Wed. Oct 16th, 2024

करुणा झा की सशक्त लेखनी में उनके प्रखर व्यक्तित्व की छाप स्पष्ट देखने को मिलती है । आप समाज सेवा से भी जुडी हैं जिसकी छाप इनकी लेखनी में मिलती है । नारी लेखिकाओं पर यह आरोप लगता आया है कि वो सिर्फनारी विषयक समस्याओं को ही अपनी लेखनी का विषय बनाती हंै । करुणा झा द्वारा नेपाली भाषा में रचित निबन्ध संग्रह ‘शंखघोष’ ने इस मान्यता को तोडÞा है । हाँ नारी मन की पीडÞा को इसमें जगह मिली अवश्य है किन्तु साथ ही समाज की सभी विषमताओं को भी समेटने का प्रयास किया गया है । समाज में व्याप्त असमानता इन्हें विचलित करती है और वो उद्वेलित होती हैं । जब सहृदयी मन समाज की पीडÞा को देखता है तो वह पीडÞा उसकी अपनी हो जाती है और वही उसकी लेखनी में व्याप्त होती चली जाती है । प्रस्तुत निबन्धों में ऐसी ही सामाजिक अव्यवस्था, असमानता और विषमता को जगह मिली है ।
इस निबन्ध संग्रह में कुल नौ निबन्ध हैं, जो भिन्न-भिन्न विषयों पर आधारित हैं । इनकी एक और विशेषता है कि ये सभी निबन्ध पत्र विधा पर आधारित हैं । पत्रों के माध्यम से लेखिका ने अपने भावों को व्यक्त किया है । कहीं तो ये काफी तल्ख हैं, तो कहीं बेचैन । सामाजिक व्यवस्था पर कभी चोट करती नजर आती हैं तो कभी नारी मन की व्यथा उकेरती नजर आ रही हैं । ‘आशीवार्द’ की ये पंक्तियाँ द्रष्टव्य हैं-
“यहाँ मेरो मन पढ्ने कोही छैन । मेरो मनमा खुशी उमार्ने अवस्था छैन । म पर्ूव फर्के, पश्चिम र्फकनेहरु छन् । मैले टाउको उठाए निहुर्‍याउनेहरु छन् । मैले बोले कान थुन्नेहरु छन् । …..मलाई मान्छे हैन वस्तु सम्झनेहरु छन् । ” और अंत में अपने माता पिता से आशर्ीवाद के तहत माँगती हर्ुइ कहती हैं कि मुझे आशर्ीवाद दीजिए कि मैं अपने बच्चे को इस तरह पालूँ कि वो अपने अधिकार का प्रयोग कर सकें, समय के साथ चल सकें ।
इसी तरह ‘सुहागरात’ शर्ीष्ाक कविता में ब्राहृमण समाज में प्रचलित मधुश्रावणी पर्व के द्वारा पति पत्नी के सम्बन्धों में यौन सम्बन्ध के महत्व को वणिर्त करती नजर आती हैं । साथ ही पर्व में प्रयुक्त विधि, गीत और फूलों की महत्ता को बताती हैं ।
‘सामाजिक शिकार’ नामक निबन्ध में सामाजिक ठेकेदारों से प्रश्न करती हैं कि वैदिक काल से जिस नारी को हमेशा पूजनीय माना गया है, जिसे शक्ति, धन, विद्या को प्रदान करने वाली माना गया है उसके लिए ही समाज की व्यवस्था में इतना विभेद क्यों है – नारी मशीन नहीं इंसान है और समाज के हर कार्य में समानता की अधिकारी है ।
‘मधेशको मन मसिहालाई’ में उन नेताओ से सवाल है जिन्हें जनता चुन कर भेजती है और जो सत्ता के मद में इतने चूर हो जाते हैं कि अपने-आपको जनता का प्रतिनिधि नहीं बल्कि उनका मसीहा समझने लगते हैं और जनता के प्रति कर्त्तव्य को भूल कर अपनी स्वार्थपर्ूर्ति में लगे रहते हैं । र्
वर्तमान शिक्षा पद्धति पर करारी चोट है ‘खबरदारी पत्र’ निबन्ध में, जिसमें आपने शिक्षा और शिक्षक को कटघरे में खडÞा किया है । उन्हें आगाह करती हैं कि आज की शिक्षा को समाज और समय की माँग के अनुसार होना चाहिए जो एक दक्ष जन-शक्ति पैदा कर सके ।
इसी प्रकार उन्होंने अभिभावक खास कर के बेटियों के अभिभावक को सम्बोधित किया है ‘युवाका अभिभावकलाई निवेदन’ नामक निबन्ध में । उनसे अनुरोध किया है कि वो नई और पुरानी पीढÞी के बीच की खाई को बढÞने न दें बल्कि उसे पाटने की कोशिश करें । बच्चों के मन को समझने की कोशिश करें और उनके कदम में कदम मिलाकर उनकी मानसिकता को समझते हुए उनके विकास में सहायक बनें ।
‘शिक्षाविद्लाई सल्लाह’ शर्ीष्ाक निबन्ध में वर्त्तमान शिक्षा नीति की ओर ध्यान आकषिर्त किया गया है । शिक्षा का रूप कैसा हो, उसकी आवश्यकता और अनिवार्यता पर जोर देते हुए यह कहा गया है कि शिक्षा नैतिकता और आत्मीय सुख के लिए हो । आज की शिक्षा धन कमाने की ओर युवा पीढÞी को प्रवृत कर रही है किन्तु उनमें नैतिकता का ह्रास हो रहा है जो समाज के लिए सही नहीं है ।
सहकारी व्यवस्था की कमजोरियों को उभारा गया है ‘सहकारीलाई चिठ्ठी’ में इन संस्थाओं में जो भ्रष्टाचार और अनियमितता व्याप्त है उस पर लेखिका सवाल करती नजर आती हैं । समाज के हर क्षेत्र को सहकारी व्यवस्था देखती है पर उनमेर्ंर् इमानदारी नहीं है और यही कारण है कि समाज में विकास दर शून्य है ।
और अंत में ‘एकताको शङ्खघोष’ में सभी राष्ट्रवादियों से लेखिका की अपील है कि राष्ट्रीयता के भाव को बचाने के लिए राष्ट्रवादी और देशभक्ति शक्तियों के बीच एकता की आवश्यकता है । नेताओं की अकर्मण्यता ने देश को गर्त में धकेल दिया है, युवापीढÞी पलायन कर रही है । इन सब पर ध्यान देने की आवश्यकता है तभी देश का विकास सम्भव है ।
उक्त निबन्ध संग्रह में समाज की समस्याओं को एक नवीन अंदाज में समेटने की कोशिश की गई है । तीखे शब्द और व्यंग्य के माध्यम से लेखिका ने अपनी अभिव्यक्ति दी है जो निस्संदेह प्रभावशाली है और पाठक को सोचने के लिए विवश करती है । लेखिका का प्रयास सराहनीय है, बधाई । -प्रस्तुतिः श्वेता दीप्ति





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