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जी-20 दिल्ली घोषणापत्र : प्रेमचन्द्र सिंह

प्रेमचन्द्र सिंह, लखनऊ । भारत की अध्यक्षता में संपादित यह बहुचर्चित भूमंडलीय शिखर समेलन न केवल इंडिया से भारत की यात्रा का जीवंत रेखांकन है बल्कि इस वैश्विक मंच की आर्थिक- केन्द्रित दायरा का मानव- केन्द्रित कार्यक्षेत्र में रूपांतरण का चिन्हांकन भी है। इस शीर्ष सम्मेलन की व्यवहारिक नतीजों की लंबी फेहरिस्त भी भारतीय संस्कृति की समृद्ध विरासत की अमिट छाप से अछूता नहीं रह सका। विश्व के शीर्ष नेतृत्व की दिल्ली स्थित विराट जमाबड़ा के समक्ष मदिरा- मुक्त भारतीय शाकाहारी भोजन के सैंकड़ों स्वादिष्ट व्यंजनों का परोसा जाना एक ऐतिहासिक पहल थी जो परंपरागत भारतीय जीवन शैली का हुबहू मिशाल वैश्विक मेहमानों के समक्ष पेश किया गया। इस शीर्ष-सम्मेलन की व्यापकता का अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि दिल्ली घोषणापत्र के मसौदा पर सभी सदस्य देशों द्वारा 200 घंटों से अधिक समय की निरंतर सर्वसमावेशी विचार-मंथन के फलस्वरूप सर्वसम्मति से स्वीकृत यह 37 पृष्ठों, 87 प्रस्तरों और 112 करवाई योग्य बिंदुओं की महत्वपूर्ण दस्तावेज है। भारत के लिए जी-20 की अध्यक्षता एक कांटोंभरी ताज से कुछ भी कम नहीं था। भारत की अध्यक्षता में जी-20 की शानदार दिल्ली सम्मेलन वैश्विक घटनाक्रम के एक ऐसे पेचीदा और महत्वपूर्ण काल- खण्ड में सफलतापूर्वक संपन्न हुआ है, जब अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था अस्थिर है, भू- राजनीतिक प्रतिस्पर्धा में अप्रत्याशित उग्रता है और वैश्विक अर्थव्यवस्था प्रचंड अप्रिय परिस्थितियों का सामना कर रही है। इन प्रतिकूल वैश्विक वातावरण में भारत के लिए वैश्विक मामलों में अपनी नेतृत्व क्षमता के प्रदर्शन हेतु जी-20 का मंच एक चुनौती और अवसर दोनों ही था। भारत को इस शिखर-सम्मेलन के परिणामों से संतुष्ट होने का पर्याप्त कारण भी हैं और सार्थक आधार भी।

भारत की बढ़ती प्रतिष्ठा और विभाजित विश्व के दोनों पक्षों के साथ उसके सौहार्दपूर्ण संबंध ही सर्वसम्मति से पारित दिल्ली घोषणापत्र के पीछे वैश्विक मतैक्य और भूमंडलीय सहयोग का मूलभूत कारक है। यूक्रेन-रूस युद्ध के कारण इस शिखर-सम्मेलन में बाधित सर्वसम्मति की प्रक्रिया को भारत की प्रभावी कूटनीति ने सहजता से समाधानित कर लिया। विश्व के विकासशील देशों के पक्ष में भारी झुकाव वाली इस शिखर-सम्मेलन के एजेंडों को रोकने की पहल जी-20 समूह के किसी भी देश को अपनी वैश्विक छवि के लिए जोखिमभरा था। वैश्विक अर्थव्यवस्था पर यूक्रेन-रूस युद्ध के प्रतिकूल परिणामों को रेखांकित करते हुए समूह के सभी सदस्य- देशों ने एक स्वर में विश्व की सभी देशों की भौगोलिक अखंडता और संप्रभुता के समादर का पुरजोर समर्थन किया, संयुक्त राष्ट्र चार्टर में निहित सिद्धांतों और उद्देश्यों का सुनिश्चित अनुपालन और परमाणु हथियारों का उपयोग या परमाणु हथियारों की उपयोग की धमकी को सिरे से अस्वीकार्य घोषित किया। शिखर सम्मेलन के दिल्ली घोषणापत्र में विवादास्पद शब्दों के इस्तेमाल से जरूर परहेज किया गया, लेकिन ऐसा करना आपसी भरोसा और मैत्रीपूर्ण सह- अस्तित्व हेतु स्वस्थ्य वातावरण निर्माण के लिए जरूरी था। इसके साथ ही दिल्ली घोषणापत्र में सर्व- सहमत कार्यान्वयन योग्य बिंदुओं में आतंकवाद तथा उसके सभी रूपों और अभिव्यक्तियों, आतंकवादी राज्यों और उनके संरक्षकों की कड़ी निंदा शामिल है। वैश्विक खाद्य सुरक्षा संकट पर काबू पाने के लिए ‘काला सागर अनाज समझौता’ का हर हाल में पालन किए जाने की अवश्यकता पर जोर दिया गया। ‘डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे’ के माध्यम से वित्तीय- समावेशन और उत्पादकता का लाभ का विस्तार किए जाने पर जोड़ दिया गया है। जलवायु परिवर्तन और बाजरा, क्विनोआ, ज्वार और अन्य पारंपरिक फसलों सरीखे पौष्टिक अनाज पर अनुसंधान सहयोग को मजबूत करने हेतु बचनबद्धता व्यक्त की गई है। शून्य कार्बन उत्सर्जन और निम्न कार्बन उत्सर्जन विकास रणनीतियों में ‘जैव ईंधन’ के महत्व को चिन्हित करते हुए एक ‘वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन’ की स्थापना पर ध्यान देने की प्रतिबद्धता जाहिर की गई है। इस घोषणापत्र में ‘समुद्र के कानून पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन’ (यूएनसीएलओएस) के प्रति प्रगाढ़ प्रतिबद्धता दोहराई गई है।

 भू-राजनीतिक और भू-आर्थिक परिणामों की पूरी संभावनाओं के साथ इस शिखर सम्मेलन के इतर अनेक सदस्य-देशों तथा उपस्थित गैर-सदस्य देशों के बीच कई दिलचस्प और महत्वपूर्ण द्विपक्षीय तथा बहुपक्षीय समझौते भी संपादित हुए, जिनका जिक्र लाजमी हैं। भारत और अमेरिका के पहल पर ‘भारत-मध्यपूर्व – यूरोप आर्थिक गलियारा समझौता’ (आईएमईसी) भारत, अमेरिका, सऊदी अरब, यूएइ, फ्रांस, जर्मनी, इटली और यूरोपियन यूनियन कमीशन के बीच संपादित हुआ है। इस इकोनॉमिक कॉरिडोर में भारत और अमेरिका एक साथ साझीदार है जबकि एक दूसरा ‘नॉर्थ साउथ ट्रांसWPपपोर्ट कॉरिडोर (एनएसटीसी)’ है जो भारत, रूस और ईरान की साझेदारी में अभी निर्माणाधीन है और यह भारत तथा रूस की साझा पहल है। ये दोनो कॉरिडोर अमेरिका और रूस के साथ भारत की पृथक-पृथक भागीदारी में बन रहा है। संदर्भित आईएमईसी परियोजना की अभी अनुमानित लागत 20 बिलियन डॉलर है और उसमे दो कॉरिडोर होंगे। पहला पूर्वी कॉरिडोर है जो भारत को यूएई से समुद्री मार्ग से जोड़ेगा और दूसरा उत्तरी कोरोडोर है जो अरब पेनिनसुला को यूरोप से हाईफा बंदरगाह के रास्ते जोड़ेगा। यह कॉरिडोर भारत, यूएई, सऊदी अरब, जॉर्डन, इजरायल, स्पेन और इटली से होते हुए पूरे यूरोप को अच्छादित करेगा। इस कॉरिडोर में रेलमार्ग और समुद्र मार्ग दोनो सम्मिलित है। यह कॉरिडोर बिजली कनेक्टिविटी, डिजिटल कनेक्टिविटी, क्लीन हाइड्रोजन पाइपलाइन, पानी के भीतर केबल लिंक, संचार तथा ऊर्जा ग्रिड लिंक से पूरी तरह लैस होगा। भीड़भाड़ बाली स्वेज- कैनाल के इतर यह कॉरिडोर इजराइल स्थित भारतीय हाइफा बंदरगाह को सीधे समुद्री मार्ग से ग्रीस और इटली के बंदरगाहों से जोड़ेगी। ग्रीस और इटली दोनो देशों ने अपने कई बंदरगाहों की स्वामित्व भारत के साथ साझा करने की उत्सुकता जाहिर की है। इटली की प्रधानमंत्री ने अपने दिल्ली प्रेस कांफ्रेंस में चीन की ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ (बीआरआई) से बाहर निकलने के स्पष्ट संकेत भी दे दिए हैं। पहले से निर्माणाधीन एनएसटीसी भारत को ईरान स्थित भारतीय चाबहार बंदरगाह से सीधे समुद्री मार्ग से जोड़ता है और चाबहार पोर्ट कोइउU सीधे रूस से आर्मेनिया और अजरबाइजान होते हुए भूमिमार्ग से जोड़ता है।

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‘वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन’ जी-20 अध्यक्षता के तहत एक प्रमुख पहल और प्राथमिकता है। इसमें भारत, अमेरिका, ब्राजील, अर्जेंटीना, बांग्लादेश, इटली, मॉरीशस, दक्षिण अफ्रीका और संयुक्त अरब अमीरात सरीखे नौ प्रारंभिक सदस्य हैं, जबकि कनाडा और सिंगापुर पर्यवेक्षक देश हैं। इनमे से ब्राज़ील, भारत और अमेरिका दुनिया में जैव ईंधन के उत्पादन और उपभोग करने वाले देशों में अग्रणी हैं। भारत इस अत्याधुनिक पहल में ‘तेल उत्पादक और निर्यातक देशों’ (ओपेक) को शामिल करने की दिशा में काम कर रहा है। अभी तक जैव- ईंधन ‘अनुपयोगी अनाज, अनाजों की भूसी और मृत जानवरों’ से बनाया जाता है। भारत जैव- ईंधन के अनुसंधान और उत्पादन के क्षेत्र में विश्व के गिनेचुने देशों में से एक है। इस वर्ष केवल एक माह में भारत में मक्का आधारित जैव ईंधन का उत्पादन एक करोड़ लीटर तक पहुंच गया है। फलस्वरूप भारत को 73000 करोड़ रुपए के समतुल्य विदेशी मुद्रा की बचत हुई है और किसानों को सरकार से 76000 करोड़ रुपए उनके द्वारा आपूर्ति किए गए कच्चामाल के एवज में प्राप्त हुए है। इससे कार्बन का उत्सर्जन करीब 402 लाख मीट्रिक टन तक कम करने में भारत को कामयाबी मिली है। इसके अतिरिक्त भारत-अमेरिका द्विपक्षीय समझौता के तहत भारत और अमेरिका ने ‘6 जी नेटवर्क टेक्नोलॉजी’ के सह-विकास के लिए समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। यह डिजिटल दुनिया की अग्रणी उपक्रमों में से एक है। ‘मेंटेनेंस, रिपेयर एंड ऑपरेशन’ (एमआरओ) समझौता दूसरी महत्वपूर्ण समझौता है जिस पर दोनों लोकतंत्रों के बीच हस्ताक्षर किए गए हैं। यह समझौता ‘अत्याधुनिक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस’ (एआई) के आधार पर सैन्य और नागरिक विमानों के समग्र रखरखाव और मरम्मत के लिए है। दोनों देशों के बीच तीसरी पहल नवीनतम ‘एआई तकनीक’ का उपयोग करके नौसेना और नागरिक जहाजों के रखरखाव के लिए ‘मास्टरशिप रिपेयरिंग’ समझौता है। साथ ही ‘भारत-अमेरिका रक्षा विस्तार’, ‘स्टार्टअप के नवाचार तथा विकास’ के लिए संयुक्त कार्यक्रम और ‘जेट इंजन प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण’ के लिए कई अन्य अहम समझौतों को अमली जामा पहनाया गया है।

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जी-20 की अप्रतिम सफलता और भारत की जोरदार अध्यक्षता की अमिट तासीर पर सभी सदस्य देशों और गैर-सदस्य देशों की अनेकानेक प्रतिक्रियायें को पूरी तरह यहां समेटना मुश्किल है, लेकिन कुछ दिलचस्प वाकया को उद्धृत किए बिना बात अधूरी रह जाएगी। चीनी सरकार की शीर्ष थिंकथैंक ‘चाइना इंस्टीट्यूट ऑफ कंटेम्पररी इंटरनेशनल रिलेशन’ (सीआईसीआईआर) के मिस्टर जू क़िन ने यह स्पष्ट कर दिया कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के पास शिखर सम्मेलन को छोड़ने के लिए राजनीति से प्रेरित कारण थे। जू ने आगे बताया कि दुनिया की उभरती अर्थव्यवस्थाओं के नए नेता के रूप में खुद को स्थापित करने हेतु भारत की कोशिश बीजिंग को रास नहीं आ रही है। जू ने इस प्रकार जी-20 से शी जिनपिंग की अनुपस्थिति के कारण पर प्रकाश डाला है।  इतना ही नहीं, चीनी सर्च इंजन ‘बैदू’ (बीएआईडीयू) पर सम्मेलन के दौरान ही मोदी जी के सामने टेबल पर ‘भारत’ अंकित पटरी सबसे अधिक ट्रेंड कर रही थी। फ्रांसीसी राजनयिक सूत्रों के अनुसार, वैश्विक मुद्दों पर भारत ने अन्य देशों को एक साथ लाने की एक प्रकार की विशेष शक्ति और क्षमता हासिल कर ली है। कई देश भारत की तरह बातचीत करने की स्थिति में नहीं हैं। ‘विश्व आर्थिक मंच’ (वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम) के अध्यक्ष श्री बोर्गे ब्रांडे ने कहा कि ‘भारत स्नोबॉल प्रभाव’ (आकार और महत्व में तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था) का अनुभव कर रहा है और आने वाले दशक में ही भारत 10 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के लिए तैयार है।

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दिल्ली पधारे जी-20 के वैश्विक मेहमानों की खातिरदारी और शिखर- सम्मेलन की दिशा- दशा पर भारतीयता की स्पष्ट मुहर का एहसास अब केवल मेजबान देश की सीमा तक ही सीमित नहीं रही बल्कि इस वैश्विक सम्मेलन की धमक की गूंज भौगौलिक सीमांकन की परिधि से बाहर निकल गई है। आमलोगों के जेहन तक जी-20 की पहचान प्रतिष्ठित होना ही इस वैश्विक समूह की सबसे बड़ी सफलता है। इस शिखर बैठक से दुनियां को जाहिर हो गया है कि भारत ही इस समूह में एक ऐसा देश है जिसमे वैश्विक मंचों पर ‘ग्लोबल साउथ’ (विकासशील और अविकसित देशों) की आवाज बनने की पात्रता और जुनून है। यह देश ही ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ की अंतर्निहित भावनाओं को चरितार्थ करने की क्षमता रखता है, ‘सबका साथ’, ‘सबका विश्वास’, ‘सबका प्रयास’ और ‘सबका विकास’ केवल नारा ही नही है बल्कि यह वह मंत्र है जो इस पृथ्वी को मानव के  फलने- फूलने योग्य बनाने की सामर्थ्य भी रखती है। लगभग चार सालों तक इस वैश्विक समूह की अध्यक्षता ‘ग्लोबल साउथ’ के पास है, वर्ष-2022 की अध्यक्षता इंडोनेशिया, वर्ष-2023 की अध्यक्षता भारत, वर्ष-2024 की अध्यक्षता ब्राजील और वर्ष-2025 की अध्यक्षता दक्षिण- अफ्रीका की रहेगी। इन चार वर्षों में इस शीर्ष समूह की प्रगति की ग्राफ पर दुनियां की पैनी नजर बनी रहेगी।

प्रेमचंद्र सिंह

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