पाकिस्तान की राह पर आगे बढ़ता नेपाल : कंचना झा
कंचना झा, हिमालिनी अंक मई । ट्रक चालक परेशान था कि खाने के सामान से लदे इस ट्रक को मैं कहाँ रोकू ? क्योंकि हजारों हजार की भीड़ है यहाँ । अगर यहाँ ट्रक रोकता हूँ तो लड़ाई फसाद हो जाएगा, यह डर ट्रक चालक को है । वह कुछ दूरी पर जाकर ट्रक को रोकता है कि बस पूरी भीड़ अनाज को छीनने झपटने में लग जाती है । भूख से बिलखते लोग आटा के लिए झगड़ा कर रहे हैं । सभी को यही लगता है कि मुझे मिलनी चाहिए या फिर मुझे मिलना चाहिए । जब छीना छपटी से काम नहीं बनता है तो गोली चल जाती है और कुछ लोग आटे के झोले को लेकर भागते हैं । कुछ दूर जाने के बाद उसके पीछे दो चार लोग और भागते हैं, कुछ वहीं बैठकर रोने लगते हैं कि आज चार दिन से घर के बच्चों ने कुछ खाया नहीं है शायद आज भी बच्चे भूखे ही सो जाएँगे ।
लेकिन जो टोली आटा के झोले को लेकर भागी है उसके पीछे दो चार लोग गए हैं और उस आटे की थैली को पकड़ते हैं और सामने वाले से कहते हैं कि – देखों मेरे घर में मेरी बूढ़ी माँ है और बीमार पत्नी है जो चार पाँच दिन से भूखी है । मेरे घर में आटा नहीं है । अगर आज यह आटा मुझे मिल जाए तो मेरे घर में रोटी बन जाएगी और कम से कम आज के दिन उन्हें खाना मिल जाएगा । उसकी इस बात को सुनकर सामने वाला भी रो पड़ा और थैली खींचते हुए कहने लगा –भाई मेरे, तेरे घर में तेरी बूढ़ी माँ और पत्नी है मेरे घर में तो छोटे–छोटे बच्चे हैं भूख से बिलख रहे हैं बच्चे, उनका क्या करुँ ? उनका भूखा पेट, उनकी निराश आँखें मैं नहीं देख सकता । वो रोता हुआ आटे की थैली लेकर भाग जाता है इससे पहले कि कोई और अपना दुख सुनाता । बेचारा सामने वाला रोते हुए नीचे बैठ जाता है इस इंतजार में कोई गाड़ी फिर आए तो आटा अपनी बच्ची के लिए ले जाए और उसकी भूख को शांत कर सके । ये हर उस देश की हकीकत है जहाँ की आर्थिक अवस्था, राजनीतिक अवस्था खराब,या फिर राजनीतिक अस्थिरता है । ये कोई कहानी नहीं यह हकीकत है पाकिस्तान के अवाम की । अभी की बात करें तो पाकिस्तान की जनता ने उग्र रूप धारण कर लिया है ।
कहते हैं जब समस्या चरम पर पहुँच जाती है या फिर बात जब पेट की आती है तो वहाँ सब कुछ जायज है । पाकिस्तान की जनता अब सहन करने को तैयार नहीं है । पाकिस्तान की अभी की अवस्था को अगर हम देखते हैं तो यही लगता है कि भ्रष्टाचार चरम सीमा पर है और इसी भ्रष्टाचर का विरोध करने पर पूर्व प्रधानमन्त्री इमरान खान संकट में घिर गए हैं ।
कहें तो पाकिस्तानी जनता और आर्मी के बीच एक युद्ध चल रहा है । फिर पाकिस्तान का कानून भी थोड़ा अलग है वहाँ अगर किसी की चलती है तो वह सेना की चलती है । अभी हाल ही में सरकार ने भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठा रहे पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को गिरफ्तार कर लिया था । वैसे तो कोविड १९ के बाद बहुत से देश की अवस्था खराब हो गई है । बहुत से देश की आर्थिक अवस्था डगमगा गई है जिस में से एक पाकिस्तान भी है । पाकिस्तान के साथ ही नेपाल, श्रीलंका भी आर्थिक संकट गुजर रहा हैं । इन देशों में मंहगाई, राजनीतिक उथल–पुथल से आम जनता परेशान है । वह चाहती है कि कोई ऐसा व्यक्ति आए जो चुटकी बजाए और सबकुछ ठीक हो जाए ।
पाकिस्तान अभी बहुत अकेला पड़ गया है क्योंकि शुरु से ही उसपर यह आरोप लगा हुआ है कि वह आंतकवादियों को सहयोग करता है । विश्व में आंतकवाद को बढ़ावा देता आया है जिसकी वजह से बहुत से देश जो पहले उसे सहयोग करते थे अब वह पाकिस्तान से नजरें बचा रहे हैं ।
लेकिन पाकिस्तानी जनता की आँखों में एक नई उम्मीद जगी है इमरान खान को लेकर । वह मन से उन्हें सहयोग कर रही है । जब उन्हें गिरफ्तार किया गया तो जनता एक तरफ और सरकार एक तरफ हो गई थी । हालांकि दो दिन हिरासत में रखने के बाद उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया गया था । लेकिन कुछ कहा नहीं जा सकता कि कब तक वो बाहर रह सकेंगे । पाकिस्तान की जनता जानती है कि उसके देश की आर्थिक अवस्था नहीं अच्छी है । इसे बदलने या ठीक करने में समय लगेगा । लेकिन उन्हें यह उम्मीद है कि यदि एक भ्रष्टाचार को कम कर दिया जाए देश से तो, कुछ समय तो लगेगा, लेकिन धीरे धीरे सब ठीक हो जाएगा । इसमें एक सुलझे और समझदार नेता की आवश्यकता है जो उनका प्रतिनिधित्व कर सकें । जिनपर वह भरोसा कर सकें । पाकिस्तान को तलाश है एक अच्छे नेता की ।
ये तो हुई पाकिस्तान की बात अब इसी संदर्भ को जरा जोड़ दें नेपाल से तो बहुत ही कठिन दौर से गुजर रहा है नेपाल भी । इस देश को तो यहाँ की राजनीतिक अस्थिरता ही मार देगी किसी दिन । देश अभी गुजर रहा है भ्रष्टाचार के आंतक से । जहाँ देखे वही भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारी । कभी–कभी डर लगता है कि कहीं इसकी अवस्था भी श्रीलंका या पाकिस्तान के जैसी हो जाएगी । क्योंकि यहाँ भी कमर तोड़ मंहगाई है । ऐसी मंहगाई जिसका कोई तोड़ नहीं है । जो सरकार में है उसे ही चिंता नहीं है कि उसकी जनता मर रही है । पीड़ा में है । जिस बजट को वह सड़Þक बनाने और तोड़ने में या फिर सांसदों । मंत्रियों को खिलाने में खर्च कर रही है उसका कुछ भाग भी अगर अपनी जनता को दे दें तो उसे दुआएं मिलेगी । लेकिन यहाँ के नेताओं को ये दुआएं नहीं चाहिए । उन्हें चाहिए कुर्सी, कुर्सी और बस कुर्सी । कुर्सी की ऐसी ललक है यहाँ नेताओं को कि वो अंधे हो चुके हैं । उन्हें कुछ नहीं दिखता । वह दिन दूर नहीं जब नेपाल एक ऐसा देश बन जाएगा जहाँ कोई युवा नहीं रहेगा । यहाँ रहेंगे तो केवल बड़े बुजुर्ग । क्योंकि युवाओं का पलायन तो शुरु हो चुका है । कोई कैसे यहाँ रह सकता है ? यहाँ कोई भविष्य किसी को नजर नहीं आ रहा है । सामान्य व्यक्ति २ या ३ प्रतिशत है बाकी सभी राजनीतिक कार्यकर्ता है । कारण स्पष्ट है कि जब रोजगार ही नहीं है तो कुछ तो करना है न पैसा के लिए । तो चलो कार्यकर्ता बन जाते हैं । जो ही थोड़ा बहुत मिल जाए ।
भष्टाचार यहाँ भी अपने चरम पर पहुँच गया है । इसकी पहुँच नेपाल के सबसे पुरानी पार्टी के रूप में विख्यात कांग्रेस तक है । कांग्रेस के सभापति तथा पाँच बार प्रधानमंत्री पद को प्राप्त करने वाले शेर बहादुर देउवा की पत्नी आरजू देउवा पर आरोप लग रहा है भ्रष्टाचार का, तो कभी गृहमंत्री रहे बालकृष्ण खाण तो तो कभी एमाले पार्टी की तरफ से उप प्रधानमंत्री रहे टोप बहादुर रायमाझी पर । उन लोगों पर आरोप है कि उन्होंने नेपाली नागरिक को गलत तरीके से भुटानी शरणार्थी बनाकर विदेश भेजा । कैसे किसी पर विश्वास किया जाए ? फिलहाल बालकृष्ण खाण और टोपबहादुर से पूछताछ की जा रही है लेकिन उनका कहना है कि उन्हें फंसाया जा रहा है ।
जिस भ्रष्टाचार की यहाँ बात की जा रही है एक तरह से कहें तो यह मानव तस्करी है । जहाँ इन सभी नेताओं ने झूठ बोलकर जनता से पैसे वसूल किए हैं । जबकि पैसे की इन्हें कोई कमी नहीं है । नकली भूटानी शरणार्थी का पासपोर्ट बनाकर जो भूटानी शरणार्थी नहीं हैं उनसे पैसा लेकर उन्हें अमेरिका भेजा गया । क्या यह मानव तस्करी का केस नहीं है ? ऐसे केस में यदि किसी का नाम आता है तो कैसे चुप बैठ जाएं कोई । आजकल भ्रष्टाचार के खिलाफ रोज आंदोलन किया जा रहा है नेपाल में ।
आखिर भूटानी शरणार्थी का केस क्या है तो इसके लिए कुछ दशक पहले की बात करनी होगी । भूटान भी आर्थिक संकट से गुजर रहा था । वहाँ भी भ्रष्टाचार अपने चरम पर पहुँच गया था । एक समय ऐसा था जब नेपाल मूल की जनता वहाँ रह रही थी । जनता की पीड़ा को सुनने वाला कोई नहीं था । ऐसी अवस्था में जनता ने सरकार के खिलाफ आंदोलन कर दिया । उस आंदोलन में नेपाली मूल के जो भूटान में रहते थे उनलोगों ने भी बढ़–चढ़कर हिस्सा लिया था । भूटान की सरकार ने अपनी भाषा, अपनी संस्कृति और पहनावा पर जोर दिया था । वो चाहते थे कि सभी उनकी बात को माने । लेकिन नेपाली मूल के व्यक्ति की अपनी भाषा अपनी पहचान थी जिसे वो छोड़ना नहीं चाहते थे । एक तरह से कहें तो धीरे–धीरे माहौल ही कुछ इस तरह का बना कि नेपाली मूल के लोग बाध्य हो गए वहाँ से लौटने को । बहुतों को वहाँ से पलायन भी होना पड़ा और बहुतों को कहा गया कि अपने देश को वापस जाएं । यानि भगाया गया । वैसे इसका एक बहुत बड़ा कारण भूटान की आर्थिक अवस्था भी थी । भूटान ने खुलकर नेपाली मूल की जनता से कहा कि आप नेपाल या अपने देश जाएं । नेपाली जनता कहाँ जाती तो उसने भारत से शरण मांगी । लेकिन भारत ने यह कहकर कि आप नेपाल के हैं तो पहले आप नेपाल ही जाएं । नेपाल अपनी जनता को भूटानी शरणार्थी के रूप में अपने देश लौटाकर लाते हैं । भूटानी शरणार्थियों की अवस्था अच्छी नहीं होने के कारण विश्व के कुछ देशों ने छूट दी कि नेपाल शरणार्थी को अपने देश में रहने देंगे । भूटानी शरणार्थियों की एक सूची तैयार की गई । जिसमें सभी शरणार्थी के नाम लिखे गए । कुछ को अमेरिका भी भेजा गया । तब तक यह बात फैल गई कि भूटानी शरणार्थी को विजा देकर वहाँ भेजा जा रहा है । अब हम और आप तो जानते ही हैं न कि अमेरिका, इंग्लैंड जाने के नाम पर हम कैसा अनुभव करते हैं तो बस बहुत से लोगों की यह इच्छा हुई कि हम भी नेपाल से बाहर अमेरिका में जाकर बस जाए । बस फिर क्या था भागदौड़ शुरु हो गई । बात राजनीतिक दलों तक पहुँची । उन्होंने यह जिम्मा ले लिया कि कोई बात नहीं जहाँ इतने शरणार्थी हैं तो कुछ नेपाल के भी लोग चले जाएँ लेकिन इसके लिए पैसा दिया जाए । अपने देश के व्यक्ति को आप दूसरे देश में भेज रहे हैं गलत नाम देकर । यह तो अपराध है । और इसकी सजा मिलनी ही चाहिए ।
बात भी ऐसे नहीं खुली । बात जब कुछ लोगों से पैसा ले लिया गया लेकिन उन्हें भेज नहीं पाए तो थोड़ा धुँआ उठा और धीरे–धीरे यह आग फैल गई । नाम आया केपी ओली, शेर बहादुर देउवा, टोप बहादुर रायमाझी, बालकृष्ण खाँण, आरजु देउवा, मञ्जु खाँण और कुछ उच्च सरकारी अधिकारियों का । वैसे भी यह पहली बार नहीं हुआ है कि उनका नाम आया हो । वैसे इससे भी अजीब बात यह है कि शेर बहादुर देउवा अभी अपनी पार्टी में इस विषय पर कोई बात नहीं करना चाहते हैं । आम जनता चाहती है कि चर्चा की जाए इस विषय को लेकर लेकिन नेताओं का ध्यान इस ओर बिल्कुल भी नहीं है ।
लेकिन सोचने की बात यह है कि जनता मंहगाई की चपेट में है, शिक्षा की अवस्था यहाँ अच्छी नहीं है, स्वास्थ की अवस्था भी डावाडोल है । आपके यहाँ अगर कोइ बहुत बड़ी बीमारी हो जाएं किसी को यहाँ अच्छा इलाज नहीं हो सकता । लोग बाहर भागते हैं । युवा देश में है नहीं तो कैसे नेपाल की कल्पना करें हम ?
बेचारी जनता भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठा रही है । सड़क पर आंदोलन किया जा रहा है । दो चार दिन आंदोलन होंगे । सरकार को कोई मायने मतलब है नहीं तो कुछ दिनों के बाद आंदोलन शांत हो जाएगा ।
इस बार के चुनाव में युवाओं को आम जनता ने जगह तो दी लेकिन वह भी वही ढाक के तीन पात जैसे निकले । जो जीतकर आएं हैं उन्हें भी बहुत कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि क्या करें क्या नहीं ? यहाँ की जनता भी आक्रोशित है जिस दिन वह अपने रूप में आएगी पता नहीं यहाँ क्या होगा ? एक डर है लोगों में कि कहीं हमारी भी अवस्था पाकिस्तान के जैसी तो नहीं हो जाएगी ?
नेपाल जहाँ की राजनीति अस्थिर है, युवाओं में आक्रोश है, भोली भाली जनता पीडि़त है । उसकी पीड़ा को सुनने के लिए कोई नहीं है, युवा देश से बाहर है और जो हैं वो भी सपना देख रहे हैं कि कब यहाँ से बाहर जाएं ? ये दशा है नए नेपाल की । नया नेपाल नई सोच कहीं नहीं दिखती है । देश में लोकतंत्र हो या गणतंत्र लोग वही हैं, सोच वही है तो विकास कहाँ से होगा ? नेपाल को तलाश है एक ऐसे नेता की जो भ्रष्टाचार का अंत करें, यहाँ की शिक्षा स्तर में सुधार ला सके । अपने देश में युवाओं को रोजगार दे सके । अगर हम इस तलाश में पूरे नहीं उतरे तो हमारी अवस्था भी वही होगी जो आज पाकिस्तान की है ।