Sun. Oct 6th, 2024

नेपाल में नए गठबंधन की सरकार का भारत पर क्या होगा असर ?


काठमांडू 6 मार्च । विश्लेषकों का कहना है कि नेपाल में नया सत्ता समीकरण बनने के बाद काठमांडू के प्रति उसके पड़ोसी देशों भारत और चीन की राय बदल सकती है.



क़रीब 13 महीने पहले नेपाली कांग्रेस और प्रचंड की पार्टी के बीच गठबंधन से भारत सहज था.

कहा जाता था कि उससे पहले जब वामपंथी दल एक साथ आए तो चीन इससे सहज था.

तो, क्या अब फिर चीन ख़ुश हो गया है और दिल्ली उस नए गठबंधन को लेकर चिंतित है, जिस पर कम्युनिस्टों का वर्चस्व होगा?

विश्लेषकों के मुताबिक, इससे देश की बुनियादी विदेश नीति तो नहीं बदलेगी लेकिन नेपाल के प्रति धारणा बदल सकती है.

नेपाल में सत्ता गठबंधन बदलना सामान्य बात हो गई है.

पिछले आम चुनाव के डेढ़ साल से भी कम समय में, सिंह दरबार पर शासन करने वाला सत्ता गठबंधन तीन बार बदल चुका है.

लेकिन हर बार संसद में तीसरी ताक़त माओवादी पार्टी के अध्यक्ष पुष्प कमल दाहाल ‘प्रचंड’ प्रधानमंत्री बनने में सफल रहे हैं.

यह भी पढें   बाढ़ और भूस्खलन से अब तक २सौ१७ लोगों की मृत्यु,१सौ४३ घायल,२८ लापता

प्रचंड के नेतृत्व वाली पिछली गठबंधन सरकार के दौरान जिसमें उदारवादी मानी जाने वाली नेपाली कांग्रेस मुख्य भागीदार थी, यह टिप्पणी की गई थी कि चीन के साथ बीआरआई समझौते के तहत परियोजनाएं आगे नहीं बढ़ीं.

लेकिन इसी अवधि में भारत के साथ नज़दीकियां बढ़ीं और ऊर्जा व्यापार पर एक महत्वपूर्ण समझौता भी हुआ, जबकि अमेरिका के साथ मिलेनियम चैलेंज कॉर्पोरेशन के तहत एमसीसी नामक कॉम्पैक्ट समझौते को मंजूरी दी गई.

नेपाल मुद्दे पर भारत के टिप्पणीकार भी कह रहे थे कि प्रचंड और नेपाली कांग्रेस के बीच गठबंधन दिल्ली के लिए ‘अच्छा’ है. लेकिन देश के अंदर कुछ विश्लेषक गठबंधन का झुकाव दिल्ली की ओर अधिक होने की आलोचना करते रहे हैं.

पिछले चुनाव में, नेपाली कांग्रेस ने संसद के निचले सदन में 88 सीटें जीतीं, नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एकीकृत मार्क्सवादी-लेनिनवादी) ने 78 सीटें जीतीं और नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी सेंटर) ने 32 सीटें जीतीं. बाकी सीटें अन्य पार्टियों ने जीतीं.

संविधान के मुताबिक सरकार बनाने के लिए 275 सीटों में से 138 सीटों की ज़रूरत होती है.

यह भी पढें   सूर्यदर्शन सहकारी धोखाधड़ी मामले में गुलमी की लीला पचाई गिरफ्तार

नेपाल के पूर्व राजनयिक दिनेश भट्टराई ने कहा कि जब सत्ता गठबंधन में बार-बार बदलाव होंगे तो देश के अंदर और बाहर ‘विश्वसनीयता में कमी’ आएगी.

भट्टराई, जो अतीत में नेपाली कांग्रेस के प्रधानमंत्रियों के विदेशी मामलों के सलाहकार भी रह चुके हैं, कहते हैं, ”नेपाल के भीतर सत्ता के लिए हाथापाई बाहरी शक्तियों को अपनी चालें चलने के लिए प्रोत्साहित करेगी.”

”नेपाल की भू-राजनीति चीन और भारत जैसे बड़े देशों के बीच होने के कारण बहुत संवेदनशील मानी जाती है. इसलिए, यहां की अस्थिरता को लेकर बाहर भी दिलचस्पी और चिंता है.”

पहले कहा जा रहा था कि कांग्रेस और अन्य छोटी पार्टियों के साथ मिलकर माओवादियों का बनाया गठबंधन पाँच साल तक सरकार चलाएगा.

अनौपचारिक रूप से यह भी कहा गया था कि पहले दो साल के लिए प्रचंड प्रधानमंत्री होंगे और उसके बाद नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा और कुछ समय के लिए नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (यूनिफाइड सोशलिस्ट) के अध्यक्ष माधव कुमार नेपाल सत्ता का नेतृत्व करने वाले थे.

यह भी पढें   पुरूषोत्तम झा वने बजरंग दल धनुषा के अध्यक्ष

लेकिन सोमवार को प्रचंड ने जो नई राजनीतिक चाल चली उसके बाद वो सभी समझौते टूट गए हैं.

लगातार राजनीतिक समीकरण बदल कर सत्ता में बने रहने में कामयाब रहे प्रचंड इसे स्वाभाविक मानते हैं.

सोमवार को राजनीतिक तनाव के बीच राजधानी काठमांडू में प्रचंड ने कहा, ”जब तक मैं मर नहीं जाऊंगा, देश में उथल-पुथल मची रहेगी.”

उन्होंने यह भी कहा कि वह ‘बड़ी वामपंथी एकता की शुरुआत’ कर रहे हैं.

बैठक में उन्होंने अपनी विदेश नीति के बारे में भी बताया.

नेपाल की भौगोलिक स्थिति की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा, ”अगर हम एक उचित, वैज्ञानिक, स्वतंत्र और गुटनिरपेक्ष विदेश नीति अपनाने में विफल रहते हैं और अगर हम नेपाली लोगों के साथ एकजुट होने में विफल रहते हैं, तो नेपाल किसी भी समय कठिन स्थिति में जा सकता है.”



About Author

आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Loading...
%d bloggers like this: