नींद (कविता) : वसन्त लोहनी
नींद
जी हां, निश्चित रूप से
बहुत खुशकिस्मत हूं मैं
माता की अपार कृपा है
तभी तो गोंद में सुलाती है मुझे
नींद ना आने का छटपटाहट
कभी भोगा नहीं हैं मैने
रात भर करवट बदलते बदलते
कभी शुभ देखा नहीं हैं मैने
न कभी नींद की गोली
न कभी रात भर जगने-उठने का चक्र
तभी तो हर सुबह नवीन है
हर सुबह सुंदर हैं
भगवान कुछ न कुछ देता हैं
हर इंसान को देता हैं
मुझे दिया हैं गहरा नींद
कितना सौभाग्य हैं मेरा
तभी तो चूमता ही रहा हूं
अपने ख्वाबों को।
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