गोवर्धन पूजा आज बुधवार को और भैया दूज एवं चित्रगुप्त पूजा कल विहिबार को
आचार्य राधाकान्त शास्त्री *आज कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा बुधवार को स्वाती नक्षत्र प्रीति एवं ध्रुव योग में प्रातः 6:30 बजे से 11:30 बजे तक गोबर से गोधन बना कर पूजन किया जायेगा। और कल गुरुवार को प्रातः 7 बजे से 10:19 तक आयुष्मान योग में गोधन कुट कर भाइयों को आशीर्वाद दिया जाएगा। जबकि कल गुरुवार को सौभाग्य योग में अपने समय और सुविधानुसार चित्रगुप्त पूजा किया जाएगा।*
इस पर्व का शास्त्रीय महत्व है। इस पर्व में प्रकृति एवं मानव का सीधा संबंध स्थापित होता है। इस पर्व में गोवर्धन धारी भगवान श्री कृष्ण और उनके वंशजों और गोधन यानी गौ वंश की पूजा की जाती है। और स्त्रियों के सम्मान हानि में आये गोधन वेशधारी राक्षस का वध भी स्त्रियों के द्वारा गोधन कूट कर किया जाता है और अपनी सुरक्षा के लिए भाइयों को ढेर सारी आशीष दी जाती है।
*आज घर के आंगन में गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत, गोवर्धन धारी श्री कृष्ण गो वंश, घर और प्राचीन समय के घरेलू वस्तुओं की गोबर के मूर्ति बनाकर उनका पूजन करते हैं। और साथ ही गोधन नामक राक्षस की मूर्ति भी बनाई जाती है। और ब्रज के साक्षात देवता माने जाने वाले भगवान गिरिराज को प्रसन्न करने के लिए उन्हें अन्नकूट का भोग लगाते हैं। गाय- बैल आदि पशुओं को स्नान कराकर फूल माला, धूप, चन्दन आदि से उनका पूजन किया जाता है। गायों को मिठाई का भोग लगाकर उनकी आरती उतारी जाती है तथा प्रदक्षिणा की जाती है। कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को भगवान के लिए भोग व यथासामर्थ्य अन्न से बने कच्चे-पक्के भोग, फल-फूल, अनेक प्रकार के खाद्य पदार्थ जिन्हें छप्पन भोग कहते हैं का भोग लगाया जाता है। और सभी भोग सामग्री अपने परिवार व मित्रों को वितरण कर प्रसाद ग्रहण किया जाता है।*
*गोवर्धन पूजा व्रत कथा:-*
यह घटना द्वापर युग की है। ब्रज में इंद्र की पूजा की जा रही थी। वहां भगवान कृष्ण पहुंचे और उनसे पूछा की यहाँ किसकी पूजा की जा रही है। सभी गोकुल वासियों ने कहा देवराज इंद्र की। तब भगवान श्रीकृष्ण ने गोकुल वासियों से कहा कि इंद्र से हमें कोई लाभ नहीं होता। वर्षा करना उनका दायित्व है और वे सिर्फ अपने दायित्व का निर्वाह करते हैं, जबकि गोवर्धन पर्वत हमारे गौ-धन का संवर्धन एवं संरक्षण करते हैं। जिससे पर्यावरण शुद्ध होता है। इसलिए इंद्र की नहीं गोवर्धन की पूजा की जानी चाहिए। सभी लोग श्रीकृष्ण की बात मानकर गोवर्धन पूजा करने लगे। जिससे इंद्र क्रोधित हो उठे, उन्होंने मेघों को आदेश दिया कि जाओं गोकुल का विनाश कर दो। भारी वर्षा से सभी भयभीत हो गए। तब श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठिका ऊँगली पर उठाकर सभी गोकुल वासियों को इंद्र के कोप से बचाया। जब इंद्र को ज्ञात हुआ कि श्रीकृष्ण भगवान श्रीहरि विष्णु के अवतार हैं तो इन्द्रदेव अपनी मुर्खता पर बहुत लज्जित हुए तथा भगवान श्रीकृष्ण से क्षमा याचना की। तबसे आज तक गोवर्धन पूजा बड़े श्रद्धा और हर्षोल्लास के साथ की जाती है।
भगवान कृष्ण का इंद्र के अहंकार को तोड़ने के पीछे उद्देश्य ब्रज वासियों को गौ धन एवं पर्यावरण के महत्त्व को बतलाना था। ताकि वे उनकी रक्षा करें। आज भी हमारे जीवन में गौ माता का विशेष महत्त्व है। आज भी गौ द्वारा प्राप्त दूध हमारे जीवन में अहम स्थान रखता है।
यूं तो आज गोवर्धन पर्वत ब्रज में एक छोटे पहाड़ी के रूप में हैं, किन्तु इन्हें पर्वतों का राजा कहा जाता है। ऐसी संज्ञा गोवर्धन को इसलिए प्राप्त है क्योंकि यह भगवान कृष्ण के समय का एक मात्र स्थाई व स्थिर अवशेष है। उस काल की यमुना नदी जहाँ समय-समय पर अपनी धारा बदलती रहीं, वहीं गोवर्धन अपने मूल स्थान पर ही अविचलित रुप में विद्यमान रहे। गोवर्धन को भगवान कृष्ण का स्वरुप भी माना जाता है और इसी रुप में इनकी पूजा की जाती है। गर्ग संहिता में गोवर्धन के महत्त्व को दर्शाते हुए कहा गया है – गोवर्धन पर्वतों के राजा और हरि के प्रिय हैं। इसके समान पृथ्वी और स्वर्ग में दूसरा कोई तीर्थ नहीं है , श्री हरि कृपा से सबकी सभी मनोकामना पूर्ण हो…
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*हरि ॐ गुरुदेव..!*
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*ज्योतिषाचार्य आचार्य राधाकान्त शास्त्री*
*?शुभम बिहार यज्ञ ज्योतिष आश्रम?*
*राजिस्टार कालोनी, पश्चिम करगहिया रोड, वार्ड:- 2, नजदीक कालीबाग OP थाना, बेतिया पश्चिम चम्पारण, बिहार, 845449,*
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*सहायक शिक्षक:- राजकीयकृत युगल प्रसाद +2 उच्चतर माध्यमिक विद्यालय भैसही, चनपटिया,बेतिया बिहार*
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