साहित्यिक पत्रकारिता के पोषक बाबू सिंह चौहान
डॉ श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट
एक साहित्यकार ही बेहतर पत्रकार हो सकता है।बाबू सिंह चौहान ने यह सिद्ध करके भी दिखाया है।दुष्यंत की नगरी बिजनौर से बिजनौर टाइम्स पत्र का प्रकाशन शुरू करके बाबू सिंह चौहान ने उस मिथक को तोड़ने की कोशिश की है ,जिसमे कहा जाता है कि अखबार सिर्फ महानगरों से ही निकल सकते है।वास्तव में यह काम सिर्फ ओर सिर्फ बाबू सिंह चौहान जैसे महान पत्रकार ही कर सकते है,जो उन्होंने करके भी दिखाया है।प्रतिकूल वातावरण में सफलता के बीज बोकर उन्होंने नई पीढ़ी के लिए बिजनौर टाइम्स व चिंगारी के रूप में एक नई दिशा दी।वास्तव में पत्रकारिता के क्षेत्र में एक बड़ा नाम रहा है बाबू सिंह चौहान का ।जिन्होंने उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले से बिजनौर टाइम्स और दैनिक चिंगारी का अनवरत प्रकाशन करके मिशनरी पत्रकारिता को न सिर्फ जीवंत किया बल्कि दुसरो के लिए प्रेरक भी बने।बिजनौर जिले के महावतपुर में सन 1930 में जन्मे बाबू सिंह चौहान के पिता बसंत सिंह जो गांव के ही प्राइमरी स्कूल में प्रधानाध्यापक थे,ने अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेकर आजादी के आंदोलन की अलख जगाई और अपनी गिरफ्तारी देंकर अपने राष्ट्रभक्त होने का परिचय दिया।गिरफ्तारी के कारण उन्हें अपनी नोकरी भी गवांनी पड़ी थी।बाबू सिंह चौहान कांग्रेस के समर्पित कार्यकर्ता रहे और सन 1948 में विचारों की लड़ाई लड़ते हुए जयप्रकाश नारायण ,डा.राममनोहर लोहिया और आचार्य नरेन्द्र देव के साथ कांग्रेस छोड कर सोशलिस्ट पार्टी में शामिल चले गए थे। लेकिन वहां अधिक समय तक वे टिक नही सके और सन् 1953 में सोशलिस्ट पार्टी छोड कर कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हो गए,क्योंकि उनकी सोच सामंतवादी न होकर जनवादी थी,आमजन की पीड़ा को दूर करने के लिए संघर्ष ही उनके जीवन का धेय था। सन 1966 में बाबू सिंह चौहान ने पत्रकारिता शुरू की थी। वे निर्भीक और साहसी पत्रकार कहे व माने जाते थे। उनकी लेखनी का प्रभाव सरकार पर भी पड़ता था। साथ ही प्रशासन में भी उनके अखबार की धमक हमेशा से कायम रही है। उनके द्वारा 26 जनवरी सन1950 को ‘चिंगारी’ हिन्दी साप्ताहिक प्रकाशन शुरू किया गया।साहित्यिक पगडंडियों पर चलते हुए भी पत्रकारिता को उन्होंने जिया और ‘मांझी’,‘अनुशीलन’,‘अणुव्रत ’,‘नवरंग जैसे पत्रों का संपादन भी किया।वे ‘जनजीवन’ व दैनिक भटिंडा के भी संपादक रहे। उनके द्वारा ‘बिजनौर टाइम्म’ का प्रकाशन 14 नवम्बर, सन1963 को पत्रकारिता के एक छोटे से पौधे के रूप में शुरू किया गया था,जो आज पत्रकारिता का वटवृक्ष बन चुका है। उनके द्वारा दैनिक ‘चिंगारी’ का 25 अक्टूबर ,1985 से प्रकाशन शुरू हुआ।उन्होंने उर्दू दैनिक ‘रोजाना भी प्रकाशित किया।साथ ही खबर ‘जदीद’को छापना 22अगस्त सन 1991 से शुरू किया गया।वे आल इंडिया स्माल एवं मीडिया न्यूज पेपर्स फैडरेशन के उपाध्यक्ष रहे और पत्रकारों की समस्याओं को लेकर जीवनपर्यंत संघर्ष करते रहे। स्वर्गीय बाबू सिंह चौहान मूलतः साहित्यकार थे। उन्होंने
‘प्रकृति पुत्र ’,‘निराले संत’,‘धर्म दर्शन’,‘जैन धर्म के चार सिद्धांत ’ धर्म साहित्य लिखा तो
‘मैलीचुनरी,उजला मन’,‘हवा के पंख’, ‘पनघट की नीलामी’ जैसे उपन्यासो को भी जन्म दिया।
‘श्रमवीरों के देश में’ यात्रा संस्मरण लिखने पर उन्हें सन 1975 में सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार प्राप्त हुआ था।उनका
‘दर्पण झूठ बोलता हैं’(ललित निबंध संग्रह) काफी चर्चित रहा।
‘उफनती दुनिया के सामने’, ‘पीठ पर नीलगगन’ , ‘मकडजाल में आदमी’ ललित निबंधों के सग्रंह ने बाबू सिंह चौहान को साहित्यिक बुलन्दियों पर पहुंचाया।लेकिन इतना सब साहित्य लिखने पर भी उनकी पहचान एक साहित्यकार के बजाए एक पत्रकार के रूप में ही होती थी।उनकी पत्रकारिता आर्थिक संशाधनों अभाव के बावजूद मिशनरी थी,जिसमे साहित्य समर्द्धता,निर्भीकता, निष्पक्षता परिलक्षित होती थी,इसी से बाबू सिंह चौहान आगे बढ़े और फिर बढ़ते ही चले गए। बाबू सिंह चौहान मानते थे कि व्यक्तिगत एवं राष्टृीय उन्नति के लिए उज्जवल चरित्र व सांस्कृतिक निर्माण के सहारे सकारात्मक समाचारों को प्राथमिकता देकर मीडिया सामग्री में व्यापक बदलाव किया जाना आवश्यक है।वे विकास से सम्बन्धितसमाचारों,साक्षरता,सं स्कृति,नैतिकता और आध्यात्मिक मूल्य जैसे मुददों का समावेश कर स्वस्थ पत्रकारिता का लक्ष्य निर्धारित करने की उनकी सोच ने उन्हें बड़ा बनाया था।वे मानते थे कि पत्रकारिता निष्पक्ष हो, साथ ही यह भी जरूरी है ऐसी खबर जो सच होते हुए भी राष्टृ और समाज के लिए हानिकारक हो, तो ऐसी खबरो से परहेज करना ही बेहतर है। उनका कहना था कि स्वयं पत्रकार तय करे कि उसे मिशनरी पत्रकारिता को बचाने के लिए क्या रास्ता अपनाना चाहिए, जिससे स्वायतता और पत्रकारिता दोनो बची रह सके। इसके लिए जरूरी है कि पत्रकार प्रशिक्षित हो और उसे पत्रकारिता की अच्छी समझ हो,साथ ही उसे प्रयाप्त वेतन व सम्मान भी मिले।ताकि वह शान के साथ पत्रकारिता कर सके और उसका भरण पोषण भी ठीक ढंग से हो।तभी पत्रकारिता अपने मानदण्डो पर खरी उतर सकती है और अपने मिशनरी स्वरूप को इतिहास बनने से बचा सकती है।
उनका कहना था कि हमारा दायित्व केवल समाचार देना ही नहीं है बल्कि संस्कार एवं विचार भी देना है। यह कार्य केवल पत्रकार या फिर साहित्यकार ही कर सकता है। जब हमारे जीवन का मूल्य व्यवसाय हो जाए तब पत्रकारिता के बाजारीकरण को कोई रोक नहीं सकता है। आज पत्रकारिता में व्यवसायिक एवं राजनीतिक हितों को देख कर मौलिकता से छेड-़छाड की जा रही है। इस पर आत्म नियंत्रण के लिए शिक्षित एवं प्रबुद्ध वर्ग को आगे आना होगा। इसके लिए हमारे अन्दर मन की ताकत का होना अनिवार्य है। मन की ताकत मिलने पर हम देश के लिए खड़ा हो सकते हैं, इसके बाद हमें न वेतन की चिन्ता होती है न व्यवसाय की चिन्ता होती है। मन की ताकत हमे समष्टि भाव से जोड़ता है। पीत पत्रकारिता करने वालो के गैर जिम्मेदार होने पर हम मिशनरी पत्रकारों की जिम्मेदारी ओर अधिक बढ़ जाती है,स्वच्छ पत्रकारिता को जिंदा रखने के लिए और चुनोतियो से पार पाने के लिए हमे आगे आना ही होगा।तभी बाबू सिंह चौहान और उनकी याद को बनाये रखना सार्थक होगा।(लेखक की गिनती देश के सक्रिय मिशनरी पत्रकारों में होती है)
डॉ श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट
पोस्ट बॉक्स 81,रुड़की, उत्तराखंड
मो0 9997809955
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