के बल लेट जायें । दोनों हाथों को अगल–बगल में और दोनों पैरों को थोडी दूरी पर रखें । अब शरीर के प्रत्येक अंग के बारे में सोचते हुए भाव करें कि वह शांत, शिथिल एवं बेजान हो गया है । इस प्रकार इसी स्थिति में बिना हिलडुल किए १० मिनट तक लेटे रहें । आँख बन्द रखें । धीरे–धीरे लंबी एवं गहरी साँस लें और छोडें ।
लाभ— केन्दीय स्नायु संस्थान को शांत करके मजबूती, तनाव, अवसाद, क्रोध, अनिद्रा, ह्दयरोग, जोडों एवं सरदर्द में लाभ, उच्च तथा निम्न रक्तचाप से मुक्ति, पाचनक्रिया को मजबूती तथा शरीर के सम्पूर्ण हार्मोन को संतुलित करके रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि करता है ।
ब्रहमसूत्र ध्यान
इस ध्यान को करने के लिए पदमासन या सुखासन में बैठ जायें । कमर, रीढ और गर्दन को सीधा रखें । इसी आसन में १५ मिनट बैठे । इस बीच तीन तरह की क्रियाओं को करना है । पहले ५ मिनट में साँस लेकर भीतर १५ सेकेण्ड तक रोकें । उसके बाद धीरे–धीरे निकाल दें । दूसरे चरण में ५ मिनट तक ‘ॐ’ का उच्चारण करना है । इसके लिए साँस ले एवं छोडते समय उच्चारण करें । तीसरे और अन्तिम चरण में ५ मिनट तक शांत होकर बैठे रहे या लेट जायें एवं श्वसन प्रक्रिया और बाहरी सभी क्रियाओं का अनुभव करते रहें ।
लेखक—माइंड मैनेजमेन्ट इंटरनेशनल का निदेशक, स्प्रिच्युअल ट्रेनर तथा संस्थापक है ।
Email: simmpune@yahoo . in