‘शेष होते शब्द’ हृदय की शून्यावस्था से रू-ब-रू कराती है : प्रदीप बहराइची
‘सूने सपाट
स्मृति पटल पर
कब कहां कुछ
अंकित होता है
न गुजरा कल,
न आने वाला कल
रेत होती ये ज़िन्दगी
तब्दील हो जाती है
एक शून्य में……’
आर के पब्लिकेशन मुम्बई,भारत से नेपाल की विदुषी कवयित्री डाॅ. श्वेता दीप्ति की सद्य: प्रकाशित काव्य संग्रह ‘शेष होते शब्द’ की शीर्षक कविता का उक्त अंश पढ़कर सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि श्रेष्ठता के शिखर पर होने के बावजूद श्वेता जी की लेखनी आम जन की भावना को हूबहू व्यक्त करने में समर्थ है। ‘शेष होते शब्द’ हृदय की शून्यावस्था से रू-ब-रू कराती है। हिन्दी केन्द्रीय विभाग, त्रिभुवन विश्वविद्यालय, काठमांडू,नेपाल में कार्यरत व हिमालिनी मासिक हिन्दी पत्रिका,हिमालिनी टीवी की सम्पादक डाॅ. श्वेता दीप्ति जी की इस काव्य संग्रह की विशेषता यह है कि इसकी कविताएं हमारी ही बात कहती हुई सी जान पड़ती है।श्वेता जी लिखती हैं-
‘सोचती हूं
कभी गर जिन्दगी के
किसी मोड़ पर तुम
इत्तफाक से मिल भी गए
तो क्या तुम्हारी आंखों में होंगी
बीते लम्हों की कोई यादें….’
श्वेता जी की कविताओं में संवेदना का एक पुट ऐसा भी-
‘शाम का गहरा धुंधलका
ख्वाहिशों की भीड़ में
तन्हा सा
खोजता था खुद को
खुद की परछाइयों तले,
कहां पता था कि
बह गया है वह
समय की धार पर।’
रिश्तों की कश्मकश में उलझे मन की अभिव्यक्ति को शब्द पहनाने की कला इस कविता में बखूबी दिखता है-
‘एक वो दिन जो शिद्दत से
दिल के करीब है
कई अच्छी यादों के साथ
काश उन यादों की कोई
उमर होती
बांध लेती कोई रिश्ता
उन पलों के साथ
नाम दे पाती
उस खूबसूरत अहसास को
जिसने कम ही सही
जीने की वजह तो दी ही थी।’
जीवन का अकेलापन, कदम कदम पर मिलती चुनौती, आसमान में तैरता चांद, मायके से बंधी स्त्री मन की डोर, वादों के कश्मकश में डूबता उतराता मन, संबंधों को संजीदगी से बांधे रहने की जद्दोजहद, बेहतर कर गुजरने की दृढ़ता और भी बहुत कुछ गुंथा हुआ है ‘शेष होते शब्द’ के शब्दों में। लिखावट ऐसी कि हर पढ़ने वाला भाव को आसानी से समझ जाए और उन परिस्थितियों में स्वयं को महसूस करे।
इस काव्य संग्रह में खूबसूरत मुक्तकों का गुच्छा भी है, उसमें से एक बेहद खूबसूरत सा और गूढ़ता लिए हुए मुक्तक यहां उद्धृत करता हूं-
‘कभी जब मेह बरसा
कभी जब नेह बरसा
बादलों के टुकड़ों में
मौसम का संदेश बरसा।’
एक शे’र जो नसीहतन लिखा गया लगता है…
‘दुनिया के लिए बहुत बदला है खुद को
अब जिन्हें शिकायत है,वो खुद को बदल लें।’
एक और खूबसूरत सा शे’र
‘अक्षरों को अक्सर उकेरती रही पन्नों पर
पहनाती रही उसे अहसासों का लिबास।’
भावों की विविधता दर्शाते हाइकु भी बहुत प्रभावित करते हैं-
‘बह जाते हो
सांसों में बस कर
हवा हो तुम।’
‘आइना टूटा
किरचियां बिखरीं
चुभी भीतर।’
‘तेरी ये ज़िद
बिखरते सपने
सब खतम।’
इस काव्य संग्रह में आपको कई रंग मिलेंगे…82 कविताओं के साथ- साथ 26 मुक्तक,132 शे’र,24 हाइकु भी इस संग्रह को खूबसूरत बनाते हैं।अमेजन पर उपलब्ध इस पठनीय और संग्रहणीय काव्य संग्रह की कीमत ₹295 (भारतीय रुपया) व ₹495(नेपाली रुपया) है।अमेजान से यह काव्य संग्रह आर्डर करने के लिए लिंक आगे दिया जा रहा है।
आर. के. पब्लिकेशन के दूरभाष नंबर 9022521190/ 9821251190 पर संपर्क करके भी यह पुस्तक मंगाया जा सकता है। भावनाओं और संवेदनाओं से जुड़ने का बेहतर माध्यम है काव्य संग्रह ‘शेष होते शब्द’।
प्रदीप बहराइची
बहराइच, उ0प्र0
भारत