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वसुधैव कुटुम्बकम् : एक पृथ्वी, एक परिवार और एक भविष्य : डॉ. श्वेता दीप्ति

डॉ श्वेता दीप्ति, हिमालिनी अंक सेप्टेम्बर

भारत की अध्यक्षता में आयोजित न्द्दण् सम्मेलन की सफलता की चर्चा आज पूरी दुनिया में हो रही है । इस सम्मेलन में भारत–मध्य पूर्व–यूरोप आर्थिक गलियारा के ऐलान को एक बड़ी उपलब्धि के तौर पर देखा जा रहा है । इस आर्थिक गलियारे से भारत, अमेरिका, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, फ्रांस, जर्मनी, इटली और यूरोपीय संघ के बीच कारोबार की संभावना के नए अवसर खुलेंगे । वहीं इस ऐलान को चीन के द्यच्क्ष् प्रोजेक्ट यानी ‘बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव’ के जवाब के तौर पर भी देखा जा रहा है । विशेषज्ञों का मानना है कि यह गलियारा एशिया, यूरोप और अमेरिका के बीच कारोबार बढ़ाने के साथ ही ऊर्जा सुरक्षा को भी सुनिश्चित करेगा । भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी कहा है कि ये आर्थिक गलियारा साझा सहयोग, आकांक्षाओं एवं सपनों की यात्रा को विस्तार प्रदान करते हुए मानवीय प्रयास तथा महाद्वीपों में एकता का प्रमाण बन सकता है ।

कई वैश्विक समस्याओं को लेकर विभिन्न देशों को भारत से बड़ी उम्मीदें हैं । इस समूह में ऐसे देश भी हैं जो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से आमने–सामने हैं । भारत ग्लोबल साउथ, यानी विकासशील देशों के मुद्दों को प्राथमिकता देकर उनका नेतृत्व भी हासिल करना चाहता है । इस मंच पर आर्थिक विकास, पर्यावरण, स्वास्थ्य, शिक्षा और कारोबार के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने पर भी चर्चा की गई । विशेषज्ञों का कहना है कि वैश्विक बिखराव के इस दौर में ऐसे ‘हरकुलियन टास्क’ को निभाने के लिए दुनिया को जिस तरह के जिम्मेदार और भरोसेमंद ताकत की जरूरत है, वह केवल भारत मुहैया करा सकता है । सामरिक–आर्थिक मोर्चे पर बदलते शक्ति संतुलन के साथ दुनिया महंगाई से जुड़े दबाव, खाद्य और ऊर्जा संकट, मंदी और ग्लोबल वार्मिंग के दुष्परिणाम झेल रही है । ऐसे में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का यह कहना महत्वपूर्ण है कि ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ यानी ‘एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य’ जी–२० प्रेसीडेंसी के प्रति हमारे दृष्टिकोण को उपयुक्त रूप से दर्शाता है ।

जी २० है क्या ?

१९९९ से पहले एशिया कुछ सालों से आर्थिक संकट से जूझ रहा था और इसके बाद जर्मनी के बर्लिन में जी ८ की बैठक के दौरान जी २० का गठन किया गया । साल २००७ में ग्लोबल इकॉनोमिक क्राइसिस के बाद जी २० फोरम को राष्ट्रप्रमुखों के स्तर का बना दिया गया । जी २० समूह का पहला सम्मेलन अमेरिका के वाशिंगटन डीसी में हुआ था । जी २० शिखर सम्मेलन का उद्देश्य दुनिया के प्रमुख आर्थिक देशों का सम्मेलन, जहां सदस्य देशों के बीच वैश्विक अर्थव्यवस्था, वित्तीय, व्यवसाय, निवेश और जलवायु परिवर्तन समेत जरूरी मुद्दों पर चर्चा करना है । दुनिया की जीडीपी में जी २० देशों की हिस्सेदारी करीब ८५% है । इसके अलावा, दुनिया का कुल ८०% प्रोडक्शन और अंतरराष्ट्रीय व्यापार समूह में इसकी ७५% हिस्सेदारी है ।

कब–कब और कहाँ आयोजित हुआ है जी सम्मेलन ?

जी २० की बैठक हर वर्ष हो यह आवश्यक नहीं है । २००८ में इसके गठन के बाद २४ साल में १८वां सम्मेलन नई दिल्ली में होने जा रहा है । इसका पहला सम्मेलन १४–१५ नवंबर को अमेरिका का वाशिंगटन, दूसरा सम्मेलन २००९ में २ अप्रैल को हुआ । इसके बाद तीसरा जी २० सम्मेलन २४–२५ सितंबर को २००९ में ही अमेरिका के पिट्सबर्ग में हुआ । चौथा सम्मेलन कनाडा के टोरंटो में २६–२७ जून २०१० को, पांचवां सम्मेलन दक्षिण कोरिया के सियोल में साल २०१० में ११–१२ नवंबर को, छठा सम्मेलन साल २०११ में ३ और ४ नवंबर को फ्रांस के कांस में किया गया था । जी २० का सातवां सम्मेलन साल २०१२ में १८ और १९ जून को मैक्सिको में हुआ, इसके बाद आठवां सम्मेलन इसी साल रूस में हुआ । नौवां सम्मेलन पीट्सबर्ग में साल २०१४ में १५–१६ नवंबर को हुआ । दसवां सम्मेलन तुर्की में साल २०१५ में १५–१६ नवंबर को किया गया । ग्यारहवां सम्मेलन साल २०१६ में चीन में ४–५ सितंबर को किया गया । जी २० का बारहवां सम्मेलन जर्मनी के हैमबर्ग में साल २०१७ में ७–८ जुलाई को किया गया । इसका १३वां सम्मेलन २०१८ में अर्जेंटीना में १ दिसंबर २०१८ को आयोजित किया गया । चौदहवां सम्मेलन ओसाका में साल २०१९ में २८–२९ जून को किया गया । पन्द्रहवां सम्मेलन २०२० में सऊदी अरब में कोरोना के दौरान वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए २१ और २२ नवंबर को किया गया । इसके बाद १६वां सम्मेलन इटली के रोम में २०२१ में ३०–३१ अक्टूबर को आयोजित किया गया । १७वां सम्मेलन इंडोनेशिया में साल २०२२ में १५–१६ नवंबर को आयोजित किया गया । १८वां जी २० सम्मेलन ९–१० सितंबर को भारत मेंकिया गया जहाँ १९वां सम्मेलन ब्राजील में २०२४ में किए जाने का निर्णय हुआ और ब्राजील को इसकी अध्यक्षता सौंपी गई ।

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क्या है जी २० के पास शक्तियां ?

जहां तक जी २० के अधिकारों की बात है तो संयुक्त राष्ट्र की तरफ से इसके पास कोई विधायी शक्ति नहीं है और न ही इसके सदस्य देशों के बीच उस फैसले को मानने की कोई कानूनी बाध्यता है । मुख्य रूप से समझें तो जी २० सदस्य देशों के बीच दुनियाभर की अर्थव्यवस्थाओं को मजबूत करने और उसको बढ़ावा देने पर चर्चा होती है । इसमें एजुकेशन, रोजगार और खाद्य पदार्थों की कीमतों को नियंत्रित करने जैसे मुद्दों पर फैसले लिए जाते हैं ।
इसका कोई मुख्यालय या सचिवालय नहीं है । जी २० के अध्यक्ष का फैसला ट्रोइका से तय किया जाता है और हर सम्मेलन को वर्तमान, पिछले और भविष्य के राष्ट्राध्यक्षों के समर्थन से आयोजित किया जाता है, आसान भाषा में समझे तो इस बार ट्रोइका में इंडोनेशिया, भारत और ब्राजील है ।

अब तक की सबसे सफल जी–२० बैठक

जी–२० की प्रेसिडेंसी भारत को ऐसे समय मिली थी जब दुनिया के बड़े मुल्कों में खेमेबाजी और अंर्तद्धंद की स्थिति थी । लेकिन इस आयोजन ने दुनिया को बता दिया भारत का समय आ गया है । यही नहीं, भारत विकासशील देशों के हितों की आवाज के रूप में भी उभरा है । भारत ने जी–२० के मार्फत यह भी दिखा दिया कि वह किसी एक का पक्ष लेने के बजाय हर खेमे से समान नजदीकी रखना चाहता है । आंकड़े और विभिन्न मुद्दों पर बनी सहमति इस बात का प्रमाण हैं कि यह अब तक की सबसे सफल जी–२० बैठक रही है । सम्मेलन में शामिल वैश्विक नेताओं ने एक स्वर से माना कि भारत की नेतृत्व क्षमता अद्भुत है । जी–२० की अगली अध्यक्षता संभालने वाले ब्राजील के राष्ट्रपति लूला डी सिल्वा तो मानते हैं कि भारतीय नेतृत्व ने जो लकीर खींच दी है, उस तक पहुंचना बहुत बड़ी चुनौती होगी ।
जी २० से चीन ने बनाई दूरी

पिछले महीने साउथ अफ्रीका में हुई ब्रिक्स की बैठक में शामिल होने के बाद चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने जब ९–१० सितंबर को दिल्ली में आयोजित जी–२० देशों के शिखर सम्मेलन में आने से इनकार कर दिया तो इसे भारत के लिए एक बड़े झटके के रूप में माना जा रहा था । रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन पहले ही दिल्ली आने से इनकार कर चुके थे । ऐसे में जिनपिंग की गैर–मौजूदगी से आशंका थी कि भारत के अध्यक्षता में हो रही जी–२० की बैठक अपना महत्व खो देगी । लेकिन शिखर सम्मेलन समाप्त होते–होते हालात पूरी तरह बदल गए । भारत वैश्विक स्तर पर अपनी लीडरशिप की छाप छोड़ने में कामयाब हो गया, जबकि चीन ने कई बड़े मौके गंवा दिए । चीनी राष्ट्रपति ली कियांग के लिए इस दौरे में सिवाय मूक दर्शक बने रहने के और कुछ हासिल नहीं हो पाया । न तो चीन बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव की बात कर पाया । यहां तक कि यूरोपीय और अमेरिकी देशों के साथ चीनी पीएम को बात करने में भी हिचकिचाहट ही रही । वहीं मेलोनी ने रोम में बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव को छोड़ने की बात भी कही । इसके अलावा भारत ने २१वें सदस्य के रूप में अफ्रीकन यूनियन को शामिल करवाया । गरीब अफ्रीकी देशों को अपने कर्ज का शिकार बनाने वाले चीन के लिए ये गहरा सदमा था ।

जी–२० के अध्यक्ष के रूप में भारत को एक बड़ी कामयाबी मिली । भारत के प्रस्ताव पर समूह के सदस्य देश अफ्रीकन यूनियन को स्थायी सदस्य बनाने पर सहमत हो गए और अब जी २० को जी २१ से जाना जाएगा । इसकी घोषणा शिखर बैठक के दौरान की गई । जहाँ सर्वसम्मति से इसके पक्ष में निर्णय हुआ । भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जी–२० के सदस्य देशों के नेताओं को जून में ही इस आशय का अनुरोध पत्र भेजा था । अफ्रीकन यूनियन को यूरोपियन यूनियन की तर्ज पर सदस्य का दर्जा हासिल होगा । जी–२० का सदस्य बनने पर अफ्रीकी देश जलवायु परिवर्तन और कर्ज जैसे मसलों पर अपनी बात ज्यादा जोरदार तरीके से अंतरराष्ट्रीय मंचों पर रख सकेंगे । नाइजीरिया ने इसका श्रेय प्रधानमंत्री मोदी को देते हुए कहा कि जी–२० में अफ्रीकन यूनियन को शामिल किया जाना एक महत्वपूर्ण कदम है ।

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भारत की बड़ी उपलब्धि
भारत ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में वह हासिल कर दिखाया जिसे भूराजनीतिक संकटों के समाधान के लिए बने अंतरराष्ट्रीय मंच हासिल नहीं कर पा रहे थे । संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद यूक्रेन युद्ध को रुकवाने के लिए कुछ नहीं कर पा रही और आमसभा जैसे मंचों के प्रस्ताव भी सर्वसम्मति से पारित न हो पाने के कारण निष्प्रभावी रहे । इसीलिए भारत की अध्यक्षता में नई दिल्ली में संपन्न जी–२० शिखर सम्मेलन के कुछ दिन पहले तक किसी को उम्मीद नहीं थी कि घोषणा पत्र पर सहमति बन पाएगी ।

चीनी राष्ट्रपति के इस सम्मेलन में न आने का अर्थ यह लगाया गया था कि चीन की मंशा भारत का खेल बिगाड़ने की है, परंतु भारतीय राजनयिकों के कौशल और अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में भारत के बढ़ते कद ने असंभव को संभव कर दिखाया । शिखर सम्मेलन के पहले दिन ही घोषणा पत्र पर आम सहमति जुटा कर भारत ने सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता की अपनी दावेदारी को भी मजबूत किया । इसीलिए अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन ने प्रधानमंत्री मोदी के साथ हुई द्विपक्षीय शिखर वार्ता में भारत की इस दावेदारी के समर्थन को दोहराया ।

घोषणा पत्र में रूस का नाम न लेते हुए यूक्रेन में जारी युद्ध से हो रही मानवीय यातना और वैश्विक खाद्य एवं ऊर्जा संकट पर चिंता व्यक्त की गई । इस पर जोर दिया गया कि संयुक्त राष्ट्र चार्टर के मुताबिक सभी देशों को किसी अन्य देश की क्षेत्रीय अखंडता, संप्रभुता या राजनीतिक स्वतंत्रता के विरुद्ध धमकी या बलप्रयोग से बचना चाहिए । साथ ही परमाणु हथियारों के प्रयोग या प्रयोग की धमकी को भी अस्वीकार किया गया ।
यूक्रेन और यूरोप के देश ‘यूक्रेन में युद्ध हो रहा’ कहने और हमलावर का नाम न लेने से नाखुश हैं, परंतु यूक्रेन युद्ध के बाद से अमेरिका और नाटो और रूस एवं चीन के बीच बढ़ते तनाव के माहौल में नाम लिए बिना भी ऐसे घोषणा पत्र पर रूस और चीन की सहमति जुटाना किसी ऐतिहासिक उपलब्धि से कम नहीं । इस घोषणा पत्र से यूक्रेन युद्ध में तो किसी बदलाव के आसार नहीं, लेकिन इससे अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में यह संदेश अवश्य गया कि यदि कोई देश रूस को समाधान के लिए तैयार कर सकता है तो वह शायद भारत ही होगा । वहीं रूस की ओर भारत में आयोजित जी २० समिट को सफल बताया गया है । रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने जी २० शिखर सम्मेलन में यूक्रेन युद्ध को जी २० में हावी नहीं होने देने के लिए भारत की सराहना की । मीडिया से बात करते हुए लावरोव ने कहा कि ‘भारत ने जी २० एजेंडे का यूक्रेनीकरण नहीं होने दिया ।’ रूस ने नई दिल्ली घोषणापत्र में प्रयोग किए शब्दों के लिए खुशी के साथ ही हैरानी जताते हुए कहा है कि ऐसे घोषणापत्र की तो उन्हें उम्मीद ही नहीं थी । रूसी विदेश मंत्री ने रविवार को जी २० के राजनीतिकरण के प्रयासों को रोकने के लिए भारत के प्रति आभार जताया ।

घोषणापत्र पर आम सहमति के बारे में रूसी विदेश मंत्री ने कहा कि यह शिखर सम्मेलन निश्चित रूप से सफल रहा है । जी २० नेताओं के शिखर सम्मेलन की घोषणा पर आम सहमति पर लावरोव ने कहा, ‘जब वे इस पर सहमत हुए, तो शायद यह उनकी अंतरात्मा की आवाज थी । स्पष्ट रूप से कहें तो हमें इसकी उम्मीद नहीं थी ।’ रूसी विदेश मंत्री ने कहा कि हम यूक्रेन और रूस का उल्लेख करने वाले बयानों को घोषणा के बाकी काम से अलग नहीं कर सकते । इस साल घोषणा की मुख्य लाइन ग्लोबल साउथ के एकीकरण के बारे में है । लावरोव ने कहा, जी २० अपने मुख्य लक्ष्यों के लिए वास्तव में काम कर रहा है ।’
५५ देशों के संगठन अफ्रीकी संघ को जी–२० की सदस्यता दिलाकर इसे जी–२१ में बदल देना भी भावी विकास और अंतरराष्ट्रीय कूटनीति की दृष्टि से भारत की बड़ी उपलब्धि है । अफ्रीकी संघ के सदस्य बनने से जी–२१ में दक्षिणी देशों का प्रतिनिधित्व बढ़ेगा । अभी तक वहां जी–७ देशों, यूरोपीय संघ के २५ देशों, रूस, चीन और तुर्किए को मिलाकर उत्तर का पलड़ा भारी था । अफ्रीकी देशों की सदस्यता के बाद दक्षिणी देशों की संख्या बढ़ जाएगी । वैसे चीन और रूस दोनों अफ्रीकी देशों को सदस्यता दिलाने का श्रेय लेने की कोशिश कर रहे हैं ।

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चीन ने पिछले दो–तीन दशकों से अफ्रीकी देशों में भारी निवेश किया है और रूस भी निवेश के साथ–साथ राजनीतिक उठापटक कराने में लगा रहता है, पर चीनी निवेश से अफ्रीकी देशों में कर्ज संकट पैदा हुआ है और रूस के भाड़े के सैनिक अफ्रीकी देशों में विद्रोह करा रहे हैं । भारत के अफ्रीका से हजारों साल पुराने व्यापारिक और सामाजिक रिश्ते हैं । भारत का स्वाधीनता आंदोलन अफ्रीकी देशों के स्वाधीनता आंदोलनों का प्रेरणास्रोत बना । गुटनिरपेक्ष आंदोलन का नेतृत्व करते हुए भारत हमेशा दक्षिणी देशों की आवाज बुलंद करता आया है । इसलिए अफ्रीकी संघ को उत्तर और दक्षिण के साझा मंच जी–२० की सदस्यता दिलाने से भारत को स्वाभाविक रूप से दक्षिण की आवाज बनने में मदद मिलेगी ।

भारत केंद्रित विकास की दृष्टि से देखें तो देश को पश्चिमी एशिया से होकर यूरोप के साथ जोड़ने वाले परिवहन और ऊर्जा गलियारे की परियोजना इस शिखर सम्मेलन की सबसे बड़ी उपलब्धि साबित हो सकती है । हालांकि अभी इस परियोजना पर केवल सहमति ही बनी है, फिर भी अमेरिकी राष्ट्रपति का यह कहना महत्वपूर्ण है कि यह परियोजना केवल पटरियां बिछाने को लेकर नहीं है । यह गेमचेंजर साबित होगी । यह बंदरगाहों और रेल–मार्ग के जरिये भारत को ही नहीं, वरन दक्षिण–पूर्व एशिया को भी पश्चिमी एशिया के अरब देशों और यूरोप से जोड़ेगी ।
भारत इसे आपूर्ति शृंखला को सुदृढ़ बनाने वाले स्वच्छ ऊर्जा गलियारे के रूप में भी देखता है । पाकिस्तान के वीटो से बचने के लिए फिलहाल अरब प्रायद्वीप में एक तेज गति वाले रेल गलियारे का निर्माण होगा, जिसके दोनों छोरों पर भारत और यूरोप के लिए जहाजी संपर्कों का विकास किया जाएगा । परियोजना में अमेरिका, भारत, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, फ्रांस, जर्मनी, इटली और यूरोपीय संघ हैं । सऊदी अरब और इजरायल के बीच संबंध बहाल करते हुए उसे भी शामिल किए जाने की योजना है ।

भारत की अध्यक्षता में हुआ नई दिल्ली जी–२० शिखर सम्मेलन संतुलित विकास को लेकर अतीत में हुए संयुक्त राष्ट्र के विभिन्न शिखर सम्मेलनों की लंबी शृंखला में एक अहम कड़ी जैसा रहा । भारत ने नई दिल्ली के जी–२० शिखर सम्मेलन में खेमों में बंटी दुनिया को एक साझा घोषणा पत्र के लिए राजी करते हुए उत्तर और दक्षिण के बीच बने असंतुलन को दूर करने, नए गलियारे बनाकर आपूर्ति शृंखला को सुदृढ़ बनाने, ऋण संकट समाधान के लिए विश्व बैंक जैसी वित्तीय संस्थाओं को वित्तपोषित करने और जलवायु संकट से निपटने के लिए विश्व जैव–ईंधन अलायंस बनाने जैसी दर्जनों पहल की, जो दो सप्ताह बाद होने वाले सतत विकास लक्ष्य शिखर सम्मेलन और अगले साल होने वाले विकास–वित्त सम्मेलन को दिशा और गति देने में सहायक सिद्ध होंगी । एक धरती, एक परिवार और एक भविष्य के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए भारत ने भूराजनीतिक और आर्थिक खेमों में बंटी दुनिया को एक कुटुंब के रूप में जोड़ने का प्रयास करते हुए ऐतिहासिक सफलता हासिल की है ।

डॉ श्वेता दीप्ति
सम्पादक हिमालिनी

 

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