Mon. Dec 4th, 2023

अंतरराष्ट्रीय तुलसी जयंती समारोह का हुआ आयोजन,



आज दिनांक 2023- 08- 20 तारीख रविवार को सीतामढी जिला हिन्दी साहित्य सम्मेलन (बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन, पटना से संबद्ध ) सीतामढ़ी जिला हिन्दी साहित्य सम्मेलन तथा सीतामढ़ी संस्कृति मंच के संयुक्त तत्वावधान में जानकी विद्या निकेतन परिसर में तुलसी जयंती समारोह का आयोजन किया गया। समारोह की अध्यक्षता संगीता चौधरी ने की। कार्यक्रम का संचालन विमल कुमार परिमल ने किया। इस दौरान डॉ. दशरथ प्रजापति, रामबाबू नीरव, सुभद्रा ठाकुर, डॉ पंकज वासिनी तथा नेपाल से आए अजय कुमार झा के द्वारा कार्यक्रम का शुभारंभ तुलसी प्रतिमा पर माल्यार्पण व पुष्पार्पण से हुआ। कार्यक्रम का शीर्षक ” तुलसी के राम और कबीर के राम” रखा गया था जिस विषय पर अनेकों विद्वान वक्ताओं ने अपना सूक्ष्मातिसूक्ष्म विचार रखा। विमर्श का विषय प्रवेश श्री दिनेश चन्द्र द्विवेदी ने कबीर के निर्गुण राम और तुलसी के सगुण राम के बीच का तात्विक भेद और व्यवहारिक प्रभाव को मध्य नजर रखते हुए कराया।
विद्वान वक्ताओं ने गोस्वामी तुलसीदास के गौरव पर बोलते हुए कहा कि, “गौतम बुद्ध के बाद भारत में सबसे बड़े लोकनायक गोस्वामी तुलसीदास जी थे। रामचरित मानस के अवतरण के बाद भारत के कोने-कोने में अनगिनत छोटे-छोटे राम पैदा हो गए जिन्होने मुगलो की ईट से ईट बजा दी।”
कबीर के राम, कबीरदास के समान ही निष्क्रिय एवं प्रवचन के विषय वस्तु थे, जबकि इनसे उलट तुलसी के राम सक्रिय थे और तुलसीदास स्वंय भी ताउम्र जनचेतना जगाने में लगे रहे। तुलसी के राम, विष्णु के अवतार नही हैं। अपने राम का परिचय देते हुए गोस्वामी जी कहते हैं –
” जासू अंस से अपजहि नाना
अग्नित ब्रम्हा विष्णु भगवाना “।
तुलसीदास के कहने का आशय यह है कि हर लोक के अलग अलग ब्रह्मा विष्णु और महेश होते हैं। इन सबके उपर महाविष्णु होते हैं और महाविष्णु के उपर साकेत वासी रघुनाथ जी हैं।
तुलसीदास के इस अभिमत की पुष्टि पद्मपुराण भी करती है।
” यस्यान्से च अपियाता महाविष्णु यस्य दिव्य गुणाशच
सःएव कार्यकारणो परंपुरूषो
रामो दासरथि बभूवः ”
अर्थात ब्रह्म, विष्णु और महेश कार्य हैं इनके उत्पत्तिकर्ता महाविष्णु कारण हैं। इन सबके उपर दशरथ सूत राम जी हैं।
गोस्वामी जी, रामानंद स्वामी के विशिष्टाद्वैत परम्परा मे थे, रामानंद के शिष्य में कबीर, रविदास, सेना नाई, धन्ना जाट, पीपा महाराज सहित १२ अन्य महापुरूष थे। मीराबाई, रविदास की शिष्या थीं। रामानंद के प्रभाव में, नामदेव, गुरू नानक इत्यादि थे। तुलसीदास जनभाषा का प्रयोग करते थे और जाति निरपेक्ष थे, यह रामानंद की विरासत थी।
राम, कबीर और तुलसी दोनों के इष्ट हैं। इनके रामों की तुलना असमानता की ज़्यादा समानता की कम हुई है। निराकार निर्गुण मत वाले संतों का विश्व-बोध अलग है। कबीर में भक्ति के अलावा कुंडलिनी जागरण का भी काफी चर्चा है। और यही कारण है कि कबीर की भक्ति में मृत्यु की प्रक्रिया पर अधिक ध्यान केन्द्रित है। वे घूम फिरकर मृत्यु की बात अक्सर करते हैं। कबीर का मृत्युबोध उनके अलगाव वादी सामाजिक स्थिति से सम्बद्ध है। तुलसी के यहां अलगाव तो है किन्तु मरण बोध अपेक्षाकृत कम है। जरूरी नहीं कि ऐसा अलगाव वर्णश्रम-व्यवस्था या सामाजिक स्थिति से ही पैदा हो। सीधे मृत्यु, जरा रोग तथा तीव्र सर्व संहार बोध भी यह सीमांत अलगाव पैदा कर सकती है जैसा कि सिद्धार्थ गौतम के जीवन में हुआ।
तुलसी दास ने काम से राम को पाया। उन्होंने राम को पाने के लिए सरल और सर्वसुलभ मानचित्र तयार किया। उनके राम चरित्र मानस में वेद के सारांश, उपनिषद के निचोड़ और षडदर्शन के व्याख्या अति सरल शैली और जन भाषा में उपलब्ध है। वर्तमान में मानव के आन्तरिक तथा वाह्य गुण, संस्कार और चरित्र के संभावित सभी पक्षों को उजागर किया गया है। राम मय होने के लिए मानव जीवन में बाल्यावस्था से जीवनांततक आवश्यक भौतिक और आध्यात्मिक पक्षों पर बारीकी से ध्यान दिया है। जबकि कबीर दास अपने राम की चर्चा करते हुए सीधे सांख्य योग और ज्ञानयोग की बात करते हैं जो अधिकतर लोगों की समझ से परे है। जो समझने का दावा करते हैं, वो भी आधे अधूरे में भटकते हुए नजर आते हैं। कुल मिलाकर गार्हस्थ्य जीवन, सामाजिक सद्भाव और राष्ट्रीयता को ध्यान में रखते हुए भौतिक समृद्धि तथा आध्यात्मिक सिद्धि को प्राप्त कर जीवन सुफल बनाने में कबीर दास जी मार्गदर्शन से अधिक प्रभावकारी तुलसी दास के मार्गदर्शन है। इस प्रकार विद्वान वक्ताओं ने राम तो दोनों का एक ही है परंतु मानव कल्याण के लिए अनेक रूप में प्रकट होते रहते हैं; इस विचार के साथ बड़ी ही सहज और खुशनुमा माहौल में कार्यक्रम को निर्धारित समय पर ही विश्राम दिया गया।
वक्ताओं में भुनेश्वर चौधरी, डॉ. प्रमोद प्रियदर्शी, मोहन दास, प्रो. गणेश राय, प्रो. विनय चौधरी, प्रो. वीरेंद्र प्रसाद सिंह, प्रो. शशि रंजन, प्रो. कृष्णा राव, प्रो. उमेश शर्मा, राम प्रमोद मिश्रा, रामबाबू सिंह, अजय कुमार झा, आनंद मिश्र, बच्चा प्रसाद विह्वल, धीरेन्द्र झा, सुरेश लाल कर्ण, राधेश्याम सिंह, नरोत्तम, जय शंकर सिंह, प्रगति गौरव, शालिनी. नासरा, सिमरन, राम रंजन त्रिवेदी आदि प्रमुख थे।



About Author

आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Loading...
%d bloggers like this: