अंतर्मन का स्नेह गुलाल : मनीषा मारू
अंतर्मन का स्नेह गुलाल
यादों के समंदर में,
रंगो की लहरें हैं उठती।
पांव रख धरा पर,
जब नजरे अंबर की ओर
इंद्रधनुषी छटा को देखती।
क्या ! रंग बिरंगे गुलालो के अंबारो संग,
स्नेह प्रेम बरसेगा इसबार,
या फिर करना पड़ेगा
इस साल भी इंतजार,
सांसों के उठते गिरते,
तूफानों के बीच फंसी
मन के भवर में यही सोचती।
नहीं.. नहीं में इतनी कमजोड़ नही,
कदापि मेरे अश्रु इसबार भी बहेंगे नहीं,
खुद ही खुद को चुपके से समझा
नयनों से बहते अश्रुधार को रोकती।
मैं एक देश भक्त की पत्नी हूं
मेरे तभी मन जाते सारे तीज त्यौहार ,
जब एक सच्चा सिपाही बनकर,
देश की रक्षा करता है,मेरा सोलह श्रृंगार।
बस ऐसे ही हर बार,
छुपा के जहन में सारे प्रीत के रंग,
निभा के हर फर्ज,
भर देती बच्चों के उर में भी नए रंग
और फिर अपने टूटते हृदय को,
मजबूती से मैं जोड़ती,
सलामत रहे श्रृंगार मेरा,
रब से सदा यही दुआ मांगती।
फिर मन की भटकती नाव को किनारे लगा,
अंतरमन के स्नेह गुलाल को उड़ा,
प्रीत की डोर से बांध ,एक छोड़ से दूजी छोड़
स्नेह प्रेम गुलाल अपने प्रिय को हु भेजती।
माा