संविधान ने ही बिभाजित किया नेपाल को, एक तरफ खुन की होली दुसरी तरफ दिवाली : कैलास दास
कैलास दास,जनकपुर, २१ सेप्टेम्बर ।
नेपाल का संविधान २०७२ राष्ट्रपति रामवरण यादव ने कल्ह घोषणा कर दी । नेपाल के बहुसंख्याक क्षेत्रों में कर्फ्यू और गोलिया की वर्षा कर घोषणा किया गया संविधान के विरोध में नेपाल का ही अधिकांश भाग काला दिन के रुप में मनाया गया है ।
मधेश के जिलों मे नेपाल सरकार अर्थात खश शासको ने कर्फ्यु लगाकर मधेशी के उपर गोलीयाँ चलाकर जिस प्रकार से मधेशी जनता के लास पर चढकर यह संविधान लाया है इससे स्पष्ट होता है कि इस संविधान की आयू बहुत ही कम है । यह संविधान रोगग्रस्त है । जिन्हे देखने के लिए परोसी भी नही आता हो वह कम और किस वक्त ढल जाऐगा कहना मुश्किल है । हम परोसी राष्ट्र भारत की बात कहना चाहेगें जिन्होने सुख और दुःख में हमेसा साथ दीया है । आज खस शासको ने उन्हे भी अलग कर जिस प्रकार का साहस दिखाया है | यह नेपाल का दुर्भाग्य ही नही आने वाला दिन में बहुत बड़ा संकट का संकेत स्पष्ट दिखता है ।
मधेश के जिलों में आश्विन ३ गते रविवार का दिन घर घर में ब्यलेक आउट किया गया था । हर घर के उपर काला झण्डा फहरा रहा था । लोगों के माथे र हाथ में काला कपडा लगा था । आक्रोशित जनता ने अपनी जान कुर्वान कर के लिए तैयार थे, वैसा समय में लाया गया संविधान की उम्र कितना हो सकता है वह सभी को अनुमान लगाने की बात है ।
सेना और पुलिस परिचालन कर जनता के मुह में पट्टी बाँधकर लाया गया संविधान वास्तव में कहा जाए तो अपना ही देश एक द्वन्द सृजना कर रहा है । एक तरफ खुन की होलिया खेली जा रही हो और दुसरी तरफ बहादुरी की खुशी, उमंग और चेतावनी भरा शब्द निकाला जाए यह गृह युद्ध का संकेत स्पष्ट झलकता है ।
आईतवार अर्थात जिस दिन खुशी का दिन शासको के लिए होगा । उन्होने मधेशी जनता को खून से उस संविधान को उम्र बढाने का जो प्रयास किया है क्या वह सफल होगा । हम वीरगञ्ज की बात कर रहे है । संविधान का विरोध करने पर शत्रुधन पाटेल को गोलीया दागी गई । विराट नगर में बुट और बन्दूक की नाल से पिटा गया । जनकपुर की जनता दिन भर खस शासको को बददुआ देती रही । मानव जन्म लेते ही अंधकार दूर करने का तलास करता है लेकिन जहाँ विरोध में अधेरा किया जाता हो वैसा संविधान को जन्म लेने और मरने से पीडा और चिन्ता कदापी किसी को नही होगा ।
मानता हूँ संविधान ही देश का एक वैसी कडी है जो देश और समाज दोनो को विकास के साथ जोडने का काम करता है । संविधान के बिना देश चलाना मुश्किल ही नही उदण्डाता भी माना जाऐगा । लेकिन संविधान में सभी जात समुदाय का कदर होना चाहिए । आश्विन ३ गते का दिन अगर सभी के भावना अनुसार संविधान बनता तो आज नेपाल के लिए सबसे बडा पर्व के रुपमें लोग मनाते है । किन्तु वैसा नही हुआ क्यो ? जहाँ पर मन में बेइमानी हो, इमान्दारीता में खोट हो वहाँ कदापि देश विकास की ओर नही जा सकता है । द्वन्द और यातना में वहाँ की जनता जियेगा । अन्त में देश में भौतिक एवं मानवीय क्षेति रोकने लिए सहज वातारण कैसे बनाया जाए सरकार का दायित्व होता है और उस ओर जाए ।