Fri. Oct 4th, 2024

नेपाल के ५ “पीके” प्रचण्ड, केपी, सुशील, कमल और सीके : मुरली मनोहर तिवारी

मुरली मनोहर तिवारी(सिपु)
मुरली मनोहर तिवारी(सिपु)

मुरली मनोहर तिवारी ( सिपु ), बीरगंज,१८, जुलाई ,२०१५ | भारत में बहुचर्चित फ़िल्म “पीके” आइ। उसे बहुत तारीफ़ मिली। उसमे पीके अंतरिक्ष से आया था। हरेक बात को देखने का नजरिया अलग था। उसने समस्याए तो बहुत दिखाए, आनंद भी आया पर सभी सवालो के जबाब अनुत्तरित छोड़कर, वापस अंतरिक्ष लौट गया।



 ऐसे ही पीके नेपाल में बहुतेरे मिलेंगे। एक पीके है पुष्प कमल दहाल। “जाने काहे इनको सब पीके-पीके बुलावत है”। माओवाद का नारा लेकर चाइना से प्रकट हुए। जब चाइनीज सामान ही नहीं टिकता तो चाइनीज सिद्धान्त कैसे टिकेगा। नए नेपाल को लेकर सवाल भी खड़े किए, पर जबाब नदारद रहा। प्रचंड का पाखंड दिख गया। माओवाद सम्पूर्ण तंत्र को हिंसक तरीके से उखाड़ फेक कर, नयी व्यवस्था स्थापित करने का सिद्धान्त है। नेपाल में हिंसा तो हुइ, क्या नई व्यवस्था कायम हुई ?

​दूसरे पीके है केपी जो प्रचंड के विपरितार्थ संस्करण है। ये भी अपने अंदाज में नए नेपाल का स्वपन दिखाते है। सारी दुनिया में विलुप्त हो रहे, वामपंथ के अवशेष के भीष्म पितामह है। एक ऐसी विचारधारा को दर्शाते हैै, जिसमें संरचनात्मक स्तर पर, एक समतामूलक, वर्गविहीन समाज की स्थापना की जाएगी। आर्थिक वर्चस्व के प्रतिमान ध्वस्त कर, उत्पादन के साधनों पर, समूचे समाज का स्वामित्व होगा। अधिकार और कर्तव्य में आत्मार्पित, सामुदायिक सामञ्जस्य स्थापित होगा। स्वतंत्रता और समानता के, सामाजिक, राजनीतिक, आदर्श एक दूसरे के पूरक सिद्ध होंगे। न्याय से कोई वंचित नहीं होगा और मानवता एक मात्र जाति होगी। ये सारे दिवा-स्वपन दिखाए पर, हकीकत में एनजीओ का पैसा और अराजकता के पोषक हैं। “कम्युनिस्ट बनते-बनते, जनता से बात करे का, कम्युनिकेशन सिस्टम, यी गोला का बिल्कुले, लुल हो चूका है”।

 s4तीसरे पीके है एसकेे, सुशिल कोइराला। बिश्व् शक्ति के नज़र में, नेपाली लोकतंत्र के, एकमात्र रक्षक है।  लोकतंत्र के सन्दर्भ में, इनके कई प्रस्ताव आए, पर इनमें से कोई, कभी क्रियान्वित नहीं हुए। ये दुनिया के सबसे गरीब प्रधानमंत्री और गरीब व्यक्ति है। ये तन-मन-धन से भी गरीब ही है। “इ गोला में इ बोलते कुछो है, आउर मतलब, कुछो आउर निकलता है, इनकर त बतियों, समझ नहीं आता है”। इनके सिपासलार शेर बहादुर देउबा की बातें जीभ में ही लटपटा के रह जाती है। दूसरे सिपासलार ,रामचंद्र पौडेल की आवाज, गले की सास में ही, दम तोड़ देती है। कांग्रेस आवाज के मामले में भी गरीब ही है।

चौथे पीके है केटी यानि कमल थापा। ये राजा को बचाते-बचाते, हिंदुत्व हो बचाने निकले है। वह हिंदुत्व, जो हजारो साल के, विदेशी अतिक्रमण के बावजूद, साबुत बचा है, उसे बचाने का ढ़ोंग करते है। देवताओ का मूल निवास, भारत में ही है। देवताओ से सीधे संपर्क रखते है। जब जरुरत हो “प्रभु पथ प्रदर्शित करे” कहने मात्र से, पथ प्रदर्शित हो जाते है। केटी खुद हिंदुत्व के किसी आचरण को नहीं अपनाते। इनका पूरा रहन-सहन पश्चमी सभ्यता का है और बाते हिंदुत्व की रक्षा का है । “भगवान कहा रे तू, तू क्या चाहे मै समझा नहीं”।

​पाचवे पीके है सीकेेे, सीके राउत। अमेरिकी अंतरिक्ष से अवतरित हुए है। मधेश अलग देश की बात करते है। पीके की तरह सीके की बाते भी लोकप्रिय हो रही है। सिर्फ कोट-पैन्ट को ड्रेस कोड रखने से, बौद्धिक क्रांति हो जायेगी ? क्या फेसबुक क्रांति से, मधेश को मुक्ति मिल जायेगी ? क्या लाल गमछा रखने से, खून की नदियां बह जायेगी ? क्या अलग देश बनने में, विदेशी शक्तियाँ, अपने निहित स्वार्थ को त्याग कर, मदद करेगी ? क्या नेपाल सरकार और विदेशी ताकतों के बिच, मधेश सौदा की वस्तु बनकर नहीं रह गइ है ? “हम बहुत ही कनफुजिआ गया हूं”।

यह भी पढें   सरकार राहत प्रदान करने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी : प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली

​गौरतलब है की पीके, केपी, एसके, केटी और सीके मे  “के” सब में है। “के” का अर्थ  एकता कपूर का के सीरीज का धारावाहिक नहीं है। “के” तो सूचक है किसी कार्य को करने में पांच बातो के निर्धारण का – क्यों, कब, कहाँ, कैसेे, किसलिए। सभी पीके के कथनी और करनी में “के” तत्व ही गायब है।

s6क्या लोकतंत्र, कम्युनिस्ट, माओवाद, हिन्दुवाद, अलगाववाद के सिद्धान्त में, कही भी देश के नागरीको के बिच, दोहरा मापदंड का उल्लेख है ? क्या कही भी, जाती बिशेष में, सारे शक्ति निहित करने का विधान है ? क्या न्याय की परिभाषा, कही भिन्न-भिन्न हो सकते है ? क्यों इन्हें हिंदी माता और मधेश माता में, भारत माता ही नजर आती है, नेपाल माता नहीं ? क्या कही भी जनता-जनता में, शोषित-शोषित में, गरीब -गरीब में अंतर हो सकता है ? इनमे नेपाल के लिए कोइ प्रेम नहीं है। इनका कोई इमान नहीं, कोइ सिद्धान्त नहीं। ये अजूबा देश है जहा सत्ता में जाने को लेकर कोई  बिपक्ष नहीं है। यहाँ सिर्फ सत्ता बदलती है व्यस्था नहीं बदलती। सिर्फ चेहरे बदलते है चरित्र नहीं बदलते। मै भी जबाब अनुत्तरित छोड़ रहा हु, मैं भी पीके ही हु, और ये सब भी सिर्फ पीके है, पीके, पीके …… फेकू।।

यह भी पढें   झ्याप्ले खोला अपडेट –शव संख्या १३ पहुँची


About Author

आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Loading...
%d bloggers like this: