इतिहास न बन जाये रोटी-बेटी का संबन्ध
कञ्चना झा:सच्चाई जो भी हो, लेकिन एक मुहावरा सा बन गया है- नेपाल और भारत बीच रोटी और बेटी का संबन्ध है । नेता चाहे नेपाल के हांे या फिर पडÞोसी मुल्क भारत के, दोनो मुल्क के नेताओं को अगर नेपाल भारत संबन्ध पर दो शब्द बोलना पडेÞ तो, भाषण ही इसी मुहावरे से शुरु होता है । ऐसी बात नहीं कि इस मुहावरा में सच्चाई नहीं । बात त्रेता युग की करें तो अयोध्या के राजकुमार भगवान श्रीरामचन्द्र जी का विवाह जनकनन्दनी सीता से हुआ था । यह क्रम अभी भी जारी है । नेपाल के सत्ता में रहे शाहवंश हो या संभ्रान्त कहलाने वाले राणा, भारत के साथ ये लोग पारिवारिक रूप से जुडÞे हैं । और खासकर नेपाल के दक्षिणवर्ती मधेश के जिले की बात की जाय, तो गाँव हो या शहर हर घर में या तो बहु नहीं तो जमाई पडÞोसी मुल्क के ही हैं । एक बार फिर विवाह का मौसम शुरु हो गया है और न सिर्फलडÞके लडÞकियाँ वरन उनके अभिभावक भी दूसरे मुल्क खास कर भारत में रिश्ता नहीं जोडÞना चाहते । दर्ुभाग्य ही कहना चाहिए रोटीबेटी के इस मुहावरे पर धीरे-धीरे ग्रहण लगता जा रहा है ।
नेपाल और भारत दोनो मुल्क में हिन्दू, मुस्लिम, बौद्ध धर्म की बाहुल्यता है और यही कारण है कि दोनो देश में समान भाषा, संस्कृति और परम्परा पायी जाती है । यही समानता उन्हंे न केवल नजदीक लाती है बल्कि उन्हे पारिवारिक रिश्ते में भी जोडÞती है । सीमापार पारिवारिक संबन्ध दो देश के रिश्ते को सुमधुर और सुदृढÞ बनाने में बहुत महत्वपर्ूण्ा भूमिका निर्वाह कर रहा है । लेकिन कुछ वर्षों से लोग अन्तर्देशिय संबन्ध खास कर नेपाल और भारत बीच पारिवारिक संबन्ध बनाने में कतराने लगे है । जिसका प्रमुख कारण है दोनों देश के जनता बीच बढÞती असमझदारी । नेपाल के दक्षिणवर्ती जिला के अधिकांश लोग जो किसी जमाने मे पडÞोसी मुल्क में वैवाहिक संबन्ध जोडÞना चाहते थे आज मुकर रहे हैं । अचानक से ये बदलाव कैसे आया – क्यों उन्हें लगता है कि रिश्तों के नाम पर भारत उनसे धर्ूतबाजी कर रहा है ।
दरअसल नेपाल का दक्षिणवर्ती जिला खाद्यान्न का भण्डार है जो लगभग पूरे देश को अन्न आपर्ूर्ति करता है । शिक्षा की बात करें तो पूरे देश में शिक्षक दक्षिणी जिला के ही हैं । भूमि भी समतल है जहाँ विकास का पर्ूवाधार बहुत आसानी से निर्माण किया जा सकता है । लेकिन दर्ुभाग्य इन जिल्ाों का, क्योंकि वहाँ सडÞक नहीं है, बिजली नहीं, पानी नहीं, ढंग का अस्पताल नहीं , ढंग का विद्यालय या विश्वविद्यालय नहीं है । भारत के लिए सुरक्षा कवच का काम कर रहे इन जिले के लोगों को अपने ही राष्ट्र में पहचान के लिए संर्घष्ा करना पडÞ रहा है ।
पारिवारिक रिश्ते के कारण वह भारत के खिलाफ कुछ नहीं बोलना चाहते । लेकिन यही रिश्ता अब उनके लिए सर्रदर्द बन गया है । उन्हंे लगता है, नेपाल के शासक वर्ग की तरह भारत भी मधेश से सिर्फफायदा ले रहा है और बदले में कुछ नहीं मिल रहा है । और अब मधेश के लोग भारत के साथ संबन्ध बढÞाना नहीं चाहते ।
दोनों देश के राज नेता और स्थानीय प्रशासन के व्यवहार से खासकर सीमावर्ती लोग क्रुद्ध बनते जा रहे हैं । एक नियोजित योजना के तहत रोटी बेटी के संबन्ध को तोडÞने की चेष्टा की जा रही है । शायद इसी स्थिति को भाँप कर नेपाल के उपराष्ट्रपति महामहिम परमानन्द झा ने एक र्सार्वजनिक कार्यक्रम में अपनी अभिव्यक्ति देते हुए कहा- स्थिति में परिवर्तन नहीं हुआ तो नेपाल और भारत बीच रोटीबेटी का संबन्ध सिर्फइतिहास बन कर रह जायेगा । सीमा सेतु संगम नाम दिया गया इस कार्यक्रम में नेपाल और भारत के सांसद, विभिन्न राजनीति दल संबद्ध नेतागण और दोनो देश के विद्वत वर्ग की सहभागिता थी । उपराष्ट्रपति महोदय ने जब अपनी बात रखी तो पूरा हाँल एकाएक स्तब्ध हो गया था , लेकिन कुछ देर बाद शायद सभी ने अपने गिरेबान में झाँकने की कोशिश की और लगा की उपराष्ट्रपति महोदय जो कह रहे हंै, वह बिल्कुल सही है ।
बात सिर्फइतनी ही नहीं राजमार्ग की दूरावस्था और रास्ते की कठिनाई भी संबंध में खलल पहुँचा रहा है । काठमांडू में रह रही अपनी बेटी से मिलने आये उदय शंकर झा कहते हैं – बेटी और जमाई से मिलने का मन होता है लेकिन क्या करुं हर वक्त डर रहता है कि काठमान्डू तक कैसे पहुँचूंगा । दूरी ज्यादा नहीं है लेकिन सडÞक की दूरावस्था और नेपाल में हर वक्त बन्द, हडÞताल के कारण काठमांडू आने से कतराता रहता हूँ, ।
वास्तव में देखा जाय तो झा का कहना शत प्रतिशत सही है । भारत और नेपाल को जोडÞने वाली सीमावर्ती सडकें अस्त व्यस्त है । सालों साल से मर्मत के इन्तजार में रही ये सडकें दोनो राष्ट्रों द्वारा अवहेलित बना हुआ है । सीमावर्ती सडकों पर बडेÞ बडÞे गढ्ढे बने हुए है और यात्रा करना जोखिम पर्ूण्ा है जिसे सुधार के लिए प्रभावकारी प्रयास अभी भी नहीं हुआ है ।
रोटी और बेटी का संबन्ध मंहगा सावित हो रहा है । विविध कारण से दूरी बढÞती जा रही है । पवन कुमार कर्ण्र्ााहते है- विवाह सोच समझकर करना चाहिए । संबन्ध इतना दूर नहीं हो कि रिश्ता बना रखने के चक्कर में आप बर्बाद हो जायें । करीब पाँच साल पहले उनका विवाह हुआ था । विवाह के बाद वह अभी तक सुसराल नहीं गये । जाते भी कैसे, जाने के लिए दो दिन और आने के लिए दो दिन । दूरी कोई खास नहीं, काठमांडू और पटना की दूरी देखी जाय तो पाँच सौ किलोमीटर से भी कम है , आम गाडÞी से यह दूरी १२ घन्टा में तय किया जा सकता है । लेकिन पटना जाने के लिए, काठमांडू से बीरगंज, वहाँ से रिक्शा पकडÞ कर रक्सौल बोर्डर, फिर दूसरा रिक्शा आरै बस स्ट्यान्ड । रक्सौल में पटना के लिए सीधे बस नहीं मिलती है तो वहाँ से मुजफ्फरपुर और फिर वहाँ से पटना । बच्चे और समान लेकर पटना पहुँचना उनके लिए मानो एक युद्ध समान है । वह प्रश्न करते हैं- संबन्ध जब रोटी और बेटी का है तो रास्ते इतने खराब क्यों – युरोप में एक राष्ट्र से दूसरे राष्ट्र आसान से जाया जा सकता है लेकिन यहाँ तो नेपाल के सीमावर्ती शहर जनकपुर से भारत की समिावर्ती शहर जयनगर पहुँचने में तीन घन्टा लग जाते हैं जबकि दूरी सिर्फ२७ किलोमीटर है।
नेपाल और भारत के नेतागण हमेशा एक ही बात दोहराते हैं दोनो राष्ट्रांे के बीच दूरी कम होनी चाहिए । २१ वीं शदी में विश्व एक छोटे से गाँव में सिमट कर रह गया है जिसका प्रमुख कारण है यातायात और संचार । लेकिन अभी भी सीमावर्ती शहर जयनगर से आप नेपाल टेलिफोन करें तो प्रति मिनट करीब छ रुपया भारतीय लग जाता है । फिर कैसे सम्भव है, अच्छे सम्बन्ध – पिछली बार भारतीय प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी जब नेपाल भ्रमण में आये तो उन्होने टेलिफोन शुल्क कम करने की बात की थी , लेकिन प्रधानमन्त्री मोदी की प्रतिबद्धता भी और नेता से ज्यादा र्फक नहीं । मजे की बात तो यह है कि नेपाल या भारत से अमेरिका एक रुपया प्रति मिनट में बात किया जा सकता है ।
निरन्तर भेटघाट और वार्तालाप नहीं होने का कारण संबन्ध में खटास आ रही है । पोखरा में बसे सुचिता के माता पिता समझते हैं कि उनका जमाई गुस्से में है । विवाह के तीन साल गुजर जाने के बाद बेटी और जमाई एक बार भी नहीं आये । सुचिता का ससुराल मुर्म्बई में है । सामान्य नौकरी, जहाज का किराया मुश्किल है और ट्रेन से आये तो यहाँ पहुँचने में तीन दिन लग जाते हैं । प्राइवेट नौकरी में कहाँ से मिलेगी इतनी छुट्टी । फोन से बात करे तो मिनट का ६ रुपया । संबन्ध ही समस्या बनता जा रहा है ।
शायद इसलिए कल्पना नहीं चाहती है कि उसकी शादी भारत में हो । वातावरण विज्ञान से स्नातकोत्तर कर रही कल्पना कहती है- नेपाल में किसी लडÞके के साथ शादी मंजूर है लेकिन भारत में नहीं । जब सामाजिक संबन्ध ही खत्म हो जायेगा तो विवाह करके क्या फायदा – वैसे भी कल्पना नेपाल में पली बढÞी है और यहीं वह अपना करियर बनाना चाहती है । भारत में उसे सब कुछ शुन्य से शुरु करना पडेÞगा ।
भारत वाराणसी से समाज शास्त्र में स्नातक की हर्ुइ सरिता की तो मानो जिन्दगी ही खत्म हो गई । वह सिभिल सभिर्सर्ेेकी तैयारी कर रही थी, अचानक से शादी हो गई और वह नेपाल आ गयी । वह कहती है- मेरी पढर्Þाई का तो यहाँ कोई मतलब ही नहीं क्योंकि नेपाल में हर चीज नेपाली भाषा में होती है, जो मुझे बिलकुल नही आती । वह आर्श्चर्य व्यक्त करते हुए कहती है- जिस देश की आधी जनसंख्या की सर्म्पर्क भाषा हिन्दी हो, उस भाषा का यहाँ कोई महत्व नहीं । दोनो देशों के सरकार और नीति निर्माता को चाहिए कि सरकारी नौकरी में भाषा की नीति में फेर बदल करे ।
सरिता की बात में भले ही सत्यता हो लेकिन कौन सुनेगा उनकी बात – पिछली संविधानसभा में ३० प्रतिशत से ज्यादा मधेशी सभासद थे, जो स्वयं हिन्दी भाषा को ही सर्म्पर्क के रुप में प्रयोग करते हंै । लेकिन हिन्दी भाषा को मान्यता मिले इसके लिए कोई खास प्रयास नहीं किया गया । पिछले दिनों नेपाल में नागरिकता को लेकर चल रही विवाद ने लोगों की आशंका और बढÞा दिया है । अगर नागरिकता नहीं मिली तो नेपाल में नौकरी मिलना मुश्किल, बैंक में खाता खोलना मुश्किल, घर या खेत खरीद करना मुश्किल । संविधान निर्माण प्रक्रिया में लगे इस राष्ट्र को चाहिए कि नीति को समयानुकुल बनायें । लेकिन विभिन्न राजनीतिक दल के नेताओं को डर है कि हिन्दी भाषा को मान्यता और नागरिकता संबन्धी नीति में ढील दिया गया तो सब अवसर वही लोग ले लेंगे ।
बडÞे घराने के महिला और पुरुष दोनों को कोई समस्या नहीं । उन लोगों को बचपन से ही अन्तराष्टी्रयस्तर की शिक्षा दी जाती है, वह जहाज से यात्रा करते हैं, समस्या है सीमावर्ती जिला में रह रहे र्सव साधारण को, चाहे वो नेपाल के हों या भारत के ।
विवाह एक बन्धन है जो न सिर्फदो व्यक्ति को वरन दो परिवारों को जोडÞता है । लेकिन आरती का मानना है- दहेज इस संबन्ध को बिगाडÞ रहा है और भारत में तो इसने विकृत रूप ही ले ली है । वह नहीं चाहती है कि किसी भी बेटी का विवाह भारत में हों । उनके गाँव की दो बहनो की दहेज के कारण हत्या कर दी गयी । दोनों की शादी भारत में हर्ुइ थी । विज्ञान विषय से स्नातकोत्तर लडÞकी को दहेज के कारण टुकडा टुकडा कर दिया गया और रेलवे की पटरी पर फेंक दिया गया । उसे मायकेवालों को जानकारी दी गयी कि उसने आत्महत्या की । आरती की गाँव की दूसरी एक लडÞकी को भी दहेज के कारण लडÞके ने छोडÞ दिया । उसकी जिन्दगी तबाह हो गयी है । भारत में दहेज की समस्या नेपाल के तुलना में ज्यादा है ऐसा मानना है नेपाल में । शायद इसलिए भी बहुत से परिवार भारत में विवाह करने से कतराते हैं ।
खासकर नेपाल में राजनीतिक संक्रमण शुरु होने के बाद विकासमूलक कार्य लगभग ठप्प हो गया है । उद्योग धन्धा, कल कारखाना बन्द सा हो गया है जिसका प्रत्यक्ष असर लोगों की आमदनी पर पडÞा है । और पर्याप्त दहेज देने में अर्समर्थ होते जा रहे है, और ऐसे में भारत में विवाह थोडÞा मुश्किल होता जा रहा है । भारत के अधिकांश समुदाय में लडÞके को बैंक का चेक समझा जाता है जिसे परिवारवाले शादी के समय में क्यास करते हंै ।
शादी के उम्र में रही स्नेहा भी भारत में किसी कीमत पर विवाह करना नहीं चाहती है । उनका मानना है कि भारत के लोग बदमाश होते है । शादी कर कितनों लडÞकियों को बेच दिया गया है । उनकी जिन्दगी बडेÞ शहर की वेश्यालय में नर्क समान है । लडÞकियों को मारा पीटा जाता है । वह कहती है- घरेलु हिंसा भी नेपाल की तुलना में भारत में ज्यादा हो रहा है और उसे परिवार और समाज प्रश्रय दे रहा है ।
वैसे तो हर आदमी का अपना अनुभव होता है और अनुभव के आधार पर ही वह धारणा निर्माण करता है । काठमांडू के अनिल पाण्डे कहते हैं- पहले की तुलना में नेपाल और भारत के बीच विवाह संबन्ध में कमी आई है जिसका एक बडा कारण है जीवन शैली । नेपाल के मध्यम वर्गीय परिवार का अधिकांश रिश्ता भारत के बिहार और उत्तर प्रदेश में है । नेपाल के लडकियों की सोच है जो स्वतन्ता वह यहाँ उपभोग कर रही है वो स्वतन्त्रता वहाँ नहीं कर पायेगी । श्ाायद इसलिए भी वह भारत में विवाह करना नहीं चाहती है ।
कारण अनेक हैं, लेकिन एक बात तो सच्ची है कि विवाह तो सर्म्पर्क बढÞाने का एक माध्यम भी है । लेकिन जब आप परेशान हों उस समय आपका परिवार आपके साथ नहीं । पूनम का कहना है कि शादी बहुत सोच समझ कर करनी चाहिए । विवाह से केवल दो लोगों का नहीं वरन दो परिवारों का भी संबंध बनता है । और शादी का तो मतलब ही होता है सुख दुख में साथ रहना । पुनम कहती है-लेकिन दूरी के कारण खुशी और गम कोई भी अवस्था में परिवारवाले साथ नहीं रहेंगे तो फिर ऐसी शादी का क्या मतलब ।
वैसे तो विवाह एक पवित्र बंधन है जो जहाँ जिस हाल में जिससे लिखा होता है, उसी से होगा । साथ ही यह भी माना गया है कि यह बंधन इंसान के बांधने से न तो बांधा जा सकता है न ही किसी के तोडÞने से टूटता है । ।
समय बदला सोच बदली, लडके के साथ साथ लडÞकियाँ भी शिक्षित हो गयी है । वो सब कुछ स्वयं करना चाहता हैर्,र् इश्वर के बनाये इस जोडÞी को भी अपनी इच्छानुसार जोडÞना चाहता है तो क्या संभव है ये –