‘येन बद्धो बलिराजा दानवेन्द्रो महाबलः। तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल ।।’
काठमांडू, १४ भादव
‘येन बद्धो बलिराजा दानवेन्द्रो महाबलः।
तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल ।।’
अर्थात् जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बाँधा गया था, उसी सूत्र से मैं भी तुम्हें बाँधती हूँ । हे रक्षे (राखी)! तुम अडिग रहना (तू अपने संकल्प से कभी भी विचलित न हो।)“
आज रक्षा बंधन, विश्व के समस्त हिंदुओं के लिए यह एक महत्वपूर्ण त्यौहार है जो हर वर्ष बहुत ही धूमधामसे मनाई जाती है । इस दिन बहनें अपने भाई के दायें हाथ पर राखी बाँधकर उसके माथे पर तिलक करती हैं और उसकी दीर्घ आयु की कामना करती हैं । बदले में भाई उनकी रक्षा का वचन देता है । ऐसा माना जाता है कि राखी के रंगबिरंगे धागे भाई–बहन के प्यार के बन्धन को और भी मजबूत करते है । भाई बहन एक दूसरे को मिठाई खिलाते हैं और सुख–दुख में साथ रहने का विश्वास दिलाते हैं । यह एक ऐसा पावन पर्व है जो भाई–बहन के पवित्र रिश्ते को पूरा आदर और सम्मान देता है।
रक्षा बंधन की शुरुआत कब हुई इस बात के बारे में कोई खास जानकारी नहीं मिलती है । एक बहुत ही प्रचलित बात कही गई है इतिहास में । कृष्ण और द्रौपदी की कहानी प्रसिद्ध है, जिसमे युद्ध के दौरान श्री कृष्ण की अंगुली घायल हो गई थी, श्री कृष्ण की घायल अंगुली को द्रौपदी ने अपनी साड़ी में से एक टुकड़ा बाँध दिया था, और इस उपकार के बदले श्री कृष्ण ने द्रौपदी को किसी भी संकट में द्रौपदी की सहायता करने का वचन दिया था। स्कन्ध पुराण, पद्मपुराण और श्रीमद्भागवत में वामनावतार नामक कथा में रक्षाबन्धन का प्रसंग मिलता है ।