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मधेश आन्दोलन किसी का कठपुतली ना बने : कैलाश महतो

कैलाश महतो, पराशी ।आन्दोलन का धर्म और प्रकृति ही ऐसा होता है कि वह अपना गति खुद तय करता है । मुद्दा स्पष्ट हो तो आन्दोलन की सफलता आन्दोलन के हाथों में ही होती है ।

आन्दोलन किसी राजनीतिक या प्रशासनिक सत्ता के अन्याय के खिलाफ किसी राजनीतिक पार्टी या राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक या पेशागत संगठन द्वारा संगठित रुप में किया जाता है । वह संगठित और सुनियोजित होता है । उसका नेतृत्व सम्बन्धित संगठन के नेता और कार्यकर्ता करते हैं । उसका निश्चित उद्देश्य होता है । वहीं “जन विद्रोह” किसी निश्चित पार्टी या संगठन द्वारा ही होने की अनिवार्यता को अस्वीकार करता है । जन विद्रोह में जनता सामने और अग्र भूमिका में रहती है । जन विद्रोह को शुरु शुरु में कोई राजनीतिक पार्टी या संगठन प्रत्यक्ष रुप में सहयोग नहीं करना चाहता । वह बहुत कर दे तो उसे उक्साने का काम कर देता है और खुद वह गौण रहता है । गौण रहने का कारण होता यह है कि वह संगठन खतरा अपने उपर न लेकर दूसरों पर थोपकर अपनी रोटी सेकना चाहता है । वह इस ताकझांक में रहता है कि

अगर वह स्वतन्त्र जन विद्रोह कारगर सिद्ध हुआ तो उसके साथ जुड जायेगा और असफल रहा तो खतरा से बचा रह जाता है । मगर जन विद्रोह का अपना व्यापक और उत्तम सर्वस्वीकृत लक्ष्य और उद्देश्य दोनों होता है । उसका नेतृत्व शुरू में जनता ही करती है ।

आन्दोलन हो या जन विद्रोह – दोनों का एक ही प्रकृति होता है कि राज्य द्वारा स्थापित नियम, कानुन और व्यवस्थाओं के विरुद्ध कार्य करना । जबतक राज्य के विधान और व्यवस्था के विरुद्ध कार्य न हो, संसार में कोई भी संगठन या जनसमूह आन्दोलन या विद्रोह नहीं कर सकता । कुछ लोग यह कहते सुनाई देते हैं कि आन्दोलन हो, मगर सडकें जाम न हों । विद्रोह तो होने चाहिए, मगर समान्य जनता को कष्ट न हो । यह तो बिल्कुल असंभव है कि कोई खाना खाये और मुँह जूठा न हो । नहाने जाये और शरीर न भिगे । गर्मी का मौसम हो और गर्मी न लगे ।

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आन्दोलन और जनान्दोलन/ जन विद्रोह में आवश्यकता के अनुसार सड़कें काम होना है । तोडफोड और कुछ दुर्घटनायें भी संभव है । जायज भी है । यही तो उसका पहचान है । उसके बगैर तो न राज्य सुनता है, न सरकार । अगर राज्य और उसका सरकार जिम्मेवार हो तो फिर आन्दोलनों की आवश्यकता ही क्यों ?

ताज्जुब की बात है कि अपने ही शासक राणाओं से आजाद हुए नेपाल अपने दो पडोसी मुल्कों से हर हाल में अविकसित, हायल कायल, दयनीय, दरिद्र,मानव तस्कर, पानी और जवानी विक्रेता, भिखारी, कमजोर, गरीब, अशिक्षित, बेरोजगार और दकियानूसी बन गया है । स्मरण हो कि राणा शासन से आजादी पाने के इर्दगिर्द ही भारत और चीन (सन् १९४७ और १९४९) जैसे विशाल मुल्क विदेशी उपनिवेशों से आजादी ली थी । जब वे आजाद हुए, उस समय वे हर क्षेत्र में बदतर थे । विदेशियों ने उनके अथाह सम्पति लूटकर ले गये थे । उन्हें औपनिवेशिक शासकों ने कंगाल बना दिया था । मगर उन विशाल मुल्कों ने अपनी नयी जमीर और उंचाई निर्माण कर ली । मगर कभी किसी का गुलाम न होने का हौवा फैलाने बाला नेपाली शासकों ने उस राणा शासन के नेपाल से भी गया गुजडा मुल्क बना डाला है ।

मूल कारणों को खोजना अपरिहार्य हो गया है कि राणा विरुद्ध के आन्दोलन से लेकर आजतक के एक  भी न तो राष्ट्रीय आन्दोलन, न मधेश/थारु/दलित/जनजाति, आदि आन्दोलन सफल हुए हैं । वहीं सैकडों वर्ष और शताब्दियों तक विदेशी शासकों के गुलाम रहे चीन और भारत तकरीबन सात दशक के अन्दर ही विश्व शक्ति राष्ट्र बन बैठे हैं ।

राणा और राजा अगर नेपाल विकास के बाधक थे तो आज नेपाल जैसा छोटा देश तो दो बडे विकसित और शक्तिशाली देशों के बीच में अवस्थित नेपाल उनके विकास से ही प्रेरित होकर उनसे भी सुन्दर, विकसित और आधुनिक देश बना होता । नेपाली शासकों ने देश को आजतक ग़रीब बनाकर रखने से अपने कुत्सित लाभों को प्राथमिकता देने के मूल कारण रही है ।

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कारणों को ढूंढे तो देखा यही जाता है कि नेपाल का एक भी आन्दोलन अपनी जमीन से नहीं उठ पाया है । सच कहा जाय तो देश में आजतक सिर्फ दो बार ही जन विद्रोह हुए हैं : (क) मधेश जन विद्रोह – २०६३/६४ और (ख) स्वतन्त्र मधेश गठबन्धन का जन विद्रोह । बांकी राणा विरुद्ध के आन्दोलन से लेकर जितने भी प्रजातांत्रिक, लोकतान्त्रिक, गणतांत्रिक या फिर बांकी के आन्दोलन – सब‌ के सब किसी न किसी विदेशी भूमियों, इसारों, बहकावों, स्वार्थो और लगानियों में सञ्चालित रहे । और यह समान्य प्रकृति है कि जब आन्दोलन किसी अन्य देश, भूमि, लगानी, स्वार्थ और प्रेरणा से उत्पन्न और सम्पन्न हो, तो उन आन्दोलनों

से देश, समाज और राष्ट्रीय राजनीति को हम‌ अपने वश में नहीं रख सकते । यही एक और अन्तिम प्रमुख कारण है कि नेपाल का एक‌‌ भी आन्दोलन फलदायक नहीं बन पाया है ।

जहाँ तक मधेश जन विद्रोह – २०६३/६४ और स्वतन्त्र मधेश गठबन्धन की जन विद्रोहों की अवसान की बात है, तो स्वस्फूर्त रुप में देश और मधेश के अपने ही मिट्टी, मेहनत और लगानियों से उठे उन जन विद्रोहों को उसके उन‌‌ नेताओं ने किसी‌ देशी और विदेशी शासकों के हाथों सौदा कर ली, जिनको उन‌ विद्रोहों ने अपना नेता माना था ।

आज फिर मधेश आन्दोलित है । यह आन्दोलन है, जन विद्रोह नहीं । यह आन्दोलन किसी राजनीतिक दल और उसके नेतृत्व द्वारा उसके नेता और पार्टी के स्वार्थ के मुद्दों पर आधारित है, न कि किसी समस्या का समूल‌ समाधान के खातिर । यह मौसमी आन्दोलन है । आन्दोलन का‌ फल‌ चखो और आन्दोलन के गुठली को फेक दो बाला जुगाडी आन्दोलन है ।

आने बाले माघ २० गते से राष्ट्रीय राजमार्ग जाम‌ का आन्दोलन घोषणा किया जा रहा है । इस आन्दोलन का एक‌ लालच यह है कि राज्य के बन्दुक से दो चार मरे या सरकार आन्दोलन से उच्च स्तर पर वार्ता करे ता कि लोगों में यह विज्ञापन किया जा सके कि आन्दोलनरत पार्टी और उसके नेता राज्य को वार्ता के लिए बाध्य कर दिया । जिन किसान मुद्दों पर आन्दोलन जारी है, वह सांप और छुछुन्दर का हाल है, जिसे न किटानी रुप से अन्तिम छोडतक ले जाया जा सकता है, न छोडा जा सकता है । दोनों में खतरा है ।

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आन्दोलनकारी दल और नेतृत्व भी यह जानते हैं कि जिन मुद्दों को उन्होंने उठाया है, उसका समग्र समाधान वर्तमान हालात में नेपाल सरकार से संभव नहीं है – चाहे जिस किसी का सरकार बन जाय । जाहिर सी बात है कि अब यह आन्दोलन किसान समस्या समाधान के आन्दोलन के नाम पर बहुमत किसानों की भोट की चोरी करनी है ।

यह किसान, भ्रष्टाचार और अन्य मुद्दों से सम्बन्धित आन्दोलन मधेश में किसी को कमजोर करने के सारगर्भित उद्देश्यों से प्रेरित होकर किसी द्वारा करवाया जा रहा है । इसका सारा इन्तजाम‌ किसी अन्य बाह्य भूमि, बाह्य इसारे और लगानी में बन्धित है । विदेशी भूमि, लगानी और चलखेल से संचालित विगत के सारे आन्दोलनों के तरह ही इसका प्रयोग भी किसी स्थापित शक्ति को कमजोर कर अपनी शक्ति प्रदर्शन को कायम करने के अहंकारी खेल से ज्यादा और कुछ भी नहीं है, न होगा । इस आन्दोलन से भी मधेश का केवल शक्ति, साहस, विश्वास और मेहनतों की बर्बादी होना तय है । क्योंकि वो ऐसा बाह्य शक्ति है जो न तो मधेश का समस्या समाधान कर सकता है, न करना चाहेगा । अगर समस्या समाधान हो गया तो फिर नेपाल में उसका राजनीति भी समाप्त हो जायेगा – इस बात के काल्पनिक त्रास से वह काफी वाकिफ है ।

राजनीति है । इसमें कोई संभव या असंभव नहीं होता । खुदा करे कि मधेश का यह किसान का मांग और भ्रष्टाचार विरुद्ध का आन्दोलन अन्तिम होकर मधेश को राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय सहयोग, सफलता, विकास, समृद्धि और कामयाबी मिले । मधेश सचेत रहे…। आन्दोलन किसी‌ का कठपुतली ना बने ।

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