एक अनुकरणीय यात्रा
राजेन्द्र शलभ:किसी भी देशको अगर कमजोर बनाना हो तो उसके भाषा-साहित्य और संस्कृतिको कमजोर बना दीजिए । अगर भाषा-साहित्य और संस्कृति सबल है तो वो देश और उसके वासी सदैव समृद्ध रहेंगे । इस तथ्य को अच्छी तरह समझने वाले एक राष्ट्रभक्त नेपाली हैं- श्री बसन्त चौधरी । उनका मानना है कि किसी भी देश और जाति की पहचान उस देश मे बोली जाने वाली सर्म्पर्क भाषा और उसकी लिपि से जुडÞी होती है । नेपाल से बाहर रह रहे लाखों गैरआवासीय नेपाली -देश में चाहे उनकी पहचान पहाडÞी और मधेसी मंे विभाजित हो) की एक मात्र पहचान है नेपाली और उनकी अपनी राष्ट्रीय -सर्म्पर्क) भाषा है-नेपाली ।
आज की पीढÞी तो नेपाली बोलती है । पढÞती और लिखती भी है । पर कल की पीढÞी जो विदेश में ही पैदा हर्ुइ या उसकी परवरिश विदेश में हो रही है- क्या वो ‘देवनागरी’ लिखने या पढÞने मंे सक्षम होगी – अगर वो पीढÞी अपनी भाषा और संस्कृति को भूलती है तो कालान्तर में हम अपनी पहचान खो देंगे और हमारी भावी पीढÞी न विदेशी हो पाएगी और न नेपाली रह पाएगी !
इसी महत्वपर्ूण्ा विषय की संजीदगी को हृदयंगम कर बसन्त चौधरी ने एक नवीन और रोचक यात्रा की शुरूआत की है और उस यात्रा को नाम दिया है- विश्व काव्य यात्रा । इस यात्रा का खास उद्देश्य महज अपनी कविताएँ सुनाना नहीं है, बल्कि नेपाल से बाहर बस रहे सम्पर्ूण्ा नेपाली को भाषा और लिपि की डÞोर से बाँधना है । अमेरिका के न्यूयोर्क राज्य से शुरू हर्ुइ ये यात्रा लण्डन, दर्ुबई, सिक्किम, बाल्टीमोर, टेक्सास, कोलोराडो, अटलान्टा और हङकङ में सम्पन्न हो चुकी है । नेपाल के काठमांडू से चली ये यात्रा सन् २०१४ तक में विश्व के प्रमुख २० शहरों के अलावा जापान, सिंगापुर और आस्ट्रेलिया में भी कार्यक्रम आयोजन की तैयारियाँ चल रही हंै ।
बसन्त चौधरी की इस विश्व काव्य यात्रा का एक रोचक पक्ष क्या है कि कविता प्रेमी श्रोता के अलावा अन्य व्यक्ति की उपस्थिति और बसन्त की कविताएँ सुनने के बाद उनका ‘कविताप्रेमी’ होना । सरल भाषा में आम आदमी के दिल की बात लिखने वाले बसन्त प्रेम की कविताएँ लिखते हंै । राष्ट्र प्रेम से मानव प्रेम तक की कविताओं के अलावा उनकी कविताओं में विदेश-पीडÞा का तानाबाना भी समावेश है ।