Fri. Mar 29th, 2024

नेपाल-चीन सैनिक सम्बन्ध के इतिहास में पहली बार उच्चस्तरीय सैनिक मिशन का नेतृत्व करते हुए चीन की जनमुक्ति सेना के प्रमुख चेन विङ्दे के नेपाल भ्रमण ने क्षेत्रीय सन्तुलन के लिए चुनौती खडी कर दी है । नेपाली सेना को ‘एक सौ तीस करोड’ रुपए सहयोग प्रदान करने के लिए आए सेना प्रमुख विङ्दे सहित १८ सदस्यीय टोली ने मार्च २३ से २५ तारीख तक नेपाल का तीन दिवसीय भ्रमण किया । चीन की ओर से नेपाली सेना को दिए जाने वाली उक्त सहायता राशि अब तक की सबसे बडी राशि है ।
एयरफोर्स के विशेष विमान द्वारा भ्रमण में आए १८ सदस्यीय सैन्य मिशन में क्रमशः सेना प्रमुख जनरल चेन विङ्दे, नेपाल स्थित चाईनीज राजदूत क्यू गो होङ, लेफ्टिनेन्ट जनरल वाङ जियाङ पिङ, मेजर जनरल याङ जी सान, मेजर जनरल क्युन लिवु, मेजर जनरल झाङ यालिङ, मेजर जनरल वाङ जिन, सिनियर कर्नल वाङ रुचेङ, वरिष्ठ कर्नल वु झियाइ, वरिष्ठ कर्नल चेङ जियाङ, कर्नल लिउ झोङ विन, कर्नल ग्यो होङ ताओ, लेपि\mटनेन्ट कर्नल लु चाउ, मिस्टर सु क्युन, मिस्टर वाङ सान्वर्ुइ, कैप्टन जियाङ बिन तथा चीन के दो सैन्य पत्रकार थे ।
सन् २००८ के ओलम्पिक के बाद नेपाल में चिनियाँ गतिविधि एकदम से बढ गई है । बाहरी रुप में चीन भले ही ‘सफ्ट पावर डिप्लोमेसी’ का हिमायती दिखता हो और चीन नेपाल के आन्तरिक मामले में किसी भी किस्म की दखलन्दाजी न किए जाने की रट भले ही लगा ता हो लेकिन वास्तविकता यह नहीं है । राजनीतिक मुलाकात के दौरान चीन के सेना प्रमुख ने – ‘नेपाली और चिनियाँ दोनों सेनाओं के बीच कायम होने वाले सम्बन्ध दोनों देशों के लिए ही नहीं बल्कि विश्व शान्ति के लिए खास तौर पर एशिया पेसिफिक क्षेत्र के स्थायित्व के लिए  निर्ण्ाायक होने की बात’, कहकर अपने राजनीतिक तुष्टि के पत्ते खोल दिए । इन मुलाकातों मे वे यह कहने से भी नहीं चूके कि नेपाल अपनी समस्याओं का समाधान करने के लिए खुद सक्षम है, और चीन नेपाल में होने वाले किसी भी बाहरी हस्तक्षेप के विरुद्ध है ।’ चीन के शक्तिशाली केन्द्रीय सैन्य आयोग के सदस्य चेन सांकेतिक रुप में कूटनीतिक एवं सामरिक महत्व वाली अभिव्यक्ति देने से नहीं चूके ।
प्रति वर्ष८/१० करोड रुपए बराबर का सैन्य सहयोग देने वाले चीन ने इस बार अप्रत्याशित रुप में सहयोग राशि को दस गुना बढाने के प्रस्ताव के साथ उच्चस्तरीय सैन्य मिशन को नेपाल भेजा । इस बार भी चीन ने सुरक्षा मामले को ही मुख्य मुद्दा बनाया ।  नेपाली सैनिक स्रोत के अनुसार ‘चीन चाहता है कि नेपाल की उत्तरी सीमा की सुरक्षा की जिम्मेवारी नेपाली सेना को दी जाए ।’ नेपाल में सीमा सुरक्षा कीे जिम्मेवारी सशस्त्र प्रहरी बल को दी गई है । लेकिन सशस्त्र प्रहरी बल की दक्षता पर उंगली उठाते हुए चीन नेे उत्तरी सीमा में नेपाली सेना कीे उपस्थिति की इच्छा व्यक्त की है । जिसके लिए चीन ने भौतिक पर्ूवाधार निर्माण से लेकर नेपाली सेना की अन्य सभी आवश्यकताओ को पूरा करने का लालच दिया है ।
इससे पहले वि.स.२०६६ में चिनियाँ जनमुक्ति सेना के लेपि\mटनेन्ट जनरल तथा तिब्बती स्वायत्त परिषद के सैन्य प्रमुख ‘सु युताइ’ के नेतृत्व में आए सैन्य मिशन ने तिब्बत की सीमा में सुरक्षा, विकास तथा व्यापारिक केन्द्र स्थापना करने का प्रस्ताव पेश किया था । हालांकि इसी बीच नेपाल में कामचलाऊ सरकार होने के कारण उक्त प्रस्ताव में कोई ठोस प्रगति नहीं हर्ुइ । लेकिन नेपाल में सरकार परिवर्तन के साथ ही चीन द्वारा निकट भविष्य में ही चीन और नेपाल के बीच उक्त विषय में ठोस सहमति होने के आसार दिखने लगे हैं ।
हाल ही में हुए एक सौ तीस करोड के सहयोग सम्बन्धी सम्झौते में हस्ताक्षर की प्रक्रिया को लेकर गम्भीर प्रश्न पैदा हुए हैं । चीन द्वारा प्रदान की गयी सहयोग की उक्त बडी राशि के प्रस्ताव को लेकर आर्श्चर्य में पडेे नेपाली पक्ष ने सहमति पत्र में दोनों सेनाओं के प्रमुखों की उपस्थिति में नेपाल के रक्षा सचिव तथा नेपाल स्थित चिनियाँ राजदूत के हस्ताक्षर किए जाने का प्रस्ताव किया था । लेकिन चिनियाँ पक्ष इसके लिए तयार नहीं हुआ । नेपाली सैनिक स्रोत के अनुसार- ‘उक्त डील में सैनिक स्तर में प्रत्यक्ष सम्बन्ध कायम करने की चीन की मान्यता के कारण अन्ततः रक्षा मन्त्रालय में तय किया गया हस्ताक्षर कार्यक्रम नेपाली सेना के मुख्यालय में सम्पन्न करते हए उक्त सम्झौते में चीन के सेना प्रमुख चेन ने अपने नेपाली समकक्षी छत्रमान सिंह गुरुङ के साथ हस्ताक्षर किए ।
वास्तव में पर्दे के पीछे से नेपाल में राजनीतिक खेल खेलने वाले चीन का वास्तविक उद्देश्य नेपाल में चायनीज माडल वाली सरकार की स्थापना ही है । जिसके लिए वह नेपाली सेना में ही नहीं नेपाल पुलिस, सशस्त्र प्रहरी और राष्ट्रीय अनुसंधान विभाग को भी सहयोग करने के नाम पर अपने पक्ष मे लाना चाहता है । चीन को लगने लगा है कि नेपाल के माओवादी ‘माओवाद’ का अनुशरण करने की बजाय माओत्से तुंग का नाम बदनाम कर रहे हैं । माओवादी नेतृत्व का बहुरुपिया चरित्र और पश्चिमी राष्ट्र जो स्वतन्त्र तिब्बत को र्समर्थन करते हैं, के साथ बढते दोस्ताना सम्बन्धों ने चीन को माओवादी के बारे में फिर से सोचने के लिए मजबूर कर दिया ।  प्रचण्ड द्वारा किए गए चीन के दूसरा भ्रमण के दौरान चीन के राष्ट्रपति हू जिन्ताओ ने माओवादी नेतृत्व पर अमेरिकी गुप्तचर संस्था सीआईए के लिए काम करने का आरोप लगाया । चीन का मानना है कि माओवादी नेतृत्व पर भरोसा नहीं किया जा सकता । माओवादी नेताओं के बदलते रवैये चीन को माओवादी का सशंकित मित्र बनने पर मजबूर कर रहा है । इसी शंका और र्सतर्कता के कारण चीन माओवादी के अलावा नेपाल में स्थायी मित्र शक्ति की तलाश कर रहा है । और अब चीन की तलाशपर्ूण्ा निगाहें नेपाली सेना पर अटक गई हैं । यही कारण है कि नेपाली सेना के साथ सम्बन्ध अभिवृद्धि करने के मामले के तहत पिछले करिब र्ढाई सालों में चीनी जनमुक्ति सेना के ६ उच्चस्तरीय भ्रमण दल नेपाल आया और इस दौरान नेपाली सेना को दी जाने वाली सहयोग रकम में भी काफी इजाफा हुआ । एक सौ तीस करोड के चिनियाँ सहयोग को लेकर असमंजस में पडा नेपाली पक्ष तब और ज्यादा आर्श्चर्यचकित दिखने लगा जब सेनापति चेन ने यह बताया कि, ‘यह सहयोग तो कुछ भी नहीं, मन्त्रिपरिषद की पर्ूण्ाता के बाद नेपाल के विदेशमंत्री के मार्फ चीन इससे बहुत बडा ‘सरप्राइज’ देने वाला है ।
राजनीतिक विश्लेषक बताते हैं कि चीन अपने राजनीतिक और सामरिक स्वार्थ के लिए कुछ भी कर सकता है । खास तौर पर प्रजातन्त्र और मानव अधिकार के मामले में पश्चिमी राष्ट्रों के प्रहार को झेल रहा चीन दोहरा खेल खेल रहा है । एक तरफ वह नेपाल में प्रो-चाईनीज शक्ति स्थापित करके प्रजातन्त्र और मानव अधिकार के मामले को लेकर बने इण्डो-अमेरिकन अलाइन्स को चुनौती देना चाहता है । दूसरा वह नेपाल जैसे छोटे और अल्प-विकसित देशों को आर्थिक सहयोग करके खुद को अन्तर्रर्ाा्रीय मञ्च पर स्थापित करने के लिए अपने पक्ष में र्समर्थन का निर्माण कर रहा है ।
नेपाल स्थित चिनियाँ दूतावास ने चिनियाँ सेना प्रमुख चेन के भ्रमण से पहले अपने पक्ष ने चायनीज सेना प्रमुख को नेपाली सेना के मानार्थ सेनापति कीे उपाधि प्रदान करने का आग्रह किया था । लेकिन इस बारे में नेपाली सेना तत्काल निर्ण्र्ाालेने के पक्ष में नहीं है । नेपाली सेना का भारतीय सेना के साथ छः दशक पुराना ‘भाइचारे’ का सम्बन्ध है । अब तक सैन्य सहयोग की दृष्टि सेे भारत नेपाली सेना का प्रमुख स्रोत है । सन् १९६२ से भारत द्वारा नेपाली सेना को ७० प्रतिशत अनुदान में सैनिक सहयोग उपलब्ध होता आया है । सेनापति गुरुङ को गत वर्षभ्रमण के दौरान भारत ने दो सौ करोड बराबर के ‘अतिरिक्त सैन्य सहयोग’ देने की बात की थी । भारत और नेपाल के बीच कायम सैन्य सम्बन्ध आर्थिक सहयोग तक ही सीमित नहीं हैं । भारत में आज के दिन में लाखों नेपाली नागरिक ‘गोर्खा रेजीमेन्ट’ मे सेवा प्रदान कर रहे हैं, जिनका नेतृत्व ब्रिगेडियर जनरल के पद पर नेपाली नागरिक करता है । भारतीय सेना से सेवानिवृत्त पर्ूव सैनिकों को भारत सरकार वाषिर्क अरबों रुपए पेन्सन और कल्याणकारी उद्देश्यों के लिए प्रदान करती है । वास्तव में नेपाली सेना और भारतीय सेना बीच के सम्बन्ध विश्वास और भाइचारे की मजबूत डोरी से जुडे हुए हैं । चाहे भारतीय सेना प्रमुख को नेपाली सेना के मानार्थ प्रधानसेनापति की उपाधि से नवाजना हो या नेपाल के सेना प्रमुख को भारतीय सेना का मानार्थ प्रधानसेनापति का सम्मान प्रदान करना होे, यह भाईचारे के धरातल में मजबूती से स्थापित ंसम्बन्ध के कारण है । जबकि चीन इस भाईचारे से बहुत दूर सिर्फ’सम्बन्धों का रणनीतिक इस्तेमाल मात्र’ करना चाहता है ।





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