श्रीपेच चोर : बिम्मी कालिन्दी शर्मा ( व्यग्ंय )
बिम्मी कालिन्दी शर्मा, वीरगञ्ज । राजा का जमाना गया श्रीपेच का जमाना आ गया । हाय ! रे दैया ! राजा को तो नहीं चूरा सके पर श्रीपेच को चूरा लिया । अब श्रीपेच भी कम तो नहीं है । राजा का पहना हुआ उतरन है तो क्या हुआ ? उसमें जरुर हिरें जडे होगें तभी तो किसी ने उसको चुराने कि हिम्मत की । ‘राजा आओ देश बचाओ’ कह कर बहुत दिनों से चिल्ला ही रहे थे तो देखो किसी ने राजा बनने और श्रीपेच पहनने का दुस्साहस तो किया । जब बेचारा राजा बन कर देश बचाने आ ही रहा था तो उसको पकड लिया । यह भी कोई बात हूई भला ? ‘राजा आओ देश बचाओ’ चिल्लाने वालों को तो पकड नहीं सके पर ईस सिधेसादे बंदे को पकड लिया श्रीपेच चुराने के जुर्म में ।
हम जनता भी तो ईन नेताओं से उबिया गए हैं । चाहते हैं कि यह नेता गद्दी से हट जाए या मर खप जाएं । पर ईन नेताओं नें.तो संजिवनी बूटी खा रखी है जो अंगद के पांव की तरह टस से मस नहीं होते । बेचारे उस आदमी को ईस देश और जनता पर कितनी तरस आयी होगी तभी तो जान जोखिम में डाल कर भी श्रीपेच चुराने गया मन में यह सोच कर कि ‘चलो एक बार राजा बन कर ईस देश का भला करें और नागरिकों पर एहसान’ । वह आदमी जरुर देशभक्त और राष्ट्रवादी होगा तभी तो श्रीपेच चुराने कि हिम्मत की । अब बिना श्रीपेच के तो राजा नहीं बन सकते । वैसे देखा जाए तो देश के शासन सत्ता मे जितने भी नेता काविज है सब बिना श्रीपेच के छोटे बडे राजा ही तो हैं ।
अब बिना नेता हुए भी कोई राजा बनना चाहे तो उसकी ईच्छा जरुर पूरी होनी चाहिए । यह लोकतंत्र है और लोकहित और लोकमतको सम्मान मिलनी चाहिए । ईसी लिए श्रीपेच चुराने वाले उस लडके को जेल न ले जा कर उसे ‘नेपाल तारा’ या ‘नेपाल तारा’ से विभुषित करनी चाहिए । कम से कम उसने एक उम्मीद तो जगायी । भले ही रास्ता शार्ट कट या गलत था । वैसे ईस देश में सही और उचित है क्या ? सब तो चोरी ही कर रहें हैं । कोई टैक्स चोरी करता है, कोई कमिशन खाता है, कोई बिजली की चोरी करता है, दुसरों की जमीन हडपता है । देश विकास के पैसे से नेताओं के घर और पेट का विकास हो रहा है तो उस आदमी नें भी श्रीपेच चूरा कर क्या गलत किया ? चोर -चोर सारे मौसेरे भाई ही तो होते हैं । और एक मौसेरा भाई बढ गया चोर के रुप में ।
वैसे देश के जितने भी नागरिक हैं वह सब राजा ही तो बनना चाहते हैं । उनके नस-नस में राजा बध कर दुसरों पर हुक्म चलाने की ईच्छा बलवती है । उनके ईस छूपे हुए ईस ईच्छा को उस आदमी ने बाहर निकाल कर दिखा दिया और उसको पूरा करने के लिए श्रीपेच को चुराया । यदि वह श्रीपेच चुराने म़े सफल हो कर राजा बन जाता तो एकदिन हमारी भी बारी आती ही । अब सरकार को अगले साल के संविधान दिवस में तमगा या पदक की जगह सभी को एक-ऊक श्रीपेच बांटनी चाहिए वह भी हीरा जडा हुआ । तब देशवासी भी खुश और सरकार भी खुश हो कर देश भी खुशहाल हो जाएगा । श्रीपेच देश का ईतिहास है उसकी सुरक्षा कितनी कमजोर है कि एक सामान्य आदमी उसको चुराने कि हिम्मत कर सकता है । सुरक्षा ब्यवस्था चाकचौबंद और कडा करने कि जगह उस बेचारे निहत्थे आदमी को श्रीपेच चुराने के जुर्म म़े पकड लिया । पकडना ही है तो देश बेचने वालो और पान की तरह देश को चबाने वाले को पकडो ।