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नेपाल में निष्प्राण पतंजलि : प्रमोद कुमार मिश्र



प्रमोद कुमार मिश्र, हिमालिनी अंक जुलाई 2024 । भारतीय समाचार चैनलों पर चलने वाला बॉलीवुड एक्टर टाइगर श्रॉफ का विज्ञापन जिसमें वह पतंजलि के उत्पाद दंत कांति का प्रचार करते हैं, के बीच अपनी छवि को चमकाने के लिए बाबा रामदेव व आचार्य बालकृष्ण भी जरूर दिखते हैं लेकिन आचार्य बालकृष्ण की छवि का महत्वपूर्ण आयाम उनकी योग्यता से जुड़े प्रमाण–पत्र और यहां तक कि उनका जन्म प्रमाण–पत्र ही विवादास्पद है ।
कहना गैरजरूरी है कि २०११ के दौरान सीबीआई ने बालकृष्ण के खिलाफ दो मामले दर्ज किये थे । इनमें एक मामला जहां धोखाधड़ी व साजिश रचकर जाली प्रमाण–पत्र हासिल करने का है, तो दूसरा मामला जाली दस्तावेज समर्पित कर पासपोर्ट प्राप्त करने का है, गौरतलब है कि इन दोनों मामलों में सीबीआई की ओर से आरोप–पत्र दाखिल कर दिए गए हैं ।

उक्त मामले की जांच के क्रम में योगेश सिंह के नेतृत्व में दो सदस्यीय सीबीआई अधिकारियों की टीम जब वाराणसी स्थित संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय बालकृष्ण के नाम से खुर्जा स्थित राधाकृष्ण महाविद्यालय की ओर से जारी पूर्व मध्यमा (उच्च विद्यालय) व शास्त्री (स्नातक) की डिग्री से जुड़े प्रमाण–पत्र लेकर पहुंची तो विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति बी.पी । मिश्र ने बताया कि प्रमाण–पत्रों में दर्शाया रोल नंबर बालकृष्ण के नहीं बल्कि किसी और के हैं । कुलपति ने यहां तक कहा कि विश्वविद्यालय ने बालकृष्ण नामक किसी भी व्यक्ति का प्रमाण–पत्र कभी जारी ही नहीं किया है । बालकृष्ण की ओर से पासपोर्ट जारी हासिल करने के वास्ते समर्पित प्रमाण–पत्र के मुताबिक ये दोनों प्रमाण–पत्र क्रमशः १९९१ व १९९६ में जारी किए गए थे ।

हालांकि बालकृष्ण की सिर्फ योग्यता प्रमाण–पत्र ही विवादास्पद नहीं है, उनका जन्म प्रमाण–पत्र भी विवादास्पद है । एक बार उत्तराखंड आईबी (एक जांच एजेंसी) ने उत्तर प्रदेश के बरेली जिले में स्थित पासपोर्ट कार्यालय से जारी पासपोर्ट दस्तावेज की जांच की तो जानकारी मिली कि बालकृष्ण के पास दो जन्म प्रमाण–पत्र हैं जो दो विभिन्न राज्यों की ओर से जारी किए गए हैं । पासपोर्ट के लिए समर्पित पहले प्रमाण–पत्र में बालकृष्ण के पिता को उत्तराखंड के हरिद्वार का निवासी बताया गया है जबकि पासपोर्ट नवीनीकरण के लिए समर्पित जन्म प्रमाण–पत्र में बालकृष्ण के पिता को नेपाल का निवासी बताया गया है ।

जब पतंजलि के कर्ताधर्ता के जन्म को लेकर इतने विवाद व्याप्त हैं तो फिर पड़ोसी देश नेपाल में पतंजलि के बिजनेस के सवाल पर तो कहने में कोई गुरेज नहीं कि यहां इसके हाल खस्ताहाल हैं । २०२२ के दौरान नेपाल के औषधि नियमन प्राधिकार ने १६ भारतीय औषधि निर्माता कंपनियों के उत्पाद को यह कहते हुए प्रतिबंधित कर दिया था कि नेपाल में दवाओं का नियमन करने वाली एजेंसी औषधि प्रशासन ने अपने निरीक्षकों को भारत भेजकर यह पता लगाने का प्रयास किया था कि इन कंपनियों के पास औषधि निर्माण के लिए आधारभूत संरचना उपलब्ध हैं या नहीं । हालांकि इस जांच के दौरान निरीक्षकों ने पाया कि कंपनियों के पास इसका घोर अभाव है और नियामक ने इन कंपनियों की दवाओँ पर प्रतिबंध लगा दिया और जानकारी के मुताबिक यह प्रतिबंध अभी तक जारी है । उल्लेखनीय है कि प्रतिबंधित कंपनियों की सूची में दिव्य फार्मेसी का नाम भी शामिल है जो पतंजलि की एक सहायक कंपनी है ।

कहना गैरजÞरूरी है कि नेपाल में पतंजलि का व्यवसाय जोर शोर से चल रहा है लेकिन अगर पतंजलि की जीवन रक्षक दवाइयां ही नेपाल में प्रतिबंधित हो रही हैं तो इसके अन्य उत्पादों पर भी देर सवेर अंगुली उठेंगे ही ।
हालांकि पतंजलि की व्यथा गाथा यहीं खत्म नहीं होती हाल ही में उत्तराखंड सरकार ने पतंजलि की सहायक कंपनी दिव्य फार्मेसी की ज्ञद्ध उत्पादों के लाइसेंस को निलंबित कर दिया है था । इन उत्पादों की सूची में स्वसारी गोल्ड, स्वसारी वटी, ब्रॉनचों, स्वसारी प्रवाही, स्वसारी अवलेहा, मुक्तवटी एक्स्ट्रा पावर, लिपिडोम, बीपी ग्रिट, मधुग्रीट, मधुनाशनी वटी एक्स्ट्रा पावर, लिवामृत एडवांस, लिवोग्रीट, आय ग्रिट गोल्ड, पतंजलि दृष्टि आय ड्राप आदि शामिल हैं ।

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भारतीय उच्चतम न्यायालय ने अवमानना से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान पतंजलि से कहा था कि ज्ञद्ध मई तक उक्त उत्पादों की बिक्री दुकानों में रोक दी जाए ।
पिछले ७ मई को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश हिमा कोहली और अहसनुद्दीन अमानुल्लाह की खंडपीठ ने पतंजलि पर बरसते हुए कहा कि कंपनी के भ्रामक विज्ञापन कई ऑनलाइन प्लेटफार्मों पर चलाए जा रहे हैं जबकि विज्ञापित उत्पादों के लाईसेंस को ही उत्तरखंड सरकार ने निलंबित कर दिया है । सरकार की ओर से कहा गया है कि इन दवाओं के बारे में विज्ञापन देना या बेचना ड्रग्स एवं मैजिक रिमेडी एक्ट का उल्लंघन है ।
उच्चतम न्यायालय का यह आदेश २०२२ में आवेदित उस रिट आवेदन की कड़ी है जिसे आईएमए (इंडियन मेडिकल एसोसिएशन) के तत्कालीन उपाध्यक्ष जयेश लेले ने उच्चतम न्यायालय के सामने यह कहते हुए रखा था कि पतंजलि खासकर कोविड के दौरान एलोपैथी मेडिसीन व्यवस्था को नीचा दिखाते हुए भ्रामक विज्ञापन जारी कर रहा है कि इसके पास कई तरह की बिमारियों से मुक्ति दिलाने की दवा उपलब्ध है ।

 

फिर २१ नवंबर २०२३ को उच्चतम न्यायालय के एक अन्य खंडपीठ ने पतंजलि के आश्वासन को अपने रिकार्ड में दर्ज किया । इसमें कहा गया कि कंपनी अपने भ्रामक विज्ञापनों को अब नहीं जारी करेगी । लेकिन अगले दिन २२ नवंबर को पतंजलि के कर्ताधर्ता बाबा रामदेव ने एक प्रेस वार्ता आयोजित कर यह कहा कि उन्होंने अपने उत्पादों के बारे में कोई भ्रामक बात नहीं कही है । प्रेस वार्ता के दौरान उन्होंने दावा किया कि उनके पास टाइप–१ डायबिटीज, अस्थ्मा, थायरॉयड व ब्लडप्रेशर आदि बिमारियों का अनुसंधान आधारित इलाज उपलब्ध है ।

बाबा रामदेव ने कहा था, “हम उच्चतम न्यायालय, देश के कानून व संविधान का सम्मान करते हैं लेकिन हम कोई भ्रामक प्रचार नहीं कर रहे । उन्होंने इस वार्ता के दौरान आधुनिक दवाओं की व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह लगाते हुए कहा कि इसके पोषक उन पर आरोप लगाते हैं और उन्हें बदनाम करते हैं” । फिर दिसंबर २०२३ व जनवरी २०२४ पतंजलि ने फिर अपने पूर्व के कथित भ्रामक विज्ञापनों को जारी करना शुरू कर दिया ।
इसी कड़ी में उच्चतम न्यायालय ने पतंजलि को यह कहते हुए नोटिस जारी कर दिया कि क्यों नहीं उनके खिलाफ अवमानना की कार्रवाई शुरू की जाए । उच्चतम न्यायालय के मौजूदा खंडपीठ ने इस साल २७ फरवरी से इस मामले की सुनवाई को आरंभ किया था ।

प्रमोद कुमार मिश्र



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