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‘युद्ध’ सत्ता टिकाने और कमाने का सुरक्षित जुगाड़ है- कैलाश महतो

कैलाश महतो, हिमालिनी अंक जनवरी 024। बिहार के नालन्दा में विश्व शान्ति का एक भव्य मन्दिर है । मन्दिर बनाने वालों ने विश्व शान्ति स्थापनार्थ उसे निर्माण किया होगा । वैसे लोग मुझे नास्तिक ना समझें तो मैं खुल्लम खुल्ला कहूंगा कि धर्म और मन्दिर बनाने वाले सारे नेता और कलाकार अधर्मी और खतरनाक दरिन्दें रहे होंगे । याद रखें कि किसी भी दर्शन पर आधारित धर्मों के दार्शनिक ने अपने दर्शन पर धर्म और मन्दिर, मस्जिद, चर्च या गुरुद्वारा बनाने की बात नहीं कही है । युद्ध से सुदखोरी करने वालों की सुन्दर एक भाष्य है कि धर्म स्थल के मन्दिर और उसके मूर्तियों व उसके पूजन से लोगों में शान्ति, समृद्धि, विकास और जन–लाभ होगा ।



देश और भाषा बनाने वालों ने भी धर्म और धार्मिक स्थल बनाने वालों से कहीं कोई कम अपराध नहीं किया है । सारा धर्म कहता है कि हम एक ही विश्व के प्राणी है । हम एक ही ईश्वर की सन्तान हैं । मानव सबसे श्रेष्ठ प्राणी है । मानवता से बड़ा कोई धर्म नहीं है । इस ब्रह्माण्ड को एक ही ईश्वर ने रचा है । तो फिर युद्ध क्यों ? विश्व युद्ध किस लिए ? उस विश्व शान्ति के मन्दिर में विराजमान भगवान युद्ध दर्शक क्यों हैं ?
विश्व में द्यऋभ् १३०० से सन् २०२३ तक ४२६ द्विदेशीय तथा बहुदेशीय मिलिटरी युद्ध लडेÞ जा चुके हैं । मगर आन्तरिक, बाह्य और शीत युद्ध को मिलाकर हिसाब निकाले जायें तो विश्व तकरीबन ३२,००० से ज्यादा युद्ध लड़ चुका है । हर युद्ध में मानव तथा उसके अथाह संशाधनों और विश्वासों की हत्यायें हुई हैं । सारे वे युद्ध शासकों के पागलपना और राजनीतिक स्वार्थों के पूर्ति के अलावे लाभकारी कुछ नहीं साबित हुए हैं ।
ल्यअपष्लन ल्भधक।अयm के अनुसार चालीस लाख की आबादी वाले अफगानिस्तान में विगत के बीस वर्षों में अमेरिका ने प्रत्येक अफगानिस्तानी पर ४ ५०,००० से अधिक खर्च किया है । हिसाब लगाने पर अमेरिका ने अफगान युद्ध में प्रति दिन ४ ३०० मिलियन खर्च की है । (ँयचदक च्भउयचत(द्दण्द्दद्द)

रिपोर्टों को मानें तो बिल गेट्स, जोसेफ, एलेन मस्क लगायत तीस अरबपतियों के पास जितनी दौलत है, उससे कहीं अधिक पैसे अमेरिका ने दुनिया के लड़ाइयों में निवेश की है । वैसे ही विश्व को युद्धग्रस्त बनाने के लिए क्ष्क्क्ष्, ऋक्ष्ब् और ःक्ष्ब् जैसे शक्तिशाली जासूसी संस्थाओं ने भी दुनिया के अनेक विद्रोही और आतंककारी संगठनों को अरबों डालर की सहायता की है ।
जियाउल हक जैसे कट्टर धार्मिक नेता ने दुनिया के सारे मुस्लिम मुल्क और उसके धार्मिक लोगों से मुस्लिम मुज्जाहिद्दीन आर्मी मे शामिल होने का फरमान किया था । उसी मुजाहिद्दीन ने अपना रूप बदलकर तालिवान बना, जिसके विरुद्ध अमेरिका वर्षों तक अफगानिस्तान में अवैधानिक रूप से घुसकर लड़ाई के नाम पर उसके राष्ट्र और जन–जीवन को बर्बाद और तहस नहस किया । तालिवानियों के विरुद्ध लडेÞ गए युद्ध में अमेरिका ने अपनी मूल २,५०० सैनिक, ४,००० भाड़े के सैनिकों के जान गंवाने के साथ अरबों डालर की बर्बादी की । पर आज वही तालिवान अफगानिस्तान की सत्ता पर विराजमान है, जिसे अमेरिका ने आतंकवादी का नाम देकर जमींदोज और नष्ट करना चाहा था ।

आतंकी रेत पर चलकर अमेरिकी सहयोगों को अपना सदाबहार किस्मत मानने वाला पाकिस्तान आज दिवालिया नजर आ रहा है जबसे अमेरिका अफगानिस्तान छोड़कर अपने वतन को वापस हुआ है । अफगानिस्तान में अमेरिकी आपरेशन को सहयोग करने के बदले अमेरिका द्वारा दान दिए जाने वाले पैसों के बल पर वर्षों तक देश चलाने वाला पाकिस्तान अमेरिकी सहयोग के रुकते ही आज सड़क पर दिखाई पड़ता है ।
ल्यअपष्लनल्भधक।अयm के हवाले से ँयचदक के आर्थिक प्रतिवेदन को मानें, तो आन्तरिक युद्धों को छोडकर द्वि–देशीय और बहु–देशीय युद्धों में ही अमेरिका ने पूरे ७.८ खरब अमेरिकी डालर खर्च किए हैं । आर्थिक विश्लेषकों को मानें, तो अमेरिका, जो अपने को विश्व मानव का अभिभावक समझता है, ने अगर उस पैसे का मानव विकास और शान्ति के लिए खर्च किया होता तो दुनिया में न तो कंगाली, न बद–हवाली, न गरीबी और न लाचारी होती, और न कोई युद्ध और आतंक होता ।
जब लोग काम‌ में व्यस्त हों, पेट और परिवार शान्ति से चला लें –तो इंसान के पास न तो आतंकी बनने का वक्त रहेगा, न मजबूरी । हर अपराध का जग खाली पेट, नंगा वदन और छत की अभाव ही होती हैं । दुनिया की राज्य व्यबस्था और उसके सरकार अगर इस पर इमानदार हो जाये, तो आजके दुनिया में फैले और फैलाये जा रहे अधिकांश आतंकी और मानव पीडक विद्रोह समाप्त हो जायेंगे ।
आज दुनिया में युक्रेन–रुस युद्ध और इजारयल–हमास युद्ध के साथ साथ इजरायल–प्यालेस्टाइन, इजरायल–इरान, इजरायल–लेबनान, टर्की–इजरायल, भारत–पाकिस्तान, भारत–चीन, चीन–पाकिस्तान, रूस–जापान, चीन–फिलिपिन्स, चीन–ताइवान, अर्मेनिया–अजरबैजान, कंगो (जायर)–फ्रान्स, अमेरिका–चीन, रूस–अमेरिका, अमेरिका–उत्तर कोरिया तथा नेटो–रूस के बीच अकल्पनीय तनाव की जो स्थितियां हैं, वह तीसरे विश्व युद्ध की सुलगता ताप है, वहीं शासकों के बीच के अहंकार और कमाई की मजेदार जुगाड़ है ।

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लोकतन्त्र और मानवाधिकार का झण्डा लेकर हर जगह अमेरिका बुलाये और बिन बुलाये भी कहीं झगड़ा सुलझाने, तो कहीं पर उलझाने पहुंच जाता है । कभी ओसामा बिन लादेन को पैदा करता है, तो कहीं सद्दाम हुसेन को मारने पहुंच जाता है । कभी जापान को जला देता है, तो कहीं चीन पर सिकंजा कसता है । कहीं नया अफगानिस्तान निर्माण करता है, तो कहीं एक युक्रेन को अपना मोहरा बना लेता है । कहीं इण्डो प्यासिफिक योजना तर्ज‘मा करता है, तो कहीं पर एमसीसी परियोजना जबरजस्ती लाद देता है । कभी चीन को धमकाता है, तो कहीं भारत को उल्लू बनाता है । संसार अगर टुकड़ों‌ में बंटा है, तो उसका मूल है अमेरिका । दुनिया को अनेक धारों में बांटकर अंग्रेजों के बदले हुए रूपों में दुनिया पर आज भी अपना औपनिवेशिक शासन कायम रखा है ।

मगर अमेरिका को याद रखना चाहिए कि वही चीन आज उसका सर दर्द बना हुआ है, जिसे कभी उसने उसके मुक्ति के लिए सहयोग किया था । वही रूस आज उसका दुश्मन है, जो कभी उसके साथ अलायन्स में रहकर विश्व का एक विजित राष्ट्र बना था । अमेरिका ने अपने द्वैध चरित्र और बनियागिरी स्वाभाव के कारण अपने हितैषी मित्र राष्ट्रों समेत को उलझाता रहता है, जो राजनीतिक और कुटनीतिक बेइमानी है ।
अमेरिका को इस बात पर भी विचार करना विश्व लाभ हो सकता है कि उसके लाख दवाब डालने के बावजूद उसने बीस साल के युद्ध में भियतनाम के साथ के युद्ध में निरीह बनकर लौटा । अफगानिस्तान ताजा उदाहरण है । संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार सन् २००८ से आज तक अमेरिका ने अपने ७,०५७ अधिकारयों को जान से मरवाया है, वहीं ३०,१७७ अधिकारियों ने आत्म हत्यायें की है ।

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अपने देश के अन्दर असफल और लोकतन्त्र विरोधी रवैयों के कारण विवाद में रहे इजरायली प्रधामन्त्री बेन्जामिन नेता न्याहू को आखिर क्या बिगड़ने वाला है संचालित इजरायल–हमास युद्ध के कारण ? उसके डूबते हुए राजनीतिक नाव को इस युद्ध ने बचा दिया । अपने डूबते नाव को बचाने के लिए हो सकता है कि उन्होंने हमास के साथ कोई बार्गेनिङ्ग की हो ! क्योंकि मरना तो इजरायली जनता को पडा है, न कि नेता न्याहु या उनके किसी नातेदार को ।
प्लयअपष्लन ल्भधक । अयm के आर्थिक खुलासे अनुसार इजरायल–हमास युद्ध में प्रयोग हो रहे एक मिसाइल के खर्च को अगर जनहित में प्रयोग किया जाय, तो उसके लागत के पैसे से पांच सदस्य बाले एक परिवार का जीवन भर का खर्च चल सकता है । युद्ध में प्रयोग किए जाने वाले हथियारों के पैसों के सही प्रयोगों से दुनिया में मच रहे और फैल रहे असभ्य युद्धों को हमेशा के लिए रोका जा सकता है । यहुदियों में पनपे व्भयलष्कm और मुस्लिमों में फैले धार्मिक नशा को अगर हटा दिया जाय, तो यहुदियों और मुस्लिमों के बीच एक प्रेमपूर्ण जीवन सम्बन्ध स्थापित हो सकता है, क्योंकि दोनों की उपज एक ही नश्ल से सम्बन्धित है ।
दुनिया में विद्रोह, झगड़े और आतंक मूलतः तीन कारणों ः भाषा, जमीन और धर्म के कारणों से होते हैं । इन तीनों कारणों का सम्बन्ध फिर जीवन अर्थ और अर्थ जीवन से जुडा होता है । मगर दुनिया के युद्धरत नेता न तो शान्ति को ठहरने देना चाहते हैं, न वो युद्धों को रोकना चाहेंगे । क्योंकि युद्ध से हथियार उत्पादक, विक्रेता, दलाल और नेताओं और अधिकारियों को अथाह कमीशन, कमाई और व्यापार चलता है । यही कारण है दुनिया के राजनीतिक और सुरक्षा नेता देशप्रेम और राष्ट्र रक्षा के नशीले हावा चलाकर युद्ध को निरन्तरता देना पसन्द करते हैं और समान्यजन बेहोशी में उसका शिकार होते हैं ।



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