दीर्घकालीन विद्युत समझौता : वैदेशिक निवेश के लिए खुलता द्वार : डॉ. श्वेता दीप्ति
डॉ श्वेता दीप्ति, हिमालिनी अंक जनवरी024। जब भी नेपाल भारत में कोई समझौता होता है या भारत का कोई निवेश नेपाल में होता है तो सायास तरीके से विवादों का बाजार भी गर्म हो जाता है । भारत और भारत की नीति को कटघरे में खड़ा किया जाना और विरोध प्रदर्शन करना यहाँ की राजनीतिक गलियारों का सबसे प्रमुख विषय रहा है । फिर भी हर जगह भारत के अनुदान और सहयोग से किए गए कार्य और परियोजनाएँ दृष्टिगोचर होते रहते हैं । यानि विवाद अपनी जगह, भारत से सहयोग की अपेक्षा अपनी जगह और विषय का राजनीतिकरण अपनी जगह ।
भारतीय विदेशमंत्री जयशंकर के नेपाल यात्रा में हुए दीर्घकालीन विद्युत समझौते के साथ ही फिलहाल देश में सरगर्मी का विषय है “उच्च प्रभावयुक्त सामुदायिक विकास आयोजना सम्बन्धी अनुदान सहायता सम्झौता” । कुछ लोग इस बात की आलोचना कर रहे हैं कि समझौते के तहत भारत स्थानीय स्तर या स्थानीय स्तर के संगठनों को सीधे २० करोड़ रुपये तक का अनुदान दे सकता है । इस विषय पर प्रधानमंत्री प्रचंड ने कहा है कि भारतीय दूतावास द्वारा नेपाल में सीधे २० करोड़ रुपये खर्च करने की इजाजत देने वाले समझौते पर चिन्तित होने की जरूरत नहीं है । उन्होंने स्पष्ट किया है कि भारत के साथ मौजूदा समझौते में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि भारतीय पक्ष एकतरफा परियोजनाओं का चयन और कार्यान्वयन कर सके । उन्होंने कहा, ‘भारत के साथ मौजूदा समझौते में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जो भारतीय पक्ष को परियोजना को एकतरफा चुनने और लागू करने की सुविधा प्रदान करता है । इसके अलावा, परियोजना कार्यान्वयन की नियमित निगरानी और अद्यतन समीक्षा नेपाली सरकार द्वारा की जाती है । ऐसे में इस समझौते के अलावा हमारे लिए तनावग्रस्त होने का कोई कारण नहीं है । उन्होंने कहा है कि नेपाल सरकार जब चाहे कोई भी फैसला ले सकती है । सरगर्मी का दूसरा विषय है नेपाल का भारत के साथ दीर्घकालिक बिजली व्यापार समझौता ।
पिछले दिनों भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर की दो दिवसीय नेपाल यात्रा समाप्त हुई है । उनकी यात्रा के दौरान बनी सहमति को नेपाल ने बड़ी उपलब्धि के तौर पर लिया है । हालाँकि इस दौरे के दौरान किसी राजनीतिक समझौते पर चर्चा नहीं हुई, लेकिन सरकारी पक्ष का दावा है कि विकास, आर्थिक समृद्धि आदि मुद्दों पर महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए हैं । नेपाल–भारत संयुक्त आयोग की बैठक में हिस्सा लेने के लिए भारतीय विदेशमंत्री एस जयशंकर नेपाल आए थे । उन्होंने नेपाल में २६ घंटे बिताए और अपनी यात्रा की शुरुआत में राष्ट्रपति पौडेल के साथ बैठक की । इसके बाद उन्होंने सिंह दरबार में प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहाल ‘प्रचंड’ से मुलाकात की । फिर उनकी मुलाकात नेपाल के विदेश मंत्री एनपी साउद से हुई थी । उनसे मुलाकात के बाद एक संयुक्त आयोग की बैठक आयोजित की गई । भारत द्वारा उच्च प्रभाव वाली सामुदायिक विकास परियोजनाओं के कार्यान्वयन के लिए बजट सीमा ५ करोड़ रुपये से बढ़ाकर २० करोड़ रुपये कर दी गई और दोनों देशों के बीच नेपाल से भारत को बिजली निर्यात की मात्रा को दस साल की अवधि में १०,००० मेगावाट तक बढ़ाने पर सहमति भी हुई । इसके लिए दोनों पक्ष नेपाल के जलविद्युत उत्पादन क्षेत्र और ट्रांसमिशन बुनियादी ढांचे में पारस्परिक रूप से लाभप्रद निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए सभी उपाय करने पर सहमत हुए हैं । न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड और नैस्डैक ने नेपाल इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी (एनएएसटी) द्वारा निर्मित मुनाल उपग्रह के लिए एक लॉन्च सेवा समझौता भी किया है ।
इसी दौरे में भारत के विदेश मंत्री जयशंकर और विदेश मंत्री सऊद ने संयुक्त रूप से नेपाल और भारत के बीच तीन १३२ केवी अंतरराष्ट्रीय ट्रांसमिशन लाइनों का उद्घाटन किया और जाजरकोट के भूकंप पीडि़तों के लिए राहत सामग्री भी उपलब्ध करायी गयी । और भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने घोषणा की कि, भारत सरकार जाजरकोट में हाल ही में आए भूकंप के बाद पुनर्निर्माण में मदद के लिए लगभग १०० मिलियन रुपये की वित्तीय सहायता प्रदान करेगी ।
१०,००० मेगावाट बिजली निर्यात के लिए द्विपक्षीय समझौता ः एक दशक लंबी प्रतिबद्धता
भारतीय विदेशमंत्री जयशंकर के नेपाल यात्रा में भारत और नेपाल ने अगले १० वर्षों में भारत को १०,००० मेगावाट बिजली के निर्यात के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर करके दीर्घकालिक ऊर्जा साझेदारी के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को मजबूत किया । भारत के ऊर्जा सचिव पंकज अग्रवाल और नेपाल के ऊर्जा सचिव गोपाल सिग्देल द्वारा हस्ताक्षरित द्विपक्षीय समझौता, स्थायी ऊर्जा सहयोग के साझा दृष्टिकोण का एक प्रमाण है ।
प्रधान मंत्री पुष्प कमल दहाल प्रचंड ने बिजली निर्यात समझौते को देश के बिजली क्षेत्र में एक सफलता बताया । उन्होंने कहा कि इस समझौते का महत्व न केवल आर्थिक है बल्कि ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने और नेपाल के लिए संतुलित और सतत विकास पथ को बढ़ावा देने में भी महत्वपूर्ण है । इसके साथ ही, जलविद्युत उत्पादन के क्षेत्र में पर्याप्त क्षमता रखने वाले नेपाल की बिजली व्यापार में असीमित बाजार तक पहुंच बढ सकती है । यह नेपाल और भारत के बीच पहला दीर्घकालिक बिजली व्यापार समझौता है ।
अब तक नेपाल भारत के साथ अल्पकालिक समझौता करता रहा है और, यह समझौता नेपाल विद्युत प्राधिकरण के स्तर पर हुआ है । ऊर्जा सचिव स्तर के समझौते से नेपाल के पास तीन विकल्प होंगे । प्राधिकरण अपनी सुविधानुसार भारत से बिजली खरीद और बेच सकेगा । प्राधिकरण ने दीर्घकालिक, मध्यम अवधि और अल्पकालिक खरीद–बिक्री के तीन विकल्प तय किए हैं । इसके साथ ही नेपाल में उत्पादित अतिरिक्त बिजली बर्बाद होने का खतरा भी टल गया है । वर्तमान में, ३००० मेगावाट बिजली नेपाल की राष्ट्रीय ट्रांसमिशन लाइन से जुड़ी है । इसमें से अभी १४–१५०० मेगावाट बिजली की खपत हो रही है । शेष बिजली का लगभग ७०० मेगावाट भारत को निर्यात किया जा रहा है । बाकी ७०० से १००० मेगावाट बिजली बर्बाद हो रही है ।
नेपाल विद्युत प्राधिकरण बरसात के मौसम में लगभग ६ महीनों के लिए भारत को लगभग ७०० मेगावाट बिजली निर्यात करता है और शुष्क मौसम में ३०० से ४०० मेगावाट बिजली खरीदता है । बरसात के मौसम में घरेलू मांग को पूरा करने के लिए अगर भारत को ७०० मेगावाट बिजली भी बेची जाती है, तो भी ७०० मेगावाट बिजली बर्बाद होने की स्थिति बन जाती है । अथॉरिटी करीब ७०० मेगावाट बिजली बेचकर भारत से नेपाल को सालाना १५ से २० अरब रुपये मिल रहे हैं । यदि घरेलू खपत और बिक्री के बाद बचाई गई बिजली भी भारत को बेची जा सके, तो वर्तमान स्थिति में नेपाल में १५ अरब रुपये से अधिक की आय होगी ।
इससे न केवल नेपाल का व्यापार घाटा कम होगा, बल्कि बिजली उत्पादन के मामले में भी नेपाल दक्षिण एशिया में सर्वश्रेष्ठ स्थान बन जाएगा । राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में सुधार के साथ–साथ अरबों के निवेश से बनी परियोजनाओं के “पावर हाउस” को भी बंद करने की जरूरत नहीं होगी ।
भारत द्वारा अधिक बिजली नहीं खरीददने की स्थिति में विद्युत प्राधिकरण निजी परियोजनाओं को ‘पावर हाउस’ बंद करने का दबाव बना रहा था । परियोजना के निर्माण से पहले प्राधिकरण के साथ पावर परचेज एग्रीमेंट (पीपीए) पर हस्ताक्षर किये गये थे । उसके मुताबिक बाजार में मांग हो या न हो, प्राधिकरण को बिजली खरीदनी ही पड़ेगी ।
समझौते के मुताबिक बिजली अनिवार्य रूप से खरीदनी पड़ती थी और बाजार न होने से प्राधिकरण का मुनाफा भी प्रभावित हो रहा था और बिजली बर्बाद हो रही थी । अब इस समझौते से प्राधिकरण को किसी भी प्रोजेक्ट के लिए बिजली बर्बाद नहीं करनी पड़ेगी । इससे प्राधिकरण का मुनाफा बढ़ेगा और इसका सीधा असर राष्ट्रीय खजाने पर पड़ेगा ।
इसके अलावा, इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारतीय बाजार तक निर्बाध पहुंच स्थापित होने के बाद निवेश का माहौल मजबूत होगा । वर्तमान में, बाजार की निश्चितता की कमी के कारण, हजारों परियोजनाएं वित्तीय सुरक्षा हासिल नहीं कर सकीं । अब वे परियोजनाएँ भी निवेश का स्रोत सुनिश्चित करने के बाद परियोजनाएँ बनाना शुरू कर देंगी ।
ऊर्जा, जल संसाधन एवं सिंचाई मंत्री शक्ति बहादुर बस्नेत का कहना है कि भारत के साथ समझौते से निवेश का माहौल बेहतर होगा । मंत्रालय ने अगले १२ वर्षों में २८,००० मेगावाट बिजली का उत्पादन और खपत करने की कार्य योजना पहले ही बना ली है । मंत्रालय की योजना भारत में बेची जाने वाली १०,००० मेगावाट बिजली का हिसाब–किताब रखने के साथ–साथ नेपाल में अतिरिक्त १५,००० मेगावाट बिजली की खपत करने की है ।
प्राधिकरण के प्रबंध निदेशक कुलमान घीसिंग का मानना है कि उत्पादित बिजली का बाजार सुनिश्चित है । घीसिंग का कहना है कि इसके साथ ही निवेशक ऊंचे मनोबल के साथ परियोजनाओं में निवेश करेंगे । वर्तमान में, १०,००० मेगावाट से अधिक क्षमता वाली परियोजनाओं के लिए पीपीए समझौते पर हस्ताक्षर किए गए हैं । हालाँकि, बाजार की निश्चितता की कमी के कारण निवेशकों को वित्तीय आश्वासन नहीं मिल पाया है । घीसिंग को उम्मीद है कि भारत के साथ इस समझौते से सभी परियोजनाओं को वित्तीय आश्वासन मिलेगा ।
इसी तरह इंडिपेंडेंट पावर प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन (इप्पान) के चेयरमैन गणेश कार्की ने कहा कि भारतीय विदेश मंत्री के नेपाल दौरे से जलविद्युत क्षेत्र में उत्साह बढ़ा है । कार्की के मुताबिक इस यात्रा में नेपाल और भारत के बीच हुए बिजली व्यापार समझौते से उत्साह आया । उनके मुताबिक इस समझौते का असर अगले साल मई में होने वाले निवेश सम्मेलन पर पड़ेगा । चेयरमैन कार्की ने कहा कि निवेशक नेपाल की जलविद्युत में निवेश करने से नहीं हिचकिचाएंगे ।
सतही तौर पर, नेपाल पूर्ण बिजली व्यापार समझौते के लिए अधिक दबाव में प्रतीत होता है । हालांकि नेपाल में बिजली उत्पादन क्षमता शुरुआत में ४२ हजार मेगावाट है, लेकिन निजी क्षेत्र का दावा है कि क्यू घटाने के बाद डेढ़ लाख मेगावाट तक उत्पादन की संभावना है । यह डेटा नेपाल में बिजली उत्पादन की अकल्पनीय क्षमता को दर्शाता है । और, एक नजÞर में, चूंकि नेपाल एक उत्पादक है और भारत एक उपभोक्ता है, इसलिए व्यापार समझौते में नेपाल स्वाभाविक रूप से दबाव में आ गया । हालांकि, भारत पर नेपाल से बिजली खरीदने का काफी दबाव है ।
पड़ोसी देशों में बिजली की अपार संभावनाओं के बावजूद भारत बिजली विकास की ओर न बढ़ते हुए जीवाश्म ईंधन से उत्पादित बिजली जला रहा है । वर्तमान में, भारत की कुल बिजली खपत का ४९ प्रतिशत जीवाश्म ईंधन से उत्पन्न होता है ।
इकोनॉमिक टाइम्स के मुताबिक, भारतीय बाजार में बिजली की उच्च मांग २२९,००० मेगावाट तक पहुंच गई है । इस बिजली का लगभग ५० प्रतिशत कोयला आधारित संयंत्रों द्वारा उत्पादित किया जाता है । कोयले से बिजली पैदा करने से पर्यावरण में अधिक प्रदूषण फैलता है । कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए नेपाल की बिजली भारत के लिए अपरिहार्य है । भारत पर अंतरराष्ट्रीय दबाव के बावजूद भी भारत ऐसी स्थिति में है कि उसे नेपाल से बिजली खरीदनी पड़ रही है ।
विदेश मंत्री जयशंकर की यह यात्रा और भी कई मायनों में महत्त्वपूर्ण मानी जा सकती है । उन्होंने अपनी यात्रा के दौरान भूमि, रेल और हवाई कनेक्टिविटी, रक्षा और सुरक्षा में सहयोग, कृषि, बिजली, जल संसाधन, आपदा प्रबंधन, पर्यटन, नागरिक उड्डयन और सांस्कृतिक आदान–प्रदान जैसे कई विषयों को अपनी चर्चा में शामिल किया । देखा जाए तो ये चर्चाएँ भारत–नेपाल संबंधों की बहुमुखी प्रकृति को रेखांकित करती हैं ।