मधेशियों के साथ भारत की नीति ‘प्रयोग करों और फेंको’ हैः दीक्षित
काठमांडू, १८ अप्रील । पत्रकार कनकमणि दीक्षित ने कहा है कि मधेशियों के साथ पड़ोसी देश भारत की नीति ‘प्रयोग करों और फेकों’ पर आधारित है । राष्ट्रीय मुक्ति क्रान्ति के संयोजक राजेन्द्र महतो द्वारा लिखित पुस्तक ‘अधुरा क्रान्ति’ विमोचन समारोह को सम्बोधन करते हुए उन्होंने ऐसा दावा किया है ।
मधेश आन्दोलन पर चर्चा करते हुए पत्रकार दीक्षित ने कहा– ‘नेपाल–भारत सम्बन्ध सरकार और सरकार बीच होते ही है । कोई भी सम्झौता सरकार के साथ होती है, किसी भी आन्दोलनकारी समूह के साथ नहीं । भारत अपनी स्वार्थ अनुसार आन्दोलनकारियों को प्रयोग करों और फेकों की नीति भी अख्तियार कर सकती है ।’ उनका मानना है कि भारत ने नेपाल के कई राजनीतिक पार्टी और नेताओं के साथ ऐसा ही किया है, जो पिछली बार मधेश के साथ भी हुआ है ।
कार्यक्रम को सम्बोधन करते हुए पत्रकार दीक्षित ने यह भी कहा है कि जहां मधेशी जनता के साथ अवहेलना होती है, वहां सामाजिक न्याय सम्भव नहीं है । उन्होंने आगे कहा– ‘मधेशी समुदाय आर्थिक और सामाजिक रुप में बहिष्कृत हैं, ऐसी परिस्थति में देश समृद्ध नहीं हो सकता ।’ उनका यह भी मानना है कि पश्चिम देशों की सहयोग मधेश में ना होने के कारण भी नेपाल में मधेश आन्दोलन सम्भव हुआ है । उन्होंने कहा कि डॉलर की सहयोग से कोई व्यक्ति भूलभुलैया में पड़ जाता है तो वहां आन्दोलन सम्भव नहीं है । उनका मानना है कि पहाडी क्षेत्र में जितने डॉलर आता है, मधेश में नहीं ।
पत्रकार दीक्षित ने कहा है कि मधेश और काठमांडू के बीच जो दूरी है, वह भविष्य में नेपाल के लिए खतरनाक साबित हो सकता है । दीक्षित ने दावा किया है कि वि.सं. २०७२ साल में जारी की गई संविधान के विरुद्ध तराई–मधेश में जो आन्दोलन हुआ, उसमें भारतीय सहयोग है । उन्होंने दावे के साथ कहा कि उस समय भारत ने नेपाल के साथ नाकेबंदी की है । उन्होंने यह भी कहा कि जब तक मधेशी पार्टी और नेता भारत की सहयोग बिना खूद के बल पर आन्दोलन नहीं कर पाते, तब तक मधेश की मुद्दा स्थापित होना मुश्कील है ।
