काठमांडू में मुख्यमन्त्री निवास-संघीयता विरोधी मानसिकता का परिणाम : लिलानाथ गौतम
लिलानाथ गौतम, हिमालिनी अंक सितम्बर । संघीय शासन व्यवस्था ने एक कार्यकाल पूरा किया है, दूसरा कार्यकाल जारी है । लेकिन संघीय शासन व्यवस्था आम जनता को आकर्षित नहीं कर पा रही है । संघीयता के लिए संघर्ष करनेवाले कुछ व्यक्ति और समूह के अलावा बाकी लोग प्रश्न करने लगे हैं– ‘संघीयता किस के लिए है ?’ प्रश्न करनेवाले लोग कहने लगे हैं– ‘संघीयता तो नेता और उनके कार्यकर्ताओं की रोजगार के लिए प्रयोग हो रहा है । उनके अलावा अन्य युवागण को रोजगार के लिए विदेश ही जाना पड़ रहा है ।’ आम जनता में व्याप्त यही ज्ञान÷अज्ञान का परिणाम है– संघीय शासन व्यवस्था के लिए योगदान करनेवाले पार्टी और नेताओं के प्रति बढ़ता आक्रोश और वितृष्णा ।
ऐसे ही पृष्ठभूमि में प्रधानमन्त्री पुष्पकमल दाहाल ‘प्रचण्ड’ ने ललितपुर भैंसेपाटी (सैंबु आवास क्षेत्र) में निर्मित एक भव्य भवन का उद्घाटन किया, जो सात प्रदेश के सात मुख्यमन्त्री और सात प्रदेश प्रमुख का आवास और सम्पर्क कार्यालय है । मुख्यमन्त्री और प्रदेश प्रमुख के लिए निर्मित भवन सर्वजनिक होते ही फिर एक बार प्रश्न उठा है– संघीयता किस के लिए ? सामाजिक संजाल और बौद्धिक वर्ग में इस भवन को लेकर काफी विरोध हो रहा है । विरोध करनेवाले प्रश्न कर रहे हैं– ‘मुख्यमन्त्री का कार्यक्षेत्र काठमांडू है या उनका अपना प्रदेश ?’ जनस्तर से किया गया यह प्रश्न नाजायज नहीं है ।

स्वभाविक प्रश्न है– मुख्यमन्त्री के लिए सुविधा सम्पन्न भव्य महल काठमांडू में क्यों चाहिए ? यह हमारे नेता के अन्दर व्याप्त विलासी मानसिकता का ही उपज है, जो संघीयता विरोधी मानसिकता है । अगर संघीयता को मजबूत बनाने की मानसिकता होती तो इस तरह का भवन संबंधित प्रदेशों में ही निर्माण किया जाता । लेकिन हमारे नेताओं ने ऐसा नहीं किया, काठमांडू में रहने के लिए भवन निर्माण कर दिए । जिसके चलते संघीयता को लेकर ही प्रश्न उठ रहा है ।
एक विडम्बनापूर्ण विषय है– अपने लिए काठमांडू में सुविधा सम्पन्न भवन निर्माण करनेवाले मुख्यमन्त्री प्रदेश स्थित मुख्यमन्त्री कार्यालय तथा अन्य प्रशासनिक कार्यालय किराए के भवन में संचालन कर रहे हैं । प्रदेश स्थित प्रशासनिक भवन का निर्माण कार्य सभी अधूरा है । उदाहरण के लिए बागमती प्रदेश को ही ले सकते हैं । प्रदेश राजधानी स्थित मन्त्रालय के सभी भवन किराए में लिया गया है, भवन अभाव के कारण एक ही भवन में एक से अधिक मन्त्रालय रखा गया है । यही हालात लुम्बिनी प्रदेश, सुदूरपश्चिम प्रदेश, कोशी प्रदेश, मधेश प्रदेश का है । अपने प्रदेश के लिए आवश्यक भवन निर्माण करने में अनदेखा करनेवाले मुख्यमन्त्रियों को संघीय राजधानी में आलीशान महल क्यों चाहिए ? क्योंकि वह अपना प्रदेश काठमांडू में रहकर संचालन करना चाहते हैं । ऐसी सोच को अगर कोई संघीयता विरोधी मानते हैं, तो गलत नहीं है ।
हां, अगर कोई मुख्यमन्त्री संघीय राजधानी काठमांडू आते हैं तो उनको रहने की व्यवस्था होनी चाहिए । काठमांडू में मुख्यमन्त्री निवास और सम्पर्क कार्यालय स्थापना करनेवालों की तर्क भी यह है कि मुख्यमन्त्रियों को कब तक होटल और हाउजिङ में रहना होगा ? इसीलिए यह भवन निर्माण किया गया । कुछ हद तक इस तर्क को भी अन्यथा नहीं लेना चाहिए । लेकिन जो भवन भैंसे पार्टी में निर्माण हुआ है, वह सोचनीय नहीं है ? कुछ दिन काठमांडू में रहनेवालों के लिए २७ रोपनी जमीन में अलग–अलग ७ बिल्ङिग और १४ ब्लाक निर्माण करना जरुरी था ? इस तरह का भवन निर्माण करने से राज्यकोष का दुरुपयोग नहीं हुआ है ? मुख्य प्रश्न यही है ।
काठमांडू आते वक्त मुख्यमन्त्रियों को रहने के लिए एक ही बिल्ङिग काफी है । हां, अगर हमारी प्रदेश संरचना मजबूत है, प्रदेश की न्यूनतम आवश्यकता पूरी हो चुकी है तो संघीय राजधानी में भी इसतरह का सुविधा सम्पन्न भवन के बारे मेंं सोच सकते हैं । लेकन प्रदेश कार्यालय किराए के भवन में संचालन करनेवाले मुख्यमन्त्रियों को काठमांडू में इसतरह का आवास क्यों चाहिए ? अगर मुख्यमन्त्रियों को इसतरह का सुविधा सम्पन्न भवन आवश्यक है तो क्यों नहीं अपने ही प्रदेश में निर्माण नहीं किया ?
राजकीय धन का शोषण
सात प्रदेश के सात मुख्यमन्त्री और सात प्रदेश प्रमुख के लिए संघीय राजधानी काठमांडू में जो भवन निर्माण हुआ है, वह २७ रोपनी १२ आना जमीन में है । संघीय राजधानी काठमांडू और उसके आसपास आवासीय जमीन का अभाव है और इसका मूल्य भी अधिक है । ऐसी परिस्थिति में १–२ रोपनी जमीन में ही एक बड़ा सा भवन निर्माण कर सात प्रदेशों के लिए सात अलग–अलग आवास और सम्पर्क कार्यालय निर्माण हो सकता था ।
खैर ! सात प्रदेशों के लिए अलग–अलग सात भवन निर्माण हुआ है । एक भवन के भीतर अलग–अलग दो ब्लाक (कुल १४ ब्लाक) है । अर्थात् ७ मुख्यमन्त्री और ७ प्रदेश प्रमुख के लिए एक–एक ब्लाक हैं । सुरक्षाकर्मी को एक अलग ही भवन निर्माण किया गया है । इसी तरह सवारी चालक, अंग रक्षक, स्वकीय सचिव और निजी सचिव के लिए भी अलग–अलग कमरे का व्यवस्था है । डीप बोरिंग से पानी संकलन लिए १ लाख ३५ हजार लीटर क्षमता की भूमिगत टंकी निर्माण हुआ है, पानी प्रशोधन के लिए एक ‘वाटर ट्रिटमेन्ट प्लान्ट’ है । साथ में गन्दा पानी प्रशोधन करने के लिए एक अलग ‘सेवरज ट्रीटमेन्ट प्लान्ट’ निर्माण हुआ है । भवन परिसर में पानी का फव्वारा से लेकर नियमित विद्युत आपुर्ति के लिए जेनेरेटर की व्यवस्था की गई है । मुख्यमन्त्री निवास निर्माण की जिम्मेदारी लेनेवाला ‘केसी–समानान्तर जेभी कम्पनी’ के अनुसार आवास निर्माण का कुल लागत ८५ करोड़ है ।
यह तो भवन निर्माण लिए किया गया खर्च है । अब भवन की सुरक्षा और व्यवस्थापन, मुख्यमन्त्री तथा प्रदेश प्रमुख के लिए आवश्यक अन्य सुविधा, कर्मचारी खर्च आदि के लिए हर साल राज्यकोष से कितना रकम खर्च होता है, वह हिसाब में नहीं है । काठमांडू से बाहर कार्यक्षेत्र रहे मुख्यमन्त्री और प्रदेश प्रमुख को काठमांडू में रहने के लिए इसतरह जो खर्च किया जा रहा है, यह विलासी मानसिकता का ही परिणाम है, संघीय शासन व्यवस्था से विपरित हरकत है ।
देश की आन्तरिक टैंस से प्रशासन चलाना भी मुश्किल हो जाता है । ऐसे कमजोर देश में संघीयता के नाम पर जो फिजूल खर्च हो रहा है, इसका विरोध होना स्वाभाविक है । क्या संघीयता सैकड़ों की संख्या में सांसद् और मन्त्री पालने के लिए है ? विगत पाँच साल के अभ्यास से तो यही प्रमाणित होता है कि नेता और कार्यकर्ताओं के रोजगार के लिए ही संघीयता है । हां, विगत पाँच साल में संघीयता ने ऐसा कोई भी अभ्यास नहीं किया, जिससे आम जनता उसके प्रति आकर्षित हो ।
प्रधानमन्त्री का ‘कु’तर्क
मुख्यमन्त्री के लिए काठमांडू में निर्मित आवास उद्घाटन करते हुए प्रधानमन्त्री प्रचण्ड ने कहा कि अब काठमांडू में रह कर भी प्रदेश प्रमुख और मुख्यमन्त्री अपनी जिम्मेदारी और कार्यभार को प्रभावकारी बनाएंगे । उन्होंने आगे कहा है– ‘संघीय लोकतान्त्रिक गणतन्त्र को संस्थागत करते वक्त कुछ लोग प्रश्न करते हैं, उनके लिए यही भवन जबाव है, जो संघीयता संस्थागत करने के लिए एक कदम आगे है ।’ प्रधानमन्त्री का यह तर्क हास्यास्पद है, आलोचना को बचाव करने के लिए उन्होंने जो तर्क दिया, यह तर्क नहीं ‘कु’तर्क है । अगर प्रदेश के मुख्यमन्त्री और प्रदेश प्रमुख काठमांडू में रहकर ही अपने कार्यसम्पादन करते हैं तो ‘संघीयता की आवश्यकता ही क्यों पड़ी ?’
नेताओं के इसी हरकत से प्रमाणित होता है कि संघीयता के लिए वकालात करनेवाले हमारे नेताओं की मानसिकता ही संघीयता विरोधी है । माओवादी केन्द्र के नेताओं से लेकर राजनीतिक विश्लेषकों ने भी यह कहा है । संघीयता विज्ञ के रूप में परिचित माओवादी नेता खिमलाल देवकोटा ने कहा है कि इसतरह की हरकत और तर्क से संघीयता मजबूत होनेवाला नहीं है, बदले में एकात्मकता को ही मजबूत करेगा । उन्होंने कहा है कि अब मुख्यमन्त्री प्रदेश में नहीं, काठमांडू में केन्द्रीत रहेंगे और यहीं से प्रदेश का कार्यसम्पादन करना उनकी मुख्य प्राथमिकता रहेगी ।
सही तो यही है कि ‘नेपाल के लिए संघीयता आवश्यकता है या नहीं ? इस विषय में आवश्यक बहस किए बिना ही नेपाल में संघीयता लाया गया’ इसतरह का तर्क देनेवाले बुद्धिजीवी की बात सही साबित हो रही है । अगर नेपाल में संघीयता की आवश्यकता महसूस की गई थी तो मुख्यमन्त्री काठमांडू में रहने के लिए इस तरह लालायित नहीं होते ?
इससे हमारे नेताओं में व्याप्त मूलभूत राजनीतिक चरित्र भी प्रमाणित होता है । हां, हमारे नेतागण जो राजनीतिक अभ्यास कर रहे हैं, वह संघीयता के मर्म के विपरीत है । उदाहरण के लिए प्रदेश सरकार गठन में होनेवाला राजनीतिक भागदौड़ को ही ले सकते हैं । प्रदेश सरकार गठन करते वक्त जिसतरह केन्द्र सरकार हावी हो जाता है, उससे प्रदेश सरकार का औचित्य समाप्त कर देता है । हां, प्रदेश में कौन मुख्यमन्त्री बनेंगे और कौन मन्त्री बनेंगे ? इस बात का तय केन्द्र सरकार में रहनेवाले नेता ही तय करते हैं । यहां तक कि मुख्यमन्त्री और मन्त्रियों को किस तरह कार्यसम्पादन करना है, इसमें भी केन्द्र सरकार और केन्द्रीय नेता हावी हो जाते हैं । इसतरह का दबाव और हस्तक्षेप प्रदेश संचालन करनेवाले भी सहज स्वीकार करते हैं । आज तक जो अभ्यास हो रहा है, उससे यही प्रमाणित होता है कि प्रदेश अपने स्वतन्त्र अस्तित्व कायम रखने में असफल हैं और केन्द्रीय ‘हस्तक्षेप’ उनके लिए स्वीकार्य हैं । वह भी केन्द्रीय नेताओं के तरह केन्द्र में रहना चाहते हैं । भी केन्द्रीय संघीय राजधानी में मुख्यमन्त्री का आवास और कार्यालय निर्माण होने के पीछे भी यही मनोविज्ञान हावी है ।
