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कृषि प्रधान देश का खेत बना बंजर : अंशुकुमारी झा

 



agriculture in nepalअंशुकुमारी झा, हिमालिनी अंक अप्रैल 2024 । नेपाल विश्व में अपनी सुन्दरता के लिए प्रसिद्ध है । प्रकृति ने नेपाल को अद्भुत सुन्दरता प्रदान की है । हिमाल, पहाड़ और तराई तीनों प्रकार के क्षेत्र से परिपूर्ण है यह देश । ऊपर से कलकल बहती नदियाँ, हरा–भरा जंगल और मनोरम दृश्य, देखकर किसी का भी मन लुभा जाता है । तराई क्षेत्र को अन्न का भण्डार कहा जाता है जो सामान्य ज्ञान पुस्तक तक ही सीमित होने लगा है क्योंकि, खेती योग्य जमीन होते हुए भी खेती करने वाला कोई नहीं है ।
आज हमारे देश का खेत बाँझ पड़ा है । गाँव में वृद्धों के अलावा इक्का दुक्का ही युवक देखने को मिलते हैं । देश में रोजगार और अवसर नहीं मिलने से युवाओं का विदेश पलायन हो रहा है । कोई पढ़ने के लिए आस्ट्रेलिया, युरोप जा रहा है तो कम पढ़ा लिखा युवा पैसा कमाने के लिए खाड़ी देश जा रहा । गाँव का गाँव युवाओं से खाली हो गया है । स्वाभाविक है अगर गाँव में युवा नहीं होंगे तो गाँव की दशा बहुत ही चिन्तनीय होगी । सरकार तो रेमिटेंस में ही खुश है परन्तु गाँव दुखी है । वृद्ध वृद्धा किसी प्रकार से जीवन व्यतीत कर रहे हैं । अगर गाँव में कोई बीमार पड़ता है तो अस्पताल तक पहुँचाने वाला एक युवा नहीं मिलता है । अगर किसी की मृत्यु हो जाय तो लाश उठाने के लिए विदेश में रह रहे बेटा–बेटी का इन्तजार किया जाता है । सब यही कहते हैं, गाँव में किसका पेट भरेगा ? खेती करने से हम कितना कमा पायेंगे ? कम्पिटीशन का जमाना है, बच्चे गाँव में रहकर ढंग से नहीं पढ़ पायेंगे तो परिवार को शहर में रखना होगा । इस प्रकार के बहुत सारे प्रश्न गाँव पर लगाये जाते हैं । पर इसका जबाब सरकार के पास नहीं है । दुख की बात तो यह है कि विकास के बजट से प्रायः हर गाँव में सड़क, नाली, स्कूल, कालेज, स्वास्थ्य केन्द्र, पुलिस थाना इत्यादि सुविधा तो हो चुकी है परन्तु वहाँ काम करने वाला आदमी नहीं मिल रहा है । काम करने वाले का अभाव होने से अधिकांश खेती योग्य जमीन बंजर पड़ा है । सघन बस्ती भी खाली है । मिट्टी या ईंट का घर भी दीमक ने खोखला बना दिया है । गाँव आदमीविहीन हो गया है जो हमारे देश के लिए एक गम्भीर विषय है । अब इसके लिए सभी को सोचने की आवश्यकता है । आखिर ऐसी अवस्था कब तक रहेगी ?

अब देश को युवा के मामले में सम्भलने की जरूरत है । देश का विकास नहीं होने का कारण युवा है । जनशक्ति बिना देश का विकास असम्भव है । जिस देश में युवा पहुँचा है वहाँ की कृषि भी अच्छी है और भौतिक संरचनाएँ भी बन रही है । हमारे यहाँ सिर्फ समस्याएँ ही दिखाई जाती है, समाधान के तरफ नहीं बढा जाता है । अगर समाधान की खोज की जाये तो हम वैज्ञानिक कृषि के सम्बन्ध में जान पायेंगे । परम्परागत कृषि से कृषि में क्रान्ति नहीं ला सकते हैं । किसान का जीवनयापन सही से नहीं हो सकता है । इसलिए अब कृषि में क्रान्ति लाने के लिए सरकार के पास विभिन्न योजना आवश्यक है और युवाओं को कृषिजन्य उत्पादन से जोड़ना भी बहुत जरूरी है । कृषि अर्थतन्त्र का मेरुदण्ड माना जाता है । हमारे पास खेती योग्य जमीन होते हुए भी हम अन्न इत्यादि आयात करते हैं पर हम कृषि में निवेश नहीं करते । किसान को समय पर न बीज उपलब्ध कराया जाता है न ही उपयुक्त सिंचाई की व्यवस्था की जाती है जबकि जलस्रोत हमारे पास प्रचुर मात्रा में है । इससे स्पष्ट होता है कि हम कृषि में आत्म निर्भर नहीं हो पाए हैं । अगर हम खेतों को फिर से आबाद करना चाहेंगे तो हमें कृषि पर जोर देना होगा । अब हमें सिर्फ बहस ही नहीं योजना के तहत काम करना होगा । हम पूर्णरुपेण दैनिक उपभोग की वस्तु के लिए दूसरे, तीसरे देश पर आश्रित हो गए हैं ।

काम कोई भी हो साधारण नहीं होता है । हमें मेहनती होना चाहिए । कृषि काम से भी हम गुजारा चला सकते हैं । कृषि कार्य में लाज नहीं है । दूसरे देश में जाकर गन्दगी उठाने से लाख गुणा बेहतर है अपने देश में खेती पाती करना पर अधिकांश नेपाली की आदत बिगड़ गई है, उन्हें लगता है कि विदेश जाना ही सही रहेगा । अपने देश में रहकर काम करना ठीक नहीं लगता । विदेश जाना आजकल फैशन भी हो गया है । परिणामस्वरूप खाड़ी देशों से बहुत सारे नेपालियों की लाश भी बक्से में बन्द करके आती है जो दृश्य बहुत ही दर्दनाक होता है, उसके परिवार के लिए, उसके समाज के लिए और देश के लिए भी । चाहे अवस्था जैसी भी हो हमें काम करने की आदत डालनी चाहिए । सडक में बैठा एक ठेला वाला भी ठीक ठाक ही कमा लेता है । हम आकांक्षा को जितना बढायेंगे हमें तकलीफ भी उतनी ही होगी । एक जमाना था जब कृषि कार्य को ही उत्तम माना जाता था । घर में दाल चावल, फल फूल, सब्जी, दूध दही की कोई कमी नहीं होती थी । घर के सारे सदस्य स्वस्थ होते थे । भोजन में किसी भी प्रकार के केमिकल की मिलावट नहीं होती थी । परन्तु अभी का समय ठीक विपरीत हो गया है । हम भोजन भी अस्वस्थ्यकर ही करते हैं और शारीरिक रूप से भी अस्वस्थ्य ही होते हैं । हम अपनी कमाई का अधिकांश पैसा डाक्टर को ही देते हैं तो हम उन्नति की कल्पना कैसे कर सकते हैं ?

हम छोटे से छोटे कृषिजन्य वस्तु के लिए आत्मनिर्भर नहीं हैं । हमें हरेक वर्ष अरबों मूल्य की कृषि सामग्री आयात करना पड़ रहा है । लहसून, प्याज, आलू, दलहन, नींबू, मिर्ची, टमाटर, धनियाँ इत्यादि कृषिजन्य उत्पादन के लिए भी हम दूसरे देश के तरफ देखते रहते हैं कि कब ये सामग्री भेज देगा । दुख की बात है, हम इन छोटी वस्तु का उत्पादन भी नहीं कर पाते हैं । जबकि हमारे देश की मिट्टी इन सारी चीजों को उगाने के लिए उपयुक्त है । नेपाली भूमि गाजा खेती के लिए भी बहुत ही उपयुक्त है पर प्रशासन ने उक्त खेती पर रोक लगा दिया है । यह सोचकर रोक लगाया है कि गाजा खेती करने से हमारे देश के युवा नशे में धुत रहेंगे पर नहीं उगाने से भी तो लोग नशा कर ही रहे हैं । सरकार गाजा खेती के लिए कुछ योजना बनाकर गाजा उत्पादन और निर्यात से देश की स्थिति सुदृढ कर सकती है । सरकार कृषि के अत्यावश्यक वस्तु में आत्मनिर्भर बनने की योजना नहीं लाई ऐसी बात नहीं है पर उक्त योजना कार्यान्वयन नहीं हो पाई । हम बीज और खाद में ही आत्मनिर्भर नहीं है तो कृषि में आत्मनिर्भर कैसे हो सकते हैं ? उदाहरणस्वरूप चीनी में आत्मनिर्भर होने के लिए गन्ना में आत्मनिर्भर होना पड़ेगा पर गन्ना किसान की व्यथा तो सबको ज्ञात ही है ।

समग्र में हम यह कहना चाहेंगे कि देश के कुल क्षेत्रफल में से १५ प्रतिशत हिमाल, १७ प्रतिशत तराई और ६८ प्रतिशत भाग पहाड़ी क्षेत्र का है । जिस क्षेत्र की मिट्टी जिस प्रकार की है उस क्षेत्र में जो उत्पादन होगा उसी पर जोर देना आवश्यक है । हमारे यहाँ तो तीनों प्रकार की हवा, पानी और मिट्टी है तो हम तो सच में कृषि कार्य के लिए सम्पन्न हैं । पूर्वी भाग झापा और इलाम के तरफ चाय की अच्छी खेती होती है इसी प्रकार पहाड़ी क्षेत्र में संतरे, नींबू की खेती होती है यहाँ तक कि हिमाल की तरफ सेब फलता है । तराई क्षेत्र में आम, आलू, धान इत्यादि फलता है । सरकार अगर इन सारी चीजों के उत्पादन तथा उचित मूल्य पर बजारीकरण करने का प्रण लें तो किसान को कृषि प्रति जागरुकता अवश्य होगी और एक भी खेत बाँझ नहीं रहेगा ।

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