नेपाल में हिन्दी वोलना पाप हैं : मिश्री लाल मधुकर
जनकपुरधाम /मिश्री लाल मधुकर
आज विश्व हिंदी दिवस हैं। पूरे विश्व में हिन्दी दिवस मनाया जा रहा है। भारत के पड़ोसी राष्ट्र नेपाल में हिन्दी वोलना पाप है। हिंदी वोलने वाले को भारतीय दलाल, जासूस न जाने कितने अलंकृत शव्द से नवाजे जातेहैं। नेपाल के पहाड़ी क्षेत्रों के खसबादी तो हिन्दी के साथ भेदभाव करते ही हैं, अव मधेश के मधेशी भी हिंदी के साथ साथ भेदभाव करना शुरू कर दिए हैं।
नेपाल में हिन्दी समाचार, सिनेमा, दूरदर्शन पर हिन्दी धारावाहिक, हिंदी गाना देखने सुनने से परहेज नहीं है लेकिन हिन्दी को नेपाल में संवैधानिक मान्यता नहीं मिला है। जहां दस हजार बोलने वाली भाषा कोसंबैधानिक मान्यता है, वही हिन्दी को इससे दूर रखा गया है।
हिन्दी को संपर्क भाषा बनाने के लिए सद्भावना पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष स्व,. गजेन्द्र नारायण सिंह, स्व. राम जन्म तिवारी, स्व. कृष्ण चंद्र मिश्र, स्व. अवध किशोर प्रसाद जैसे विभूति को आज के विश्व हिन्दी दिवस पर याद करना जरूरी है।
स्व. गजेन्द्र नारायण सिंह में भी हिन्दी ही वोलते थे। पार्टी का घोषणा पत्र भी हिन्दी में रहता था। हिंदी के चलते गजेन्द्र नारायण सिंह को खस शासक का प्रताड़ना का शिकार होना पड़ा था।जनता समाजवादी पार्टी, लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी, तराई मधेश लोकतांत्रिक पार्टी तथा जनमत पार्टी भी हिंदी को संवैधानिक मान्यता के लिए प्रयासरत हैं। राजेन्द्र महतो सदन में भी हिन्दी में बोलते है। इन पार्टियों के नेता सार्वजनिक मंच भु हिन्दी वोलते हैं। हिंदी को नेपाल में संबैंधानिक मान्यता दिलाने के लिए त्रिभुबन विश्वविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष स्व. कृष्ण चंद्र मिश्रका भी काफी योगदान हैं। वे पूरे नेपाल में इस अभियान को आगे बढ़ाने का काम किया।
इसी तरह प्रजातंत्र सेनानी राजेश्वर नेपाली को भी हिंदी को नेपाल में संवैधानिक अधिकार के लिए अभी तक डटेहैं। करीब पांच दसक से अधिक समय से हिंदी भाषा में साप्ताहिक लोकमत निकाल रहे हैं। लेकिन हिन्दी में छपने के कारण इस साप्ताहिक पत्रिका को वर्गीकरण में भेदभाव किया गया है। राजेश्वर नेपाली नेपाल राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन आयोजित करतेहैं। तथा नेपाल तथा भारत के कवि, साहित्यकारों को सम्मानित करते हैं। हिंदी को नेपाल में बढाने के लिए हिमालिनी मासिक पत्रिका के प्रकाशक सच्चिदानंद मिश्र जी का भी काफी योगदान हैं। वे बिषम परिस्थितियों में भी पत्रिका का प्रकाशन कर रहे हैं। हिंदी के चलते इस पत्रिका के साथ भेदभाव किया जा रहा है।
हिंदी के विकास में श्वेता दीप्ति को हम नहीं भूला सकते हैं। त्रिभुबन विश्व विद्यालय में हिन्दी के प्रोफेसर दीप्ति हिमालिनी पत्रिका की संपादिका हैं। भारत, नेपाल में कवयित्री के रूप में मशहूर है। इसी तरह रमन पांडेय का हिंदी के योगदान को भूलाया नहीं जा सकता है। रमन पांडेय सद्भावना पार्टी के भातृ संगठन नेपाल बिद्यार्थी मंच के संस्थापक सदस्य थे। आज से तीस बर्ष पहले सद्भावना पार्टी के कार्यक्रम में हिन्दी बोलने पर पहाड़िया शासक ने बर्बरता कीं। लाठी की पिटाई से रमन पांडेय काफी घायल हो गये। उसी दिन वे कसम खा लिये कि वे जव तक हिन्दी को संबैंधानिक मान्यता नहीं मिलेगी, तव तक वे हिन्दी ही बोलेंगे। इस पर वे कायम हैं। कुछ महीनों पूर्व ऋषि धमला के साथ टी. वी. इंटरव्यू लिये थे। उन्हें नेपाली बोलने पर मजबूर किया लेकिन टस से मस नहीं हुए। मजबूरन उनसे हिन्दी में ही इंटरव्यू लिए। जो नेपाल में चर्चा का बिषय बना। इसी सुदर्शन लाल कर्ण भी हिंदी को नेपाल में हिन्दी को संवैधानिक मान्यता के लिए प्रयासरत हैं। वे हिन्दी में कविता तथा कथा लिख रहे है। इसी संजीता वर्मा सहित दर्जनों व्यक्तित्व है जो नेपाल में हिन्दी के लिए प्रयासरत हैं।