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क्या जसपा के चार मंत्री हटाये जायेंगे वा सरकार में उनकी क्या हैसियत होगी ?

काठमांडू, ८ अक्टूबर –शेरबहादुर देउवा के नेतृत्व में गठित गठबन्धन सरकार में उपेन्द्र यादव नेतृत्व जनता समाजवादी पार्टी (जसपा) भी शामिल हैं । जबकि कल वृहस्पतिवार की ही रात बालकोट में एमाले के साथ नया गठबन्धन बनाने जसपा सहमत हो गई है । अब प्रश्न यह उठता है कि इस अवस्था में अब जसपा से सरकार में जो चार मन्त्री हैं उनकी क्या हैसियत होगी ?
जसपा की ओर से चार मन्त्री देउवा सरकार में हैं । संघीय मामिला तथा सामान्य प्रशासन मन्त्रालय में राजेन्द्र श्रेष्ठ के साथ ही भौतिक पूर्वाधार तथा यातायात मन्त्रालय में मोहम्मद इस्तियाक राई, कृषि तथा पशु पन्छी विकास मन्त्रालय में मृगेन्द्रकुमार सिंह, वन तथा वातावरण मन्त्रालय में अभी प्रदीप यादव हैं ।
एक प्रसंग ०७४ साल का । चुनाव के पहले यही देउवा माओवादी केन्द्र के साथ बारी–बारी सहमति अन्तर्गत प्रधानमन्त्री थे । उन्हीं के साथ गठबन्धन में रहते हुए ०७४ असोज १७ गते माओवादी केन्द्र ने प्रतिपक्षी एमाले के साथ पार्टी एकता के लक्ष्य सहित वाम चुनावी गठबन्धन किया था । इसके बाद सरकार में रहे माओवादी के मंत्रियों को देउवा ने जिम्मदारी विहीन बना दिया था । इसके बाद वो मंत्री तो रहें । लेकिन सम्बन्धित मन्त्रालय की बागडोर उनके हाथों में नहीं थी । ये सभी मन्त्रालय देउवा ने अपने पास रख लिया था ।
एक बार फिर वही दोहराया गया है देउवा सरकार और यादव नेतृत्व के जसपा के बीच । सत्ता गठबन्धन में रहते हुए यादव ने एमाले के साथ कंधा मिला लिया है । क्या ऐसी अवस्था में जसपा के मंत्री अपनी जिम्मेवारी से मुक्त होंगे ?
निर्वाचन आचार संहिता के प्रावधान को देंखे तो आचार संहिता लागु होने के बाद देउवा अब नया मन्त्री नहीं बना सकते हैं । इससे पहले प्रतिनिधिसभा विघटन करके निर्वाचन में गए ओली सरकार ने मन्त्रीमण्डल हेरफेर करने के बाद सर्वोच्च अदालत ने कामचलाउ सरकार में मन्त्री फेरबदल नहीं कर सकते कहकर व्याख्या सहित अन्तरिम आदेश दिया था ।
इस अवस्था में यदि अभी देउवा ने उन्हें पदमुक्त कर दूसरे को मन्त्री बनाते हैं तो इसमें निर्वाचन आचार संहिता के साथ –साथ ये आदेश समेत आकर्षित होने की सम्भावना भी उतनी ही है ।
अब सोचने की बात यह है कि ऐसी अवस्था में विकल्प क्या हो सकता है ?
१)नैतिकता के आधार पर वे सभी अपने पद का त्याग करें । वैसे यह भी है कि नेपाल में ऐसा करने वाला कोई विरले ही होगा ।
२)पार्टी उन्हें वापस बुला सकती है ।

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३)देउवा उन्हें कार्यसम्पादन के साथ ही प्रश्न उठा कर पदमुक्त कर सकते हैं ।

४) पदमुक्त भी नहीं हुए , पार्टी ने भी वापस नहीं बुलाया , वो स्वयं भी पद नहीं छोड़ना चाहा तो ऐसी अवस्था में कानूनी रुप में वो मन्त्री बने रहेंगे ।

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