फिल्म “आदि पुरुष” के भित्री परिदृश्य : कैलाश महतो
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कैलाश महतो , पराशी । जो बालेन अपने पूर्खों के पहनावे, भाषा, संस्कृति और पहचान का सम्मान नहीं कर सकते, वह न सच्चा मधेशी है, न पक्का नेपाली हो सकते । उनके द्वारा कुछ राष्ट्रवादी पाखण्ड और स्टण्ट्स करने का एक मात्र जुगाडी उद्देश्य यह है कि स्थानीय निकाय चुनाव के बाद उन पर लगे “धोती” को खोलकर “टोपी” हो जाने का भविष्यि का जुगाड । बालेन साह को पता है कि काठमाण्डौ ने उन्हें मधेशी जानकर नहीं, शासकवंशी नेपाली ठकुरी मानकर जिताया है । बालेन साह ने अपने बाप दादों के “साह” थर को भी धोखा देकर “शाह” लिखता है । उसी “शाह” थर ने काठमाण्डौ को भ्रम में डाल दिया और नेपाली र्यापर बालेन को अपना मेयर बना लिया । मगर जब पता चला कि बालेन “टोपी” नहीं, “धोती” है, बहुत से लोगों ने उनके जीत पर पछतावा दिखाई, जिससे बालेन के नशों में हलचल पैदा होना स्वाभाविक रहा । अब वे अपने “शाह” टाइटिल को काठमाण्डौ से अनुमोदन कराने के जुगाड स्वरूप ही दक्षिणी भारतीय हिन्दी फिल्म “आदि पुरुष” का विरोध किया है ।
वाजिब सी बात है कि जानकी बिहार के सीतामढ़ी के मिट्टी से अवतरित होने का किवदन्ती इतिहास है । वर्षा देव को मनाने हेतु मिथिला नरेश शिरध्वज जनक ने अपने राज्य के एक कोने में हल चलाने गये, जहाँ उन्हें हल के सित (फाल) से खुदकर एक बच्ची मिलती है, जिसका नाम सीता रखा जाता है । वह बच्ची जनक के रेख देख और लाड प्यार से पलने के कारण वह ” जानकी” भी नाम पाती है, यद्यपि वह जनक की अपनी औलाद नहीं है ।
अब सवाल यह उठता है कि हिन्दी फिल्म “आदि पुरुष” में रहे “जानकी” जिस पात्र का विरोध नेपाल में रणनीतिक रुप से किया जा रहा है, उस “जानकी” पात्र को कहाँ की “जानकी” कहा जाय : नेपाल की ?, या भारत की ? नेपाल की कहा जाय, तो उस समय नेपाल था नहीं । भारतीय कहा जाय, तो उस समय भारत भी नहीं था । सार्वभौम दो राज्य : मिथिला और अयोध्या थे, जो समय के काल खण्डों में मिथिला के कुछ भाग नेपाल के और अयोध्या के विशाल भाग भारत के सीमा में पड गये । मगर न तो पूरा मिथिला नेपाल में है, न पूरा अवध नेपाल में पड पाया । उस हालात में जानकी भारतीय और नेपाली दोनों होने से पडे हैं । न तो जनक नेपाली थे, न दशरथ भारतीय थे । न जानकी नेपाल की हो सकती है, न राम भारत के ।
बालेन साह की रणनीतिक मजबूरी और उनके कन्धों पर बन्दुक रखकर हालात का शिकार करने में चतुर कुछ राष्ट्रवादी नेपाली अगर विवाद खडा ही करें, तो उनको इस तथ्य को सावित करना चाहिए कि, या तो सीतामढ़ी नेपाल का हो, या जनकपुर विहार का । एक आदमी दो देशों का नागरिक कैस हो सकता है ? उसमें भी तब की नागरिक, जिस समय नागरिकता लेने देने का कोई प्रावधान ही नहीं था ! हर ऐतिहासिक चीज, व्यक्ति या सम्पदा को किसी देश के नागरिकता के कैद में ही नहीं रखा जा सकता । कुछ चुनिन्दे और अद्वितीय पुरुष देश के सीमा और नागरिकता के परिधि से उपर होते हैं । इसिलिए मानव समाज ने उन्हें भगवान या फरिश्ते कहे हैं ।
दुनिया २१वीं शदी का आनन्द ले रहा है और हम आज भी राम, रावण, कृष्ण और कंशों में अटके हुए हैं । दुनिया आज अन्तरिक्ष में सौर्य उर्जा उत्पादन कर उन क्षेत्रों में विद्युत प्रदान करने की तैयारी कर रहा है, ब्ल्याक व्होल जैसे वैज्ञानिक तथ्यों पर काम चल रहा है और हम आज भी जानकी, मातातीर्थ और मन्दिर मस्जिदों में उलझे पडे हैं ।
दुनिया में सबसे खतरा नकारात्मक भाव “राष्ट्रवाद” का है, जिसका कोई काम और औचित्य नहीं है । बालेन साह के लिए कल्ह का जो समस्या है : नेपाली बनने का – उसका ही यह एक अभ्यास है । कारण काठमाण्डौ में उन्हें पूर्ण नेपाली होने का सर्टिफिकेट लेना है ।
जिस “जानकी” की बात फिल्म में किया गया होगा, अगर वह पात्र जनक पुत्री “सीता” से सम्बन्धित है, तो फिर बालेन के गृह जिल्ला महोत्तरी से ही सटे “सीतामढी” में उनका जन्म का काव्य इतिहास है । जानकी अगर जनक हल के “सित” (फार) के कारण जमीन से निकली है, तो फिर जनक जी तो अपने ही देश/राज्य में हल चलाने गए होंगे ! इससे तय यह करना होगा कि या तो वर्तमान का जनकपुर बिहार का है, या सीतामढ़ी जनकपुर, नेपाल का ।
ग्रेटर नेपाल और ग्रेटर इण्डिया विवादों को सुक्ष्म अध्ययन और विश्लेषण किया जाय, तो ग्रेटर नेपाल ने अपना अस्तित्व ब्रिटिश इण्डिया-नेपाल बीच के सुगौली सन्धियों के साथ ही समाप्त कर लेता है । बुद्ध पर लिखित अनेक चिनिया ग्रन्थों व अन्य ऐतिहासिक श्रोतों के अनुसार भी सन् १९३० तक कपिलवस्तु और लुम्बिनी लगायत वर्तमान नेपाल के पूर्वी नेपाल के कुछ महत्वपूर्ण भूभाग समेत भारत के नक्शा में सामेल है । तब तक नेपाल क्या कर रहा था ? अंग्रेजों के सामने खडे होकर अपना जमीन पर दावा करने की हैसियत बहादुरों के पास क्यों नहीं हुआ ?
बालेन जी के राष्ट्रवाद से अगर जानकी पूर्णतया नेपाली बन जाती हैं, ग्रेटर नेपाल के नक्शा लटका लेने से नेपाल फैल जाता है, तो उससे सबसे ज्यादा लाभ और खुसी मधेशियों को होगा । क्योंकि हमारी जमीन के साथ हमारा जनसंख्या भी बढेगा ।
कुछ उचक्के लाल बुझक्कर राष्ट्रवादी नेता, अभियन्ता और पत्रकारों के भाषा में फिल्म “आदि पुरुष” द्वारा जहाँतक नेपाली संस्कृति और पहचान को नाश करने का प्रचार किया जा रहा है, तो सबसे पहले तो जानकी को नेपाली बनाना बदतमिजी से ज्यादा और कुछ नहीं हो सकता । दूसरी बात, जब वे राष्ट्रवाद से ओतप्रोत “ताक परे तिवारी, नत्र गोतामे” दुश्चरित्र के लोग ये कहते हैं कि फिल्म के भाष्य से तीन करोड नेपाली का चित दु:खा है, तो उस तीन करोड नेपाली में नागरिकता विहीन लोग पडते हैं, या नहीं ? घर घर में जनसांख्यिक विवरण लेने पहुँचे कर्मचारियों को तो जन्म के आधार पर नागरिक बने माता पिता ने अपने नागरिकता विहीन सन्तान सहित का ही पारिवारिक विवरण दिया होगा ! तो फिर जनगणना में आ चुके उसी जनक, जानकी, बुद्ध, दङ्गीशरण, विराट, सहलेश, हरि सिंह देव, मुकुन्द सेन, गुप्त, भुपतिन्द्र और राजेन्द्र मल्लों के सन्तान गैर नागरिक क्यों ? उन्हें नागरिकता देने में तिकडमबाजी और बेइमानी क्यों ?
नागरिकता केवल एक समस्या है । इसके समाधान के लिए केवल नागरिकता लेना ही पूर्ण समाधान नहीं है । नागरिकता पाना हर नागरिक का जन्म सिद्ध अधिकार है । आवश्यकतायी मनोवैज्ञानिक रुप से नागरिकता प्राप्ति के बाद धरातलीय प्राथमिक समस्याएँ सुलझ तो जायेंगे, मगर नियत के आधार पर नागरिकता समस्या भविष्य में थप जटिल होता चला जायेगा, जो भविष्य के लिए एक खतरा है । इसके पूर्ण और स्थायी समाधान के लिए स्थायी उपाय ही खोजने होंगे ।
स्थायी समाधान के अकाट्य आधार हैं : राज्य राष्ट्र (State Nation) तथा पूर्ण समानुपातिक निर्वाचन प्रणाली का प्रयोग । बांकी जितने भी नागरिकता विधेयक, रेशम चौधरी रिहाई लगायत के सारे मुद्दे राज्य द्वारा रणनीतिक तवर से सम्प्रेषण किया गया है, उसका एक ही और अन्तिम रणनीति है : नक्कली भूटानी शरणार्थी और भ्रष्टाचारों के मुद्दों को जनता के नजर से दूर करने का षड्यन्त्रात्मक खेल ।
समाचार के अनुसार व्यापसरिक प्रयोजन ले कारण वैसे भले ही भारतीय फिल्म बोर्ड ने अपने फिल्म से “जानकी” को भारतीय होने पर सुधार कर दी है, मगर यह प्रश्न और तेज हो गया है कि जनकपुर से व्याह कर अयोध्या पहुँची “जानकी” ठीक उसी तरह नेपाली या भारतीय होने का संशय जीवित रह जाता है, जैसे विवादित नेपाली ?/भारतीय ? भूमि पर अवरित बुद्ध नेपाली हैं, भारतीय ? क्योंकि तथ्यत: नेपाल में सिद्धार्थ गौतम जन्मे थे । “सिद्धार्थ” तो “बुद्ध” भारत के गया में बना है । इस तथ्य के आधार पर तो बुद्ध भारतीय ही हैं । बुद्ध से पहले का सिद्धार्थ नेपाली हैं ।
