बेचारा ! : वसन्त लोहनी
बेचारा !
आपकी हुकूमत, आपकी सल्तनत
बेचारा वह क्या हैं?
कुछ भी नहीं
न शब्द में ध्वनि
न राप, न ताप
केवल आपके ख़िदमत में
फ़रियाद लेकर खड़ा हे
सकून कहा कहां से मिले उसको
धरती से या आकाश से ?
जिस धरती में खड़ा है
वहा उसका नहीं
जिस आकाश के नीचे जीरहा है
वह भी उसका नहीं
तब कहां से मिलेगा शकून?
शायद उसकी खामोशी से
खामोशी जितना गहरा हो
उतना ही हुकूमत पिगलजाए
उसको सकून देने के लिए नहीं
हुकूमत के आनंद के लिए
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