विभेद ही विखण्डन की जड :
– शरद सिंह भण्डारि
नेपाल में कुछ लोगों को सच सुनने की आदत बिलकुल भी नहीं है। या तो वो सच को सुनना नहीं चाहते हैं या फि जान-बूझ क उस सच को जानते हुए भी अनदेखा औ अनसुना कते हते हैं। इस देश में हे मधेश विोधी ताकतें मधेश विोधी ाजनीतिक शक्तियां,मधेश विोधी मीडिया इस बात को अच्छी तह से जानते हैं कि देश के एक बडे तबके को बहुत अधिक दिनों तक नजअंदाज नहीं किया जा सकता है। उन्हें यह भी मालूम है कि इस देश में मधेशी, जनजाति, आदिवासी, पिछडे, दलित, अल्पसंख्यक आदि के साथ सैकडों वषर्ाें के साथ विभेद किया जाता हा है। लेकिन अब समय बदल गया है। अब भी यदि हम उसी पुानी मानसिकता में जीते हे तो आने वाला भविष्य हम सबके लिए काफी भयावह स् िथति लेक आ सकती है जिसकी हम कल्पना भी नहीं क सकते हैं।
मेे जिस बयान को लेक मीडिया औ कुछ ाजनीतिक दलों ने बवाल किया था उस बयान प मैं आज भी कायम हूं। मधेशी जनता जो कि इस समय इस देश की ५० प्रतिशत से अधिक की आबादी का प्रतिनिधित्व कती है उसे ाज्य के हेक अंग में उस हिसाब से प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया तो यह उसके साथ किया गया अन्याय है। मधेशी जनता के साथ सदियों से यहां के कुछ खास तबका के द्वाा शोषण उत्पीडन किया जाता हा है। इस समय जबकि हम समावेशी की बात कते हैं औ मधेशी समुदाय को समावेशी से दू खने की कोशिश कते हैं ऐसे में मधेशी के साथ विभेद अभी भी किया जा हा है।
नेपाली सेना में मधेशी समुदाय के सामूहिक प्रवेश की बात सका निर्माण के समय किए गए समझौते में ही उल्लेख है। क्षा मंत्री के नाते मैं भी यह चाहता था कि मधेशी समुदाय का नेपाली सेना में सामूहिक प्रवेश मिले औ सेना को ाष्ट्रीय सेना कहा जा सके। मधेशी कहने का मतलब यह कतई नहीं होता है कि सिर्फमधेशी जनता इसका मतलब होता है आदिवासी, जनजाति, दलित, पिछडा, अल्पसंख्यक सभी इसमें आते हैं। औ इन सभी को नेपाली सेना में सामूहिक प्रवेश काने की प्रक्रिया की शुरूआत मैंने की थी। इसके लिए मैंने सेना के प्रधान सेनापति से लेक सभी वष्ठि अधिकायिों से बातचीत की उनसे उनका विचा जानना चाहा। मुझे यह जानका प्रसन्नता हर्ुइ कि नेपाली सेना का कोई भी अधिकाी सेना में मधेशी समुदाय के सामूहिक प्रवेश के खिलाफ नहीं था। सभी चाहते हैं कि देश के ह समुदाय से लोगों का सेना में प्रतिनिधित्व मिले। लेकिन कुछ ाजनीतिक दल इसका बेवजह विोध क हे हैं।
वैसे सेना के अधिकायिों का कहना है कि अभी भी सेना में देश की ाई लिम्बु गुरूंग आदि जनजाति का प्रतिनिधित्व ही नहीं बलि्क उनका पूा का पूा एक ेजीमेण्ट ही है। इसी तह एक मधेशी ेजीमेण्ट भी होना चाहिए। इस उद्देश्य के साथ सेना में मधेशी समुदाय के सामूहिक प्रवेश की प्रक्रिया को शुरू किया गया। हां ये सच है कि एक ही बा में १० हजा की संख्या में सामूहिक प्रवेश काना तकनीकी रूप से असंभव है। क्योंकि नेपाली सेना के पास या सका के पास ऐसी कोई भी साधन श्रोत नहीं है जिससे १० हजा की संख्या में एक ही बा प्रशिक्षण की व्यवस् था कीया जा सके। इसलिए शुरू में सिर्फदो हजा लोगों को पहले बेसिक ट्रेनिंग दे क तब सेना की भर्ती प्रक्रिया के लिए उन्हें तैया किए जाने की योजना थी।
लेकिन कांग्रेस एमाले सहित कई दलों को यह बात हजम नहीं हर्ुइ। उन्होंने हमेशा ही इस बात का विोध किया। औ उन्हें मौका लग गया जब मैंने र्सार्वजनिक रूप से यह बात कही कि मधेशी जनता को उसका अधिका देना ही चाहिए। जिस कार्यक्रम में मैंने यह बात कही उस बात प मैं आज भी अडिग हूं। मैंने कहा था कि यदि अभी भी मधेशी समुदाय को उनका वास् तविक हक नहीं दिया गया तो स् िथति औ अधिक भयावह हो सकती है। मैं आज भी कहता हूं कि यदि मधेशी जनता को सिर्फसेना ही नहीं ाज्य के हेक निकाय में उन्हें बाबी का दर्जा नहीं दिया गया, उनके साथ दूसे दर्जे के नागकि जैसा व्यवहा किया जाएगा, उन्हें इस मुल्क का नागकि ही नहीं समझा जाएगा, उन्हें हमेशा शोषण औ उत्पीडन का वस् तु समझा जाएगा तो वह दिन दू नहीं जब इस देश के मधेशी अपना हक अपने अधिका की मांग कते कते अलग देश की मांग ना कने लगे। तब स् िथति औ भी खाब हो जाएगी।
दुनियां का इतिहास देख लीजिए कई आपको ऐसे उदाहण मिल जाएंगे। जहां भी उस देश की नागकिों के साथ विभेद किया जाता है वह देश विखण्डित हो जाता है। नेपाल में यह स् िथति ना आए इसके लिए जरूी है कि यहां प ५० प्रतिशत से अधिक की संख्या में हे मधेशी समुदाय को उनका वास् तविक अधिका नहीं दिया गया तो वह दिन कभी भी आ सकता है कि मधेशी जनता अपना अधिका औ अपनी पहचान पाने के लिए अलग होने की मांग क सकते हैं। इस सच्चाई को कहने से मेा मंत्री पद चला गया। मुझे इस बात का कोई भी अफसोस नहीं है। लेकिन यहां के सत्ताधाी दलों औ मेे खिलाफ आवाज बुलन्द कने वाले कांग्रेसी औ एमाले को यह बात समझना ही होगा कि एक व्यक्ति की आवाज दबा देने से औ एक व्यक्ति को मंत्री पद से हटा देने से मधेशी जनता खामोश हो जाएगी ऐसी बात नहीं है। मधेशी के पक्ष में खुल क आवाज उठाने वालों का हमेशा से ही यही अंजाम होता आया है। लेकिन जितना भी मधेशी जनता को दबाने की कोशिश की जाएगी मधेशी जनता अपने अधिका के लिए उतना ही अधिक बुलन्द तीके से अपनी आवाज को मजबूत केंगे।
मेे ऊप विखण्डनवादी होने का आोप लगाने वालों से मैं इतना ही कहना चाहता हूं कि यदि मधेशी, आदिवासी,जनजाति, दलित, पिछडा, अल्पसंख्यकों के अधिका के लिए आवाज उठाना विखण्डनकाी माना जाता है तो मैं गर्व से कहूंगा कि मैं विखण्डनकाी हूं, यदि इस देश की आबादी की पचास प्रतिशत जनता के पक्ष में बोलने प मुझे मंत्री पद से हटना पडे तो मैं ह बा वह बलिदान कने के लिए तैया हूं। लेकिन इससे सच्चाई दब नहीं सकती। म्मेी आवाज को दबाने की कोशिश कने वाले, मधेशी को उसका अधिका से व-चित कने वाले ही असल में विखण्डनकाी हैं क्योंकि वह नहीं चाहते कि मदेशी को इस देश का नागकि माना जाए। वो नहीं चाहते कि मधेशी को उसका अधिका दिया जाए। वो नहीं चाहते कि मधेशी को नेपाली सेना में उचित स् थान दिया जाए। वो नहीं चाहते कि मधेशी को ाज्य के हेक अंग में सम्मानित ढंग से प्रतिनिधित्व मिले। औ यदि ऐसा नहीं हुआ औ मधेशी जनता के साथ विभेद यूं ही जाी हा तो वह दिन दू नहीं जब मधेशी जनता अपने अधिका के लिए सडकों प फि से उतेगी औ वह दिन दू नहीं जब वह अपने लिए अलग देश की मांग क सके फि ना तो इस देश का कोई कानून औ ना ही इस दुनियां का कोई कानून मधेशी जनता को उसके अधिका देने से ोक सकती है। ±±±
-पर्ूव क्षा मंत्री द्वाा हिमालय होटल में आयोजित मधेशी जागण अभियान कार्यक्रम में दिए गए भाषण का प्रमुख अंश)