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आईपीएस मनुमुक्त की स्मृति में कवि-सम्मेलन आयोजित

नारनौल। मनुमुक्त ‘मानव’ मेमोरियल ट्रस्ट द्वारा 2012 बैच के भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी डॉ मनुमुक्त ‘मानव’ की 8वीं पुण्यतिथि पर वर्चुअल अंतरराष्ट्रीय कवि-सम्मेलन का आयोजन गत शाम किया गया। हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय, धर्मशाला के कुलाधिपति पद्मश्री डॉ हरमहेंद्रसिंह बेदी की अध्यक्षता में संपन्न हुए इस कवि-सम्मेलन में मेडान (इंडोनेशिया) में भारत के महावाणिज्य दूत, भारतीय विदेश सेवा के अधिकारी तथा मनुमुक्त के बैचमेट शुभम सिंह इस अवसर पर मुख्य अतिथि थे, वहीं सिंघानिया विश्वविद्यालय पचेरी बड़ी (राजस्थान) के कुलपति डॉ उमाशंकर यादव और पोर्ट ऑफ स्पेन (त्रिनिडाड) स्थित भारतीय दूतावास के द्वितीय सचिव डॉ शिवकुमार निगम विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित रहे।

इन कवियों ने किया काव्य-पाठ : ट्रस्ट की दिल्ली प्रभारी उर्वशी अग्रवाल ‘उर्वी’ के कुशल संचालन में लगभग दो घंटों तक चले इस भव्य कवि-सम्मेलन में सिडनी (ऑस्ट्रेलिया) की रेखा राजवंशी, काठमांडू (नेपाल) की डॉ श्वेता दीप्ति, स्टाॅकहोम (स्वीडन) के सुरेश पांडे, बर्लिन (जर्मनी) की डॉ योजना शाह जैन, आबूधाबी (यूएई) की ललिता मिश्रा, वाक्वा (मॉरीशस) की कल्पना लालजी, वंशिका (सूरीनाम) की सुषमा खेदू और सेंडियागो (अमेरिका) की डॉ कमला सिंह के अतिरिक्त भारत से भिवानी के डॉ रमाकांत शर्मा, चेन्नई की डॉ राजलक्ष्मी कृष्णन, नई दिल्ली की उर्वशी अग्रवाल उर्वी और नारनौल के डाॅ रामनिवास ‘मानव’ ने काव्य-पाठ किया। भ्रष्टाचार को रावण के रूप में निरूपित करते हुए डॉ उमाशंकर यादव ने कहा-“जब मैं छोटा था, रावण भी छोटा होता था; लेकिन जब मैं साठ का हुआ, रावण एक सौ साठ का हो गया।” संवेदनहीनता के दौर में जिंदगी की जटिलता का वर्णन करते हुए डॉ शिवकुमार निगम का कहना था-“भावशून्य हो गये प्रभाव के अभाव में। कट रही है जिंदगी बस पेंच और दांव में।” राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे के महत्त्व को रेखांकित करते हुए डॉ रमाकांत शर्मा ने कुछ यूं फरमाया-“मेरी शान तिरंगा है, मेरी जान तिरंगा है। हर भारतवासी की पहचान तिरंगा है।” ललिता मिश्रा का जोश भी देखते ही बनता था। उनकी कविता की पंक्तियां देखिये-“हम फूलों-सा मन रखकर भी फौलादी छाती रखते हैं। अंधियारे का जो मुंह सी दे, उस लौ की बाती रखते हैं।” दिनोंदिन बढ़ती धार्मिक कट्टरता से प्रदूषित हुए माहौल को डॉ रामनिवास ‘मानव’ ने इस प्रकार चित्रित किया-“पत्थरबाजी, आगजनी है। कट्टरता अब धर्म बनी है। गूंज रहे उन्मादी नारे, मानवता अब रक्तसनी है।” डॉ श्वेता दीप्ति, डॉ कमला सिंह और उर्वशी अग्रवाल ‘उर्वी’ की कविताएं मनुमुक्त पर केंद्रित थीं, जिन्हें सुनकर श्रोता भावविह्वल हो उठे। अन्य कवियों की रचनाएं भी बहुत प्रभावशाली थीं, जिन्हें श्रोताओं की भरपूर सराहना मिली।
इनकी रही विशिष्ट उपस्थिति : इस अवसर पर वाशिंगटन डीसी (अमेरिका) से डॉ एस अनुकृति और प्रोफेसर सिद्धार्थ रामलिंगम, काठमांडू (नेपाल) से डॉ कपिल लामिछाने और सच्चिदानंद मिश्र, कोलंबो (श्रीलंका) से डॉ अंजली मिश्रा, मोका (माॅरीशस) से अंजू घरभरन, पोर्ट ऑफ स्पेन (त्रिनिडाड) से सविता निगम तथा भारत से डॉ नूतन पांडेय, डॉ दीपक पांडेय, नितिन पांडेय और आर एस शुक्ला, एडवोकेट (नई दिल्ली), उज्ज्वल राठौर (शिमला), संतोष शर्मा और राजेंद्रकुमार शर्मा (टोंक), डॉ सुशीला आर्य (भिवानी), डॉ कांता भारती, विपिन शर्मा, महेंद्रसिंह गौड़, राजीव कुमार, कृष्णकुमार शर्मा, एडवोकेट, डॉ वंदना निमहोरिया, शर्मिला यादव आदि (नारनौल) और मुंशीराम (रेवाड़ी) की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।

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