महोत्तरी के महोत्तरी में बैंक डकैती से समाज का अन्तर सम्बन्ध : कैलाश महतो
6 months agoकैलाश महतो, परासी । तिथि २०८० जेठ, १६ गते, मंगलवार । दैनिकी के तरह ही बैंक अपने काम में व्यस्त रहा होगा । कर्मचारी समान्य रुप से ही काम में रहे होंगे । मगर उस समान्य बैंकिंग कारोबार में असमान्य अपराधिक घटना ने चौंकाने बाला आतंकित घटना की अंजाम दे दी है । इस अपराधिक घटना को समाज से अन्तरङ्ग करके विश्लेषण करना होगा ।
फेसबुक के सामाजिक संजाल पर मई २५, २०२३ के दिन ध्रुव झा जी के वाल पर “हमर बेटीके बियाह रुकल ही । महाजनो नै दैत छैक, आ बैंक त कर्जा देनाई बन्दे क देने हई” बाला घटनायी समाचार मधेश के आर्थिक समाज की बदहवाली को बताने का एक प्रतिनिधि घटना है ।
मेरी भी भान्जी की शादी जेठ २२ को तय है । मेरी बहन ने शादी के इन्तजाम खातिर बहुत जगह पैसों की तलाश की है । ऋण खोजने की कोशिश की है । जमीन बेचने की बात की है । पर न तो कोई महाजन ने, न किसी बैंक ने उन्हें उनके जमिनी सम्पत्ति तक को स्वीकार करने की मानवता दिखाई है । ऐसे आर्थिक प्रतिनिधि तंग हालातों से जुझता मधेश, शासन सत्ता से दूर रहे समान्य जन, व्यापारी, किसान, मजदूर और रोजमर्रे के जीवन शैलियों से आबद्ध लोगों का जीना मुहाल होता जा रहा है ।
एक तरफ राज्य दहेज मुक्त वैवाहिक समाज का कानुन बनाता है, वहीं उसी राज्य के बडे बडे नेता, सांसद, मन्त्री, अधिकारी और प्रशासक बडे बडे और महंगे महंगे शादियों के सेट पर बडे शान और सुरक्षा के साथ भोज खाते नजर आते हैं । लाखों करोड़ों के लगानी में शादी सेज, मण्डप और तामझाम के साथ अनन्य परिकारों के खाद्य व्यन्जन पडोसे जाते हैं । दाह संस्कार और भोज भतेरों को सामाजिक और खानदानी इज्जत माना जाता है । धार्मिक अन्ध विश्वासों पर करोडों की लगानी लगती हैं और उसी धार्मिक स्थानों के इर्दगिर्द लोग कंगाली की जीवन जी रहे होते हैं । राज्य का वहाँ पर कोई ध्यान नहीं जाता और विश्व मानव सेवा के नाम पर अपराधिक आर्थिक खेल खेले जाते हैं ।
कुछ विश्लेषक और आर्थिक/सामाजिक टिप्पणीकारों का मानना है कि वैदेशिक रोजगारों के कारण समाज में घटे हुए चोरी, डकैती, लूट, दंगे और छीना झप्टी का अपराध अब निकट भविष्य में बडे जोडतोड के साथ पुनर्स्थापित होने बाले हैं । समाज पून: अपने घर में असुरक्षित होने के डर से भयभीत होने की अवस्था है । रात रात भर लोग चोर और डकैतों के कारण जगकर रात बिताने की इतिहास दुहरने बाली है । ये और ऐसे घटनायें प्रायः पंचायत काल में घटा करते थे । अब पून: पंचायत का वह दरिन्दा भूत का पूनरागमन होना तय है ।
एक कहावत है कि पैसे से पैसे कमाये जाते हैं । ज्ञानी से ज्ञानी बनाये जाते हैं और चोर से चोर ही पैदा होते हैं । हमने अपने स्कूल में पढा था कि Money attracts Money । वह सिद्धान्त कहीं न कहीं जीवन में सत्य सावित होने के आसार नजर में है ।
देश में चाहे ज्ञानी हो, या अज्ञानी, चोर हो, या साधु या फिर ईमानदार हो, या बेइमान – सब का जड राज्य और उसका प्रणाली है । गोलाक, जरथुस्त्र, अरस्तू, या मार्क्स ने वैसे ही थोडे ही कहा है कि आदर्श राज्य के लिए आदर्शवादी नेता, नेतृत्व और आदर्श राज्य प्रणाली चाहिए ! राज्य बीज है और उत्पादन उसका परिणाम । राज्य जिस चरित्र का होगा, राज्य में नागरिक, उसका कर्म, उसका धर्म और जीवन पद्धति का उत्पादन भी इसी प्रकार का होगा ।
संसार में वस्तुतः कोई भी व्यक्ति चोर, बदमाश या लुटेरे बनकर पैदा नहीं होता, नहीं कोई व्यक्ति समाज में पूर्ण सज्जन हो सकता । राज्य परिस्थिति के वजह से राज्य में रैती, प्रजा, जनता और नागरिक पैदा होते हैं । राज्य के नीति के कारण से ही वहाँ चोर और सज्जन निर्माण होता है । आदर्श राज्य में आदर्श नागरिक निर्माण होता है ।
गलत वस्तुतः यही है कि समान्य व्यक्ति द्वारा किये जाने बाले चोरी, बदमाशी और लूट को हम अपराध मानते हैं । वास्तविकता यह है कि आदमी के जीने की राह और कमाने के रास्ते जब बन्द हो जाते है, तो वह मरने से पहले एक अन्तिम संघर्ष करता है : चोरी करने का, झूठ बोलने का और फरेबी करने का । जो लोग वह भी नहीं कर पाते, वे या तो पागल हो जाते हैं, या आत्महत्या कर लेते हैं । मरने से पहले किये जाने बाले जो काम या संघर्ष होते हैं, वही चोरी, फरेबी और दगाबाजी हैं । वह काम राज्य और उसके पक्षपोषकों के लिए अपराध होता है, वहीं वह काम मजबूर आदमी के लिए जीने और परिवार जिलाने का उपाय बन जाता है । बेरोजगार आदमी कोई न कोई काम करेगा : वह चाहे चोरी, डकैती या लूटमार ही क्यों न हो । जीने और जिलाने से बडा न तो कोई धर्म है, न बेरोजगारी में रहकर अपने और अपने परिवारों को भूखे मार डालने से बडा कोई अपराध । उसका जिम्मेवारी नैतिक रुप से राज्य को लेना चाहिए ।
नवलपरासी के पाल्हीनन्दन से दो लोग कुवेत में काम के लिए गये हैं । म्यान पावर के एजेण्ट ने बहुत बडा अरमान दिखाकर उन्हें कुवैत भेजा । दोनों दलित समुदाय के हैं । एक ने तो अपने डेढ धुर में रहे एक मात्र सम्पत्ति को ही गिरवी रखकर दो लाख तिरकर पहुँचे हैं । पहुँचे उन्हें तकरीबन एक महीने हुए हैं । अब वे वहाँ से हर हाल में नेपाल वापस होना चाहते हैं । उनका हिसाब है कि वे जिन्दगी भर भी वहाँ काम करें, तो भी न तो वे ऋण चुका पायेंगे, न परिवार का सपना पूरा कर पायेंगे । उनकी तलब है केवल ७० कतारी दीनार प्रति माह । सबसे अमानवीय जो उनके साथ में दुर्व्यवहार है – वह यह कि उनके डेरा से उन्हें ऐसे गाडी में जानवर के तरह उनके काम करने बाले जगह पर ले जाया जाता है – जिसमें से वे रास्ते में बाहर के कोई भी नजारा नहीं देख सकते । वे केवल अपने डेरा और काम बाले जगह पर ही कुछ देख पाते हैं । जिस गाडी से उन्हें उनके काम के जगह ले जाया जाता है, उस गाडी में खिडकी या सीसा नहीं होये हैं । ५०-५२ डीग्री सेल्सियस के गर्मी में वे बिना AC के गाडी में मौत से लड रहे होते हैं । वे लोग वहाँ टिक नहीं सकते । वापस आकर जीवन जीने के लिए करेंगे क्या ?
उसी राज्य में जहाँ की जनता एक एक रोटी के लिए हताश होकर अपनी जमीन और अपने परिवारों को दांव पर लगाकर देश छोड बाहर अपने जवानी को न्यौछावर करने पर उतारु हैं, वहीं राज्य के संचालक नेता और नेतृत्व देश के जद्दो जमीन, पानी और जवानी, देश की गरिमा और जनता की महिमातक को बेचकर ऐशो आराम की जिन्दगी जी रहे हैं । देश की गरिमा और महिमा को बेचकर ऐय्यासी जीवन निर्वाह करने बाले शासकों के सामने अगर वे अपने समान्य जीवन यापन खातिर कोई अपराध करें, तो उसे किस स्तर की अपराध : जीवन यापन की अपराध, या ऐय्यासी की अपराध माना जाना चाहिए ? अपराध की सजा देनी हो, तो पहले किसको देनी चाहिए ? – यह सवाल अहम् होना चाहिए ।
महोत्तरी के महोत्तरी गाँव पालिका में अवस्थित NMB बैंक में दिन दहारे फिल्मी शैली में डकैती होना बेहद चौकाने बाला अपराधिक घटना है । इस पर समाज और प्रशासन को गम्भीर और चौकन्ना होने चाहिए । अपराध में संलग्न लोगों की खोज तलाश कर कानुनी दायरे में जल्द से जल्द लाने चाहिए । मगर उसके साथ ही अपराध करने के लिए उकसाने बाले राज्य संयन्त्र को भी कानुनी दायरे में आने चाहिए । क्योंकि दिन दहारे CCTV के मौजूदगी में अपराधिक अंजाम देने बाले युवाओं में वह हिम्मत कहीं न कहीं राज्य से जुडता है । उसे यह ज्ञात होने का ज्यादा भरोसा यह हो सकता है कि जिस राज्य का सरकार और राजनीति समाज को बेचता है, नागरिक का दाम लगाता है और राष्ट्रियता का सौदागिरी करता है, जनता को लूटता है – वे उस राज्य के बैंको को लूटें, तो क्या अपराध है ?
अपराध करने बाले युवाओं में एक आवेग यह भी होने का सम्भावना है कि जिन बैंकों ने देश और समाज को सेवा करने के नाम पर समाज को लूटकर निचोडता हो, उसको चुनौती दिये जाने का भी एक दुस्साहस हो सकता है । बैंक लूटना अपराध है । मगर उस अपराध को अंजाम देने बाले अपराधिक तत्वों को, अपराध के लिए विवश करने बाले उत्प्रेरक सरकार, व्यवस्था और नीतियों को भी साथ में लपेटकर अपराधों को निराकरण करने की आवश्यकता है ।
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