हिन्दी भाषा रहे प्रधान : प्रियांशी
14 सितम्बर

—- प्रियांशी, मुंबई
भारत जहाँ हमारा वास
थी सोने की चिड़िया खास
बोली इसकी हिन्दी थी
वह माथे की बिन्दी थी
समय ने बदला अपना फेर
पाश्चात्य सभ्यता का अन्धेर
उसकी धुन में हम खोए ऐसे
अंग्रेजी भाषा का हुआ सवेर
छोड़ने लगे हम अपनी भाषा
और अपनी पहचान अमोल
अंग्रेजी आती हर हिन्दुस्तानी को
पर अब लगते हिन्दी में गोल
हाँ, जिसे न आई अंग्रेजी
उसका न अब कुछ होना है
बेरोजगारी का बोझ उसे
बस जीवन भर ढोना है
चाह मेरी सब अपनी भाषा
को करें अवश्य नमन
अंग्रेजी के अक्षर सहित
हिन्दी वर्णमाला करें स्मरण
गवाएं न हम अपनी पहचान
यही हमारे पुरखों की शान
जानें न जो अपनी ही भाषा
विदेश में न होगा सम्मान
रूस चीन फ्रांस जर्मनी
अपनी भाषा को शीश नवाते
इक हम ही हैं भूले इसको
न मातृभाषा को गले लगाते
आओ सब मिलजुलकर
हिन्दी का करें बखान
भारत की बोली है प्यारी
हिन्दी भाषा रहे प्रधान
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