सब्र के इम्तहान का ईनाम है ईद
डा0श्रीगोपालनारसन एडवोकेट
रमजान सब्र ,प्रेम और भाईचारे के साथ साथ अल्लाह की खिदमत का एक खास महिना है। तभी तो इस्लाम धर्म को मानने वाला हर मुस्लमान रमजान का बेसब्री से इन्तजार करता है। रमजान शुरू होते है तो हर रोजेदार की दिनचर्या बदल जाती है। बडे सवेरे उठना और अल्लाह को याद करने के साथ ही पांचो वक्त की नमाज रोजेदार को अल्लाह की इबादत का मौका दिलाती है। रमजान की शुरूआत भी चांद से ही होती है और रमजान पूरे होने पर ईद का जब चांद निकलता है तो सबके चेहरे पर खुशी छा जाती है। दरअसल रमजान के सकुशल बीतने की खुशी में ही अल्लाह को शुक्रिया अदा करने के लिए ही ईद उल फितर का त्यौहार मनाया जाता है। वही अल्लाह के नेक बन्दो की खिदमत का भी मुबारक मौका है ईद।ईद पर कोई भूखा न रहे ,पडौसी के घर में भी ईद की खुशिया मने और आपसी मोहब्बत व भाईचारे की नई
शुरूआत हो यही कौशिश हर किसी की रहती है।तभी तो ईद की सवेरे से ही ईद की खुशिया सब पर हावी हो जाती है। बडे सवेरे से घर में सेवईया बननी शुरू हो जाती है। एक माह तक रोजा रख चुके लोग नये नये कपडे पहनकर ईद की नमाज अदा करने के लिए ईदगाह जाते है। ईदगाह में नमाज के बाद एक दूसरे के गले मिलकर ईद की मुबारकबाद दी जाती है। बच्चे नये नये खिलौने खरीदते है। सेवईया और तरह तरह के
पकवान खाये जाते है।ईद पर भी गरीबो को दान देने ,उनकी सहायता करने की खास परम्परा है।ताकि हर किसी के चेहरे पर ईद की खुशिया बरकरार रहे। इस्लामी कलैण्डर के दसवें महिने की पहली तारीख को चांद दिखने व तीस रोजे निर्विधन खुदा की इबादत के साथ पूरे होने की
खुशी में ईद उल फितर मनाया जाता है। ईद उल फितर की शुरूआत जगं एबदर के बाद सन 624 ईसवी के पैगम्बर मौहम्मद साहब द्वारा ईद उल फितर मनाने से मनाने से हुई थी। रमजान साल का एक अनूठा महिना होता है। इस महिने में हर मुस्लमान जंहा ज्यादा से ज्यादा समय अल्लाह की रहमत में गुजारना चाहता है। वही वह स्वयं को सुधारने व खुदा के बन्दो के चेहरो पर रौनक लाने के लिए उनके हर गम में शरीक होता है। जो खुदा के बन्दे पैसो से मोहताज है, भूखे है ,लाचार है उनकी हर हाल में मदद कर उन्हे बराबरी पर लाने की कौशिश की जाती है। इस्लाम में हर शख्स को रोजाना ही शरीर और दिमाग से पाक साफ रहने की हिदायत है। लेकिन रमजान के महिने में हर दिन विशेष तौर पर पाक साफ रहने की बात कही गई है ताकि रोजेदार हर तरह के गुनाहो से दूर रहे।
आपसी भाईचारे से रहना सीखे। खुदा की इबादत करे। नेकी करे लेकिन ईद उल फितर की खुशी के मौके पर कैसे हो दिन की शुरूआत यह भी इस्लाम में बताया गया है । इस्लाम धर्म के विद्वान कुवँर जावेद इकबाल बताते है कि ईद उल फितर के दिन की शुरूआत फजर की नमाज के साथ होती है। रमजान में तीस दिनो तक रोजा रख चुके रोजेदारो एवं उनको भी जो बीमारी या फिर किसी अन्य वजह से रोजा नही रख पाए ,को मिस्वाक दातून करने के बाद गुसल नहाना करना चाहिए। फिर साफ कपडे पहनकर कपडो पर इतर की खुशबू के साथ कुछ खाकर ईदगाह जाना चाहिए। ध्यान रहे ईद की नमाज से पहले फितरा और जकात की जरूरी रस्म नही भूलनी चाहिए। यही वह रस्म है जो गरीब और मोहताज पडौसी के चेहरे पर सहायता की रौनक लाती है। इस्लाम मानता है कि मनुष्य में वासनाएं,इच्छाएं,और भावनाएं प्राकृतिक रूप से समाहित है इसी कारण उसके स्वभाव में तेजी,उत्तेजना और जोश होता है। जिसे जड से तो समाप्त नही किया जा सकता लेकिन नियन्त्रित जरूर किया जा सकता है। इस नियन्त्रण के लिए ही रमजान में रोजो की व्यवस्था की गई है। ताकि मनुष्य अल्लाह को याद करने के साथ साथ अपने अन्दर की बुराईयों को दूर करते हुए आत्म नियन्त्रण करना सीखे और एक अच्छे भले इंसान के रूप में अपने जीवन का यापन करे। वैसे तो इस्लाम में हर रोज पांच वक्त की नमाज पढने की हिदायत दी गई है। लेकिन रमजान के दिनो में चंूकि हर रोजेदार अल्लाह के करीब होता है इसलिए पांचो वक्त की नमाज पढना वह अपना समझता है। रोजा रखने से जहां पेट बिलकुल ठीक रहता है और शरीर का
शुद्धिकरण हो जाता है। वही पांचो वक्त की नमाज पढने से उसकी योगिक क्रियाएं भी हो जाती है। नमाज की शरीरिक स्थिति इस तरह की होती है कि सभी तरह के आसन और प्राणायाम अल्लाह की इबादत में पूरे हो जाते है। ईदगाह में ईद की नमाज अदा करते समय तकबीर पढे,अल्लाह हु अकबर अल्लाह हु अकबर लाईलाह इल्लाह अल्लाह हु अकबर बडा है अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लायक नही । सारी तारीफे अल्लाह के लिए है। ईदगाह की नमाज अदा करने के बाद एक दूसरे को ईद की बधाई देने व लेने में जो खुशी मिलती है उसको जरूर प्राप्त करना चाहिए।
ईद की बधाई में सिर्फ मुस्लमान ही नही हिन्दू,सिख और ईसाइ भी शरीक होते है। यह वह त्योहार है जो हमे इंसानियत की सीख देता है। जो
दूसरो की भलाई का जज्बा देता है और मुल्क की तरक्की व हिफाजत का जुनून देता है। ईद की खुशी रोजेदारो को तभी से मिलनी शुरू हो जाती है। जब रमजान में रोजेदार मुस्लमानो के साथ साथ दूसरे धर्मो से जुडे लोग भी रोजा इफतार की रस्म में शरीक होकर आपसी भाईचारे व एकता का पैगाम देते है। रोजा इफतार कार्यक्रमो का सिलसिला रमजान में लगातार चलता है। राजनीतिक पार्टियों से लेकर स्वयंसेवी
संस्थाएं भी रोजा इफतार के कार्यक्रम करके रोजेदारो की रोजा इफतारी कराकर शबाब कमाती है।लेकिन साथ ही रोजा इफतारी के राजनीतिक स्वरूप ले लेने से इसके मकसद के साथ खिलवाड भी होने लगा है।आज प्रधानमन्त्री से लेकर छोटे से छोटे राजनेता भी रोजा इफतारी का कार्यक्रम कराने लगे है। कुछ लोग इसका नाजायज रूप में राजनीतिक इस्तेमाल भी कर रहे है। जिससे इसकी पवित्रता प्रभावित होती है। इसलिए हमे केवल ओर केवल धार्मिक भावना के तहत ही रोजा इफतारी कराकर रोजेदारो की खिदमत करनी चाहिए और ईद पर भी उन्हे तहेदिल से गले लगाना चाहिए। तभी ईद का मजा दोगुना हो सकता हैऔर ईद से नई उम्मीदो,नईरोशनी व नये रिश्तो की शुरूआत हो सकती है।जिसके पीछे मात्र दिखावा कदापि न हो, यानि हर इंसान दिल से जश्न मनाये ईद का,यही अल्लाह का पैगाम भी है।
(लेखक आध्यात्मिक चिंतक व वरिष्ठ पत्रकार है)
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