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अंशुकुमारी झा, हिमालिनी अंक नवंबर 023 । नेपाल जो कभी शांत और सौम्य था वहाँ आज ताण्डव हो रहा है । आए दिन बीच चौराहे पर किसी का कत्ल कर दिया जाता है, सरेआम किसी का बलात्कर हो जाता है, किसी को लूट लिया जाता है । नेपाल ऐसा तो नहीं था ? इस प्रकार की गंदगी कैसे पनप गई यहाँ ? यह सब कहाँ से आया ? क्यों मानव दानव बनते जा रहे हैं ? इस प्रकार के बहुत सारे प्रश्न हमें झकझोरते रहते हैं । नेपाल का स्तर सभी दृष्टिकोण से नीचे गिरता जा रहा है । मेरे विचार से गंदी राजनीति, भ्रष्ट नेता, गुण स्तरहीन शिक्षा, कुसंस्कार इत्यादि इसका कारण हो सकते हैं । देश की अवस्था दयनीय बनाने में भ्रष्ट नेतागणों का विशेष योगदान है । साथ ही फिलहाल प्रकृति भी नेपाल की तबाही में साथ दे रही है । भूकम्प के रूप में हो, बाढ के रूप में हो, भूस्खलन के रूप में हो चाहे महामारी के रूप में हो, आए दिन प्रकृति भी नेपाली जनता को क्षति पहुँचाती आ रही है ।



पौराणिक काल से ही नेपाली समाज में सहअस्तित्व, एक दूसरे के प्रति सद्भाव तथा सम्मान से परिपूर्ण व्यवहार रहा है परन्तु उसी पर आधारित नेपाली सामाजिक संरचना में साम्प्रदायिक तथा धार्मिक विभेद देखा जा रहा है । धार्मिक सहिष्णुता में उबाल आना यह चिन्तनीय विषय है । वह देश जो कभी विश्व में हिन्दु राष्ट्र के नाम से जाना जाता था फिलहाल वहाँ के बहुसंख्यक हिन्दु धर्मावलम्बी अपने आपको असुरक्षित महसुस करने लगे हैं । विभिन्न स्थानों में धार्मिक सद्भाव को तोड़कर हिंसा फैलाने में राक्षस लोग कामयाब दिखाई दे रहे हैं । यह सब क्या है ? देश में अराजकता का पदार्पण होना अर्थात् देश सत्यानाश के तरफ अग्रसर होना है । आर्थिक रूप से राज्य कंगाल होने के पथ पर आ गया है । सरकार विकास–निर्माण को स्थगित करके ऋण चुकाने के लिये ऋण लेने पर मजबूर हैं । आर्थिक मंदी का प्रभाव परिवार तक पहुँच गया है । लोग अत्यावश्यक वस्तु के अलावा अन्य वस्तु में नहीं के बराबर खर्च कर रहे हैं । बैंक से ऋण लेने वाले कम हो गए हैं । करदाता सरकार को कर देने के लिए सक्षम नहीं है जिससे सरकार राजस्व संकलन करने में असफल हो रही है । हमारे खयाल में यह सब पिछले दिनों की गलती का ही तो परिणाम है । यह तो होना ही था ।

कोरोना महामारी के बाद सम्पूर्ण विश्व का अर्थतन्त्र प्रभावित हुआ परन्तु आहिस्ते आहस्तिे अधिकांश देशों ने अपना अर्थतन्त्र सुधार लिया । कुछ देश अभी तक प्रभावित ही है । जिसमें नेपाल भी एक है । अर्थतन्त्र सुधारने के लिए अहोरात्र परिश्रम, त्याग, समर्पण इत्यादि की आवश्यकता होती है जो हमारे देश के किसी नेताओं में नहीं है । जो भी कुर्सी पर पहुंचते हैं वह जनता के हित के लिए नहीं बस अपना और अपनों की थैली भरने में लग जाते हैं । इस प्रक्रिया से देश की अवस्था कभी भी सुदृढ नहीं हो सकती है । नेता धनी होते जा रहे और जनता जो गरीब है दिन व दिन गरीब ही होती जा रही है । फिलहाल पर्व त्यौहार का समय है, दीवाली, छठ इत्यादि परन्तु नेपाल में चीनी का अभाव है । अगर मिल भी जाता है तो मंहगे भाव में । चीनी के साथ साथ अन्य खाद्य सामग्री भी बहुत मंहगी हो गई है । पर्व त्यौहार छोड़ना हमारी संस्कृति और परम्परा के खिलाफ है । अपनी पम्परा को निभाने में हमलोग हमेशा गर्व करते हैं तो महँगाई बढने के बाबजूद भी त्यौहार तो मनाना ही है परन्तु जनता में कहीं न कहीं निराशा दिखाई दे रही है ।

इस कठिन समय में सरकार को एकजुट होकर चलना होगा । विगत जैसे देश में भेदभाव अर्थात पहाड़ी मधेशी को त्यागकर सभी नागरिक को एक रूप से परिचालन करना होगा । अगर नागरिक में एक रूपता नहीं हुई तो देश में दुर्घटना होने की सम्भवना प्रबल है । इस कार्य का दायित्व हर राजनीतिकर्मी को जाता है । ज्ञात है कि श्रीलंका में जन विद्रोह ने ही राज्य संचालकों को खदेड़ा था । इसी प्रकार सन् १९९१ में जनविद्रोह से ही बाहुबली राष्ट्रपति सियाद बारी तथा उस समय के भ्रष्ट राजनीतिक नेताओं को हटाने में सोमाली नागरिक सफल हुए थे ।

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देश फिलहाल आर्थिक संकट से जूझ रहा है । हमारे सामने यह बहुत बड़ी चुनौती है कि एसिया का ही सबसे गरीब देश, हमारा देश बन गया है । इस चुनौती से हमारे राजनीतिक नेतृत्व का सुधरना बहुत ही आवश्यक है । देश की कुर्सी किसी की बपौती नहीं है कि राजगद्दी की तरह प्रयोग किया जाय । जो देश की अवस्था सुदृढ करने का संकल्प लेगा और उसे इमानदारीपूर्वक निभाएगा भी, सच में कुर्सी असली हकदार वही व्यक्ति होगा । महत्वाकांक्षी और सत्तामोह वाले शासक कभी भी देश को ऊपर नहीं उठा सकते हंै अपितु वह देश को धीरे धीरे दीमक की तरह खा रहे हैं ।

समग्र में गलत राजनीति और दूषित सोच के कारण नेपाल अस्त व्यस्त हो गया है । जब देश के अन्दर ही काल मुँह फैलाए बैठा हो तो वह देश कब तक सुरक्षित रह सकता है । जनता के आरोप से बचने के लिए अभी भी वक्त है । खुद की गलती को सुधारने के लिए देश और जनता को महत्व देना बहुत ही आवश्यक है । उदाहरणस्वरुप इजरायल के प्रधानमन्त्री नेतन्याहु कभी बहुत ही काबिल और लोकप्रिय नेता थे । परन्तु उन पर भी भ्रष्टाचार का आरोप लगा और उनकी लोकप्रियता समाप्त होने लगी । उनके विरोध में विद्रोह होने लगा था । ७ अक्टुबर २०२३ को इजरायल में हमास आक्रमण के बाद नेतान्याहु को जनता के लिए कुछ कर दिखाने का पुनः एक अवसर मिला । अभी नेतान्याहु के विरोधी भी उसी के नेतृत्व में एकजुट होकर काम कर रहे हैं । यह नेतान्याहु के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है । कहने का तात्पर्य यह है कि जब देश पर संकट आ जाय तो हम सभी को एक होकर उक्त संकट का समाधान ढूँढना चाहिए । हम सभी को एक दूसरे के प्रति प्रेम और सहयोग दिखाना चाहिए । इस प्रकार के व्यवहार से दुश्मन के प्रति भी स्नेह पनप जाता है ।

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अंशु झा



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