कैलाश महतो, पराशी । एक अति बुजुर्ग और सामाजिक राजनीतिक इतिहासों के परम प्रतिक व्यक्तित्व से कल्ह दर्शन पाने का हमने सौभाग्य पाया । संयोग से वे कभी एक भारतीय विश्वविद्यालय के इतिहास प्राध्यापक भी रहे थे । उम्र से झुम्र, मगर वे हैं अपने समाज और देश के प्रति अपने उम्र से भी लाखों गुणा सजीव चिन्तक । राजनीति का अविरल बहता झरना और ज्ञान का जीता जागता क्रान्तिकारी शब्दकोश ।
भारत की आजादी पर लिखी गयी “आजादी आधी रात को (Freedom at Midnight)” किताब पर चली चर्चों ने उन्होंने उक्त किताब के साथ मुझे अपने निवास पर मिलने के लिए बुलाया था । बस् – बात देश की राजनीति से होकर मधेश के राजनीति तक की उन्होंने विश्लेषण कर दी ।
मधेश के राजनीतिक दल, नेता, उसके हारजीत, कर्म, धर्म और परिणामों समेत पर हमारे बीच लम्बी चर्चायें हुईं । उसी क्रम में माघ ५ गते के दिन मनाये जाने बाले मधेशी शहीद दिवस पर भी बातें हुईं ।
शहीद दिवस पर नेताओं द्वारा दिए जाने बाले सलामी, सम्मान, फूल मालों के साथ शब्द मालों समेत पर हमारे बीच सह्रृदयी चर्चायें चलीं ।
परिवर्तन शहादत मांगता है । बिना शहादत परिवर्तन कहीं कोई नहीं दे सकता । यह प्राकृतिक राजनीति और क्रान्तिनीति है । शहादत बदलाव का जग है । जैसे मिट्टी के अन्दर समाये बगैर कोई जग विशाल इमारत और दरबार नहीं उठा सकता, उसी प्रकार शहीदों के जमीनी छूपाहट के बिना किसी देश, समाज और जन जीवन में निर्माण या बदलाव नहीं आ सकता । शहादत का गहराई जितनी चौडी और मजबूत होगी, देश और समाज की बदलाव और परिवर्तन भी उतना ही विशाल और सशक्त होता है । दुनिया की सारी इतिहास यही प्रमाणित करती है । मगर शहादत के प्रतिशत पर समाज और राष्ट्र को बदलना प्राथमिक शर्त होनी चाहिए । शहादत के बावजूद भी अगर समाज में अपेक्षित परिवर्तनर और बदलाव नहीं है, तो वह शहादत नहीं – हत्या है । अपराध है । वैसे अपराध करने और करवाने बाले दोनों अपराधी हैं, और उन्हें अपराधी के स्तर पर ही रखा जाना चाहिए ।
एक अंग्रेज़ी कवि ने “Martyr” नामक कविता में दिन में विरान दिखने बाले श्मशान में रात के घनघोर अन्धेरे में दो परस्पर विरोधी देशों के शहीदों के आत्माओं को अपने अपने कब्र से बाहर निकलकर एक दूजे से अपने अपने शासकों के प्रति दु:ख व्यक्त करते हुए बातों को का जाहेर किया है, जिसमें अपने नेताओं के वादों और नारों पर दो देशों के बीच छिडे युद्ध में एक दूसरे का दुश्मन बनकर लडे थे । मगर आज दोनों देशों के वे विरोधी शासक एक टेबल पर बैठकर मस्ती करते हैं । वे दो सैनिक एक दूसरे को मारकर शहीद बनकर श्मशान में अपने अनावश्यक मृत्यु पर पश्चाताप करते हैं । उनके सन्तति दर दर भटक रहे हैं । अपने सन्ततियों और समाज की बदहवाली को देखकर वे दो दिवंगत सैनिकें भी हर रात रोते हैं ।
आज माघ ५ के दिन भी शहीदों के पत्थरीय मूर्तियों पर नेता लोग लम्बे लम्बे किरिछ (आइरण्ड) नेतायी कुर्ते, पैजामें और शूट बूट में सजकर हाथों में ताजे ताजे फूल के माले, सुगंधित अगरबत्तियों के साथ “शब्द माले” और शासकों के प्रति ताने बरसायेंगे । शहीद सम्मान के नाटक कार्य में नेता बनने के तैयारी में लगे युवा और प्रौढ़ लोग कुछ अलग क्रान्तिकारी ढंग से पूर्व नेताओं के प्रति “शब्द वाण” प्रहार और अपने नेतायी भविष्य का विज्ञापन करेंगे । नाटकीय सम्मान के फोटो शेसन का मार्केटिंग करेंगे । एक तरफ शहीदों के प्रति सम्मान चढाते हुए अपने बगल में रखे शहीद परिवारों के प्रति दोसल्लायी सम्मान चढाकर समवेदना प्रकट करेंगे और दूसरी तरफ आराधना करेंगे कि हे भगवान ! मेरे किस्मत को भी चमकाने के लिए दो चार गरीबों को शहीद बना दो ।
बातों ही बातों में ऐतिहासिक ज्ञान के उस धरोहर ने नेपाल के राज्य सत्ता के सारे काल खण्डों के शासकों का शासकीय पदार्पण और टिकाव पर नजर डालते हुए दर्शाया कि जिसने जितने हत्यायें की, उसने उतने ही लम्बे समयों तक शासन की । उन्होंने दर्शाया कि पृथ्वीनारायण शाह ने क्रुर हत्यायें की । हज़ारों निर्दोष लोगों को उन्होंने उनके प्राण निकालकर मारा, हाथ पैरों को तोडकर मारा, नाक और कान काटकर जिन्दा मारा, गोलियों से मारा, तलवारों से मारा, दानापानी छिनकर मारा, अपने ही पनाहगारतक को मारा । फिर उसने अपने सन्ततियों के साथ २३८ सालतक शासन किया । राणाओं ने जनता के साथ अत्याचार किया । जङ्ग बहादुर ने कोत और मकै पर्व जैसे विभत्स काण्ड किया और उसके साथ उसके सन्ततियों ने १०४ सालों तक शासन में रहा । वीपी, गणेशमान, गिरिजा, ओली, झलनाथ, आदि ने “गर्दन काट” अभियान चलाया ।आजतक वे शासक हैं । प्रचण्ड, गिरिजा, मनमोहन और देउवा ने मिलकर १७ हजार लोगों की हत्यायें की, और ३३ सालों से राज्य कर रहे हैं । अभी भी न जाने कितने दिनों तक उनकी शासन चलेगी ।
मधेश आन्दोलनों में भी उपेन्द्र, महेन्द्र, राजेन्द्र और महन्थों ने ११७ लोगों की बली चढायी । सैकड़ों की सम्पत्ति लुटवायी और हजारों को आपाहिज बनाये । वे भी आज १६ वर्ष के अपराधी शासक बनने के प्रतियोगिता में सफल हैं । अमेरिका से पदार्पण करने बाले एक कथित वैज्ञानिक ने भी लाश के ही सौदे पर टाई कोट नेता बन गये । मधेश के आन्दोलन इतिहास में अपराधिक हत्यायें हुई हैं । उसे तबतक शहादत और शहीद दिवस नहीं कहा जा सकता, जबतक शहीदों के परिवारों को अपने प्रिय सन्ततियों और सम्बन्धियों के कुर्बानियों पर गर्व भरा फख्र की आभासा और शान से उनकी छातियां चौड़ी न हो जायें ।
शासक के बिना शासन या सुशासन चल ही नहीं सकता । शासक बनना बुरी बात नहीं है । मगर शासक अगर अपने राष्ट्र को सुरक्षित, मजबूत और शक्तितशाली बनायें, तो वह शासन होता है, वहीं अगर वह अपने देश और जनता को भक्ति के साथ खुशी, शक्ति और हंसी दे दें, तो वह सुशासन हो जाता है ।
मधेश शहीद और शहादत दिवस के पुण्य परम अश्रु दिवस पर मधेश के सम्पूर्ण शहीदों के चरणों में भावभिनी नमन और आत्मव्रत श्रद्धांजली ।
