संविधान दिवस, कहीं दीपावली और कहीं काला दिन : कंचना झा
काठमांडू, १९ सितंबर आज असोज ३ गते यानी संविधान दिवस । आज संविधान दिवस मनाया जा रहा है । काठमांडू के लिए संविधान दिवस मनाना खुशी की बात है । यहाँ के लोगों को लगता है कि संविधान में उन्हें जो चाहिए उन सभी बातों का उल्लेख किया गया है लेकिन मधेश ने न तो उस वक्त इसे स्वीकार किया था न ही आज । साल २०७२ असोज ३ गते जब पहली बार संविधान को स्वीकार किया उस दिन भी मधेश में इसे लेकर आंदोलन किया गया था । मधेश के बहुत से जगहों पर संविधान का विरोध हुआ था लोग सड़क पर उतर आए थे । मधेश के लोगों ने इसे काला दिवस के नाम से संबोधित किया था । बहुत लोगों ने लिखा था कि देश के एक भाग में दीवाली मनाई जा रही है और देश के दूसरे भाग में खून की होली और काला दिवस कहकर संबोधन किया था संविधान दिवस को । मधेश के २२ जिले में इस संविधान का जमकर विरोध हुआ था । आज भी मधेश के लोगों ने संविधान को स्वीकार नहीं किया है ।
मुझे आज भी याद है जब २०७२ साल सावन के पहले सप्ताह में नए संविधान का मसौदा जारी किया गया तभी मधेश में विद्रोह शुरु हो गया था । इस विद्रोह को शांत करने के लिए अनिश्चित काल के लिए तराई मधेश बंद की घोषणा हुई थी । मधेश के विभिन्न भागों में संविधान के विरोध में आंदोलन के क्रम में लगभग १०० से अधिक लोग शहीद हुए और बहुत लोग घायल हुए थे ।
उस समय मधेश में एक अलग ही माहौल था बहुत घरों से वैसे लोग शहीद हुए जिनसे घर चलता था । यानी घर में जिसके कारण से चुल्हा जलता था वो अब नहीं जलेगा । चारों ओर निराशा थी ही और इसके बाद जब ३ गते असोज संविधान जारी किया गया तो पूरे मधेश में काला दिवस के रुप में इसे स्वीकार किया । संविधान को लेकर कल भी आक्रोश था आज भी है और अगर संशोधन नहीं हुआ तो कल भी रहेगा ।
लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के नेता अनील महासेठ का कहना है कि – असोज ३ गते काला दिन ! कैसे मना सकते हैं इस दिन को जो कि मधेशियों के खून पर बना हुआ है । जिस दिन मेरे मित्रों पर गोली चलाई गई थी । माना कि इसे संविधान दिवस के रुप में मनाने की घोषण हुई मगर हम आज भी इसे काला दिवस के रुप में ही मनाते हैं । उन्होंने आगे कहा कि जिस तरह मधेश में यदि किसी पर्व त्योहार के दिन घर के किसी सदस्य की मृत्यु हो जाती है तो हमेशा के लिए उस घर में वो पर्व नहीं मनाया जाता है उसी तरह संविधान के लिए भी वही बात लागु होती है । संविधान से असंतुष्ट होना स्वभाविक है । संशोधन के लिए हम सभी निरंतर आवाज उठाते रहेंगे ।
इसी तरह लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के नेता मनीष मिश्र कहते हैं कि –आज के दिन मधेशी सहित तमाम उत्पीडि़त तथा उपेक्षित समुदाय के लिए काला दिन के रुप में है । २०७२ साल में जब संविधान की धोषणा हुई थी उसी समय में हम लोगों का कहना था कि संविधान सभी को स्वीकार हो ऐसा बनना चाहिए । पहचान से आधारित तथा केन्द्र से उपेक्षित सभी समुदाय द्वारा अपेक्षित सभी समुदाय द्वारा उठाए गए मांग को संविधान में उल्लेख करना चाहिए । लेकिन राज्य ने इन सभी चीजों को नजर अंदाज कर करके पहचान के पक्ष में आवाज उठानेवाला आंदोलन कारी के उपर गोली चलाकर जबरदस्ती संविधान का धोषणा किया गया । इसलिए हमलोग आज के दिन को काला दिन के रुप में विरोध स्वरुप मनाते हैं ।
२०७२ असोज ३ गते अर्थात नया संविधान जारी होने के दिन काठमांडू में दीपावली मनाने की तैयारी हो रही थी वहीं तराई मधेश में काला दिन मनाने की तैयारी चल रही थी ।
विरोध का रुप आज भी नहीं बदला है माइतीघर मण्डला में संविधान के विरुद्ध प्रदर्शन करने वालों में से ५ लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया है । ये सभी ५ लोग राष्ट्रीय संयुक्त जन आंदोलन मोर्चा में आबद्ध हैं । मोर्चा ने इसे काला संविधान की संज्ञा देते हुए संविधान को जलाया है । संविधान दिवस के दिन माइतीघर में जमा होकर संविधान को जलाने के कारण सभी ५ लोगों को पकड़ा गया है । यानी २०७२ से लेकर आज तक मधेश के लोगों ने संविधान को मन से स्वीकार नहीं किया है ।