पृथ्वीनारायणशाह ने ही मधेशियों को अपने सेना मे रखना बन्द कर दिया था : कैलाश महतो
कैलाश महतो, २३ अगस्त , पारशी | स्वायत्त मधेश नही, अब आजाद मधेश ही अन्तिम विकल्प है ।
प्राचिन और मध्य इतिहास के अनुसार वर्तमान मे कहे जानेबाले नेपाल तथा उससे पहले के सत्यबति, साङृला, नागदह या बाद के काठ्मान्डु समेत के शासन कर चुके मधेशियो को तत्कालिन नेपाल पर कायर्तापूर्ण आक्रमण कर गोर्खा से राज्य बिस्तार कर के नेपाल को अधिनस्थ करनेबाले नव नेपालियो ने नेपाली सेना, प्रहरी तथा प्रशासनो के अङो मे सामेल और समावेश करने करबाने मे अघोशित प्रतिबन्ध क्यू लगा दिया ?
जाहेर है कि मधेशी राजा तथा उनके सिपाहियो से गोर्खाली पृथ्वीनारायण शाह कभी लडाई के खुल्ले मैदानो मे जित नही पाया था । और जब काठमांडू के कुछ गद्दारों के षड्यन्त्र के कारण पृथ्वीनारायण शाह ने रात के समय तत्कालिन नेपाल के राज्यो पर कब्जा कर लिया | उसके बाद मधेशियो को अपने सेना मे रखना बन्द कर दिया, क्योंकि मधेशियो के लडने की कौशलता से पृथ्वीनारायण शाह घबराए हए थे , और आज पर्यन्त वही रणनिती को कायम रखकर मधेशियो को नेपाली सेना मे नही स्विकार किया जाता है । वो रणनिती सिर्फ गोर्खालियो के लिए मधेशियो से डर का ही कारण नही, अपितु मधेशियो के प्रति बदले समेत की भावना रही थी ।
अब विचार करने योग्य बात यह है कि वह खस गोर्खाली शासक्, जिसने मधेशियो के राज्यो को बिना जिते कब्जा किए हुए राज्य के बासियो को सेना लगायत के राज्यके प्रमुख अङो से बहिस्कृत कर सदियो से अपना गुलाम समझा, क्या अभी के सघियता समर्थित एवम पक्षधर मधेशी राजनीतिक पार्टियो के आन्दोलनो से मधेश या मधेशियो को कुछ खास दे सकते है ? बिल्कुल नही । क्योंकि राज्य और राज्य सन्चालको की नियत वही पृथ्वीनारायण और महेन्द्र की है । दुसरा, जैसे तत्कालिन नेपाल के जयप्रकाश मल्ल तथा अन्य मधेशी राजाओ से छल और चोरीपूर्वक उधार मे ही उनके राज्यो को राज्य धर्म के खिलाफ कब्जा किया गया, ठीक उसी प्रकार बिना कोई लडाई या विजयपूर्ण कार्यो से ही मधेश मध्य देश के विशाल भूभागो: क्रमश: सन १८१६ और सन १८६० मे कोशी नदी के सीमा से राप्ती नदीतक तथा राप्ती नदी से महाकाली नदीतक अग्रेंजों से ठेक्का तथा उपहार मे पया था, जो कानुनतह तथा राज्यतह गलत है, जिसको कानुनपूर्ण एवम खास करके दुसरे विश्वयुद्ध के बाद के विश्व को मन्जुर नही हो सकता । मधेश के २३०६८ वर्ग किलोमिटर क्षेत्रफल का जमिन न भारत का है, न तो नेपाल का है । यह विशाल भूमि मधेशियो का है जिसका प्रमाण बृटेन की महारानी एलिजाबेथ की डा- सि- के- राउत को लिखी पत्र से भी अवगत होता है । उसी तरह सन्युक्त राष्ट्रसघं के महाचार्टर के बुन्दा न- ८३ अनुसार भी मधेश नेपाल मे न होने का तथ्य प्रमाणित होता है ।
मधेशी नेताओ तथा उनके आन्दोलनो मे व्य्स्त नेतागण कार्यकताओ से अनुरोध है कि जरा गौर करे कि मधेशियो का तत्कालिन नेपाली राज्य और मधेशियो का मधेश के राज्यो को कभी चोरी से, कभी अग्रेंज के साथ नेपालीयो के सम्झौतो से, तो कभी दो लाख रूपए अङ्रेजो से लेकर मधेश से भागकर्, कभी अङ्रेजो से सहमती कर मधेश के जमिन को ठेकेदारी मे लेकर तो कभी ( सन १८६० मे भारत मे जारी अग्रेंज विरुद्ध के सिपाही विद्रोह को जङ बहादुर राणा के नेतृत्व मे राजा गिर्वान्युद्ध के अनुमती से अग्रेंज को सहयोग तथा भारतिय जनता तथा आन्दोलन्कारियो को दवाने के लिए अङ्रेजो को किए गए सहयोग के खुशी मे) पुरस्कार स्वरूप मधेश के जमिन मधेशियो से उनकी राय और स्विकृती लिए बिना ही नेपाल मे मिला लेना किसी भी न्यायपूर्ण राज्य का धर्म नही हो सकता । २०६२-६३ से लेकर आजतक के मधेश आन्दोलन से नेपाली सरकार, उसकी प्रशासन तथा उसके सत्ताधारी समेत हैरान एवम परेशान है और वे कही न कही जयप्रकाश मल्ल ठाकुर, नान्यदेव, हरिसिंह देव, मुकुन्द सेन लगायत के मधेश के समृद्ध राजाओ की गरीमा, प्रसिद्धी तथा उनके वीरता को पूनर्जागरण से डरने लगे है और उन्ही डरो से बचने के लिए ए खस नेपाली लोग त्रसित है और मधेशी सेनाओ से घबाराए हुए पृथवीनारायण के तरह ही उनके उपशासक लोग भी त्रशित है और इसिलिए वे पृथवीनारायण के तरह ही मधेशियो को अपने राज्य से अलग थलग रखने के साजिस के तहत उन्हे उनके अधिकार या उनके साथ किए गए सम्झौते के अनुसार भी उनको प्रान्त या अधिकार देना नही चाह्ते है । मधेशियो के वीरता से वे डर रहे है ।
पृथ्वीनारायण शाह से लेकर आज पर्यन्त मधेशियो को अपने राज्य से अलग रखकर उन्हे कमजोर करने के लिए निम्न लिखित कार्यो को कायम रक्खा :
१- मधेशियो को सेना मे समावेश नही होने दिया गया ।
२- मधेशियो के जमीन को अपने भाई भारदारो तथा कर्मचारीयो मे वितरण किया शासको ने ।
३- मधेश के जल, जमीन तथा जङलो पर कब्जा किया गया ।
४- मधेश की भाषा तथा संस्क्रती को नष्ट करने की रणनीती अपनाई गयी ।
५- मधेशी मनोविज्ञान को नेपाली मनोविज्ञान के सामने तुच्छ दिखाने की कोशीश की गयी ।
६- जङ बहादुर द्वारा प्रयोग मे लाए गए नेपाल के पहला नेपाली कानुन मुलुकी ऐन १९१० के धारा १७३ मे मधेश के कोई भी जमीन मधेशियो द्वारा बेचे जाने पर वह जमीन खरीदने का पहला अधिकार कोई पहाडी नेपाली को दिया गया ।
७- मधेश के हरेक अड्डा अदालत तथा सरकारी- गैरसरकारी कार्यालयो मे पहाडो से पहाडियो, खास करके खस नेपालियो को लाकर नौकरी दिया जाने लगा जो आजतक कायम है ।
८- मधेश के हरेक भन्सारो को कब्जा किया गया ।
९- मधेश की जमीनो से बहने बाली नदियो से मधेश के जमिनो को सिचाई करने से रोकने की योजना मुताबिक उन नदियो को विदेशी हाथो मे बेच दिया गया ।
१०- मधेशी किसानो को कृषी उत्पादन के सामगृयो से दुर रखकर उनके कृषी क्षमता को नष्ट किया गया ।
११- कृषी उत्पादन के लिए किसानो को भारतीय बजारो से भी मलखाद तथा अन्य कृषी सामग्री लाने देने मे बन्देज लगाया गया ।
१२- मधेशियो के समान्य दैनिक अत्यावश्यक वस्तुओ को उनके दैनिक प्रयोग समेत के लिए लाने देने मे रोक लगाया गया ।
१३- सीमा सुरक्षा के नाम पर चालीस हजार की संख्या मे रहे शसस्त्र प्रहरी बल को मधेश के हरेक एक से दो किलोमीटर के दुरी पर ३३ हजार शसस्त्र प्रहरी को रखकर मधेश के हरेक गाव तथा टोल मे अत्याचार करबाया जाता है ।
१४- मधेश की भूमि पर अनावश्यक नेपाली सेनाओ का क्याम्प बैठाकर मधेशियो मे दहसत फैलाया जाता है ।
१५- मधेश के १५% भूभाग पर पहाडो से लाखो लोगो को योजनाबद्ध धङ से लाकर नेपालियो का उपनिवेष खडा करने की रणनिती को कायम रख कर तृपन्न प्रतिशत से ज्यादा लोगो की बास स्थान बना गया है और पहाडो से आज और अभी भी लोगो को मधेश मे लाने का काम जारी है ।
१६- मधेश का ७२% से ज्यादा जमीन उन पहाडियो के नाम दर्ज है जिनको मधेश मे औपनिवेषिक शासन तथा मधेशियो को लुटने के अलावा और कोई मधेशियो के हित्त मे कुछ करना नही है ।
१७- मधेश के युवाओ को विदेश भेजकर मधेश के जमिन तथा परिवारो को बन्जर बनाया जा रहा है ।
१८- मधेश मे नए नए उल्झन तथा आपसी द्वन्द फैलने बाला गुरू योजनाओ को लाकर औसतन मधेशियो को आपस मे लडाभिडाकर मधेशियो को लुटने का नया नया तरीका अपनाया जा रहा है ।
१९- मधेश के शिक्षा को ध्वस्त बनाया जा रहा है ।
२०- मधेश मे चुनाव के नाम पर लोगो को विभिन्न तरीको से खरीद कर चुनावो को गुन्डा राज को स्थापना किया जा रहा है, आदी ।
अब प्रान्तिय मधेशी राज्य से मधेश की समस्या सुलझाने के विपरीत उलझने की अवस्थाअ निश्चित होने के कारण स्वायत्त मधेश नही, अपितु अब आजाद मधेश ही अन्तिम विकल्प है ।
सह- सन्योजक्,
स्वतन्त्र मधेश गठबन्धन