रेशम चौधरी की रिहाई से उब्जे ख्वाबी पुलाऊ और मधेश प्रदेश का भविष्य : कैलाश महतो
2 years agoकैलाश महतो, परासी । तकरीबन डेढ साल पहले रेशम जी ने मुझे मिलने के लिए डिल्ली बजार जेल बुलाया था । राजनीतिक मुद्दों के कारण दश साल जेल जीवन काटकर रिहा हुए धनुषा के दिपक यादव जी को साथ लेकर हम रेशम जी से मिलने पहुँचे थे । भेंट के क्रम में हमने पार्टी न खोलने की गुजारिश की थी । बदले में उन्होंने यह कहा था कि अबतक उन्होंने मधेशी नेताओं के नेतृत्व को स्वीकार किया था, अब हम (गैर थारु) थारु और उनके नेतृत्व को स्वीकार करें और उनके नेतृत्व में पार्टी खोलने में सहयोग करें । हमारा तर्क रहा कि पहले राजनीतिक मुद्दों को किनार कर लें, फिर आवश्यकता के अनुरुप पार्टी खोला जा सकता है । मधेश के थारु या गैर थारु, जो भी पार्टी अध्यक्ष होना बडी बात नहीं है । हम थारु को अपना नेता क्यो नहीं मानेंगे ? विजय गच्छदार को तो नेता हमने माना ही था न । बात पार्टी खोलने और न खोलने पर नहीं बनी और बात यूं ही बन्द हो गया ।
रेशम जी लगभग सात सालतक जेल को झेले । बिना कारण । उस बीच में जितना थारु अभियन्ता, थरुहट संघर्ष समिति, थारु एकता समाज लगायत नागरिक उन्मुक्ति पार्टी ने उनके पक्ष में वकालत की, उससे रति भर भी कम कोई मधेशवादी दल, नेता, अभियन्ता, लेखक, विचारक और विश्लेषकों ने मेहनत और संघर्ष नहीं किया है । राज्य केवल थारु और नागरिक उन्मुक्ति पार्टी की बात सुनी है, ऐसी बात भ्रम के आलावा कुछ नहीं हो सकता ।
कुछ अन्तरवार्ता में सर पर ढाका टोपी लगाकर रेशम जी अपने हाथ और मुँह चमकाते हुए जो दावा करते नजर आये कि उनकी रिहाई उनके नागरिक उन्मुक्ति पार्टी के कारण हुआ है, तो यह उनकी अपरिपक्वता और नासमझी से ज्यादा कुछ नहीं है । रेशम जी शायद इस बात से अनभिज्ञ हैं कि राज्य ने उनको अधिकारिक हक नहीं, दया का पात्र बनाकर अपनी राजकीय रोटी बचाने की काम की है ।
हिन्दी गीत “प्यार से भी ज्यादा तुम्हे प्यार करता हूँ” पर गौर करें तो साहित्य मनोवैज्ञानिक Sidney के अनुसार आनन्द देने के आलावे उसका कोई तुक नहीं है । क्योंकि “प्यार से भी ज्यादा” कोई प्यार होने का संभावना ही नहीं है । Sidney को मानें तो रेशम जी हद से ज्यादा नेपाली बनने के कोशिश में हैं, जो सत्य सावित होना नेपाली राज्य के लिए ललिपप से ज्यादा और क्या हो सकता है ?
एक तरफ रेशम जी थारु और थरुहट राज्य, थारु संस्कार और संस्कृति, रीति रिवाज, रहन सहन और भेष भीषा व पहिचान का दावा करते हैं, वहीं अपने थारुपन को चुनौती देते हुए अव्वल नेपाली बनकर भीम रावल, रमेश लेखक, रामशरण महत, बामदेव गौतम, शेर बहादुर देउवाओं को चुनौती देने का अनुनय विनय को राज्य रेशम जी से ज्यादा समझता है । हमारे पुर्खों ने कोई गलत नहीं कहा है कि हंस बनने चले एक बुलन्द चिडिया न तो हंस बन पाया, न वह अपने प्रकृति को बचा पाया और बीच में मजाक बनकर “बुलबुल” बन गया ।
कुछ दिन पहले लक्ष्मण थारु ने अपने एक मन्तव्य में कहा था कि अगर थारु ने मधेश आन्दोलन का विरोध न किया होता तो आज पूरा मधेश – एक प्रदेश होता । उनके अनुसार वह केवल और केवल थारु हैं, जिनके विरोध से मधेश आन्दोलन का मांग को पूरा न होने देकर केवल आठ जिलों में मधेश को सिमटने पर मजबूर किया था ।
रेशम जी आम माफी के बल पर ८४ के आम चुनाव से देश के प्रधानमन्त्री बनने का सपना सजा रहे हैं । ईश्वर से कामना है कि उनके वे भी सपने पूरे हो जायें । मगर सवाल यह है कि रेशम और लक्ष्मण जी थारुओं से कितने मत ला सकते हैं कि प्रधानमन्त्री बनने का हिमाकत रखते हैं ? जहाँतक नागरिक उन्मुक्ति पार्टी की बात है, तो यह स्पष्ट है कि थारु जब मधेश आन्दोलन के मुद्दों को नहीं मान सकते, लक्ष्मण थारु लोग मधेशी नहीं हो सकते, तो नि:सन्देह बांकी के मधेशी लोग थारु से किस आधार पर ऐक्यबद्धता कायम कर सकेंगे ?
थारु मधेशी नहीं हो सकते, तो निश्चित ही गैर थारु मधेशियों को पृथक ढंग से सोंचना होगा । थारु बगैर के मधेश भी निर्माण हो सकने की संभावनाएँ निर्माण करना होगा । थारु को मधेशी कहना अब मधेशियों के लिए चिन्ता का विषय नहीं बनना चाहिए । थारु राज्य और थरुहट भूमि के लिए थारु द्वारा
Iकिये जाने बाले हर आन्दोलन में मधेशियों से भरमग्दूर सहयोग करने और मधेश बस्ती को ही समग्र मधेश प्रदेश बनाने के उपाय होने चाहिए ।

इस विकल्प के बगैर मधेश अब और थारु के प्रतिक्षा में ज्यादा समय नष्ट किया, तो थारु न तो अपना घर बना पायेंगे, न मधेश को रास्ता मिल सकेगा । समग्र मधेश – एक बृहत् प्रदेश के लिए सबसे बडा बाधक थारु होने के सत्य संभावना को मध्य नजर करते हुए मधेश आन्दोलन की आगाज उचित समय पर ही कर देना बेहतर होगा ।
