गरिमा को खोता नेपाल ! : अजय कुमार झा
अजय कुमार झा, हिमालिनी अंक जून । नेपाली राजनीतिक विश्लेषकों ने इस ‘वास्तविकता’ के बारे में बात करना शुरू कर दिया है कि संसद सदस्यों ने अपनी गरिमा, सभ्यता, संस्कृति और मानक को खो दिया है । आमूल–चूल परिवर्तन के प्रणेता या समर्थक होने का दावा करने वालों के अलोकतांत्रिक, अवैध और अराजक सत्ता हितों के कारण देश को पतन की दिशा में घसीटा जा रहा है । ऐसा लगता है जैसे इन्हें अपनी निजी जिंदगी और व्यक्तिगत लाभ के अलावा कुछ दिखाई ही नहीं देता है । आश्चर्य तो तब होता है जब ये लोग व्यक्तिगत लाभ के लिए पार्टी को तोड़ फोड़ कर देते हैं । और यह कुसंस्कार केंद्रीय नेताओं में कूट–कूट कर भरा हुआ है ।
संघीय सरकार को संचालित कर रहे नेताओं तथा पार्टी अध्यक्षों के अंतरमन में किसी भी सिद्धांत के प्रति कोई समझदारी नहीं है । हर हाल में देश को लूटना, राष्ट्रीय प्रणाली को कब्जा में लेकर मौज करना, विदेशियों को लुभाकर डालर कमाना । राजनेताओं के लिए बस यही धंधा सर्वोपरि हो गया है । देश की गरिमा, महिमा, संस्कृति और सभ्यता से इन्हें कुछ लेना देना नहीं है । आम जन दिन प्रतिदिन आर्थिक समस्याओं से जूझने के कारण उनमें राजनीतिक षडयंत्रों को समझने तथा उसका प्रतिकार करने के लिए ऊर्जा शेष नहीं है । यह भी इनकी ही चाल है ।
आज गर्भ से ही बच्चा विदेश सेटल होने के लिए चिंतन आरंभ कर देता है । प्रत्येक सभ्य और सुसंस्कृत परिवार के सदस्यों को नेपाल में सुरक्षित भविष्य और समृद्ध जीवन के प्रति अनंत शंकाओं ने घर बना लिया है । राजनेता और उसके कार्यकर्ताओं के व्यवहार और सोच के कारण सभ्य समाज खुद को अनंत अंधकार में डूबा हुआ महसूस करने लगे हैं । असुरक्षित भविष्य, वंश विनाश के भीषण त्रास, षडयंत्रयुक्त परंतु सूक्ष्म और घातक धार्मिक आतंक, युवाओं में उद्दंडता, मदहोशी, नैरास्यता आदि मानव सृजित अनंत चक्रव्यूहों को जानते हुए भी विवश होकर मूक दर्शक बनने को बाध्य होना; किसी भी चेतनशील प्राणी के लिए मृत्यु तुल्य पीड़ादायक होता है ।
महाभारत युद्ध में सारे भरत वंशी मारे जाएंगे, ‘यह ज्ञान वेद व्यास, विदुर, पितामह और कृष्ण इन चारों को था ।’ लेकिन अयोग्य, उद्दंड और क्षुद्र बुद्धि दुर्योधन तथा महा षडयंत्रकारी शकुनी के कारण सारे के सारे योद्धा मूक दर्शक साबित हुए । आज हम नेपाली जनता उसी मोड़ पर आकर रुक गए हैं । हमारी जीवन की गाड़ी सत्ता समीकरण और विदेशियों के द्वारा रचे वैश्विक दलदल में धंसती जा रही है । दुख की बात तो यह है कि जो हमें समूल नष्ट करने के लिए दलदल में धकेल रहे हैं, नागफास में फसकर डस रहे है, हम उसी से मार्ग निर्देशन भी लेने को मजबूर हैं । उसी के इशारे पर बड़े गौरव और शान के साथ आगे की कदम रखने को बाध्य हैं । यह है हमारी राजनीतिक संस्कृति और सोच का सामूहिक स्खलन ।
राजनीति जब मूढ़ो के हाथों का खिलौना बन जाता है, तब मानवीय जीवन और राष्ट्रीय अस्तित्व विदेशियों के हाथों की कठपुतली बनकर रह जाता है । आज देश की राजनीति या कहें सर्वोत्तम अंग इसी देश के कचरा बुद्धि के हाथों का कठपुतली बना हुआ है । जो मेधावी जन हैं वे नौकरी के लिए देश विदेश पलायन करने को मजबूर हैं । उपरोक्त कचरा बुद्धिवालों ने इस देश को इतनी गंदगी से भर दिया है कि सभ्य समाज चाहकर भी इन गंदी नाली में सांस नहीं ले सकते । जिस प्रकार सूअरों के साथ गायों को नहीं रखा जा सकता; ठीक उसी प्रकार मानसिक विचलन, वैचारिक पतन, व्यवहारिक क्षुद्रता, देश बेचुवा और गुलामों के साथ एक स्वतंत्र विचार धारा के लोग, एक राष्ट्रभक्त संस्कारित जन, प्राणी मात्र के कल्याण चाहनेवाले, दूरद्रष्टा तथा विचारक लोग उनके साथ नहीं जी सकते । सर्वाधिक संभावना यह रहती है कि क्षुद्रों की क्षुद्रता के कारण विशाल हृदय के लोग पलायन होने को मजबूर हो जाते हैं । नेपाल से मेधा का पलायन इसी बात का संकेत है । नेपाल से ऊर्जावान युवा पीढ़ी का पलायन, मानव सृजित राष्ट्रीय अंधकार और संभावित दुर्घटना का संकेत है ।
सरकार का परिवर्तन करना कोई सामान्य घटना नहीं है । इस पुनीत कार्य में विश्व के अनेकों शक्तियों को शह लगाने का अवसर मिलता है, साथ ही राजनीति कर्मियों को राष्ट्रीय स्वाभिमान को बिक्री करने का सुनहरा अवसर भी प्राप्त हो जाता है । यहीं से राष्ट्रीय राजनीति में धूर्त विदेशी शकुनियों और दुष्ट मंथराओं को राजनीतिक संगठन, पार्टी और नेतृत्वों के बागडोर को नियंत्रित करने का मौका भी मिल जाता है । “देश की आर्थिक स्थिति दयनीय है;’ यह आम जनता को सुविधा उपलब्ध कराना हो तब नेताओं के द्वारा उच्चारित किया जाता है, परंतु सरकार गिराने और बनाने में सांसद खरीद बिक्री में पैसों का पिटारा कहां से उपलब्ध होता है इस बात से वास्ता नहीं है । नहीं इसका हिसाब मांगना है न इसके लिए न्यायालय जाना है । बस थोड़ी सी आलोचना करके बुद्ध की तरह मौन व्रत धारण कर लेना है ।
हमें सावधान रहना चाहिए इन धूर्त और क्रूर राजनीति कर्मियों से । ये लोग धीरे–धीरे आम जनता के लिए भौतिक और आर्थिक समस्याओं का जाल बिछाएंगे और इक्का दुक्का समाधान देते हुए दिन प्रति दिन जनता को कमजोर करने का प्रयास करते रहेंगे । जिससे जनता नेताओं के चरणों में, नेतागण पार्टी प्रमुख के चरणों में, पार्टी प्रमुख सरकार के चरणों में और सरकार विदेशी आकाओं के चरणों में शरणागत होकर मौज मस्ती कर सकें । इस संभावित महागुलामी को समझने के लिए नेपाली आम नागरिक को लोहे की चना चबाना होगा । जो कि संभवतः असंभव है ।
नेपाल के सभी राजनीतिक व्यक्ति और सत्ताधारियों का एक ही आदर्श है; वह है– उग्र राष्ट्रवाद के नाम पर आमजन और देश के भविष्य को गर्त में डालते हुए भी व्यक्तिगत विकास और पारिवारिक उन्नति करना । धन और पद के आगे धर्म, संस्कृति और सभ्यता तक को बेचने वालों से सुरक्षित भविष्य का कल्पना करना मूढ़ता का ही प्रतीक है । आज, क्या एक भी नेपाली नागरिक अपनेआप को विश्व के किसी भी देश में गौरव के साथ माओवादी के नामपर सिर उठा के जीने का अनुभव कर पा रहे हैं ? नेपाल के किसी राजनीतिक विचारक के आदर्श को विश्व पटल पर स्थापित होने की गरिमा से मंडित होने का सौभाग्य मिल पाया है ? इस विश्व मंच में यदि आज नेपाल को जो कुछ गरिमा प्राप्त है वह राजर्षि जनक और सिद्धार्थ गौतम बुद्ध के कारण है, जिसे नेपाल के तथाकथित माओवादी, मार्क्सवादी, समाजवादी और लेनिनवादियों ने इसाइयों के हाथो बेच डाला है । धर्म निरपेक्षता के षडयंत्र तहत ९०% नेपालियो के आत्मा से छल किया गया है । देश के सर्वोच्च व्यक्तियों द्वारा होली वाइन के नामपर आत्मपतन रस पीना बुद्ध के अष्टांगिक मार्ग और सम्यक आहार तथा सम्यकता रूपी नेपाली संस्कार की धज्जी उड़ाना है । हिन्दू संस्कृति के शिखर अस्तित्व के रूप मे चीर परिचित पशुपति नाथ, स्वर्गद्वारी, जानकी मंदिर, बराह क्षेत्र को नजरअंदाज करना संस्कारगत पतन का द्योतक है । क्या संस्कार है हमारे नेतृत्व वर्ग में कि जिसके कारण आज हमें विश्व में प्रतिष्ठा और पहचान मिल पाए ? वास्तव में हम मूढ़ता रूपी धर्म निरपेक्षता के नामपर योजनाबद्ध तरीके से सामूहिक रूप से अपनी ही जड़ो को उखाड़ने पर तुले हैं, और खुद को आधुनिक समझ गौरवान्वित समझ रहे हैं । क्या हम इतने दीन हीन और बुद्धू हो गए हैं कि जिसके निर्देश पर क्षणिक लोभ में पÞmस कर हम अपनी धर्म, संस्कृति और सभ्यता को लात मार रहे हैं, वहीं, वो अपनी धर्म, संस्कृति और सभ्यता का पाँव हमारे यहाँ पसार रहा है, और हमें बोध तक नहीं हो रहा ! जनसाधारण इस बात से वाकिपÞm होते हुए भी खुद को अपने ही चक्रव्यूह में पÞmसा हुआ और मजबूर अनुभव कर रहा है । लोग देख रहे हैं, कि सबकुछ जनता के नाम पर ही किया जा रहा है; लेकिन उन्हें बोलने तक का अधिकार नहीं है । यहाँ के अधिकांश प्रौढ़ नागरिक भोलेभाले हैं और युवावर्ग बेहोश है । ये धूर्त राजनीति कर्मी अपनी तात्कालिक लाभ और सत्ता समरक्षण के लिए इन्हें बड़ी आसानी से अपनी चक्रव्यूह में फसाकर युवाओं के द्वारा ही युवाओं के भविष्य को मटियामेट कराते आ रहे हैं । दुर्भाग्य तो तब लगता है, जब देश के भविष्य युवा पीढी इन्हें अपना आदर्श और संरक्षक मानकर इनके लिए मरने मारने को उतारू हो जाते हैं । तथाकथित बिकाऊ नेपाली बुद्धिजीवी वर्ग क्षणिक लाभ के लिए अपनी ही युवाओं को गुमराह कर सामूहिक आत्महत्या के लिए अपनी कलम को गतिमान कर तात्कालिक वाहवाही लूटने में अपनी काबीलियत समझते हैं । कबीर दास ने कहा है “बुरे बंश कबीर के उपजे पूत कमाल ।”
अतः देश के एक भी आम नागरिक, जो किसी भी पार्टी और संस्था के सदस्य नहीं है; उनसे गणतंत्र का स्वाद पूछा जाय, तब जा के पता चलेगा कि लोकतंत्र में लोक का हाल क्या है ! इसके बावजूद निराशा की कोई बात नहीं है । हम बदल सकते हैं; हम बदल रहे हैं; इसका प्रमाण काठमांडू के बुद्धिमान देशभक्त नागरिकों ने बालेन को अपना समर्थन देकर दे दिया है । इस से एक ही तीर से दो काम सहज हो गया है । पहला मधेस और पहाड़ के विशुद्ध नेपाली जनता के बीच की वह दरार जो राजा महेंद्र से लेकर गणतंत्रवादी नेताओं के द्वारा योजनाबद्ध तरीके से प्रायोजित था, उसका खात्मा होने लगा है । दूसरा नेपाल के अस्तित्व संरक्षण एवं संवर्धन के लिए गणतंत्र नहीं गणतंत्र के गुणवत्ता और आवश्यकता की पहचान । हमें अब इसी पहचान को पोषित करते हुए आनेवाले समय में पूरी जिम्मेदारियों के साथ सक्रिय भूमिका निर्वाह करना होगा । समाज में दबे छुपे अच्छे व्यक्तियों को सम्मान के साथ राजनीति में सक्रिय भूमिका निर्वाह करने के लिए उत्साहित करना होगा । जैसे चिकित्सक के हाथों का छुरा भी प्राणदायी सिद्ध होता है वैसे ही जब ईमानदार के हाथों में हम अपना बागडोर सौपेंगे तो भविष्य सुंदर होगा ही ।
प्रत्येक समाज में कुछ लोग ईमानदार होते ही हैं । ईमानदारी का भी एक जुनून होता है । कुछ लोग मिल जाएंगे जो भ्रष्टाचारी के बदले कष्ट झेलना पसंद करेंगे लेकिन बेइमानी पर नहीं उतरेंगे । क्या ऐसे लोग आप के समाज में नहीं हैं ? ध्यान रहे ! संसार में सत्य है, ईमानदार है; इसी लिए असत्य और बेईमान भी जिंदा है । एक बस ड्राईवर पर हम विश्वास करते हैं; तब जाकर पूरे परिवार का जीवन उसके हाथों में सौंप देते हैं । परंतु, किसी पागल अथवा नसेड़ी पर हम इतना भरोसा नहीं कर सकतें । अतः हमें इतना तो विश्वास है, कि समाज के सब लोग खरब ही नहीं है । बहुत बड़े–बड़े समाजसेवी, त्यागी, महात्मा, योगी आज भी अपनी पूरी ऊर्जा के साथ हमारे बीच उपस्थित हैं । उन्हें पहचानने के लिए हमें ही एक्टिव होना होगा । क्या योगी आदित्य नाथ इसका सर्वोत्तम उदाहरण नहीं हैं ? जाति, पार्टी, क्षेत्र और सिद्धांत विशेष के आधार पर हम विश्वास करने लायक अच्छे व्यक्तियों को नहीं खोज पाएंगे । ऐसे लोगों का अपना अलग सामाजिक और राजनीति कार्नर होता है । ऐसे लोग अपनी सत्ता बचाने के लिए किसी भी हद तक जाने में नहीं हिचकते । इस तरह के षडयंत्रों से ही राजनीति भरी पड़ी है । महाभारत, प्रथम और दूसरा विश्वयुद्ध, भारत पाक बटवारा, सीरिया, इराक, अफगानिस्तान और इजराइल हमास युद्ध तथा जापान का एटम कांड और रूस यूक्रेन युद्ध; मानवता के इतिहास में कलंक का धब्बा ही है । ऐसा कलंक तब लगता है जब हम पागल, उद्दंड, अति लोभी, अति लालची, स्वार्थी, पतित तथा गुंडों के हाथों में राष्ट्रीय शक्ति रूपी सत्ता सौंप देते हैं । क्या कमी थी कृष्ण प्रसाद भट्टराई में ? किसके कहने पर काठमांडू वासी ने उन्हें हराया था ? क्या उसका दुष्परिणाम आज नेपाली जनता, राजनीति और अर्थव्यवस्था को नहीं झेलना पड़ रहा है ? जनता के प्रिय राजा वीरेंद्र के परिवार का सामूहिक हत्या क्या नेपाली के सहयोग बिना संभव था ? क्या उस समय की सरकार से हमने यह प्रश्न किया ? हमारे ऊपर वैदेशिक कर्ज बढ़ता जा रहा है । गर्भ में पल रहे बच्चे लाखों के कर्ज में डूबे हुए हैं; इसका खयाल है हमें ? कल ऋण न चुका सकने पर हमें अपनी ही देश में गुलाम की भांति जीना पर सकता है; कभी सोचा हमने ? नहीं न ? अरे, ऊपर से ऋण का भार दिन प्रतिदिन इन नेताओं को पालने में बढ़ता जा रहा है । कौन सोचेगा इस पर ? आप ही बताइए ?
उपरोक्त संभावित दुर्घटनाओं से सुरक्षित रहने का उपाय यदि हम इन नेताओं से अपेक्षा कर रहे हैं तो हम भयंकर भूल कर रहें हैं । हमें पता होना चाहिए कि इन समस्याओं से मुक्ति के लिए सर्वप्रथम भ्रष्टाचार, कला धन, धर्मांतरण, जनसंख्या नियंत्रण, घूसखोर और घुसपैठिए को नियंत्रित करना होगा । इसके लिए संविधान में वृहद संशोधन की आवश्यकता होगी, जो आपके मूढ़मती, बिकाऊ, भ्रष्ट नेताओं के सोच और क्षमता से बहुत पड़े की बात है । क्योंकि इस वैश्विक षडयंत्र के वे भी प्यादे के रूप में स्थित हैं । साथ ही देश में एक ही शिक्षा प्रणाली, पाठ्यक्रम, टैक्स, बैंक एकाउंट, न्यायिक कोड, प्रशासनिक कोड, संचार एकाउंट आदि सुरक्षा से संबंधित प्रत्येक आवश्यक पहलुओं पर गंभीरता से परंतु वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाकर कड़ा कानूनी प्रावधान व्यवस्थित करना होगा । भाईचारा, विश्वबंधुत्व, वसुधैव कुटुंबकम, सर्वधर्म समभाव और नारी तू नारायणी के मूल आधार पर ही शिक्षा के लिए एक ही पाठ्यक्रम तयार किया जाए और उसे पूरे देश में गुरुकुल अथवा मदरसा, सरकारी अथवा कांभेंट सभी विद्यालयों में पढ़ाने के लिए मजबूर किया जाए । जबतक युवाओं को देशप्रेम, मानव कल्याण तथा प्रकृति प्रेम के शिक्षा से संस्कारित नहीं किया जाएगा तब तक किसी भी देश और समाज में शांति, स्थिरता और समृद्धि संभव नहीं है । अतः इसके लिए भले ही सरकार आवश्यक है; लेकिन आम नागरिक को चाहिए कि अपनी संस्कृति, सुरक्षा और राष्ट्रीयता के संरक्षण तथा संवर्धन के पक्ष में खड़ा रहने के लिए सरकार को कड़ा निर्देशन दे । साथ ही सामाजिक सद्भाव को व्यवस्थित और मर्यादित बनाने के लिए सदैव सक्रिय रहें ।