Fri. Mar 29th, 2024

रिश्वतखोरी में सराबोर मधेशी नेताओं की हार भारत की हार कदापि नही

रामाशीष:नेपाल में संविधान सभा के लिए दूसरी बार कराया गया निर्वाचन सम्पन्न हो चुका है। अन्तरिम संविधान के प्रावधान के अनुसार ६०१ सदस्यीय सदन में ५७५ स्थानों के लिए ही प्रत्यक्ष तथा समानुपातिक चुनाव कराए गए हैं। क्योंकि, संविधान में २६ स्थान नये मंत्रिपरिषद द्वारा समाज के विभिन्न क्षेत्रों के जाने-माने हस् ितयों को आबंटित किए जाने का प्रावधान है। नेपाल के मतदाताओं ने गत १९ नवम्बर को सम्पन्न मतदान में ५७५ सीटों में से २४० सीटों के लिए प्रत्यक्ष मतदान किया। जिसके तहत उन्होंने विभिन्न पार्टियों के अपने मनचाहे उम्मीदवारों के चुनाव चिन्हों पर स्वस्तिक मुहर लगाकर अपना मत व्यक्त किया। जबकि, शेष ३३५ समानुपातिक सीटों के लिए मतदाताओं ने अपनी मनचाही पार्टर्ीीे चुनाव चिहृन पर स्वस्तिक छाप की मुहर लगाकर अपने मताधिकारों का प्रयोग किया। Madhesi Ldr

madheshi neta
रिश्वतखोरी में सराबोर मधेशी नेताओं की हार

यद्यपि, निर्वाचन आयोग द्वारा, फाइनल निर्वाचन परिणामों की घोषणा अभी तक नहीं की गई है लेकिन विश्वसनीय आंकडÞे बताते हैं कि प्रत्यक्ष और समानुपातिक, दोनों मिलाकर नेपाली कांग्रेस को १९६ सीटें मिली हैं, जबकि दूसरी बडÞी पार्टर्ीीेपाल कम्युनिस्ट पार्टर्ीीएकीकृत मार्क्सवादी लेनिनवादी) को १७५ सीटें। इस चुनाव की सबसे महत्वपर्ूण्ा बात यह है कि बोली नहीं गोली के बल पर सत्ता हथियाने के दस वषर्ीय अभियान -जनयुद्ध) के दौरान लगभग १७ हजार निर्दाेष नेपालियों की नृशंस हत्या के लिए जिम्मेदार तथा नेपाल-भारत सीमा पर भार त से दो-दो हाथ करने पर आमादा एकीकृत नेपाल कम्युनिस्ट पार्टर्ीीमाओवादी) को नेपाली मतदाताओं ने तीसरे नम्बर पर फेंक दिया है। उसे प्रत्यक्ष एवं समानुपातिक, दोनों ही मिलाकर केवल ८० सीटें मिली हैं।

बडÞबोला एवं उत्तेजनापर्ूण्ा धौंस जमाते रहनेवाले माओवादियों के नेता पुष्पकमल दहाल प्रचण्ड को राजधानी के क्षेत्र नं. १० में भारी मुंहकी खानी पडÞी है, उनकी शर्मनाक हार हो चुकी है और उनके प्रतिद्वन्द्वी नेपाली कांग्रेस के उम्मीदवार भार ी बहुमत से चुनाव जीत चुके हैं। स्मरणीय है कि प्रचण्ड ने चुनाव के केवल एक सप्ताह पहले बीबीसी से भेंट के दौरान दाबा किया था कि नेपाली जनता तो उन्हें छू लेने के लिए तरसती है, आमसभाओं के दौरान वृद्ध-वृद्धा तक उन्हें चूमने मंच पर आ जाती हैं। इस रूप में नेपाली जनता उन्हें राष्ट्रपति बना चुकी है।

राष्ट्रपति भवन में जाएं अथवा नहीं, अब कोई र्फक नहीं पडÞता। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा था कि नेपाली मतदाता का जो भी आदेश होगा, वह उन्हें स्वीकार्य होगा, चाहे चार ही सीट क्यों न दें, मैं उसे भी स्वीकार करूंगा। इसके साथ उन्होंने भारत के विरुद्ध चलाए गए अपने अभियानों के लिए भी परोक्ष रूप से भारत से माफी भी मांग ली। उन्होंने कहा- वर्तमान राजनीतिक प्रक्रिया में आने के बाद घटनाक्रम और अनुभवों ने हमें थोडÞा अपरिपक्व बना दिया। जबकि, बाद में मुझे महसूस हुआ कि पडÞोसियों के साथ अच्छे संबंध बनाकर ही देश की स्वतंत्रता और आर्थिक विकास की गति को तीव्रता दी जा सकती है, केवल गाली-गलौज करते रिश्वतखोरी में सराबोर मधेशी नेताओं की हार भारत की हार कदापि नही ं रामाशीष @ सवाल उठता है कि क्या उपेन्द्र, राजेन्द्र, महन्थ, गच्छदार और हृदयेश ही सम्पर्ूण्ा मधेश हं,ै जिनकी हार से मधेश रांडÞ -विधवा) आरै मधेशी पर ाजित माने जाएं – और, उनकी जीत से मधेश को अहिवात -सधवा) और मधेशी विजयी माने जाएं रहने से कुछ भी होना-जाना नहीं।

प्रचण्ड की उक्त स्वीकारोक्ति या माफीनामा परर् पर्यवेक्षकों की टिप्पणी है – प्रचण्ड जी, अब पछताए होत क्या, जब चिडिÞया चुग गई खेत। लेकिन, हां, संतोष की बात यही है कि देर से ही क्यों न सही, आखिर भारत- नेपाल के सतही विषय पर आपको निर्वाण प्राप्त हो ही गया। इस निर्वाचन में एक और आर्श्चर्य हुआ है, वह है अपने विद्यार्थी काल से ही मण्डले नाम से कुख्यात तथा प्रजातंत्र को रौंदकर तानाशाही शासन चलाते रहने का ख्वाब देखनेवाले राजा ज्ञानेन्द्र के अन्तिम मंत्रिपरि षद में कुख्यात गृहमंत्री कमल थापा की र ाष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टर्ीीनेपाल का संविधान सभा चुनाव में २३ सीटें पाना। यद्यपि पार्टर्ीीध्यक्ष कमल थापा खुद प्रत्यक्ष निर्वाचन हार चुके हैं और उनकी पार्टर्ीीा एक भी उम्मीदवार प्रत्यक्ष निर्वाचन का एक भी सीट हासिल नहीं कर सका है, फिर भी समानुपातिक चुनाव में उनके गाय छाप को अच्छा खासा वोट मिला है।

मतदाताओं की अच्छी-खासी संख्या ने अपना एक वोट भले ही किसी पार्टर्ीीे उम्मीदवार को दिया हो लेकिन उन्होंने अपनी दूसरी वोट, अर्थात समानुपातिक वोट गाय छाप को दिया है। मालूम हो कि कमल थापा वह एक अकेला दवंग शख्स है जिसने वर्तमान गणतंत्रात्मक हवा के विपरीत नेपाल को हिन्दू राष्ट्र घोषित करने तथा राजा को पुनः गद्दीनशीन करने का संकल्प अपने पार्टर्ीीोषणा पत्र में अंकित किया है। लेकिन, उनके ऊपर आरोप है कि राजा ज्ञानेन्द्र द्वार ा नेपाली जनता के प्रजातांत्रिक अधिकार हथिया लिए जाने के विरोध में नेपाली कांग्रेस के नेतृत्व में चलाए गए र्सवदलीय शान्तिपर्ूण्ा आन्दोलन को कुचलने में तत्कालीन गृहमंत्री कमल थापा, निकृष्टतम हथकंडे अपनाने से भी बाज नहीं आए थे। फलस्वरूप, संविधान सभा के लिए कराए गए प्रथम चुनाव में कमल थापा एक तरह से वहिष्कृत और अवहेलित तत्व के रूप में दर-दर की ठोकरें खाते रहे। इस निर्वाचन का सबसे कठोर परिणाम मधेशवादी दलों को भोगना पडÞा है जिनके एक से बढÞकर एक तथाकथित दिग्गज और बडÞबोले नेता चुनाव में शर्मनाक मुंहकी खा चुके हैं। पूरब में मधेशी जनाधिकार फोर म -लोकतांत्रिक) के अध्यक्ष विजय गच्छदार भले ही सुनसरी जिले के एक सीट पर चुनाव जीत चुके हैं, लेकिन वह अपने पक्के दाबेवाले मोरंग जिले की सीट पर नेपाली कांग्रेस के उम्मीदवार डा. शेखर कोइराला से हार चुके हैं।

फिर भी उन्हें समानुपातिक चुनाव के परिणामों ने १४ सीटें दिला दिया है। इसी प्रकार मधेशी जनाधिकार फोर म, नेपाल के अध्यक्ष उपेन्द्र यादव अपने दाबे के मोरंग जिला सीट पर चुनाव हार चुके हैं और उनके साथ ही उनकी परम आदरणीया महिला नेतृ रेणु यादव सहित अधिकांश उम्मीदवार प्रत्यक्ष चुनाव में हार चुके हैं। फिर, भी उन्हें समानुपातिक सीट मिलाकर संविधान सभा सदन मंे १० स्थान प्राप्त हो चुका है। इसी प्रकार तर्राई मधेश लोकतांत्रिक पार्टर्ीीे अध्यक्ष महन्थ ठाकुर सहित उनके अति प्रभावशाली उपाध्यक्ष हृदयेश त्रिपाठी को इस बार पश्चिमी नेपाल में नवलपर ासी की जनता ने ऊबकर, बुरी तरह दर किनार कर दिया है। वह चुनाव हार चुके हैं जबकि पिछले तीन निर्वाचनों में हर बार वह अपने बने-बनाए क्षेत्र से चुनाव जीतते आ रहे थे। अब बात रही मधेशियों के स्वघोषित मसीहा तथा मधेश के एकमात्र स्वघोषित- भविष्य राजेन्द्र महतो साहब की, तो उन्होंने चुनाव पर्ूव घोषणा की थी कि उनकी पार्टर्ीीी देश भर के ७५ में से लगभग ७० जिलों में शाखाएं स्थापित हो चुकी हैं। इस रूप में उनकी पार्टर्ीीब राष्ट्रीय पार्टर्ीीन चुकी है।

और, इन बडÞबोली घोषणाओं के साथ ही उन्होंने अपने दिल की धडÞकनों को इस बात का पूरा विश्वास और भरोसा दिलाया था कि उनकी पार्टर्ीीो कम से कम ३५- ३६ सीटें जरूर मिलेंगी। लेकिन, हुआ क्या, वही ढाक के तीन पात बन कर रह गई सद्भावना पार्टर्ीीौर उसके मसीहा महान त्यागी वैश्यपुत्र-गांधी जी। लिखते-लिखते, गर्व से कहो मधेशी हैं- के नारे का उद्घोष करनेवाले गांधीवादी नेता गजेन्द्र बाबू की याद आ गई। उनकी आंसू भरी आंखों का दृश्य सामने आ गया। राजा के फांसी के फन्दों की तनिक भी पर वाह नहीं करते हुए जिस साहस के साथ उन्होंने नेपाल सद्भावना पार्टर्ीीी स्थापना की, उसी मधेशी-संर्घष्ा की एकमात्र पार्टर्ीीो तोडÞकर, समाजवादी जनता दल बनानेवाले जिस त्रिमर्ूर्ति ने गजेन्द्र बाबू को फूट-फूटकर रोने को विवश किया था, वह तीनों महतो- यादव-त्रिपाठी, इस बार एक साथ चुनाव हार चुके हैं। इस पराजय से इस त्रिमर्ूर्ति के दम्भ-पतन हुए हों या नहीं, लेकिन उनसे जुडÞे कार्यकर्ता तो यह टिप्पणी करते थकते नहीं कि राजनीति कोई बिना बीबी-बच्चों के नागा साधुओं का जमावडÞा तो है नहीं।

इसलिए हमारे नेताओं ने यदि अपने और बीबी-बच्चों के सुखद भविष्य के लिए र ाजधानी में एक-दो आलीशान महल, जमीन के दो चार प्लाट, बीबी-बच्चों के लिए कुछ सोना-चांदी, गहना-जेबर, गाडÞी-घोडÞा का इस निर्वाचन में एक और आर्श्चर्य हुआ है, वह है अपने विद्यार्थी काल से ही मण्डले नाम से कुख्यात तथा प्रजातंत्र को रौंदकर तानाशाही शासन चलाते रहने का ख्वाब देखनेवाले राजा ज्ञानेन्द्र के अन्तिम मंत्रिपरिषद में कुख्यात गृहमंत्री कमल थापा की राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टर्ीीनेपाल का संविधान सभा चुनाव में २३ सीटें पाना। विचार जुगाडÞ कर ही लिया है तो कौन सा पाप कर डाला – उन्होंने यदि हजार-पांच सौ करोडÞ रूपये देश-विदेश के बैंकों में जमा करा ही दिया है तो, यह तो कोई अपराध नहीं है। आखिर नंगा-फरोश बनकर तो राजनीति की ही नहीं जा सकती – इन सभी उतार-चढÞाव की बातों से अलग है, लगभग एक करोडÞ की आबादीवाले मधेशी, आदिवासी, जनजाति और दलितों के हक हित के लिए किए गए निर्ण्ाायक आन्दोलनों के परिणामों के भविष्य और इससे जुडÞे विजयी पक्ष अर्थात् नेपाली कांग्रेस और नेकपा -एमाले का विजय उन्माद।

विजय परिणाम की घोषणा के साथ ही अपनी पहली प्रतिक्रिया में नेपाल कम्युनिस्ट पार्टर्ीीएमाले के वरिष्ठ नेता तथा पर्ूव प्रधानमंत्री माधव कुमार नेपाल ने यह कह डाला कि १९९१ में निर्मित संविधान भी तो हमारा ही बनाया हुआ संविधान है। तो फिर क्यों न, उसी संविधान में कुछ फेर-बदलकर, उसे ही लागू कर दिया जाए – क्योंकि, वह संविधान भी विश्व के र्सवाेत्तम संविधानों में एक है। इसके साथ ही नेपाल के तथाकथित जानेमाने संविधान विशेषज्ञ भीमाजर्ुन आचार्य ने एक टी.वी. भेंटवार्ता में कहा-माओवादियों के पहिचान सहित की संघीयता और मधेश आन्दोलन के एक मधेश-प्रदेश की मांग को मतदाताओं ने ठुकरा दिया है।

फिर भी यदि आवश्यक हुआ तो क्यों न देश के पांच विकास क्षेत्रों को ही प्रान्त बनाकर नये संविधान की संरचना कर दी जाए। नेपाली कांग्रेस के जन्मपत्री लेखक नरहरि आचार्य तथा महान राष्ट्रवादी अध्यक्ष सुशील कोइर ाला तो पहले से ही नेपाल में उत्तर-दक्षिण रेखा द्वारा पांच या सात प्रान्त बनाए जाने के घोर-पक्षधर रहे हैं। ऐसी स्थिति में सवाल उठता है कि क्या संख्या गणित के आधार पर मधेश आन्दोलन विफल हो गया – क्या, मधेश व्रि्रोह के दौर ान शहीद हुए लगभग पांच दर्जन मधेशी युवकों का लहू पानी की तरह बह गया – इसके साथ ही यह भी सवाल उठता है कि क्या उपेन्द्र, राजेन्द्र, महन्थ, गच्छदार और हृदयेश ही सम्पर्ूण्ा मधेश हैं, जिनकी हार से मधेश रांडÞ -विधवा) और मधेशी पराजित माने जाएं – और, उनकी जीत से मधेश को अहिवात -सधवा) और मधेशी विजयी माने जाएं – यह सही है कि माओवादी नेता पुष्पकमल दहाल प्रचण्ड बात-बदलू, बडÞबोलेपन और ऐयाशी के लिए नेपाली जनता के बीच कुख्यात हो चुके हैं लेकिन इसके साथ ही यह भी सच है कि वह मधेशियों के वोट से विजयी हुए हैं और इसीलिए मधेशियों को दिए हुए अपने वचनों पर उन्हें कायम र हना ही होगा। उन्हें अपने ऊपर लगे आर ोपों को जनता के बीच गलत साबित करना ही होगा। यह सच है कि मधेश-व्रि्रोह से ही नेपाल में संघीयता ने अन्तरिम संविधान में स्थान पाया।

लेकिन, माओवादियों ने अपने पूरे जनव्रि्रोह के दौरान सम्पर्ूण्ा नेपाल के आदिवासी, जनजाति, पहाडÞी और मधेशी जनता को पहिचान सहित संघीयता युक्त संविधान देने का वायदा किया था। क्या, उन्हें अपने वचनों और आश्वासनों को पूर ा कराने के लिए संविधान सभा में उनकी पार्टर्ीीो मिली ८० सीटें काफी नहीं है – इसके लिए उनके सहयोगी पर्ूव प्रधानमंत्री डा. बाबूराम भट्टर्राई भी गोरखा जिले से चुनाव जीतकर आ गए हैं। इसलिए यदि विजय उन्माद में कांग्रेस और नेकपा एमाले के नेताओं ने अपनी ऐंठ अकडÞ नहीं छोडÞी तो फिर तीसरे आन्दोलन के लिए मधेशियों, आदिवासी, जनजातियों, दलितों और चुनाव से अलग-थलग रह र हे नेपाल कम्युनिस्ट पार्टर्ीीमाओवादी) को सडÞकों पर आने से दुनिया की कोई शक्ति नहीं रोक सकती। पिछले पांच दशकों के नेपाल प्रवास में इन पंक्तियों के लेखक के लिए सबसे अधिक प्रसन्नता की बात यह रही कि १९ नवम्बर को संविधान सभा के लिए कराए गए चुनाव की पूरी प्रक्रिया में राष्ट्रवादी नेपाली मीडिया, नेपाली पत्र-पत्रिका तथा राजनेताओं तथा बुद्धिजीवियों के श्रीमुख से तथाकथित भार तीय हस्तक्षेपों की कपोल-कल्पित समाचार कथाएं, स्टोरीज एवं प्रायोजित लेखों के उल्ल्ेखनीय दर्शन नहीं हुए।

मधेश में मधेशी नेताओं की हार और पहाडÞी नेताओं की जीत ने नेपाल के तथाकथित भारत विरोधी राष्ट्रवादियों को भी मधेशी नेताओं पर भार तीय दलाल होने का अभियोग उछालने का साहस नहीं हुआ। इस अप्रत्याशित चमत्कार का श्रेय किसे दिया जाए – भारत सरकार को, भारतीय राजदूतावास को या चुनाव के मुंह पर खडे नेपाल में, नियुक्त किए गए भारत के भद्रलोक एवं मृदुभाषी राजदूत रंजीत रे को या उनके द्वारा निर्देशित नेपाल में भारत की नई नीति को – इस पंक्तिकार का साधुवाद स्वीकार हो। यद्यपि यह सच्चाई तो बाहर आ ही चुकी है कि नेपाल में नेता मधेशी हों या पहाडÞी, अब भारत की नजर में कोई ज्यादा र्फक नहीं रह गया है। एक प्राइमरी स्कूल के मास्टर से सीधे विदेश मंत्री बन चुके मधेशी जनाधिकार फोरम के अरबपति अध्यक्ष उपेन्द्र यादव, अपने वीरगंज अधिवेशन में लगभग चार दर्जन चीनी नेताओं का जमावडÞा जुटाकर, भारत को सीधी चुनौती दे चुके हैं। जबकि, एक अन्य मधेशी नेता ने एक स्थानीय दैनिक को दिए इन्टरव्यू में भारत को चुनौती दी है कि उनकी हार से मधेश में भारत विरोध बढÞेगा। यह पर्यवेक्षक मानते हैं कि भारत एक ओर अपने जानी दुश्मन परमाणु सम्पन्न देश पाकिस्तान के हर हथकंडे का अपनी भूमि से बखूबी सामना कर रहा है और अब पाकिस्तानी नकली नोटों के धन्धे में नेपाल के सीमावर्ती मधेश भूमि का बडÞे पैमाने पर उपयोग किया जा रहा है।

इस धन्धे में आखिर किसका हाथ है – पता चला है कि इस चुनाव के दौर ान जनकपुर धाम में एक ऐसा पम्फलेट बडÞे पैमाने पर बांटा गया, जिसमें चुनाव में खडÞे एक दाउदी-नेता के पाकिस्तानी नोटों के धन्धे का पर्दाफाश किया गया था। इस हालत में भारत क्या करे – उसे तो इन तत्वों से निबटना ही होगा और इसके लिए वह पूरी तरह सक्षम है। संतोष का विषय यह है कि पाकिस्तानी ताना-बाना बुननेवालों की जडÞों तक पहुंचने में भार त और नेपाल के खुफिया तंत्र संयुक्त रूप से लग चुके है। इसलिए घृणित रिश्वतखोर ी के सहारे रातांेरात अरबपति बन चुके स् वयंभू मधेशी मसीहों की हार को भारत की हार मानने का कोई कारण नहीं। ऐसे स्वयंभू भारतवादी-नेताओं को तो अपने ऊपर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों का कानूनी जबाब देने में जी-जान से लगना चाहिए, न कि भारत पर बडÞबोला टीका-टिप्प्णी करने में। भारत- पुकार की कोई जरूरत नहीं।



About Author

आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Loading...
%d bloggers like this: