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अंशु कुमारी झा, हिमालिनी अंक मई। काण्ड ही काण्ड का देश नेपाल वर्तमान में भी एक काण्ड से जूझ रहा है, भुटानी शरनार्थी काण्ड । यह काण्ड इस प्रकार से उलझा हुआ है कि इसमें कौन–कौन फंसेगा कहना नामुमकिन है । दिन प्रतिदिन इसमें नए–नए किरदार जुड़ते जा रहे हैं । सब अपने आपको निर्दोष साबित करने पर तुले हुए हैं । खुद के बुने हुए जाल से सब निकलने के प्रयास में हैं परन्तु यह जाल थोड़ा जटिल है । देश का प्रशासन अपना अधिकार जमा रखा है, यह कब तक जमेगा कहना असम्भव है । वैसे तो देश की जनता सक्रिय हो गई है । भ्रष्टाचारी को संरक्षण न मिले इसके लिए हर दिन विभिन्न प्रकार के आन्दोलन, धरना इत्यादि हो रहे हैं । विभिन्न कार्यक्रमों में नेता लोग भ्रष्टाचारी को सजा मिलनी चाहिए कहते सुना जा रहा है ।



फर्जी भुटानी शरणार्थी काण्ड तो राष्ट्र में व्याप्त भ्रष्टाचार की एक परत है । अगर भ्रष्टाचार के विरुद्ध अभियान चलाया जाय तो इससे भी भयावह दृश्य का अवलोकन हो सकता है । यह फर्जी भुटानी काण्ड बहुत सरल कहां है, इसके भी तन्तु और तत्व पराकाष्ठा लांघ चुके हैं । इससे पहले के जो काण्ड सब सामने आते थे उसमें ज्यादातर नीचे तबके के लोग ही संलग्न दिखाई देते थे परन्तु इसबार का भुटानी शरणार्थी काण्ड कुछ अलग ढंग का है । इसमें तो बड़े– बडेÞ लोग, नेता, उपप्रधानमन्त्री, गृहमन्त्री का पदभार ग्रहण करने वाले व्यक्ति भी फंस गए हैं । खुशी की बात यह है कि जैसे हम जनता हमेशा सोचते थे कि कानून सिर्फ कमजोर के लिए बनाया गया है इसबार वैसा नहीं है । बड़े लोगों के लिए भी कानुन है, की प्रत्याभुति जनता में हो रही है । यह संकेत देश के हित में शुभ तो लग रहा परन्तु विगत के काण्डों, धमिजा, टनकपुर, सुडान, ओम्नी इत्यादि जैसे को धुमिल कर दिया गया जिससे उक्त काण्ड को भी बागमती में ले जाकर न बहा दे, आशंका है । इस प्रक्रिया में हमारा नेतृत्व और दल ज्यादा ही उदारवादी दिखता है । भ्रष्टाचार का उन्मुलन करने के बजाय उसे बार–बार अपने शरण में पनाह देना, यह परम्परा प्रजातन्त्र की देन है । भ्रष्टाचारियों का बचाव करना दिन प्रतिदिन घातक सिद्ध हो रहा है ।

फर्जी भुटानी शरणार्थी की ही बात करें तो यह विषय सम्पूर्ण नेपालियों को हिला दिया है । यह प्रकरण विगत के जैसे ही सुस्त न पड़ जाय इसलिए चारों तरफ सजगता, सचेतता और सक्रियता बढ़ती हुए दिखाई दे रही है । इस काण्ड के पात्रों में से कोई पुलिस के गिरफ्त में है, कोई छुपे हुए हैं और कोई भागने में सफल हो गए हैं । अभी भी बहुत सारे चेहरे नकाब में है जिनका नकाब खुलना बाकी है । इस धधकते काण्ड पर पानी डालने वाले भी कम नहीं है परन्तु सरकार भी इस काण्ड का पर्दाफास करने के लिए तत्पर दिख रही है । प्रधानमन्त्री पुष्पकमल दहाल और गृहमन्त्री नारायण काजी के अडिग निर्णय को सभी ने सराहा है । चारों तरफ से उन्हें प्रोत्साहित किया जा रहा है । जनअपेक्षा अनुरुप, बिना लोभ लालच के सरकार अगर इसी प्रकार काम करती रही तो वो दिन दूर नहीं जिस दिन देश के सम्पूर्ण भ्रष्टाचारी कालकोठरी में सदा के लिए दफन हो जायेंगे । विश्व में नेपाल को भी भ्रष्ट राष्ट्र में गिना जा रहा है, यह नया नहीं है । कुछ लम्बे अरसे से यहां भ्रष्टाचार का बोलबाला बढ़ता जा रहा है जो ट्रान्सपरेन्सी इन्टरनेसनल इत्यादि के वार्षिक प्रतिवेदन में स्पष्ट लिखा गया है ।

भ्रष्टाचारी प्रक्रिया को हमेशा राजनीति की आड़ में अन्जाम दिया जाता है जिससे अभी की राजनीति बहुत ही बदबुदार हो गई है । जिससे जनता को राजनीति में दिलचस्पी कम होती दिखाई देती है । राजनीति को स्वच्छ रखने की जिम्मेदारी संसद तथा राजनीतिक दलों की होती है । अगर वही भ्रष्ट और बेईमान हो जाय तो राजनीति दुषित ही रहेगी । जनता को सुशासन की प्रत्याभुति कभी नहीं होगी । जब राजनीति सिद्धान्तविहीन हो जाती है तो वो अपनी मूल्य, मान्यता तथा संस्कार का त्याग कर देती है । राजनीतिक पार्टियां लूटने में लग जाती है । नातावाद का बोलबाला हो जाता है तत्पश्चात सत्ता का महत्व घट जाता है । इसलिए सत्तासीन व्यक्तियों को अपने राज्य के प्रति कर्तव्यनिष्ठ, ईमानदार होना बहुत ही आवश्यक होता है । भ्रष्ट और बेइमान के कारनामों पर पर्दा नहीं डाला जाय तो उसे सुधरने का अवसर मिलता है । भ्रष्टाचारी जो कोई भी हो उसे किए की सजा मिलनी ही चाहिए । भ्रष्ट व्यक्ति किसी भी तबके का क्यों न हो वह राष्ट्रघाती ही होता है । वह सभी के लिए खतरनाक हो सकता है । इसका मतलब यह नहीं कि भ्रष्टाचारी दूसरे पार्टी से है तो अगली पार्टी ताली बजा कर खुश हों । भ्रष्टाचारी बड़ा हो या छोटा उसे उसके अपराध का दण्ड मिलना चाहिए, इसका दायित्व सम्पूर्ण राजनीतिक दल का है ।

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समग्र में प्रणालीगत रूप में पंचायत, प्रजातन्त्र, लोकतन्त्र, गणतन्त्र जो भी हो क्रमशः भ्रष्टाचार फलता फूलता रहा, भ्रष्टाचारी स्वतन्त्र होकर कुकृत्य करता रहा । इसके खिलाफ कभी भी शंखघोष ठीक से हुआ नहीं । जनता चिल्लाती रही । राजनीतिक दल तथा नेतृत्व करने वाले इस विषय के लिए कभी भी संवेदनशील नहीं दिखे जिससे भ्रष्टाचार पोषित होता रहा । भ्रष्टाचार विरुद्ध जितने भी आयोग का प्रतिवेदन है, बस सभी कागज में सजे हुए है । अतः सरकार को, विभिन्न दलों के नेतृत्ववर्ग को भ्रष्टाचार विषय पर गम्भीरतापूर्वक ध्यान देना अत्यन्त आवश्यक है । भ्रष्टाचार का अगर समय पर न्युनिकरण नहीं किया गया तो देश का भविष्य अन्धकार में चला जायेगा । आने वाली संतति परिश्रम ही नहीं करेगी । सर्टकट अपना कर पैसा कमाने के मार्ग पर अग्रसर होगा जो देश के हित में सही नहीं है ।

अंशु कुमारी झा
हिमालिनी



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